धार्मिक विहार – लोकास्था और लोकविश्वास की त्रिकोण यात्रा : नलखेड़ा माता, करेड़ी माता और भैंसवा माता

यात्रा का प्रारम्भ, भोपाल से सारंगपुर
यात्रा का प्रारम्भ, भोपाल से सारंगपुर

यात्रा का प्रारम्भ, भोपाल से सारंगपुर होते हुए नलखेड़ा का पहुँच मार्ग, मालवी संस्कृति और जन-जीवन   

चर अचर विश्व के रक्षक सूर्य देव के आगमन से पहले उनकी अग्रगामिनी रात्रि की बहन उषा का अवतरण हो चुका था और हम एक और नयी यात्रा पर निकल पड़े थे। यात्रा का उद्देश्य अवान्तिक्षेत्र की शाक्तोपासना त्रिस्थलियों उज्जैन जिले के करेड़ी में स्थित महिषासुरमर्दिनी माता, आगर मालवा जिले की नलखेड़ा वाली बगलामुखी माता और राजगढ़ जिले के भैंसवा कलाली स्थित बीजासन माता के मंदिरों की दर्शनाभिलाषा था। हम भोपाल से श्यामपुर राष्ट्रीय राजमार्ग से नीलबड़, कलाखेड़ी, थाना दोराहा, सोनकच्छ, खजूरिया कलां, चायनी को लांघते हुए आगे बढे जा रहे थे। अब तक तिमिरारी (सूरज) पारवा और पार्वती नदियों पर अपनी विभूति बिखेरने लगे थे। मार्ग के दोनों ओर मालवी में कांसला पुकारे  जाने वाले  मंगल सूचक कांस की शुभ्रता भली लग रही  थी,शरद ऋतु  के शुभागमन, क्वांर के उतरने और बरखा के बुढ़ा जाने की सूचना देने वाले काश फूल बंग समुदाय में भी जगद्धात्री के शारदोत्स्व के स्वागतिक रहे हैं,  पारवा नदी के कूलों पर मधु दैत्य के वध के समय भगवान् विष्णु के पसीने से गिरी बूंदों से उत्तपन्न  कुश  जिसे मालवी भाषा में मोया कहते हैं को एकत्रित करते पृथ्वीपुत्र भी दिखाई देने लगे थे। मन मंथन में लगा था लोक ने प्रकृति के रहस्यों को निरंतर परखा ही नहीं बल्कि उससे आत्मिक सुखों की पूर्ति भी की है । कांसला की चूमली बनायी  जो सिर पर बोझ रखने में सहायक हो गयी। भोजन जीमने के लिए खांखरे से पत्तल और पुड्या (दोने) बना लिए। ज्वार के तने [राड़ा ] को चीरकर छोती बनायी  जिसकी गुंथाई बरसात के पानी को निवारने वाली निवार बनाने के काम आ गयी। खांखरे और खांखरी (पलाश) के पत्तों अथवा सागौन के पत्तों की छाज बनायी । जामनेर आते -आते पड़ाव पर दोंगला दिख गया था तत्काल  पुतैयों की कूची ध्यान में आ गयी। लंबे पातों वाला कभी कलम का प्रदाता रहा बर्रू भी बीच बीच में झांक रहा  था। सरेस, बंबूल के पेड़ों की पतली छड़ें, खजूर की ताने (कीमड़ी) छत की  मुंडेर, मगरा मगरी और नेवटी बनाने में उपयोग में आ  गयीं । बेशरम की पतली छड़ों से बक्क्ल या बांकड़े के बंध बन गए।  खजूर की तानों की रस्सियां बैलों और गायों के मुंह बांधने वाले मोड़ें (मुस्का ) बनाने में बापर लीं गयीं। तुअर की संटी से टांटी या बागुर बन गयीं, पीली मिट्टी और गोबर मिलाकर दीवार को  छाब लिया गया ।  कंई कूं ने कंई नी कूं (क्या कहूं क्या नहीं कहूं )..  निःसंदेह अतीत में जो भी सुन्दर तेजस्वी तत्व रहे हैं वह लोक ने कहीं न कहीं सुरक्षित रख लिए हैं।काँधे  पर लाठी और पीठ पर सुखों की गठरी लादे सीधा  सादा  देहातियों सा  दिन निकल आया था। अकेले यात्रा करने पर हमारा मस्तिष्क अकेला कहां होने देता है ,अकेलापन पाकर बीच-बीच में  बतियाने लगता है। जेठरा जोड़ पर लोकविद वंशीधर बंधु जी मिल गए। शुजालपुर, भ्याना  सलसलई, मदाना, धनाना, गोदना गाँवों के संकेतक आँखों के सामने से  निकलते जा रहे थे।

