रामेश्वरम् मंदिर में महाराष्ट्र के पुरोहितों द्वारा कृष्ण यजुर्वेद पद्धति से सस्वर रूद्राष्टाध्यायी और आचार्य अनुष्ठान, महाराष्ट्र के 12 उपाध्याय मंदिर में पदस्थ
प्रमाणिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि किड़वन रघुनाथ सेतुपति ने ही पहले पहल रामेश्वरम् में पूजन कार्य हेतु रघुनाथ पुजारी गुड़कुल की नियुक्ति की थी। 1933 से श्रृंगेरी मठ के अन्तर्गत पौरोहित्य कर्म में दीक्षित महाराष्ट्र के 12 उपाध्यायों को मंदिर में पदस्थ करने का अनुक्रम प्रारंभ हुआ। हालांकि यह आदिशंकराचार्य द्वारा नियमन की गयी व्यवस्था की ही परिणिति थी। कृष्ण यजुर्वेद पद्धति से सस्वर रूद्राष्टाध्यायी और आचार्य अनुष्ठान करने वाले ये देशस्थ पुरोहित निष्काम भाव से लिंगार्चना में संलिप्त रहते हैं। तिल का तैलाकिषेक, शुद्धोदक स्नान, चंदनाभिषेक, पंचकव्य स्नान, मद व मधुस्नान, शीरा स्नान, (दुग्धाभिषेक) शुद्ध जलस्नान के साथ-साथ, भाविकों के अनुबंध पर सहस्त्र(1008) कलषाभिषेक (रजत), (ताम्ब्र) अष्ठोत्र(108), त्रिशति(308) कलशाभिषेक आदि के भी प्रबंध किये जाते हैं। प्रातः काल सर्व प्रथम स्फटिक लिंग पूजन किया जाता है। पंडाजी के अनुसार देशकाल के अनुरूप सर्वप्रथम परमेश्वर को इडली डोसा का भोग लगाया जाता है। उच्चिकाल दीपाराधना के पश्चात् इमली भात, पोगल, बड़ा, शक्कर भात, नारियल भात, रस्सम भात, का नैवेद्यार्पण होता है। श्रद्धालुओं को शयनारती के बाद उबली हुई चने की दाल और नारियल मिश्रित सुंडल तथा मालपुए का वितरण दोनों में किया जाता है। परिसर में शैवोपासक द्रविड़ी ब्राम्हण अय्यर (स्मार्त) और शिवाचार्या (बटर) के साथ-साथ वैष्णवोपासक अयंगार और वैष्णवाचार्य जियर स्वामी भक्त की हैसियत से उपास्य की सेवा-सुश्रुषा में संलग्न दिखाई दे रहे थे। शिव और विष्णु के परस्पर उपास्योपासक संबंध की प्रत्यक्ष दर्शना, स्थली के हर स्पंदन में निःसन्देह अमृतमय परमतत्व का माधुर्य है। पंडा जी दीर्घउच्छवास के बाद पुनः विवरणात्मक विश्लेषण की ओर प्रवृत्त हुए देखिए ‘‘सत्वोपाथिक महाविष्णु ये रामावतार में शिवोपासना कर परिहार एकमात्र इसी धाम में किया है, अन्यत्र नहीं। शेष अन्य तीन धाम तो नारायण को ही समर्पित हैं। इसीलिए रामेश्वरम् धाम सर्वधामों में सर्वोपरि है। शिवतीर्थ होने के कारण यहां शिवलिंगों के दान की महात्म्य रहा है। पंडा जी से यह भी जानकारी मिली कि द्वितीय और तृतीय प्राकारम के मार्ग में दृष्टव्य अनेकानेक शिव लिंग दो सौ से तीन सौ वर्ष पूर्व दान किये गये थे, जो एक दुर्भट कक्ष में दीर्घकाल से बंद पड़े थे। जिन्हें हाल ही में मंदिर के एक निष्ठावान प्रशासक द्वारा स्थापित कर विधिवत पूजन किये जाने के आदेशानुसार स्थापना मिली है। आगे बढ़ने पर ब्राह्मण भोज्य की परंपरा का निर्वाहन होता देख हमने भी यथाशक्ति द्रव्य दान की सात्विक पहल की, लेकिन पंडा जी ने ब्राह्मणों मम देवता कहकर अपना मंतव्य स्पष्ट किया। ब्राह्मण भोजन प्रिया, शिव अभिषेक प्रिया, सूर्य नमस्कार प्रिया, विष्णु अलंकार प्रिया का उदाहरण देते हुए तीर्थ स्नान पर ब्राह्मण मुख से तृप्तिदायक ‘बस बस’ उच्चरण सुनने तक भोजन परोसे जाने को आवश्यक बताया। रामेश्वरम् में ब्रम्ह हत्या दोषनिवारण हेतु ब्राम्हण भोजन की विशेष महत्ता है। समयाभाव के कारण हम आगे बढ़ गये। पंडा जी बताने लगे हम जहां उपस्थित हैं यह सिद्धि भूमि है। अपनी योग साधना के बल पर, विश्व मानचित्र पर लोकप्रियता अर्जित करने वाले पातंजलि महाराज की समाधि नटराज प्रतिभा के पार्श्व में है। अचानक तीर्थ परिसर में ‘व्हिसिल’ (सीटी) का शोरगुल सुनाई देने लगा। परिसर के भीतर का किताब, गंगाजल विक्रेता, पुरोहित, भक्ति रस में आप्लूत जनमानस, सब निकासी द्वारों की ओर शीघ्रता से बढ़ने लगे। मध्यान्हः 12 बजे मंदिर के पट बंद होने की निर्धारित समयावधि का संकेतक था। हम भी पंडा जी के साथ पूर्वी द्वार की ओर से निकलकर अग्नितीर्थ की ओर निकल गये। पंडा जी कहते जा रहे थे ‘‘देखिए मंदिर में प्रविष्टि के लिए पूर्वी द्वार ही नियत है, पश्चिम द्वार निकासी का मार्ग है, पर शांति मिलता है।’’ अग्नितीर्थ में महोदधि नील समंदर के एक भाग के सन्मुख हाथों से प्रणिपात करते हुए भक्त पतिव्रता वैदेही सीता की सप्त जिव्हा से प्रकाशित अग्निदेव द्वारा ली गयी अग्निपरीक्षा को अनुभूत करते दिखाई दिए। इस स्थान पर जल दान का महत्व है। इस स्थान से किनारे-किनारे आगे बढ़ने पर अगस्त्य नामक वापी है। पंडा जी महामेरू पर्वत और विन्ध्य पर्वत के मध्य बल प्रदर्शन को लेकर प्रतिवाद की स्थिति निर्मित होने को इसी स्थल से जुड़ा बताते हैं। विन्ध्य का गर्वहरण अगस्त्य ऋषि द्वारा (पांव से दबाकर) करने और त्रेतायुग में उनके द्वारा लोपा मुद्रा के साथ गन्धमादन पर्वत पर तीर्थ निर्माण करने के कथानक भी अगस्त्य तीर्थ से संबंद्ध हैं। यहां स्नान से दीर्घ आयुष, विवाह, सकल मंगल कार्य सिद्धि मोक्षादि प्राप्ति होती है यहां अक्षत् दान की महिमा है।
दरअसल यह पूरा क्षेत्र ही भाग्वातलीला स्थली है। आगे सड़क मार्ग से थोड़ी दूर पर गन्धमादन पर्वत के रूप में बालुकामयी टीलेनुमा पहाड़ी है। औषधीय वनस्पतियों से परिपूर्ण यह धरणीधर गौतम, वृत्तपाराशर, आपस्तबं, हरिदर, याज्ञवल्य, अत्री ऋषियों की साधना स्थली भी रहा है। त्रेता युग में पंच पर्वत मेरू, मैनाक, कैलाश, मंत्र और गंधमादन पर्वत का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इन पर्वतों के नामों के स्मरण मात्र से कल्याण होता है। कलियुग में दो ही दृष्टान्त हैं, कैलाश और गंधमादन भूधर। यहीं रामझरोखा (राम जहां रूका का अपभ्रंश) में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम के चरण चिन्ह सुशोभित हैं। पंडा जी बताते चल रहे थे इसी तुंग पर रामचन्द्र जी की वानर सेना ने युद्धाभ्यास किया और विजयी होने पर उत्सव भी आयोजित किया। गंधमादन पर्वत के संबंध में सुब्रम्हण्यक भुंजगम् में वर्णित है।
शानदार लेख
विनय, लेख की तारीफ करने के लिए बहुत धन्यवाद
आपकी आध्यात्मिक रामेश्वरम यात्रा का यह रोचक अंक आरंभ से अंत तक मन को यथार्थ यात्रा की और खीच ले जाता है। धन्यवाद
महेन्द्र, आलेख को रूचिकर बताने के लिए ढेर सारा धन्यवाद
