निसर्ग विहार : जो मार्ग शनिदशा में सम्राट विक्रमादित्य को चकल्दी लाया, वही महामार्ग सम्राट अशोक को पानगुड़ारिया लाया था

भोपाल से सीहोर जिले की मालीबायाँ वीरपुर सड़क पर निसर्ग की रमणीयता  धुइले आकाश को पीछे छोड़ते हुए सबेरे-सबेरे हम अतीत में झाँकने की अकुलाहट लिए भोपाल जिले की परिमा से सटे सीहोर जिले की ग्राम्यता में रमते रमाते बढ़े जा रहे थे,मूर्धन्य कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी की लिखी पंक्तियाँ स्मृतियों में कौंधे जा रही थीं शहरों में आप मोटर दौड़ा सकते हैं, बहुत चाहें तो झूठ-मूठ के मन बहलाने वाला गुलाब गार्डन और निकम्मे लॉन लगा सकते हैं पर रेफ्रीजरेटर में रखे  फलों में असल स्वाद कहाँ से ला पाएंगे। सूरज की किरनें गाँव वालों को असीसने लगीं …

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ग्राम विहार : राजा विक्रमादित्य के पिता गन्धर्वसेन की गन्धर्वपुरी, तालोद का सूरजकुण्ड विक्रमादित्य का षष्ठी पूजन स्थल

गांव की समग्रता, सीधी-सादी निश्छल ग्रामात्मा और लोक परंपराओं में निहित लोक तत्वों से साक्षात्कार बित्ते भर धूप के उछलने के साथ ही तारीख बदली और हेमंती कोहरे से पटे मध्यप्रदेश के इन्दौर भोपाल राजमार्ग SH 28  पर हमारी मोटर शनैः शनैः सरक रही थी, मार्ग में  खजुरी, कोलूखेड़ी, वेदखेड़ी,सीताखेड़ी, पगारिया राम, अगेरा, मेहतवाड़ा गांवों के संकेतक आते गए नेवज नदी को पार करने के उपरांत देवास जिले की सोनकच्छ तहसील के गांव गंधर्वपुरी लिखे संकेतक ने हमारा ध्यान आकृष्ट कर  लिया। ‘गंधर्वपुरी’ विस्फारित नेत्रों से पहले तो संकेतक पर दृष्टिपात किया, कुतूहल होना स्वाभाविक था, सूर्याग्नि की प्रतीकात्मक्ता लिए कलामर्मज्ञ गगनचारी इंद्र के अनुचर गन्धर्वों की नगरी, गंधर्वपुरी  का संकेतक …

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