पूर्व क्षितिज का किवाड़ खोलकर रथारूढ़ प्रभाकर धीरे-धीरे अवतरित होते हुए, भोरहरी में झरते हरसिंगार के फूल और ऊदी-ऊदी दूब पर ओस के कण, ऐसा लगा मानो पवित्र प्रसून सूर्य देवता के स्वागतार्थ स्वमेय चढ़ गये हों। औरंगाबाद में वेलकम ग्रुप से सम्बद्ध रामा इन्टरनेशलन के बगीचे में टहलते हुए सूर्य देवता का आगमन लुभावना लग रहा था, लेकिन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के परिगणन में आठवें क्रमांक पर प्रतिष्ठित आशुतोष शिव के शाश्वत धाम की यात्रा का समय हो चुका था। इसीलिए महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित आद्य ज्योतिर्लिंग श्री नागनाथ के दर्शनापेक्षी हम सुबह 7 बजे ही निकल पड़े थे । 200 कि.मी. की यात्रा का प्रारंभिक चरण फोरलेन होने के कारण सुविधाजनक था लेकिन बाद के ऊबड़-खाबड़ सिंगल लेन पर समय अधिक लग गया । हिंगोली जिले के औंढ़ा गांव तक पहुंचने में नागपुर मुम्बाई राष्ट्रीय राजमार्ग और फिर जालना-जिन्तूर महाराष्ट्र राज्यमार्ग से जाने में साढ़े तीन घण्टे की समयावधि लग जाती है।
Wonderful description. Kudos.
अरूण जी, आपका भूगोल शास्त्री के तौर पर आलेख की सराहना करना मुझे भा गया, अनेकानेक धन्यवाद?
Very Good.
हरिकृष्ण जी ,द रोड डायरीज़ परिवार में आपका स्वागत है बहुत धन्यवाद?
प्रिय दिशाजी,
आद्य ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के दिव्य धाम की आपकी यात्रा का सचित्र एवं सजीव वर्णन पढ़कर मन पुलकित हो उठा. पूरा यात्रा वृतांत अत्यंत ही रोचक तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है जिसमें की पर्यटन, आध्यात्मिक एवं इतिहास की संपूर्ण जानकारी बड़े ही सलीक़े से प्रस्तुत की गई है. भाषा पर आपका कठोर अनुशासन है जो की आज के युग में कम ही नज़र आता है.
अभी अभी ही त्रयम्बकेश्वर एवं भीमाशंकर की यात्रा से लौटा हूँ और आपने मुझे नागेश्वर की यात्रा के लिए प्रेरित कर दिया है. आपका यह यात्रा संकलन संजो के रखने योग्य है.
आपका पुनः धन्यवाद.
डॉ संजय शर्मा
एमएएनआईटी, भोपाल
संजय जी ,आप की प्रतिक्रिया के लिए अतिशय धन्यवाद,आप इस बार ओंढा नागनाथ होकर आइए,द रोड डायरीज़ के सहयोग से प्रकृति ,इतिहास,संस्कृति संस्कार और आध्यात्म का आनंद लीजिए ,आपको भाषा ने प्रभावित किया यह जानकर संतुष्टि हुई,?
मेम बहुत ही शानदार लिखा है आपने पढ़ कर ऐसा लगा जैसे हम भी इस यात्रा में आप के साथ थे इतने आनंदमई प्रस्तुतीकरण के लिए धन्यवाद |अन्य ज्योतिर्लिंग की यात्रा के समान इस ज्योतिर्लिंग की यात्रा में भी आप के द्वारा किया गया वर्णन अद्वितीय एवं सराहनीय है| आपकी लेखन कला के विषय में मेरे द्वारा कुछ अन्य कहा जाना सूर्य को दीया दिखाने के समान है |
ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने की तीव्र आकांक्षा जागृत हो गई है
अंकित आपके पत्र से यह प्रतीत होता है कि आप धार्मिक प्रवृति के हैं आपको ब्लाग की जानकारियों ने आध्यात्मिक यात्रा के लिए प्रेरित किया यह जानकर अच्छा लगा,धन्यवाद?
आपका आलेख जानकारियों से परिपूर्ण है ,कोई गुंजाइश ही नहीं आपने छोड़ी ,चित्र भी बहुत अच्छे हैं एेसे ही लिखते रहो हमारा आर्शीवाद आपके साथ है ।
रत्नाकर कोंडिलकर, भीमाशंकर महाराष्ट्र
रत्नाकर जी, आपको सामग्री अच्छी लगी फ़ोटो भी पसंद आईं यह जानकर मन प्रसन्न है बहुत धन्यवाद
आपका आलेख प्रशंसनीय है दारूका वन के समर्थन में जो आपने लिखा वह उल्लेखनीय है,यथार्थपरक् वर्णन,फ़ोटोग्राफ़ भी उच्चस्तरीय हैं ।व्यापक इतिहास की सारगर्भित जानकारी देना ब्लाग पर यह मुश्किल काम था वह भी आपने बख़ूबी निभाया ,मेरी शुभकामनाएँ और आशीष
संकेत दीक्षित, त्र्यम्बक महाराष्ट्र
संकेत जी ,आपके आर्शीवचन मेरे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं आपकी सराहना और स्नेह से मेरा भरपूर उत्साहवर्धन हुआ है अनेकानेक धन्यवाद ?
It’s commendable how you describe your travel experiences so beautifully! You truly make your audience relive the moment. Your writing style and language do justice to the essence of these remarkable Jyotirlings. Keep it coming ma’am. 🙂
Thanks, Yashna for your thoughtful and inspiring comment. I’m glad you find connect with the content and the spiritual essence of the blog. Keep coming back to read more and keep sending your wonderful comments too! Much thanks once again.
आपका आलेख बहुत ही सटीक,पठनीय है,सभी पहलुओं को छूते हुए कमाल का प्रस्तुतीकरण है,लिखने का अंदाज भी एेसा है कि संबंधित अभिमत प्रदर्शित करने के बावजूद शब्दों की कारीगरी से पाठक शुरू से आख़िर तक जुड़ा रहता है.
राजेश दीक्षित, त्र्यम्बक महाराष्ट्र
राजेश जी,आपको तो पहले सहयोग के लिए बहुत धन्यवाद ,श्लोंकों को खोजने ,विषय की तह में जाने का कार्य आपके बिना संभव नहीं था ,हमारी लेखनी से और तथ्यों के प्रभावी प्रस्तुतीकरण से आप संतुष्ट हैं मुझे बहुत ख़ुशी मिली ?
Your efforts about jyotiling artical are amazing I hv first time seen nd read briefly knowledge about jyotiling temple nd related history with all geographical nd historical as well as religious facts nd pic.we r proud on you that our generation ll know about our culture with related facts of jyotirlings Keep it up We very much thankful you Regards Jitendra giri
Regards
Jitendra giri
जीतेन्द्र जी,आपकी सटीक प्रतिक्रिया के लिए अतिशय धन्यवाद,आपको स्थान के भूगोल ,इतिहास ,समाज और आध्यात्मिक पहलू ने ब्लाग के माध्यम से प्रभावित किया तो मैं समझती हूँ मेरी मेहनत सफल हो गयी ,ब्लाग से पहली बार जुड़ने और स्नेहपगी प्रतिक्रिया भेजने के लिए एक बार फिर आपको ढेर सारा धन्यवाद ?