दिशा भोपाल से हैदराबाद नागरकोइल कन्याकुमारी रामेश्वरम के मार्गों का स्थान विशेष का महत्व बताते हुए जो विवरण तुमने दिया है वह इस यात्रा को और भी खास बनादेता हैनागरकोइल का मंदिर कन्याकुमारी शुचिन्द्रम मीनाक्षी मंदिर तथा शिवधाम रामेश्वरम के मंदिरों की स्थापत्य कला की जो गूढ़ जानकारी तुमने जुटाई है वह अलौकिक है इस रोड डायरीज का एक एक शब्द तुम्हारी मेहनत को प्रदर्शित करता है या पावन यात्रा में शाब्दिक एवं मानसिक सहयात्री बनाने के लिए तुम्हे बहुत बहुत धन्यवाद
अर्चना, तुमने मन लगाकर पढ़ा तुम्हें आलेख बहुत अच्छा लगा, सारे बिन्दुओं को तुमने रूचि लेकर पढ़ा यह जानकर मुझे बेहद संतुष्टि मिली, ह्रदय से धन्यवाद
Bhut khub or mn ko shanti dene vala lekh h aisa lgta h jese mene khud darshan labh apni aankho se lia ho
राहुल, ब्लाग को बेहतर बताने के लिए बहुत धन्यवाद
ॐ
दिशा जी अपने जो यात्रा का विवरण जो दर्शाया है एवं कन्याकुमारी रामेश्वरम के मार्गों का स्थान विशेष का महत्व बताते हुए जो विवरण तुमने दिया है वह इस यात्रा को और भी खास बनादेता है और शिव मंदिर एवं देवी मंदिरों का विवरण दिया है| आत्मिक रूप से ऐसा लगता है की मानो दर्शन आत्मिक रूप से कर लिए हो| और भगवान शंकर जी की कृपा आप पर बनी रहे इसी आशा के साथ आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा |
|| जय शिव शंकर ||
|| जय माँ नर्मदे ||
कमल जी आपका पूरा परिवार मेरा ब्लाग पढ़ता भी है और जवाब भी लिखता है बहुत अच्छे संस्कार दिये हैं आपने अपने बच्चों को ,आपको बहुत धन्यवाद आपने शिद्दत के साथ पढ़कर पत्र लिखा है
आपकी यात्रा का विवरण पढ़कर अत्यंत खुशी हुई एवं ऐसा लगा की शिव मंदिर एवं देवी मंदिर के दर्शन आत्मिक रूप से कर लिए हो इसी आशा के साथ अगली लेखनी का इंतजार रहेगा |
|| हर हर महादेव ||
|| नमामि देवी नर्मदे ||
जय ,तुम्हारे जैसे युवा लोग ब्लाग से जुड़ते हैं तो बहुत ख़ुशी मिलती है ,मन लगा कर पढ़ना और फिर समय निकालकर अपने माँ पिता को दक्षिण के मंदिरों की यात्रा कराना
यात्रा का उल्लेख अत्यधिक रोचक है मानो ऐसा लगता है की सारे दृश्य हमारी दृष्टि के सामने हो हिमालय राज की पुत्री माता पर्वती अर्थात् देवी कन्याकुमारी के प्राकट्य के बारे में बताया तथा इसमे बाणासुर वध की कथा का उल्लेख किया गया है देवी के ३३ वे शक्ति पीठ शूलधारिणी देवी के मंदिर का रोचक विवरण अपने अपनी लेखनी के माध्यम से किया तथा आदि अनादी भगवान शिव जो रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित है जिसका वर्णन अत्यंत रोचक है साथ ही साथ देवी मीनाक्षी मंदिर तथा स्थापत्य कला और भगवान नटराज की प्रतिमा का वर्णन बहुत ही सुन्दर है , ऐसा लग रहा रहा है हम भी आपकी यात्रा में शामिल है…. आपके अगले ज्योतिर्लिंग की यात्रा की प्रतीक्षा रहेगी …….
अंकिता बिटिया ,तुम ने पूरा पढ़ा ,मन लगाकर पढ़ा और उतनी ही गहराई से पत्र भी लिखा दक्षिण के मंदिरों की अनुभूति तुम तक शब्दों के ज़रिए सही मायने में पहुँची है स्नेहमयी धन्यवाद ?
