धरोहर विहार : भोजपुर के 80 किमी क्षेत्र में आशापुरी, बिलोटा, ढाबला में प्रतिहार व परमारकालीन मंदिरसंकुल और शैवमठ

ढाबला में16 सादे चौकोर स्तम्भों वाली शैव योगियों तथा आचार्यों की शरण स्थलीं और तीन परमारकालीन मंदिर 

भोपाल लौटने से पहले सोचा क्यों न मध्यप्रदेश के पुरातत्व के ऐसे स्थान का अनुसंधान किया जाये जो पर्यटन के योजनाकारों की दृष्टि  से अन्चीन्हा हो। NH 46 मार्ग पर भोपाल औबेदुल्लागंज होते हुए रेहटी रोड पर भोपाल से 45 कि.मी. की दूरी पर स्थित दीवटिया से 4.5 कि.मी. की दूरी पर हर्रई पंचायत का ढांवला कुमारिया गांव हमारा अगला गंतव्य था। गांव में 11वीं-12वीं शती ई. के शैव और वैष्णव मंदिर के भग्नावशेषों के निरिक्षणार्थ हम आगे बढ़ गए वैसे भी भोजपुर तक पहुंच कर आधी दूरी तो यों ही तय कर ली थी। सांकल्या नदी और बांसनियानाला को पीछे छोड़ते हुए कोरकू आदिवासियों के बाहुल्य वाले इस ग्राम की जनसंख्या लगभग 500 रही होगी। सागौन, तेंदू, अचार, कोहा (कवा) खाकर, महुए और कर्रे बांसों की कतार वाले सघन वनक्षेत्र में विन्ध्य पर्वतमाला के पार्श्व में ध्वंसावशेषों के दर्शी बनाना हमारे लिए किसी अचरज से कम नहीं था। यह क्षेत्र सघन वनाच्छादित है।  600 हेक्टेयर के आरक्षित वन कक्ष क्र. 306 के अंतर्गत आने वाले ढांवला के वन क्षेत्र के सन्दर्भ में हमने सहायक वन संरक्षक श्री प्रदीप त्रिपाठी से संपर्क साधकर जंगल के तंत्र को समझने का प्रयास किया। उन्होंने हमें  बताया कि बीजा, हल्दू , अचार  और तेंदू  जैसे दुर्लभ प्रजातियों वाली वनस्पतियों से घिरे इस जंगल में अंजन, साल और कुल्लू  के सफ़ेद गोंद वाले पेड़ स्थित हैं जिनका औषधीय महत्त्व है और ये बहुमूल्य हैं। सबसे पहले संयोग से गांव के एक जानकार कंचन सिंह पाल से हमारी भेंट हुई जिनके मार्गदर्शन में हम सर्वप्रथम शैवाचार्यों के निवास हेतु निर्मित सोलह खम्बी मठ (ग्रामीण शब्दावली में सराय) की ओर अग्रसर हुए ,निकट ही चिलवर का घना वृक्ष था। कंचन बताने लगे मवेशियों के घावों पर इसकी पत्ती को बांधने से लाभ पहुंचता है। इससे आगे सोलह सादे चौकोर स्तम्भों वाली शैव योगियों तथा आचार्यों की शरण स्थलीं थी जहाँ पर धर्म व्यवस्थापकों के आश्रय  स्थल बने थे। मालवा में शैवमठों के नैकट्य में शैवतीर्थ (जल व्यवस्था) और उद्यान निर्मित किये जाने की परंपरा रही है। परमारकालीन शैव सम्प्रदायों के शैवाचार्यों के सत्संग हेतु स्थापित