अवान्तिक्षेत्र की शाक्तोपासना त्रिस्थलियों तक का पहुँच मार्ग और मालवा की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि 

फलाकांक्षा के चलते लोक ने अपने लोकाचरण से भरापूरा एक सहचर  देवलोक सिरजा,वृक्षों के नीचे विराजे  सिन्दूर आलोपित लोक देवगणों की व्यवस्था 

मार्ग में नेवज और महाकवि कालिदास द्वारा स्मृत कालीसिंध नदी की सहायिकाओं से अभिसिंचित धरा की उर्वरता में लहलहाते खेतों के दिग्दर्शन में बीच -बीच में अखिल विश्व के प्रतीक बौद्धों की असंख्य पीढ़ियों द्वारा पूजित पीपल के वृक्ष और पंच पल्लवों में सम्मिलित बड़, गूलर, आम, पाकर के नीचे विराजे सिन्दूर आलोपित लोक देवगणों की व्यवस्था भी  ध्यान आकृष्ट कर रही थी। दानाद  देवः जो देता है वही देव है यही सहज भाव लोकमें व्याप्त  देवी देवताओं के आस्था स्थल सिरजने में सहायक सिद्ध हुआ होगा  मन रहरहकर यही कह रहा था।

आँखे ओटलों-चोंतरों पर  कांकड़ देव, खेड़ापति हनुमान (खेड़े के रक्षक देवता) , खेतरपाल (खेतों और खलिहानों के पालनकर्ता), खोखुल माता (खांसी की देवी), मोतीझरा देव (टाइफाइड के देव), लाल बाई-फूल बाई (चेचक की व्याधि से मुक्ति प्रदात्री ), शीतला माता, चौथ माता, छींक माता, बैमाता (बच्चों को हंसाने और रुलाने वाली माता),  षष्ठी माता,  पाटी माता (पाटी नामक बुखार),  रोग्या देवी (छोटे बालकों का रोग) आदि-आदि को देख रही थीं  । लोक की देवियों  की स्थान -स्थान पर स्थापना और खप्पर में सिन्दूर से त्रिशूल मांडकर माता की नौ टींकी लगाकर खप्पर को गाँव के कांकड़ पर निकाला करने की प्रथा के साक्षी बने  हम स्वयं को  ढेरों प्रश्नों से घिरा पा रहे थे। हमने अपनी पूर्ववर्ती यात्राओं में भी मालवा में बहुत से लोक में व्याप्त देवी देवताओं को पुजते देखा था। स्वभावतः कौतूहल हुआ।क्या  शास्त्रोनुमोदित  मातृदेवियों की संख्या  इतनी कम थी जो लोक ने अपने लोकाचरण से भरापूरा एक सहचर देवलोक ही सिरज लिया,क्या अपने हित चिंतकों, प्रकृति और उसकी शक्तियों के प्रति आभार प्रकट करने के लिए लोक में देवसृष्टि का सृजन हुआ ?या फिर लोकमंगल  और आत्ममंगल की फलाकांक्षा ने  इन देवी देवताओं की प्रतिष्ठा में महती भूमिका निभायी ?लोक व ग्राम देवी-देवताओं के सन्दर्भ में हमने सुप्रसिद्ध लोकविद और मेधावान पद्मश्री डॉ. कपिल तिवारी से गंभीर चर्चा कर पौराणिक देवलोक के स्थानीयकरण को लेकर जानकारी एकत्र की। उन्होंने बताया कि लोक की नश्वरता में मोक्ष की चाहना नहीं होती , वरन  बारम्बार जन्म लेने की आकांक्षाएँ होती हैं । लोक  का  स्वर्ग तो उसके  खेतों में, मेढ़ों में, कच्चे पक्के मकानों में  होता है।देवताओं की कुपित और दयामयी आँखें उन्हें देख रहीं हैं यह भरोसा ही उनके लिए पर्याप्त है।