आद्य ज्योतिर्लिंग श्री नागेश्वर के महात्म्य के साथ ही स्थान से जुड़ी सभ्यता,संस्कृति, शिल्पकला, किवंदतियां और परंपराओं का वर्णनअत्यंत रुचिकर है
निशान्त तुम्हें ब्लाग धार्मिक प्रवृत्तियाें से जोड़ रहा है यह जानकर बहुत अच्छा लगा ?
प्रिय दिशा जी
आपके द्वारा मेरी त्र्यंबकेश्वर एवं भीमाशंकर की यात्रा सिद्ध हुई है, केवल साक्षात दर्शन शेष है. अभी-अभी ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के दिव्य धाम कि आपने सचित्र यात्रा करवा दी है. जिस तरह से आकाशवाणी के रूपक होते हैं आपने इस यात्रा वृतांत को उसी शैली में लिखा है. बीच-बीच में इतिहासविद्, धार्मिक जानकार और विषय विशेषज्ञों के आख्यानों से यात्रा वृतांत सत्य की कसौटी पर खरा उतरता है. समस्त जानकारियों से सिक्त होकर यह यात्रा वृत्तांत आपकी सशक्त लेखनी का अनुशीलन करता है. बधाई
चित्रेंद्र स्वरूप राजन
कार्यक्रम अधिकारी
आकाशवाणी भोपाल
राजन सर ,बहुत धन्यवाद ,श्रृव्य माध्यम ने ही मुझे सही मायने में किसी स्थान को पैनी दृष्टि से देखने का कौशल सिखाया है ,आपके साथ लिखे रेडियो के फ़ीचर लेखन की यादें ताज़ा हो आईं।?
I am extremly happy to see the well researched road dairy for maharastra .you have collected all the relevant materials from pujaries scholars and also fromdr bajpai of a s i for authentifications.once again thank you very much for complete informations about hemadpanthy temple archtecture. Thanks for your hard works.
O. P. Mishra
Senior archeologist, writer and historian
सर,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हो गया ,पुरातत्व विशेषज्ञ की दृष्टि से आपने ब्लाग को रूचिकर पाया ,सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पाया यह मेरे लिए बहुत मायने रखता है ह्रदय से धन्यवाद ?
Bhut bria or rochak varnan aisa lgta h k hm b bhagvan k darsan kr aaye ho sabdo ka pryog b srahniya h
राहुल प्रतिक्रिया लिखकर ब्लाग को रूचिकर बताने के लिए ढेर सारा धन्यवाद?
भूतभावन भगवान शंकर का हर स्वरुप अद्भुत और आकर्षक है। आपने विभिन्न स्वरूपो का दर्शन करा कर पाठक गण को कृतार्थ किया है।आपके संस्करण पढ़ कर आपकी भाषा शैली समझने लगा हूँ।
इस अंक में नागेश्वर का दर्शन करा कर हम भक्तों को अविभूत कर दिया। यात्रा के मार्गों का जो अनुभव आपके वृतांत में मिलता है वह सहज ही पाठक को उस पर होने अहसास करा देता।
भगवान् शिव इसी तरह आपको प्रेरित करते रहे और आप हम पाठको को अपनी लेखनी का रसास्वादन कराती रहे।
अगले अंक की प्रतीक्षा में………
शैलेश त्रिपाठी
अध्यक्ष गा ट गा वाराणसी
शैलेश जी ,पहले तो गा ट गा के अध्यक्ष के बतौर लिखी गई आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है ,आपको बहुत बधाई,आपने आलेख की प्रशंसा कर और विषय में अधिक गहरे पैठकर लिखने के उत्साह को दुगना कर दिया ,अनेक धन्यवाद?
मैडम ,आपका आलेख बढ़िया है ,जानकारियाँ काफ़ी ज़्यादा और महत्वपूर्ण हैं फ़ोटो भी बहुत आकर्षक हैं,आपने दारूका वन वाली बात को बहुत बेहतर तरीक़े से स्पष्ट किया है ,उसके लिए जिस द्वादश ज्योतिर्लिंग वाली किताब का आपने ज़िक्र किया है न वह भी बहुत रूचिकर है,इसी तरह लिखते रहो ,मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं
श्रीमती ललिता शिन्दे ,
विश्र्वस्थ त्र्यंम्बकेश्वर ,देवस्थान
ललिता जी ,आप तो मेरी दृष्टि में आधुनिका गौतमी स्वरूपा हैं जो सतत् गोदावरी संरक्षण में तत्पर है आपकी प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल धन्यवाद ?
जिस प्रकार आपने अपनी यात्रा के अनुभवों को इतनी खूबसूरती से वर्णन किया है वह काफी सराहनीय है! जो जानकारिया आपने दी है वह काफी लोगो को भगवान शिव के ज्योतिलिंग के दर्शन के लिए प्रेरित करेगा अथवा उनकी यात्रा को आसान बनाएगा। ब्लॉग लिखना भी एक प्रकार की कला है जो आप बखूभी निभा रहे है
राहुल,तुम तो ख़ुद ज्योतिर्लिंग की यात्रा करके लौटे हो हमारे तीर्थस्थान सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं जितना तीर्थयात्राएं करो उतना मन प्रफुल्लित रहेगा ,बहुत धन्यवाद ,द रोड डायरीज़ से जुड़ने और लिखने के लिए…?
Aapka barnan pada bada rochak or jankari se paripurn he esme sastra or etihas dono ka odahran he padke hame bhi bo jankari Mile jisse ham anbigay thhe aap ko bahut sadhubad bhagban aap par krapa kare
देवेन्द्र दुबे
देवेन्द्र जी आपकी प्रतिक्रिया मुझे आगे भी बेहतर लिखने की प्रेरणा देती रहेगी बहुत धन्यवाद
Bahut hi badhiya varnan hai……Jane ka Mann hai…kabhi zaroor jayenge
अनिल जी बहुत सारा धन्यवाद,आप बिलकुल जाइए आपका मन हमारी ही तरह अति प्रसन्न हो जाएगा
??? dhishaji Ati sundar Aatbhut Aapko HARDIK SHUBH KAMANA .. PURUSHOTTAM BALASAHEB LOHAGAONKAR TRIMBAK.
पुरूषोत्तम जी बहुत -बहुत धन्यवाद ??