इन शैव मठों में शैव मत संबंधी ग्रन्थ सुरक्षित रखे जाते थे। सादे शिला खण्डों वाली धर्माचार्यों की बैठक व्यवस्था और यत्र-तत्र बिखरी नन्दी, सर्पबंद उमा महेश्वर, चामुण्डा, योगिनी, ब्रह्मा-सावित्री और विशालकाय राजा हनुमान प्रतिमाएं भग्नावस्था में भी इस तथ्य को पुष्ट कर रहीं थीं कि हो न हो धर्मसहिष्णु परमारकालीन शासकों के समय इस क्षेत्र में शिवोपासना का बाहुल्य रहा होगा। इससे आगे और लगभग 20 फीट ऊपर टेकरी पर चढ़ने के लिए दुरूह मार्ग था। मूक चट्टानों पर संभल-संभल कर पांव धरने के क्रम में अनेक अलंकृत प्रस्तर खण्डों के विखण्डित समूह दिखाई दिए। हमने पुराविद  डाॅ. रमेश यादव से इस संदर्भ में जानकारी चाही तो उन्होनें इस क्षेत्र विशेष में अपार संभावनाओं के चलते पुर्ननिर्मिती की प्रस्तावित शासकीय योजना से अवगत कराया। विभाग ने हाल ही में ढांवला को संरक्षित स्मारकों की सूची में सूचीबद्ध किया है। टेकरी पर छितराई शैवस्थापत्यकला की इकाइयां मार्ग को और विकट बना रही थीं। धूल धूसरित, कटीली झाड़ियों में कोबरा, धामन, कोडिले और अजगर जैसे सर्पों के प्रति अगाह करते पाल हमें चार मंदिरों के खण्डित अवशेषों के सन्निकट ले आये। लाल बलुआ प्रस्तर से निर्मित 12वीं शती ई. के तलविन्यास अधिष्ठान द्वारशाखाएं भित्ति भाग, शिखर भाग के शैलखण्ड, उदुम्बर, कीर्तिमुख, नन्दी, शिवलिंग, आमलक, चतुर्भुजी विष्णु प्रतिमाएं जता रहीं थीं की कभी यह स्थान आचार्यों द्वारा पूजित रहा होगा। यहाँ 60 x 60 फीट क्षेत्र में विस्तीर्ण पुर्वाभिमुखी मंदिर 216 x 216 सेमी आकृति वाला वर्गाकार गर्भगृह, योनिपीठ एवं शिवलिंग संरक्षित था परन्तु जमीन धंसी हुई होने के कारण पहुंच मार्ग बाधित था। द्वादशभुजी नृत्य गणेश (77 x 50  x 34 सेमी) सफेद बलुआ शिला से निर्मित परमार कालीन अद्वितीय शिल्पत्व का प्रदर्शन प्रभावित कर रहा था। योगेश्वर प्रतिमा, नटराज प्रतिमा मंदिर के अस्त व्यस्त वास्तु खण्डों और रथिकाओं  में उत्कीर्ण थी। चामुण्डा, वैष्णवी माहेश्वरी और ब्रह्माजी का शिल्पांकन, भवानीपति के घोर अराधक परमार कालीन नरेशों के शिल्प सौष्ठव को दर्शा रहा था। मूलतः भूमिज शैली में बनाये गये मंदिरों के संकुल में टेकरी पर एक भव्य विस्तृत श्रृंगारित मंदिर के अतिरिक्त दो अन्य लघु मंदिर अस्तित्व में रहे होंगे। हमें पाल ने बताया कि टेकरी से नीचे उतर कर उत्तर पश्चिम दिशा में एक तालाब की निर्मिति रही है।