छोटीमाता बड़ीमाता, चौथमाता, शीतलामाता, श्री मोती ज्वरा महाराज, तेजाजी महाराज, रामदेव महाराज, देवनारायण जी, आउमाता, चौंसठयोगिनी माता, ताखाजी महाराज, कल्ला जी राठौड़, श्री हरदम लाला 

पीछे1 / 12

Comments

  1. Sangeeta Tripathi says:

    बहुत ही सुंदर विवरण और फोटोग्राफी?
    दिशा तुम्हारी मेहनत से हमे भी काफी रोचक जनकारियां मिलती हैं।????

  2. बसन्त निरगुणे says:

    बढिया रिपोर्ट।कपिल जी का भाषण अद्भुत।वे हमारे
    समय के लोक और शास्त्र के बड़े चिन्तकों मे से एक हैं।उनको सुनना हमारे लोक और शास्त्र की नई व्याख्या सुनना है।

  3. रामचन्द्र गायरी नलखेड़ा says:

    बहुत ही अच्छा ,भाषा आपकी बहुत ही अच्छी और जानकारियाँ अद्भुत हैं बहुत सी बांते तो हमें भी नहीं ज्ञात थीं

  4. वंशीधर बंधु says:

    सुप्रभात दीदी?आपकी कलम को नमन बहुत सुंदर ब्लॉग लिखा है। वर्णित सारे चित्र सजीव हो उठे हैं ।

  5. जगदीश नागर says:

    शानदार कवरेज़ है,धन्यवाद आपका ?

  6. Kailash Chandra Pandey, Mandsaur says:

    Good collection.

  7. संजय शर्मा, भोपाल says:

    अतिi उत्तम

  8. Manju yadav Ujjain says:

    Good work mam for three lok devi ??????????

  9. मधुर त्रिवेदी, उज्जैन says:

    बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने इस के माध्य्म से आगे की ओर जानकारी मिलती रहे
    यही अभिलाषा है
    जय माँ बगुलामुखी
    जय महाकाल??

  10. रामदयाल बंजारा, नलखेड़ा says:

    आपका बहुत अच्छा लगा मैडम

  11. अरूण सिंह, भोपाल says:

    मैं नलखेड़ा वाली माता जी से पहले ही बहुत अभीभूत हूँ आपके आलेख ने मुझे बहुत प्रभावित किया है

  12. कमलेश बुंदेला says:

    दीदी अति सुन्दर वर्णन

  13. श्याम सुन्दर पाठक says:

    बहुत सुंदर दीदी आपकी कलम को नमन है जय माता दी

  14. OP Misra, Bhopal says:

    Good morning, I have completed the lecture of kapil Ji. Excellent. Pl. Cover as much as photographs from all over the madhya pradesh and also tourist destination of your area. You are working for future. Cunningham surveyed like this before hundred years back. Now you are on the same line. Congratulations. Malwa area having good research material. Needs only researchers. Wakankar also doing such survey by foot. H v trivedi of also cover limited field . Please go ahead in your social study which will cover all field. I am behind your research and you are free to contact me at every stage of academic field. Once again jai chhathi maiya. Thanks.