दिशा , बहुत सजीव और सुन्दर विवरण है। लगता है कोई दूरदर्शन पर आँखों देखा हाल देख सुन रहा हूँ। इतना जीवंत और रोचक कि कोई शुरू करने के बाद समाप्त किये बिना उठ नहीं सकता।
मैं ज्यादा घूमा फिरा नहीं हूँ। सिर्फ तीन चार ज्योतिर्लिंगों के दर्शन किये हैं लेकिन लगता है कि वह कमी अब तुम्हारे ब्लॉग्स के माध्यम से पूरी हो रही है।
मंदिर के इतिहास, माहात्म्य, शिल्प और स्थापत्य के बारे में जानकारी जुटाने में तुमने काफी परिश्रम और धन व्यय किया लगता है। सार्थक रहा है तुम्हारा यह प्रयास। चित्र भी बहुत सुन्दर आये हैं।
बधाई, ढेर सारी इतने सुन्दर आलेख के लिए।
सर,आपने तो दूरदर्शन के दिनों की याद ताज़ा करा दी जब आपके मार्गदर्शन में समाचारों की तह में जाने की क़वायद होती थी दृश्य माध्यम ने रंगों की इबारत सिखाई,आपको ब्लाग ,सामग्री ,चित्र,सभी पक्ष रोचक लग रहे हैं यह बात तसल्ली देती है इस बार आपने भाषा को लेकर टिप्पणी नहीं की मन गदगदायमान है बहुत धन्यवाद?
बहुत ही सुन्दर विवरण किया है हर एक जगह का….एवं आद्य ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के दर्शन और दारूका वन का विवरण अच्छा किया गया है इससे हमको ज्योतिर्लिंग के बारे में जानकारी मिली और आसपास के मंदिरों के दर्शन हुए….
अंकिता तुम युवा हो और दारूका वन प्रसंग से लेकर मंदिर की स्थापत्य कला में रूचि ले रही हो बहुत बढ़िया
दिशा जी अपने आद्य ज्योतिर्लिंग नागेश्वर का विवरण बहुत ही अच्छा किया है इसमे अपने भगवान विष्णु तथा दारुका वन का विवरण किया आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा भगवान शिव की क्रपा आप पर बनी रहे |
कमल जी आपका पूरा परिवार एक साथ बैठकर आध्यात्मिक यात्रा के बारे में पढ़ता भी है और लिखता भी है इससे बड़ी बात और क्या होगी बहुत धन्यवाद
बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर आद्य ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के मंदिर के बारे हमें बहुत सी बातो की की जानकारी मिली……
नित्या तुम जब लिखती हो तो मुझे इसलिए भी अच्छा लगता है कि मेरे ब्लाग से युवा जुड़े हुए हैं और मैं उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़ रही हूँ
अति सुन्दर विवरण है भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का …..
अंकित प्रतिक्रिया के लिए अतिशय धन्यवाद
दिशा जी अपने आद्य ज्योतिर्लिंग नागेश्वर का विवरण बहुत ही अच्छा किया है इसमे अपने भगवान विष्णु तथा दारुका वन का विवरण किया और आसपास के मंदिरों का एवं शिल्प कला का उसके इतिहास का स्थापत्य के बारे में जानकारी दी आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा
जय तुम तो शिव भक्त हो ही पर स्थापत्य और केशिराज की प्रतिमा का सौन्दर्य तुम्हें रास आ रहा है यह जानकर और भी अच्छा लगा?
आप के धार्मिक एवं दार्शनिक विचार, मानवोचित तथा आध्यात्मिक झांकी प्रस्तुत करने का व्यापक तरीका, जिसमें मेरा पूर्ण अस्तित्व इस दिव्य धाम यात्रा में डूब गया, जो मेरी आत्मा में प्रवाहित होकर मेरे हृदय एवं मन को ओत- प्रोत कर रहा है । यात्रा वृतांत के गहरे सत्यो और भक्तिपूर्ण भावोद्गार जो आपके द्वारा लिपिबद्ध किए गए हैं । यह हमारे लिए एवं आने वाले युगों के लिए ज्ञान एवं ईश्वर प्रेम को सुरक्षित करने में सार्थक होंगे । आपके द्वारा हमारे साथ इस यात्रा वृतांत को बांटने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
आगे की यात्रा वृतांत के लिए प्रतीक्षारत ।।
महेश तुम्हें धार्मिक यात्रा वृत्तान्त पसंद आते हैं और द रोड डायरीज़ की आध्यात्मिक यात्रा तुम्हें रूचि अनुरूप लग रही है यह जानकर मन पुलकित है बहुत धन्यवाद
आपका आलेख बहुत ही बढ़िया है बहुत सी जानकारियाँ तो हमारे लिए भी नई हैं ,आपने गहन अध्ययन,चिन्तन और छानबीन के बाद एेसा लेख लिखा है इसीलिए मुझे विश्वास है यह रचना बहुत से पाठकों को प्रभावित करेगी,पर्वत और मंदिर की भव्यता का विस्तृत वर्णन आपने अपने अंदाज में एेसे किया है कि आलेख दिलचस्प बन गया है
राजेन्द्र कौशिके, घृष्णेश्वर महाराष्ट्र
Mamji i read all reactions about roadshow of maharastra .thanks from the people who wrote and your reply.you will prove the origional researcher.once again thank you and .god bless you.
सर यह जानकर इतना अच्छा लगा कि कोई प्रतिक्रियाएँ भी शिद्दत से पढ़ता है किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ समझ नहीं आ रहा,स्नेह वर्षा के लिए कोटि कोटि धन्यवाद??
Dear Disha,
Going thru your blog was as if I am on pilgrimage. So finite discription, language and the flow – simply commendable!! Keep it up.
Thanks so much for your crisp and very encouraging comment, Namrata ji!
Keep visiting for more and keep inspiring me with your valuable comments too!
आपका लेखन उच्चतम दर्जे का है,आपने तो घर बैठे -बैठे तीर्थयात्रा करा दी,विवरण एेसा है कि अब औंढा जाकर दर्शन करने का मन कर रहा है आप जो काम कर रही हैं उसका लाभ आगे आने वाली पीढ़ियों को होगा श्री ओंकारेश्वर आपकी मेहनत सफल करें
अखिलेश दीक्षित,ओंकारेश्वर म.प्र.
अखिलेश जी आपकी प्रतिक्रिया पढ़ी यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि आप ब्लाग से जुड़कर पढ़कर प्रसन्नचित्त हैं इसी में द रोड डायरीज़ की सार्थकता निहित है धन्यवाद?
आपका आलेख बहुत ही अच्छा है ऐेसा लगा हम स्वयं यात्रा कर रहे हैं, आप जितना विस्तार से लिखते हो न उतना तो मैंने कभी नहीं पढ़ा, श्री त्र्यम्बकेश्वर की आप पर कृपा बनी रहे
मंगेश श्रीनिवास चांदवड़कर,त्र्यम्बक महाराष्ट्र
मंगेश जी आपको बहुत धन्यवाद ,ब्लाग के संबंध में अपनी राय हम सभी के साथ साझा करने के लिए?
Madam, this is very good description about Jyotirling as well as your travel experience and Geographical information. I wish you the best.