ढाबला का परमारकालीन शैव मंदिर, विष्णु मंदिर और शैव मठ  

विस्तारित मसूर गेंहू धान और चने के खेत थे कुछ देर वहीं खड़े रहकर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में भी चित्ताकर्षक लग रही प्रतिमाओं को निहारने पर हम यही निष्कर्ष पर पहुंचे कि परमारकालीन शिल्प कारों ने अपनी मूक छैनी से शिव के भिन्न स्वरूपों को कुशलता से पाषाण पर सजीवता से उत्कीर्ण किया है। चण्ड प्रद्योत से लेकर परमार नृपतियों तक मालवा के अनेक नरेश शैव धर्म के अनुयायी रहे कई राजवंश आये और गये विभिन्न धर्मों के उत्कर्षापकर्ष के अध्याय लिखे गये लेकिन शिव निम्न उपेक्षित जन से लेकर सभी के आराध्य रहे। शनैः शनैः नीचे उतर कर पदयात्रा करते हुए हम उस कुण्ड तक पहुंच गये जहां परमारकालीन शैवतीर्थ के भग्नावशेष  सुरक्षित थे। कंचन पाल ने हमें बताया कि तालाब के समीप स्थित कुण्ड लगभग 55 फीट लम्बाई लिए है जिसमें कभी चतुर्दिक अलंकृत सीढ़ियों की व्यवस्था हुआ करती थी जिसे परवर्ती काल में कुएं का स्वरूप दे दिया गया। यहीं एक तेल पेरने वाले परमार कालीन कोल्हू के दर्शन हुए। कुण्ड के पास ही कुछ लोग मोरधन झड़ा रहे थे। बरसात में स्वतः उग जाने वाले मोरधन को आज शहर में व्रतधारी बड़े चाव से खाते हैं पहले कभी पाल के अनुसार यही मोरधन, झुरझुरू और समा कोरकू आदिवासियों का आहार हुआ करता था। खेत पार कर लौटे तो गांव की प्रविष्टि  पर बने छोटे से एक मंदिर में सुरक्षित रखी परमारकालीन प्रतिमाओं से पुनः साक्षात्कार हुआ। नन्दी की दो भग्न प्रतिमाएं उमा महेश्वर और गणेश की अन्य प्रतिमाएं उपयुक्त संग्रहण की बाट जोह रही थीं। वनाच्छादित संकरे रास्ते से लौटने के क्रम में बहुत आगे आने पर ऐमू (आस्ट्रेलियाई पक्षी) दिखाई दिया यह सम्पन्न वर्ग का खेत था।

रायसेन जिला पुरा सम्पदाओं और संरक्षित स्मारकों से भरा हुआ जिसमे राष्ट्रीय  महत्व लिए गौहरगंज तहसील के भोजपुर, आशापुरी, बिलोटा और पिपलिया लोरका जैसे अनेक रमणीय स्थान हैं  जिन्हें चिन्हित कर राष्ट्रीय धरोहर  सर्किट के रूप में विकसित कर यूनेस्को में सूचीबद्ध किया जाना आवश्यक है। लगभग 80 किमी के क्षेत्र में विस्तारित इतिहास को संरक्षित कर, ग्रामीण पर्यटन की दृष्टि से भी कई गॉंवो को जोड़ कर इस क्षेत्र में पर्यटकों की आवक बढ़ाई जा सकती है। शासकीय संस्थानों को इस दिशा में सतत प्रयास करने होंगे।भोजपुर,आशापुरी, बिलौटा और ढाबला के शैवोपासना के केंद्रों को देखकर प्रसंगवश प्रचलित पहेली स्मृत हो आयी गाँव आहे पर बस्ती नहीं, नदी आहे पर पाणी नहीं अर्थात गांव तो है पर बस्ती नहीं,नदियाँ तो हैं पर पानी नहीं,इन शैवोपासना स्थलों की स्थिति भी अबूझी पहेली की भांति ही है। पहेली शब्द संस्कृत के प्रहेलिका से बना है जिसका अर्थ ही है दुरभिज्ञानार्थ प्रश्न। यह भग्नप्राय मंदिर भी ऐसे प्रश्नों से घिरे हैं जो आज तक अनुत्तरित हैंऔर न जाने कब तक अनुत्तरित ही रहेंगे।