  15. भोलाराम नायक says:

    हमको तो आपका काम एक नंबर का लगा बहुत बढ़िया

  16. सुरेश अवस्थी, दिल्ली says:

    दृश्य बहुत अच्छे हैं। उज्जैन, राजगढ़ और शाजापुर की पुरानी यादें ताजा हो गईं।

  17. भगवान दास शर्मा करेड़ी says:

    मेङम जी आप ने जो हमारी माँ महाकाली करेङी वाली के बारे मे जानकारी दी उसके लिए आप को साधुवाद बहूत बधाई हो पहली बार शोध करके लिखा गया है करेड़ी के बारे में बहुत ही बढ़िया

  18. जगदीश भावसार शाजापुर says:

    अच्छी प्रस्तुति है…… सम्पूर्ण वृत में इतिहास के साथ धार्मिक, आध्यात्मिक एवं लोक-मान्यताओ को उजागर करने में स्थानीय लोगों की मान्यताओ को पुस्तकीय तत्त्व से क्षेत्र की प्राचीनता और सामाजिक अवधारणा का सुन्दर चित्रण है।
    क्षेत्र की तीन देवियों की लोकास्था-लोक विश्वास की त्रिकोण यात्रा का विशेष अध्याय प्रस्तुत किया है।
    चरैवेति चरैवेति…….? मंगलकामनाएं

  19. बंशीधर बंधु शुजालपुर मंडी says:

    आपकी यात्रा डायरी गांव,नगर,नदी,खेत -खलिहान , प्रकृति न सिर्फ क्षेत्र के भौगोलिक परिदृश्य से रूबरू कराती है।बल्कि क्षेत्र की पुरातात्विक, ऐतिहासिक,धर्मिक,सामाजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की समृद्धि से भी साक्षात्कार करवाती है। इसकी पुष्टि डायरी की सजीव दृष्यवली,अद्भुत मूर्तिशिल्प, वर्णित परंपराएं, लोकाचरण से भरापुरा सहचर देव लोक, डॉ कपिल तिवारी ,डॉ केदार नाथ शुक्ल जी, डॉ प्रतिभा दत्त चतुर्वेदी जी, डॉ ओ.पी. शर्मा, डॉ रमन सोलंकी जी, डॉ प्रशांत पौराणिक जी आदि विद्वानों के महत्वपूर्ण सारगर्भित साक्षात्कारों और श्री मनोहरलाल पंदाजी,श्री रामचन्द्र गायरी, पंडित श्री महेश नगर,श्री राजेश दीक्षित आदि की अभिभूत कर देने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों से होती है।
    मालवा की मिठास घोलती मालवी के रसासिक्त संजा के लोकगीत,भोपी कृष्णा बई की संगत में भोपा भोलाराम की सारंगी के तारों से निसर्ग मनमोहक ध्वनि पर थिरकती लोक धुन से आबद्ध देवनारायण की फड़ गायकी, क्षेत्र को विशेष पहचान देती है ।
    इस महत्वपूर्ण,सारगर्भित यात्रा डायरी के लिए बहुत बहुत बधाई।

  20. संजीव सक्सेना,नलखेड़ा says:

    बहुत ही अच्छा कवरेज मैडम बधाइयां??

  21. अनुमिता says:

    दिशा बहुत ही अच्छा व्लॉग। हर बार की तरह सहज सरल भाषा का प्रयोग । गांव में बहुत सारे देवी देवता की पूजा की प्रथा और नाम पढ़कर बहुत सारी जानकारियां मिली। तुम इसी तरह घूमती रहो और सारा यात्रा वृतांत इसी प्रकार लिखो हमें पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगता है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम साक्षात उस गांव में ही घूम रहे हैं।
    चरैवेति चरैवेति

  22. ललित शर्मा, इतिहासकार (महाराणा कुम्भा इतिहास अलंकरण) says:

    मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति पर जनकार्य करने हेतु प्रख्यात श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने मालवा की करेड़ी माता, बगलामुखी, भैसवामाता सहित यहाँ के लोक के हृदय में बसे भैरव, शीतला, छींक, खोखुल, मोतीझरा, बैमाता, सहित लोकदेवता देवनारायण पर जो ब्लॉग बनाया है वह जमीनी तौर पर एक अमूल्य धरोहर है जो किसी भी एतद्विषयक शोध से कमतर नहीं है। उन्होंने स्थान विशेष पर जाकर वहाँ के पर्यावरण, ग्रामीण, परिवेश को गहरे से छुआ है। मध्यप्रदेश के लोक पर अभी तक जितना भी प्रकाशित हुआ है उसमें सोने में सुहागा वाली कहावत इस ब्लॉग में चरितार्थ होती है। प्रख्यात विद्वान कपिल तिवारी, केदारनाथ शुक्ल के वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार इस ब्लॉग को चार चाँद लगाते हैं। नलखेड़ा का वाममार्गी अवधारणा का देवीस्थल तथा लोक में शक्ति की अंगीकार वाली अवधारणा का क्रमिक विकास इस ब्लॉग का वैशिष्ट्य है। अनेक लोक विद्वानों, तांत्रिकों के मत ब्लॉग को पुष्टता प्रदान करते हैं। अनेक सुन्दर चित्रों से संयोजित इस ब्लॉग को पढ़कर सहज ही एक अनुपम ग्रन्थ की रचना की जा सकती है। यह दिशा जी की अथक मेहनत का फल है कि वे अकेली ही इस यात्रा में चरैवेति मंत्र को जीवंत कर रही हैं।

  23. डॉ मोहन गुप्त उज्जैन says:

    बहुत अच़्छा। आधार डॉ. कपिल तिवारी ने आगम से ही लिया है। लोक उससे भी परे है।

  24. हरीश दुबे, महेश्वर says:

    लोकास्था – लोकविश्वास मातृशक्ति धाम की त्रिकोण यात्रा
    का आपने जो लालित्यपूर्ण शैली
    में वर्णन किया है । वह अद्भुत है
    ऐसा लगा जैसे ललित निबंध पड़
    (सुन)रहें हों ।।
    बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण ।
    विद्वान अतिथि महोदय ने कितना
    सहज व्याख्यायित किया गूढ़
    तत्वों को । वाह वाह ।।
    ???????

  25. वीरेंद्र सिंह says:

    आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा और बढती जा रही है साथ ही ये सवाल भी उठ रहाँ है कि कितना बडा केन्द्र किसी समय में रहा होगा ये स्थान वामपंथी तपस्या और तांत्रिक साधना का जिसके जीवंत प्रमाण आपके शोध में बहुत ही साफ देखा जा सकता है शायद इतना बड़ा केन्द्र पूरे अखण्ड भारत में नहीं होगा पर वो कैसे धीरे-धीरे समाप्त हो गया ये भी बहुत घना रहस्य है जो आपने चौंसठ योगीनी मंदिर के अवशेष, व भैरव के अवशेष आप ने खोजे है वो भी आज के समय में बहुत ही सराहनीय प्रयास है मुझे लगता है कि यदि सरकार इसे चाहे तो आज ये भारत का पुरी दुनिया के लिए एक बहुत ही बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है और देश व दुनिया के लिए ज्ञान विज्ञान को समझने मे भी सहायक होगा और भारत के गौरवशाली इतिहास को बताने मे भी सहायक होगा ।

  26. Nitya dubey says:

    बहुत ही सुंदर लेखनी है और आपके द्वारा हमें मां बगलामुखी मंदिर के दर्शन हुए इस बात के लिए बहुत आभारी है अगली लेखनी का इंतजार रहेगा ??

  27. Kamal Dubey says:

    बहुत ही सुंदर लेखनी है बगुलामुखी जय महाकाल ?