Mighty thanks for your kind and inspiring comments, Hire ji. I’m overwhelmed and appreciate your kind support in providing me vital information for the blog time and again.
दिशा बहुत उम्दा वर्णन .
दिशा जी जिस तरह ……
“मिट्टी का मटका और परिवार की कीमत सिर्फ बनाने वाले को पता होती है, तोड़ने वाले को नहीं।” उसी तरह आपकी लेखनी पर कोई भी प्रतिक्रिया देना सरल कार्य नही । विषयागत लेखनी का प्रस्तुतीकरण संचार माध्यम का सही उपयोग है।
भानू जी आपकी प्रतिक्रिया बनारस से ब्लाग पर आख़िरकार पहुँच ही गईसीमित शब्दों में बहुत बड़ी बात कहकर आपने हमारे हौंसलों को उड़ान दे दी ह्रदय से धन्यवाद??
वर्षा अपनी बढ़िया राय हम तक पहुँचाने के लिए दिल से शुक्रिया ?
दिशा
जिस तरह से तुम अपनी यात्रा के अनुभवों को इतनी ख़ूबसूरती से वर्णित करती हो, वाकई काफ़ी सरहनीय है।बहुत ही सजीव और सुन्दर विवरण हर जगह का ।
संगीता बहुत सारा धन्यवाद,तुम्हारी प्रतिक्रिया पाकर बहुत अच्छा लगा पोशमपा भई पोशमपा वाले दिन याद आ गए ?
यात्रा का सजीव एवं सचित्र वर्णन सराहनीय है। लेखनी एवं भाषा पर आपका पूर्ण नियंत्रण है। ंंंंंंंंंंंंंंअति सुंदर
प्रदीप जी,द रोड डायरीज़ परिवार में आपका स्वागत है बहुऽऽऽऽऽऽऽऽऽत सारा धन्यवाद?
ऊँ नमः शिवाय, आपका नया लघु परीपथ यात्रा वृतांत भगवान शिव का द्वादश ज्योतिलिंग का औढ़ा का नागेश्वर नाथ यात्रा पढ़ने को मिला ।
ञान और बढ़ भी गया तथा कई शंका भी हो गई जिसमें पहली कि राज़ा हरिश्चंद के नाम की पहाड़ी वहाँ पर है।आपके शोध के अनुसार ऋषि विश्वामित्र के श्राप के कारण राजा हरिश्चंद वहाँ तपस्या करने गये थे परन्तु जहाँ तक हमारी जानकारी है उन्हें ऋषि विश्वामित्र ने उन्हें श्राप कब दिया इसमें भ्रम है तथा दूसरी शंका कि उस मंदिर का आधा हिस्से का पुन: निर्माण जो कि रानी अहील्याबाई होल्कर ने कराया वह ऊपरी हिस्सा सफ़ेद रंग से क्यो रंगा है क्या ये सबको बताने के लिये कि ये हिस्सा महारानी होल्कर ने बनवाया है ।परन्तु सबके बावजूद आपका इस अछूता विषय पर अछूता इसलिए प्रयोग करना पड़ा क्योंकि आज के माहौल में मुझे यहीं शब्द उचित लगा क्योंकि इस विषय मे लोग जाने से बचते है या ये कहे कि जाना नहीँ चाहते क्योंकि आज इस विषय मे ना तो पैसा हैऔर ना ही रुचि अतः ऐसे मे आपका इस महत्वपूर्ण परंतु अछूता विषय पर इतनी मेहनत प्रशंसानीय है आगे की पीढ़ियों के लिये मार्गदर्शक भी होगा अतः हमारे तरफ़ से आपको शत शत शुभकामनाएँ।
वीरेन्द्र सिंह
वीरेन्द्र जी आपको ब्लाग पसंद आया,आँचलिक शब्दों ने आपके दिल को छुआ यह सब जानकर अच्छा लगा आपने हरिश्चन्द्र गढ़ पर्वत श्रृंखला और सत्यवादी हरिश्चंद्र को लेकर जो सवाल पूछा है उसका जवाब इस कटिंग के ज़रिए देना चाहूँगी जिसे आधार बनाकर ही मैंने तफ्तीश शुरू की यह सन्७५ में हमारे जैसे पत्रकार द्वारा पहाड़ी पर जा कर की गई रिपोर्टिंग की कतरन है
कतरन फोटोगैलरी/URL में जाकर देखिए ज़रूर यह लिंक है “https://bit.ly/2l8IGrC”
रहा सवाल शिखर की सफ़ेदी का तो यह अहिल्या बाई होल्कर के जीर्णोद्धार कार्यक्रम के तहत बनाया गया है तभी से सफ़ेद है हर दो तीन साल में पुताई कर इसकी सफ़ेदी बरक़रार रखते हैं
आपने मेरे प्रयासों की सराहना की आने वाली पीढ़ियों के लिए उपयोगी बताया बहुत धन्यवाद,हाँ यह बात आपकी सही है इस परिश्रम से आर्थिक प्राप्ति भले ही नहीं हो पर बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर जो प्राप्ति होती है न वह लाख गुने बेहतर है इतने सारे सकारात्मक विचारों वाले लोग जुड़ते हैं सुविचार साझा करते हैं यह तो चाहिए जीवन में और क्या?
औंढा नागनाथ बहुत ख़ूब ,सविस्तार स्थान महात्म्य को समझाने वाला आपका आलेख श्रेष्ठ है
Madhavi Modak
माधवी मैडम ,बहुत धन्यवाद,आपके भाषाई सहयोग के बिना पोथियों की तह में जाना असंभव था ह्रदय से आभारी हैं ?
आपका बहुत उच्चस्तरीय अति प्रशंसनीय प्रयास है,माँ भगवती की असीम कृपा है आप पर अन्यथा इतनी गहराई से परिश्रम के साथ लिख पाना संभव नहीं है ,आप सभी को तीर्थयात्रा करा देती हैं हम स्वयं तीर्थ स्थानों पर जाते हैं पूजा करते हैं निकल जाते हैं पर मंदिर के शिल्प वैभव से शैली से अनजान रह जाते हैं आप उन्हीं बिन्दुओं पर गहन पड़ताल कर हम तक पहुँचाती हैं तभी तो हम देख पा रहे हैं अन्य प्रतिक्रियाएँ भी यही कह रही हैं जो हम कहना चाह रहे हैं
पंकज द्विवेदी, विंध्यवासिनी धाम, उत्तरप्रदेश
पंकज जी,माँ विंध्यवासिनी देवी का आशीर्वाद मिल गया आपके माध्यम से ,आप सभी धर्म मर्मज्ञों का बड़प्पन है ,आप सभी से जानकारियाँ लेकर हम लोगों तक पहुँचा भर देते हैं फिर भी अनेक धन्यवाद ब्लाग पढ़कर विचार व्यक्त करने के लिए ,आगे भी संवाद बनाए रखिएेगा
दिशा जी अपने आद्य ज्योतिर्लिंग नागेश्वर का विवरण बहुत ही अच्छा एवं जीवंत चित्रण किया है इसमे आपने भगवान विष्णु तथा दारुका वन का विवरण किया और आसपास के मंदिरों का एवं शिल्प कला का उसके इतिहास का स्थापत्य के बारे में जानकारी दी। आपने इससे संबंधित साक्ष्यों के लिए विद्वानों का भी सहारा भी लिया है। आपने पर्वतीय माला को हरिश्चंद्र से जोड़ा है। आपकी शब्दावली… बूढ़े बरगद, दानपावता की प्रभाती, खिल्लारी बैल, देवी और खंदारी गायें… परिवेश का गहरा अध्ययन गजब है।
आपने वातावरण शिवमय बना दिया है और हमें शिवानुरागी।
बधाई हो।
कितना अच्छा लगता है जब दिल्ली की पत्रकारिता के दिनों के सहकर्मी प्रतिक्रिया लिखते हैं अमित जी आपने खिल्लारी बैल देवनी गाय हरिश्चंद्र पहाड़ी सबका आनंद लिया बहुत बढ़िया लगा , ये सच है कि शब्द तो हमारे आसपास ही हैं पर हमने बापरना बंद कर दिया है न इसलिए स्मृतियों से ग़ायब हो जाते हैं खँगालो तो निकल भी आते हैं पर मशक़्क़त बहुत करनी पड़ती है ढेर सारा धन्यवाद ?