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Comments

  1. Rajendra Kumar Malviya says:

    दीदी सादर प्रणाम एवं चरणस्पर्श,
    दीदी सर्वप्रथम तो ये कहूँगा कि आप बहुत ही सुंदर लिखती है, आपकी शुद्ध और प्रवाहमान हिंदी मुझे सतत ही आपके आलेख पढ़ने को व्याकुल बनाती है। दीदी राजा भोज के बारे आप अपने अगले लेख में कुछ और अनसुना अनकहा ज़रूर बताइए जो आज तक लोगो को नही पता है। सभ्यता और संस्कृति को सहेजने का आपका ये प्रयास बहुत ही सराहनीय है। बस दीदी अंत मे आपसे इतना ही कहूँगा की आप हमें “द रोड डायरी” के माध्यम से भूले बिसरे इतिहासिक तथ्यों से अवगत करती रहें।

  2. O P Mishra says:

    Mamji, thank you very much for taking a lots of interest in heritage.now you putting a path for future generation.ashapuri was my dream project as well Vishakha Ka BHI.you have quoted Sanskrit text and original references which a symbol of serious scholar.i am proud of your researches.bhojpur temple ashapuri are the centre of the paramaras.interviews of the scholars are their own.infuture disclaimer must be in your blogs.dhabla and devbadla you please visit in different angle.you please thanks to commissioner archaeology for keen interest.letus see the future for ashapuri.thanks to you and your driver for moving even in remote

  3. नारायण व्यास says:

    आपने बहुत बढ़िया लिखा ,शब्दों का चयन और वाक्य विन्यास भी अच्छा है विशेष रूप से भरा समन्दर लिख कर जो आपने इस विषय को उठाया है वह नया है
    नारायण व्यास

  4. वीरेन्द्र सिंह says:

    भोजपुर मंदिर व आशापूरी मंदिर के बारे में लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मुझे पहले एक बार भोजपुर जाने का व दर्शन करने का अवसर मिला है परन्तु दर्शन के पश्चात मन में अनेक सवाल आने लगे और वहां के पुजारी व आम लोगों की बातें सुनकर और कौतूहल बढ़ गया था ।मन्दिर कि वास्तु कला व निर्माण के बारे मे आप के लेख से मन्दिर से जुडी अनेक जिज्ञासा के उत्तर अपने आप मिल गये,परन्तु एक यक्ष प्रश्न का उत्तर अभी भी शेष रह गया है कि वह मन्दिर आखिर अधुरा क्यो रह गया ।साथ ही आपने वहा पर आशा पूरा देवी से जुडी अनेक जिज्ञासा का आपने बहुत ही सुन्दर रूप शमाधान कर दिया है ।परन्तु सबसे विशेष बात पर आपने ध्यान दिया जो कोई नहीं देता है वह हैं उसके आस पास के क्षेत्र मेंफैले व बिखरे हुए अनेक मन्दिरों के अवशेष जो हमारी समृद्ध संस्कृति को चिख चिख कर बता रहे हैं इससे ये भी पता चलता है आज ये जैसे जंगल और सुनसान स्था न में दिखाई दे रहा है वह कभी बहुत ही सुंदर और व्यवस्थित रूप से बसा हुआ समृद्ध नगर रहा होगा जो समय के थपेडों से उजड़ गया मगर जो वहां वर्तमान में है उसे सरकार और जनता दोनों को सहेजना और सुरक्षा के लिए आगे आना चाहिए ।

  5. Rajesh Dixit says:

    इतिहासको चालना देनेके लिहाजसे यह ब्लॉग्ज उपयुक्त है…आपकी संशोधन पद्धती एवं सादरीकरण बढिया है…आपने इस ब्लॉगमे हमारा उल्लेख किया है – शुक्रिया…

  6. आभा शर्मा says:

    प्रिय दिशा जी,
    एक बार फिर थोड़े विलम्ब के बाद आपका चरवैती पवित्र ब्लॉग पढ़ा जिसमें आपने भोजपुर जैसे प्राचीन पवित्र मंदिर को राजा भोज सहित अपने पाठकों को कण-कण से अवगत कराया। हम और हमारा परिवार वहाँ दर्शन करने एक-दो बार जा चुके हैं पर इतना विस्तार हम लोग भी करने में असमर्थ हैं। आपने तो जैसे पाठकों को साक्षात वहाँ खड़ा कर दिया, सबको शिवमय बना दिया। मंदिर के साथ राजा सहित वो जानकारियाँ जो शायद हमारे पास थी हीं नहीं आपने नारायण व्यास जी से भी जो प्रश्न पूछे वो रही सही हमारी और आपके और पाठकों की जानकारी पूरी कर रहे थे। चरवैती के हर ब्लॉग में आपने जैसे अपनी आत्मा डाल दी।

    मैंने आपके ब्लॉग द्वारा चरवैती की ज्यादातर यात्राएँ कीं। आपने जैसे यात्रा के साथ हमें उस शहर, वहाँ के भोजन, वहाँ की आबो-हवा, वहाँ की मिट्टी की सौंध, मंदिर का साक्षात विवरण किया। मैंने अभी तक इतना दिलचस्प पवित्र ब्लॉग नहीं पढ़ा। सिर्फ लिखना ही काफी नहीं है, पाठकों को यह दिखाना भी ज़रूरी है कि मेरी यात्रा में आप कहीं भी धूमिल नहीं हों। हर यात्रा चरवैती आपके लिए है। जो आपने किया आपका ब्लॉग पढ़कर अपने आप होठ ॐ नमः शिवाय का जाप करने को आतुर हो जाते हैं। आप ऐसे ही चरवैती हमारे लिए लिखती रहें। आपको बहुत बहुत आशीर्वाद, प्यार और शुभकामनाएँ। मुझे आपके साथ अगली यात्रा का इंतज़ार है।

  7. अभिनव , पुणे says:

    आपकी हिन्दी इतनी सरल, मीठी और नवीनतम शब्दोवाली है कि मैं हिन्दी भाषा का अभ्यासक न होते हुए भी पूरा पढ़ता हूँ सच तो यह है कि आपका लिखा लेख पढना शुरू करने के बाद अंत तक मोबाईल नीचे रखने को मन ही नही करता।बहुत सुंदर और जानकारी युक्त लिखा है।
    मेरी हिन्दी में ग़लतियाँ हो सकती हैं , उन्हें नजरअंदाज किजीए।
    ??????

  8. बाल कृष्ण लोखण्डे ,भोपाल says:

    शानदार जी , जानकारियां संग्रह और उनकी मीमांसा , मनीषियों का ही कार्य है ।आपकी भाषा आलेख को पठनीय बनाती है,वाक्यविन्यास और शब्दों के चयन से ही लबालब भरे तालाब और द्वीपों की निर्मिति का भान हो जाता है ,बहुत सुन्दर ????

  9. अनुमिता says:

    दिशा आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा ब्लॉक चरैवेति पढ़ने को मिला। बहुत ही अच्छा विवरण बहुत अच्छे शब्द विन्यास का प्रयोग किया है। अभी मार्च 2020 में हम इस पूरी जगह को देखकर आए 26 मंदिरों का समूह भूतनाथ मंदिर आशापुरी देखकर बहुत दुख हुआ कि वहां पर कई मंदिरों के पत्थर गायब हैं और मंदिर बनाये जा सकते । बहुत गर्व महसूस हुआ कि पूर्वजों के पास बहुत सही कलाकारी थी बहुत ही गुणवत्ता से मूर्तियां तराशी गई हैं। पत्थरों पर की गई कलाकारी मंदिर समूह बनाना और कितना समृद्ध रहा होगा उस काल में हमारा भोपाल बहुत गर्व महसूस होता है और तुमने इतना अच्छा विश्लेषण किया है सारे मंदिर समूह आंखों के सामने आ गए। इसी प्रकार हमें इतिहास के बारे में बताती रहो । #चरैवेति #चरैवेति

