छोटी टेकाम के गोंड चित्रों में गूलर, महुआ, सरई और साजा के पेड़

ये तो आप भी मानेंगे कि प्रकृति के साहचर्य में पली-पुसी जनजातीय चित्रकला में परम स्वाभाविकता, सहजता और सरलता दृश्यमान होती है, कृत्रिमता का इसमें लेशमात्र भी स्थान नहीं होता। भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय की लिखंदरा दीर्घा में गोंड बहुल डिंडौरी जिले के गाँव सनपुरी के अरण्यगामी संस्कृति के बिम्ब देखने का सौभग्य प्राप्त हुआ। रचनाकर्म में डूबी हुई चितेरी श्रीमती छोटी टेकाम हमें अपने गूढ़ार्थ लिए मौलिक कला संसार के साथ वहीं मिल गयीं। उनके स्वाभाव की निश्छलता ऐसी थी मानो किसी प्रशांत नदी में अपना प्रतिबिम्ब निहार रहे हों। लेकिन साक्षात्कार के दौरान ज्यों-ज्यों उनके विचार सामने आते गए लगा …

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मालवा के लोकनाट्य माच में राजा भरथरी का कथानक

लोकनाट्य, लोक की श्रमशील स्थितियों, संघर्षों, प्रकृतिजन्य बाधाओं और सामजिक आवश्यकताओं की भावभूमि पर यथार्थ की उपज होते हैं। भोपाल स्थित जनजाति संग्रहालय के सभागार में उज्जैन के खेमासा गाँव की महावीर माच मंडली के  राजा भरथरी के प्रदर्शन में हमने यही अनुभूत किया। मालवा के प्रतिष्ठित, समर्पित और मर्यादित माचकारों में गुरु सिद्धेश्वर सेन का नाम आदरपूर्वक लिया जाता रहा है। उन्हीं की कलमबद्ध रचना को मंचित करती राजा भरथरी की पारम्परिक प्रस्तुति में रंगतों, हलूर, लावणी और लोकधुनों के साथ झुरना का सराहनीय समन्वय दिखाई दिया। पौरुष प्रधान अभिनय और नृत्य की समन्विति वाली यह लोकनाट्य शैली मुक्त कण्ठ की …

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भीली संस्कृति के बिम्ब लिए शरमा के कैनवास

भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय की लिखन्दरा दीर्घा में मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के झेर ग्राम की युवा चितेरी शरमा बारिया के भीली चित्रों के परिलेखन में आदिवासी जनजीवन के वैविध्य की समग्रता के दर्शन हुए। मूल रूप से भीलियों में प्रचलित मान्यता के अनुसार भीतियाँ जूनी नहीं रखे जाने के उद्देश्य से बनाये जाने वाले अनुष्ठानिक भित्ति चित्रों को कैनवास पर उतारने वाली शरमा बारिया से हमने भेंट कर भाव निमग्न लोकवासियों की अन्तः प्रेरणा से उद्भूत लोकचित्रों का समझने का प्रयास किया। हृदयग्राही, अकृत्रिम, सहज, सरल, भील आदिवासियों के अतीत की वैभवपूर्ण संस्कृति दर्शाते इन चित्रों में आदिवासी जीवन …

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