bahot pyara , shandar varnan,,
संदीप बहुत -बहुत धन्यवाद
फिर से सफल प्रयास दिशा जितनी भी तारीफ की जाए कम है
विनय तुम उ प्र के चुनावों वाली पत्रकारिता में व्यस्त होगे पर फिर भी समय निकालकर प्रतिक्रिया लिखी बहुत धन्यवाद
ऊँ नमःशिवाय दीदी।बहुत ही सुंदर और सजीव वर्णन है ।आपके द्वारा दी गई रोचक जानकारियाँ मन मोह लेती हैं ।राजा हरिश्चंद्र से संबंधित जानकारियां,शिवालय के निर्माण में प्रयुक्त काला पाषाण का वर्णन ,हेमाड़पंतीशैली में निर्मित मंदिर और सिंगल स्टोन से निर्मित विशालकाय सीलिंग इस मंदिर की भव्यता का वर्णन करती है।गर्भ गृह का सुंदर विवरण मन मोह लेता है ।आपका आल
शिल्पा सात समन्दर पार से इतनी प्यारी प्रतिक्रिया भेजने के लिए बहुत सारा धन्यवाद?
ऊँ नमःशिवाय दीदी।बहुत ही सुंदर और सजीव वर्णन है ।आपके द्वारा दी गई रोचक जानकारियाँ मन मोह लेती हैं ।राजा हरिश्चंद्र से संबंधित जानकारियां,शिवालय के निर्माण में प्रयुक्त काला पाषाण का वर्णन ,हेमाड़पंतीशैली में निर्मित मंदिर और सिंगल स्टोन से निर्मित विशालकाय सीलिंग इस मंदिर की भव्यता का वर्णन करती है।गर्भ गृह का सुंदर विवरण मन मोह लेता है ।इतने सुंदर आलेख के लिए धन्यवाद ।
अरे वाह शिल्पा ,एक और पत्र लिख दिया इस बार बड़ा और शिद्दत से अनुभूत मंदिर शिल्प,गर्भगृह ,हेमाड़पन्ती शैली ,सीलिंग और हरिश्चन्द्र पहाड़ का ज़िक्र करके तुमने दिल ख़ुश कर दिया बहुत धन्यवाद ?
आपका आलेख बहुत ही सुंदर और जानकारियो से परिपूर्ण है।आपका धन्यवाद ।
अति सुंदर वर्णन…..यूँही लिखते रहिए और हमें दिव्य दर्शन करवाते रहिए
सपना तुम इसी तरह पढ़कर उत्साहवर्धन करती रहो हम यात्राएँ जारी रखेंगे बहुत धन्यवाद ?
जिस प्रकार आप अपनी यात्रा के अनुभवों को इतनी खूबसूरती से वर्णन करती है वह काफी सराहनीय है! जो जानकारियां आप देते है वह काफी लोगो को भगवान शिव के ज्योतिलिंग के दर्शन घर बैठे ही करा देते हो वरना हर किसी को ये सौभाग्य प्राप्त नहीं होता की सभी हर बार इतनी तीर्थयात्रा पर जा सके । और इस तरह का ब्लाग लिखना भी एक प्रकार की कला है जो आपको बहुत ही अच्छे से आती है!हम स्वयं भी तीर्थ स्थानों पर जाते हैं पूजा करते हैं और वापस आ जाते हैं पर मंदिर के शिल्प वैभव से अनजान रह जाते हैं आप उन्हीं बिन्दुओं पर गहन पड़ताल कर हम तक पहुँचाती हैं जो सिर्फ़ दर्शन मात्र करके वापस आ जाते है ।हम सभी की ओर से बहुत बहुत धन्यवाद।
रिया तुम्हें आलेख को पढ़कर ही तीर्थस्थल की भव्यता और सौन्दर्य का अनुभव प्राप्त हो गया मेरी मेहनत सफल हो गयी यही द रोड डायरीज़ का उद्देश्य भी है मुझे बहुत अच्छा लगता है जब पाठक आलेख को डूबकर पढ़ते हैं और फिर सराहना भी मन से करते हैं दिल से धन्यवाद?
बहुत सुंदर।बहुत दिनों बाद सुंदर,सुघड़ हिन्दी पढ़ने को मिली।दूसरे वास्तव में मुझे नहीं पता था कि एक अच्छी लेखिका से अपरिचित हूँ।
अभी तक अन्य अन्य परिचय ही मेरे सामने रहे।
आशुतोष शिव का सुमिरन कराने के लिए आभार ।
सर,आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए मायने रखती है आपने भाषा और प्रस्तुतीकरण की सराहना की इसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ अतिशय धन्यवाद ?
दिशा जी
आपके यात्रा वृतांत की प्रतीक्षा रहती है,ये इस बात का द्योतक है कि आप का प्रयास एक ‘आवश्यकता’ की पूर्ति करता है…
धन्यवाद.
बहुत सारा धन्यवाद
दिशा जी
‘दि रोड डायरीज’ के संकलन की हार्डकॉपी आप शुभचिंतकों के लिए उप्लब्ध कराएँ तो मुझे वो समूल्य अवश्य उपलब्ध कराएँ ….मैं इस अभिव्यक्ति को आने वाली पीढ़ियों के लिए सिर्फ इसलिए सहेजना चाहता हूँ कि वो लोग समझ सकें कि कैसे किसी पड़ाव पर आकर रचनाकार निमित्त हो जाता है और सर्वरचयिता कारक !
प्रभु की कृपा आप पर यूँ ही बनी रहे….