  28. हंसराज नागर कोटा says:

    हमने आपके पांचो ब्लाग पढ लिऐ है ।पढकर अच्छा लगा सबसे पहले दो बातो के लिऐ साधुवाद देना चाहुंगा ,पहला यह की आपने ज्यादातर शुद्व हिन्दी शब्दो को धाराप्रवाह प्रयोग किया है ।जो आपकी विदुता को दर्शाता है ।यह अच्छी बात है ।कि आप हिन्दी को अपने मुल स्वरूप में  बहने देती है ।
    दुसरा यह है कि आपने फोटोग्राफ़ी उत्तम कोटि की है ।जिस भी छवि चित्र को देखते मन को भा सा जाता है ।सारे ब्लागो को पढकर ही आपके लेखन को थोडा बहुत जाना जा सकता है ।सब कुछ ठीक ठाक है ।हमारी शूभकामनाऐ आपके लेखन को।

  29. वर्षा नाल्मे अजमेर says:

    Disha mam ..आप मालवा की अन्जानी और छुपी हुई कला,संस्कृति ,और आस्था से सबको परिचित करवा रही हैं, हम मालवा वाले हृदय से आपका आभार एवं धन्यवाद प्रकट करते हैं ।????आपके ब्लोग पढ़ कर लगता हे हम आपके साथ घूम रहे हैं ?????????

  30. रजनीश भामौरिया पोलायकलां says:

    अद्भुत संग्रहण

  31. डॉ धरमजीत कौर वरिष्ठ पुराविद जयपुर says:

    बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है दिशा जी, कई दिनो बाद यौगनियों के बारे में सार्थक व उपयोगी सूचनाएं मिली.

    दिशा जी, योगिनी शिल्प पर मैं एक पुस्तक लिख रही हुं इस बारे आपसे बात करूंगी ???

  32. लक्ष्मीनारायण पयोधि, भोपाल says:

    अच्छा वृत्तांत है।इसमें वर्णित अनेक देवी-देवता भील जनजाति समूह के लोगों की आस्था के केन्द्र भी हैं।डॉ. कपिल तिवारी जी ने बहुत गहराई से सृष्टि और देवलोक की अवधारणा को स्पष्ट किया है।
    इसमें मैं केवल इतना जोड़ना चाहता हूँ कि शास्त्रों की रचना लोक मान्यताओं के अवलोकन और विवेचन के आधार पर हुई होगी,क्योंकि लोक मान्यताएँ मानव-सभ्यता के आरंभिक विकास के साथ ही धीरे-धीरे स्थापित होती चली गयी हैं।ये परंपरा के रूप में आगे बढ़ी हैं।शास्त्र इन्हीं मान्यताओं के परिष्कृत रूप हैं।यह भी कहा जा सकता है कि शास्त्र एक प्रकार से लोक मान्यताओं का कोडिफ़िकेशन हैं।यह काम चिंतक,अध्ययनशील और अन्वेषक ऋषियों ने किया है,जो बहुत बाद की स्थिति है।इसलिये यह सोचना एक बड़ी भूल होगी कि क्या वैदिक,शास्त्रीय, पौराणिक आदि देवी-देवता कम पड़ गये थे,जो लोक ने एक बड़े देवलोक की रचना कर ली? कपिल जी ने सही कहा है कि लोक आस्था के मूल केन्द्रबिंदु भी शिवशक्ति हैं।इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि लोक-आस्था और मान्यताएँ शास्त्रीय ज्ञान-परंपरा की अनुगामिनी नहीं हैं।
    आपका यह वृत्तांत और कपिलजी की बातचीत अत्यंत ज्ञानवर्द्धक है।आपकी जिज्ञासा,अन्वेषणशीलता और परिश्रम को प्रणाम!
    शुभकामनाएँ!

  33. पंडित गजानंद तिवारी says:

    बहुत सुन्दर आलेख

  34. नागर जी राजगढ़ says:

    बहुत ही शानदार प्रस्तुति आपके साथ मां भेंसवा महारानी की व्याख्या रोमांचित करनेवाली यात्रा रही बहुत साधुवाद

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