  10. नारायण व्यास, भोपाल says:

    आपके द्वारा भेजा सचित्र ब्लॉग देखा।बहुत अच्छा लगा। आपने भोजपुर, आशापुरी इत्यादि मेरा, राजपुरोहित जी एवं आशापुरी के सज्जन का vdo ब्लॉग बहुत अच्छा बनाया है ,वीडियो सारे बहुत सुँदर हैं,सुँदर वर्णन है। आपने सभी के ज्ञान को गागर मे सागर जैसा प्रस्तुत किया हैं। आपको धन्यवाद एवं साधुवाद।

  11. डॉ जगदीश भावसार says:

    स्थिरता की अभिलाषा में पूण्य सलिला सरिता निरंतर प्रवाहवान रहती है।उसी प्रकार आपकी लेखनी कभी तालाब के किनारे,कभी नदी के तट पर,कभी कुए की पाल पर तो कभी कटीली झाड़ियों के मध्यम से पथरीली पगडंडी से होते हुए इतिहास के उन धुंधले पृष्ठों को उजागर करने में सतत अग्रसर होकर नये रुप में प्रस्तुत करती है।
    आपका भोजपुर क्षेत्र के शैव मंदिर पर शोध परक लेखन जिज्ञासुओं के अन्तर-मन को स्पर्श करेगा ।

  12. यशवंत गोरे , भोपाल says:

    आपके द्वारा भेजा ब्लॉग देखा. भोजपुर कई बार गए परंतु इस दृष्टि से नहीं देखा. चित्रों और वीडीयों के माध्यम से बहुत ही भाषा में सादरी करण किया गया है. बधाई एवं अभिनंदन.

  13. Dr R S Raghuwanshi says:

    Bahut sunder article

  14. उमेश पाठक, सौरों क्षेत्र says:

    जी नमन कल देखा बहुत सुन्दर ये कला मैं भी सीख जाऊं ??????

  15. मंजु यादव उज्जैन says:

    भोजपुर के शिवलिंग के दर्शन हमने भी किये है दिशा मैडम पर आपने वहाँ की संस्कृति एवं प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।????????

  16. डॉ मुक्ति पाराशर,कोटा says:

    आपका लेखन बहुत शानदार हैं।

  17. विमोहन says:

    चित्र और विवरण दोनों ही उम्दा हैं, स्थल भ्रमण का आनंद प्रदान करते हैं, शब्दों का चयन उत्कृष्ट है

    1. Dr Anjna Singh Gour says:

      बहुत उत्कृष्ट लेखन शैली से सज्जित आपका ब्लॉग है,धारा प्रवाह कलम मुझे आपके लेख पढ़ने को निरंतर प्रेरित करती है,,दीदी को सादर प्रणाम

  18. Dr D D Deshmukh Pandhurna says:

    भोजपुर के मंदिर के संदर्भ मे रोचक जानकारी आसपास के परिदृश्य का दर्शन और आपकी सहज सरल और चुम्बकीय भाषाशैली मन को लुभा गई

  19. Kuldeep Bhargava says:

    बेहद उत्कृष्ट शैली में भारत के एक प्रमुख शिल्प कला केंद्र का उत्कृष्ट वर्णन वाकई अद्वितीय है।

  20. डॉ वर्षा नालमे says:

    अद्भूत…. शब्दों का चयन, भाषा शैली,और प्रवाह ,हम भी आपके साथ साथ चलते हैं । 25साल पहले देखे भोजपुर की यादें ताजा हो गयी हैं ।पुन: आने की तीव्र उत्कंठा जाग गयी…बधाई और शुभकामनाएं, शानदार लेखन के लिये 😊🙏🙏

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