बहुत सारा धन्यवाद
जैन दर्शन में यात्राओं से अर्जित अनुभवों को विशिष्ट सम्मान दिया गया है।जिसने यात्राएँ की हैं अर्थात जो तीर्थयात्री है वही कालांतर में तीर्थंकर बनता है।
यात्रा के अनुभव हमें सम्पूर्ण तौर पर समृद्ध बनाते हैं…आपकी लेखिनी उत्सुकता का भाव जगाये हुए जिज्ञासाओं का समाधान करती चलती है।अपने अनुभवों का सहयात्री बनाने के लिए आपका कोटिश: नमन् !1
पद्म तुमने तो स्नेहपगी प्रतिक्रियाओं की झड़ी लगा दी मन बेहद ख़ुश है इतना अच्छा लिखा तुमने,मूल्य तुम्हें क्यों चुकाना होगा वह तो तुम्हें उपहार में मिलेगी बल्कि जितने पाठक द रोड डायरीज़ परिवार का हिस्सा बनेंगे उनको हम भेंट करेंगे,भोलेनाथ की कृपा बनी रहे और तुम सभी की शुभकामनाएँ इसी तरह मिलती रहें तो फिर मंज़िल दूर नहीं ,बहुत सारा धन्यवाद
बहुत सारा धन्यवाद
दिशा जी, एक के बाद एक यात्रा का इतना विस्तृत विवरण मन को मंत्र मुग्ध कर गया। अपने देश के अनमोल तीर्थों को इस तरह अपनी यात्रा के द्वारा संजोने के लिए बहुत बधाई और हम तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद ।
आपको बहुत धन्यवाद,आपने पढ़ा और इतना वक़्त निकालकर प्रतिक्रिया भी लिखी देश से बाहर आप द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा का द रोड डायरीज़ के ज़रिए आध्यात्मिक आनंद ले रहे हैं यह मुझे परम संतुष्टि देता है
आपका ब्लाग बहुत ही उच्चस्तरीय है अभी हमारे गाँव के लोंगो को ही पर्वत श्रृंखला के बारे में इतना कुछ नहीं पता था,आपने जिस तरह से मंदिर के बारे में लिखा है वह बहुत ही रोचक है मंदिर की शैली गर्भगृह,शिल्प,पूजा विधान,अन्य मंदिर,संत पंरपरा और समाज सभी को सविस्तार आपने शामिल किया आप पर श्री नागेश्वर की कृपा हमेशा बनी रहे
दर्शन पाठक,श्री नागेश्वर,औंढा,महाराष्ट्र
दर्शन जी,आपकी प्रतिक्रिया बहुत विलम्ब से क्यों आई ?आपको आलेख ज्ञानवर्धक लगा यह जानकर तसल्ली हुई,शुरूआत में आपको लग रहा था पता नहीं मैं जानकारी तो बहुत इकट्ठा कर रही हूँ कितना न्याय कर पाऊँगी ,मराठी में बताई गई बातें किस प्रकार प्रस्तुत की जाएँगी, भोलेनाथ हैं न हमने यही कहा था सब भली करेंगे ,जय श्री नागेश्वर ?
Awesome
आपकी writing style बहुत अच्छी है। पढते समय जैसे मै मंदिर के प्रांगण में हूँ, ऐसा लग रहा था।
Nice article
अभिनव कुरकुटे,भूगोलशास्त्री,महाराष्ट्र
अभिनव जी ,आलेख के माध्यम से आपके मंदिर प्रांगण में पूजन करने की अनुभूति वाली पंक्ति बहुत सुन्दर है बहुत शुक्रिया?
आज दिशा जी के रोड डायरी के 2 अध्यायों को एक साथ पढ़ने का समय निकाला । दोनों में 2 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के संबंध में विस्तृत विवरण दिया गया है । सचमुच भारतवर्ष चाहे वह किसी भी धर्म के अनुयायियों के संबंध में बात करें हमें एक बात निश्चित रूप से जानने को मिलता है ,वह यह अनुष्ठानों, तीर्थ यात्राओं और पूजा आराधना का देश है । तीर्थ यात्राओं से लोगों को जो आंतरिक सुख प्राप्त होता है तथा इसके माध्यम से जो मुक्ति मारग के प्रशस्त होने का जो बोध या विश्वास होता है वह अतुलनीय संतोष प्रदान करने वाला माध्यम है ।दिशा ने अपने पोस्ट में भोपाल से रवानगी से आरंभ कर नागेश्वर और मल्लिकार्जुन तक के पहुंचने की यात्रा वृतांत को बहुत विस्तार से इन लेखों के माध्यम से परोसा है जिसमें रास्ते की खूबसूरती ,उसमें पड़नेे वाले सुविधाओं और असुविधाओं का जिक्र तो है ही, उसके साथ ही रास्ते के प्राकृतिक सौंदर्य, सड़कों के उत्कृष्टता सभी कुछ लिखने के साथ ही ,जब दिशा इन मंदिरों के प्रांगण में पहुंचती हैं तो वे इन दोनों ही प्राचीन मंदिरों के इतिहास ,पुरातत्व ,निर्माण शैली और इससे संबंधित लोक तथा वैदिक और शास्त्रीय मान्यताओं को भी जानकार महानुभावों के माध्यम से हमें उपलब्ध कराती हैं ।मुझे आश्चर्य प्रतीत होता है कि एक लड़की जो कुछ साल पहले केवल शहर में घटने वाली छोटी मोटी घटनाओं को अखबार के पन्नों में लिखने का काम करती थी अचानक कैसे एक लंबे अरसे की खामोशी के बाद एक विशद ज्ञान रखने वाली लेखिका और यात्रा वृतांत वर्णिका के रूप में आज अपने रोड डायरीज के माध्यम से हमारे सम्मुख मुखातिब होती है । दिशा ने अपने दोनों ही लेखों में बहुत से साक्षात्कार लिए हैं और अवलोकन के साथ ही ग्रंथों को भी खंगाला है और कोशिश की है कि जितनी अधिक हो सके जानकारियां पाठकों को उपलब्ध करा सकें । मैं जब मल्लिकार्जुन के बारे में पढ़ रहा था तो मुझे स्मरण हुआ कि मैं लगभग 20 25 साल पहले सड़क मार्ग के माध्यम से श्रीशैलम अभयारण्य में रहने वाले चेंचू और लंबा डा लोगों के बीच जब काम करने के लिए गया हुआ था तब मननानूर नामक स्थान पर अपना हमने अपना डेरा जमाया हुआ था । उन दिनों मंनानूर के आसपास नक्सली गतिविधियां काफी हुआ करती थी और जब हम एक सुबह अपने विश्राम स्थल से बाहर निकले तो एक पेड़ पर एक कागज में तेलुगु भाषा में कुछ लिखा हुआ निर्देश टंगा था ।क्योंकि हमें तेलुगु भाषा नहीं आती थी इसलिए हमने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया तो बाकी देखने वालों को बड़ा आश्चर्य होता था । कुछ हिंदी समझने वाले लोगों ने हमसे सवाल किया कि इस चेतावनी को देख कर उन्हें कुछ करना चाहिए । मैंने सवाल किया कि चेतावनी है क्या , तब उन्होंने बताया नक्सली रात में आपके लिए यह संदेश छोड़ गए हैं कि हम किस उद्देश्य से वहां पर आए हुए हैं इसकी जानकारी उन्हें अमुक व्यक्ति के माध्यम से दी जाए और यदि व संतोषजनक नहीं पाया गया तो हमें मंनानूर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा ।खैर ऐसा कुछ हुआ नहीं और हम अपना काम पूर्णता तक अंजाम दे सके। वहां की दूसरी खासियत यह थी कि हम जिस जगह रहते थे वहां बंदरों का बड़ा आतंक था और वह हमारे उपयोग की सारी चीजों को तहस-नहस कर देते थे।वहां पहुचने की दूसरी ही सुबह हमारे पूरे के पूरे टूथपेस्ट बंदर महोदय ने खत्म कर दिए थे । बड़ा रोचक कारनामा उनके द्वारा रोजी किया जाता था। पर वह भी एक गुदगुदाने वाला अनुभव था। श्री सैलम अभ्यारण्य में चेंचू आदिवासी लोग निवास करते थे जिनके जीवकोपार्जन का मुख्य साधन शिकार और संग्रहण था किंतु अभयारण्य के अंदर उनकी बसाहट होने के कारण हुए वे कोई भी हथियार अपने साथ नहीं रख सकते थे जिसके फलस्वरुप शिकार करना उनके लिए वर्जनीय था और गैर चेंचू की तरह जीवन यापन उनके लिए मजबूरी थी। खैर जो भी हो यह सब बातें अपनी जगह हैं पर मुझे लगता है दिशा यदि अपने मार्ग में दिखने वाले उन लोगों के बारे में भी जानने समझने की कोशिश करती हैं जो इन तीर्थ स्थानों से जुड़े हुए न तो कारिंदे हैं ,न भजन गायक तो शायद कुछ अन्य लोगों के बारे में भी पाठक जानने का अवसर पाते जो मल्लिकार्जुन और नागेश्वर के समीप रहते हैं ।भले ही वे इन स्थानों से सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं ह।ैं हां एक बात और एक स्थान पर नल्ला मल्ला की बात की गई है जिसमें नल्ला के लिए सुंदर शब्द लिखा गया है वह तो सत्य प्रतीत होता है किंतु मल्ला के लिए यह लिखा गया ह,ै ऊंचा जो मेरे विचार से ऊंचा ना होकर पर्वत का पर्यायवाची होगा क्योंकि द्रविडियन भाषा में पर्वत को मलाई कहते हैं। हो सकता है मला शब्द मलाई का ही एक दूसरा रूप हो ।भगवान नागेश्वर के लिए रोज 30 32 पुरोहितों के घर से चांदी के बर्तनों में नैवेद्य चढ़ाया जाना भगवान शिव के लिए महिमा अनुरूप परंपराओं के परिपालन का एक सुंदर निरंतरता का बखान करती है । हम भारतवासी ईश्वर को सर्वोपरि स्थान देते हैं तथा हमारा हमेशा यह प्रयास रहता है कि उनसे जुड़ी हुई परंपराओं का यथेष्ट पालन करें तो यह में सुख तो देता ही है, यह भी संतोष भी रहता है कि ईश्वर भलीभांति पूजा से हमारे कष्ट हरेंगे तथा यदि जीवन के पश्चात भी कोई जीवन है जिसे हम मोक्ष की भाषा से जानते हैं वह हमें वह भी प्रदान करेंग।े तेलंगाना के बारे में मुझे एक और स्मरण याद आ जाए मैं जब भोपाल में रहता था तो मैं जिस जगह निवास करता था वह त्रिलंगा कहलाता था । मेरे मकान मालिक एक तेलुगू सज्जन थी और उन्होंने बताया कि तेलंगाना में 3 ज्योतिर्लिंग हैं जिसमें मल्लिकार्जुन भी सम्मिलित हैं और जब कुछ तेलुगु भाषी लोगों ने मिलकर भोपाल में एक हाउसिंग सोसाइटी बनाई तो उसका नाम तेलंगाना की इन्हीं 3 ज्योतिर्लिंगों के आधार पर त्रिलिंगी सोसाइटी कहा गया जो कालांतर में अब त्रिलंगा के नाम से जाना जाता है।
मल्लिकार्जुन की बात करते हुए हैदराबाद के निकट पोचमपल्ली साड़ियों के निर्माण और उनके कारीगरोंं के बारे में भी आपने एक बहुत सुंदर विवरण प्रस्तुत प्रस्तुत किया है जो रोड डायरीज के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा के एक क्षेत्र विशेष के बहुत ही खूबसूरत पक्ष को पाठकों के समक्ष उदघाटित करता है।
अशोक तिवारी,सलाहकार,संस्कृति विभाग,छत्तीसगढ़
सर किन शब्दों में धन्यवाद दूँ शब्द कम पढ़ रहे हैं मैं हैरान हूँ आप दमदार शब्दों के ज़रिए असरदार बातें बतकही अंदाज में कितनी ख़ूबसूरती से कह जाते हैं लम्बे समय तक ख़ाली रह गए पृष्ठ क़लम के चलने की राह तक रहे थे पारिवारिक दायित्व भी थे आशुतोष शिव की असीम कृपा से दोबारा पूरी ताकत से लौटी हूं ….कुछ अन्तराल के बाद दिशा का बदला हुआ स्वरूप आपके सामने है …कितने अच्छे उदाहरणों के साथ आप अपना पक्ष रखते हैं काश आपने अन्य आलेख पढ़े होते ,समय सबको माँजता है मेरे शुरूआती आलेख और ताज़े अंक में फ़र्क़ आपने भी महसूस किया होगा ,आपने जिस मार्ग का उल्लेख किया है उस पर आदिवासी नहीं दिखाई पड़ते असल में हम तो महाराष्ट्र की परिसीमा में ही रहे हैदराबाद से यदि औंढा आते तो निश्चित रूप से यह संस्कृति देखते और जो दिखता वह ब्लाग का हिस्सा ज़रूर होता ,आपकी नसीहतें दिल में पैंबस्त रहेंगीं ताकि आइन्दा लिखने से पहले तमाम बिन्दुओं पर शिद्दत से ध्यान दे सकूँ ,बहुत -बहुत धन्यवाद ?
दिशा देरी से प्रतिक्रिया देने के लिए माफी चाहती हु। दरअसल मै पुरे यात्रा वृत्तान्त को आत्मसात कर ही लिखना चाह रही थी। अद्भुत लेखनी है तुम्हारी दिशा। जिस तरह से तुमने वहा की संस्कृति सभ्यता शिल्पकला विशेष कर hemadpanti व्। पंचायतन शैली की जानकारी दी है वहबहुत उपयोगी है दारूका वन वाली जानकारी भी मेरे लिए नई है गर्भगृह के बारे मेभी बहुत ही अच्छी जानकारी दी है दिशा आद्य ज्योतिर्लिंगो के बारे में इतनी गूढ़ व सारगर्भित जानकारी देने के लिए बहुत धन्यवाद। फोटोग्राफ भी बहुत अच्छे हैं । इतनी धार्मिक व् आध्यात्मिक यात्रा में सहयात्री बनाने के लिये पुनः धन्यवाद।
तुमने अर्चना स्वयं बहुत अच्छा लिखा,वाक़ई पूरा आत्मसात करके लिखा है एकोएक पक्ष का तुमने पूरा आनंद लिया है यह बात मेरे दिल को छू गई ,स्नेह भरा धन्यवाद,
वाह वाह पुनः आपके द्वारा एक धाम का दर्शन हो गया ।
कभी मौका मिले न मिले इन तीर्थो जाने का आपके द्वारा सकल तीर्थ का दर्शन हो गया।।
पुनि पुनि कोटि सा धन्यवाद
कमल ,आपको बहुत धन्यवाद,आप हमारे साथ बने रहिए ईश्वर की कृपा बनी रहे इसी प्रकार हम हर माह तीर्थ यात्रा पर जाएँगे।
बहुत ही सुन्दर रचना,पहले से ज़्यादा परिष्कृत ,सूक्ष्म से सूक्ष्मतर पहलुओं को स्पर्श करते हुए स्थान विशेष के महात्म्य की विस्तृत जानकारी आलेख से मिलती है,।सांस्कृतिक ,पौराणिक ,एैतिहासिक,शिल्प की दृष्टि से भी उच्चस्तरीय कहा जाएगा भाषा पर इस बार पकड़ ज़्यादा मज़बूत हुई है,विशेष रूप से शिल्प शास्त्र की भाषा का उपयोग बहुत ही बढ़िया है चित्र आकर्षक हैं ,दारूका वन वाली बात का गुजरात के लेखक की किताब के हवाले से स्पष्टीकरण देना आलेख को उच्चकोटि का बनाता है
कुल मिलाकर जैसे जैसे यात्राओं की संख्या बढ़ रही है वैसे वैसे ब्लाग निखर रहा है
श्री आनंद शंकर व्यास ,वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य ,उज्जैन
पण्डित जी प्रणाम,आपकी प्रतिक्रिया से मन आनंद से भर गया सबसे पहले आपसे ही मुझे इस शिवालय पर लिखने की प्रेरणा मिली,अद्भुत स्थान है औंढा का श्री नागेश्वर,एेसा पवित्र स्थान जो स्वयं अच्छा और अच्छा लिखने को अभिप्रेरित करे,आपको धन्यवाद आप जैसे मनीषियों के सानिध्य में रहेंगे तो ब्लाग निखरेगा भी संवरेगा भी?
तकरीबन चमत्कृत कर देनी वाला भाषा से सजा ये यात्रा वर्णन बेहद रोचक, जानकारियों से भरा और आध्यात्मिकता से पगा हुआ है ऐसा सजीव वर्णन लिखने के लिये जो आप शोध करतीं है उसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। बहुत साधुवाद आपको
ब्रजेश तुम्हारे पत्र ने बरसों पुराने पत्रकारिता विभाग में साथ पढ़ने वाले दिनों की याद ताज़ा करा दी,गुर तो साथ ही सीखे हैं इसीलिए प्रभाव दिखता है तुमने तारीफ की है बहुत सारा धन्यवाद बतौर वरिष्ठ संवाददाता तुम्हारी व्यस्तताएँ अधिक हैं तुम्हारा तो काम बोलता है,हमारे मौन शब्दों की ताक़त ने तुम्हें प्रभावित कर दिया तो समझो हमारी शोधपरक मेहनत सफल हो गई अपनी प्रतिक्रिया से आगे भी अवगत कराते रहना , मेरे लिए प्रतिक्रियाएँ सिर्फ़ बॉक्स में टाइप कर भेज देने वाले लफ़्ज़ों की रस्म अदायगी भर नहीं हैं बल्कि ये तो वे असरकारक पैग़ाम हैं जो मुझे सब से जोड़ते हैं
Jabardast alekh
शिवाकान्त वाजपेयी, पुरातत्विद्
सर,आपके पत्र की प्राप्ति से मन अति प्रसन्न है इसलिए भी क्योंकि आप स्वयं साहित्य सर्जना करते हैं आप पुरातत्व संबंधी अन्चीन्हें सौन्दर्य को लोकप्रिय स्तम्भों के माध्यम से अपने पाठकों तक हर सप्ताह पहुँचाते रहते हैं और जब विशेषज्ञ आपके काम को सराहे तो उत्साह दुगना हो ही जाता है बहुत -बहुत धन्यवाद?
आपकी यात्रा लिखा हुआ वर्णन…बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे की आजकल टीवी पर जगह-जगह के मंदिरो के लाइव दर्शन दिखाए जाते है | इतने विस्तार से एक-एक चीज़ के बारे में लिखना ये भी किसी लाइव दर्शन से कम नहीं है…ऐसा लगता है मानो बस अभी दर्शन करके मंदिर से बाहर निकले हो… अद्भुत लेखन है आपका
विपिन तुम्हें ब्लाग पढ़कर दृश्य माध्यम की तरह तीर्थयात्रा करने जैसा अनुभव हुआ यह जानकर बेहद ख़ुशी हुई ,एेसे ही जुड़े रहना हम अभी और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करेंगे,ढेर सारा शुक्रिया
दीदी प्रणाम.
दीदी मेरी शुभकामनाऐ.आप पर साक्षात माँ सरस्वती जी की क्रपा हे आर्शीवाद हे. जिस तरह से आप ने इस यात्रा के विषय मे बताया हे. मुझे तो मजा आ गया एक एक चिज को मेने ध्यान से पढ़ा.आप इसी तरह हमारा ज्ञान बढाती रहे .
मेरी शुभकामनाऐं दीदी.
श्याम,बहुत धन्यवाद,हम सभी पर माँ सरस्वती की कृपा है तभी तो हम सब सकारात्मक विचारों का आदान प्रदान कर पा रहे हैं ब्लाग से आगे भी जुड़े रहना
Sorry Disha I am late to give feedback I wanted to read and reply as I haven’t been to Nageshwar divya dham unlike other jyotirlings you mentioned in your blog . your Hindi flow is commendable , I need to focus and read it , enjoyed reading your trip and all the details of Hemadpanti style carvings and details of garbhgrah , keep it up !
Dear Swati, mighty thanks for your comment. I’m glad you liked my writing and details about the architecture of Shri Nageshwar temple and the Garbhagrih. Thanks again and hope you keep visiting my blog for more…
नागपंचमी के पवित्र दिन पर नागेश्वर शिव के तीर्थ के लोक दर्शन एवं वहां की लोक, पौराणिक महत्व को सुंदर तरीके से प्रकाशित करके हम सबको दर्शन कराने के लिए सम्माननीय दिशा जी शर्मा भोपाल का बहुत बहुत आभार ???