अति सुन्दर व अति विस्तृत वर्णन।
जानकारियों से परिपूर्ण।
बधाई! मैम।
सुनील कुमार,देवघर,झारखण्ड
सुनील जी, आपको वर्णन प्रशंसायेग्य लगा यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई, धन्यवाद
श्री मीनाक्षी ,नागराज,और रामेश्वरम वाला पढ़ा मैंने, बहुत सुंधर
श्री अरूणाचलम भोपाल
प्रणाम पण्डित जी, आपके सहयोग के बिना तो हम लिख भी नहीं पाते इसलिए आपको बहुत धन्यवाद, आलेख की प्रशंसा करने के लिए आभार
बहुत विस्तार पूर्वक अति सुंदर विश्लेषण
रोली कंचन बड़ौदा
रोली दी, किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ, आपकी वजह से ही भूगोल को गहराई से समझ पा रही हूँ
Pura pada?Badiya kitne jyotirling ho gaye
सीमा साकल्ले
सीमा तुमने पढ़ा और सराहा, धन्यवाद
आपने बहुत विस्तृत वर्णन लिखा है लेकिन लिखा व्यापक विश्लेषण के उपरान्त,श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के बारे में श्री दशपुतरे जी से जानकारी लेकर आपने विधि विधानों की अच्छी जानकारी दी है यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उपयोगी रहेंगी,तीर्थों और धाम के संबंध में इससे ज़्यादा ज्ञानवर्धक जानकारी मिलना संभव नहीं है आपके प्रयासों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है ,मीनाक्षी मंदिर ,कन्याकुमारी जी,और नारायणी जी के बारे में भी पढ़कर अच्छा लगा ,एेसे ही लिखते रहिए , श्री नागेश्वर जी की आप पर कृपा बनी रहे
प्रणाम आपने बिलकुल सही लिखा है भाषा के अवरोध के कारण दक्षिण के मंदिरों के बारे में बहुत लोगों को जानकारी नहीं मिल पातीं दूसर पंडा जी जैसे मर्मज्ञ नहीं मिल पाते तो जो ज्ञान मिलता भी है वह आधा अधूरा ,मैं आने वाली पीढ़ी को ध्यान में रखकर ही लिख रही हूँ इसीलिए यह ब्लाग हिन्दी अंग्रेज़ी दोनों में है आपको मीनाक्षी और नारायणी अम्मन मंदिरों ने भी प्रभावित किया है ,यह जानकर अच्छा लगा बहुत धन्यवाद,जय श्री नागेश्वर
हमने स्थल पुराण से जो भी आपको बताया आपने सही लिखा है,तीर्थ धाम,सिद्ध भूमि के बारे में भी एकदम स्थल पुराण माफ़िक़ लिखा है,आपके लिखने से नार्थ वाले भक्तों को लाभ होगा जो भाषा की दिक़्क़त के कारण तीर्थों की कहानी नहीं जान पाते अभी उनको मदद मिलेगी
जय रामेश्वरम
प्रणाम पंडित जी
जय रामेश्वरम ,आपके सहयोग के बिना पंडित जी मेरे लिए आलेख लिख पाना असंभव था ,भाषायी व्यवधानों को आपके माध्यम से दूर कर जो ज्ञानार्जन और लेखन कार्य मैं कर पाई उसके लिए मैं ह्रदय से आपकी आभारी हूँ ,स्थल पुराण की मदद से आपने अनजाने सत्य को हम सभी के सामने ला दिया वाक़ई आप ने तमिल की कई किताबों को समझने बांचने में मेरा भरपूर सहयोग किया
अद्भुत,मैं हैरान हूँ आपने बहुत ही सुन्दर लिखा ,इसमें बहुत सी जानकारियाँ तो मुझे भी नहीं थीं विशेषकर रामेश्वरम के तीर्थों के संबंध में ,मीनाक्षी मंदिर मैं गया हूँ पर यह एक शक्तिपीठ है जानकारी नहीं थी ,रामेश्वरम के बारे में पंडा जी के सहयोग से जो आपने जानकारी दी है वह तो कहीं किसी किताब में भी नहीं मिलेगी आप जो काम कर रही हैं वह अपने आप में अनूठा है मैं जानता हूँ इसमें बहुत परिश्रम करना पड़ता है पर आगे की पीढ़ी के लिए यह कारगर सिद्ध होगा
राजेश जी ,आप से तो हमेशा से ही मैं प्रेरणा लेती रही हूँ आपको आलेख ने संतुष्ट किया है तो मुझे तसल्ली है इस बात की कि मैं सही दिशा में जा रही हूँ अपनी लेखनी के साथ न्याय कर पा रही हूँ ,पंडा जी से बहुत से अनछुए पहलुओं पर बात हुई पर सबको ब्लाग में समेट पाना मुश्किल है कुछ बातों को अब किताब में देंगें एेसा सोचा है।
सार सूष्टु मितं मधु
I have read the road dairies. Seriously this is a unique opportunity to work with the references. Then one can have an idea of the dwadas jyotirliga. North Indian speaking person will like, when they visit rameshwar, dwarika, traimbkeshwar, etc. Places. Once I would request you to bring the complete work after Ujjaini, omkareswar and other remaining like Nepal.. Many thanks for the first project in indology. I will update you after the study all valuable road dairies of south India rameshwar jyotirliga. Der se but informative and historical good monumental study. Thanks for your afford to make long road journey. You have cover the forest, rivers, religious, rituals, nagraj importance, you have study the south Indian temple architecture and sculptures. Mythology also you have study through the local community and pundits, heritage hotels, restaurants and the food quality. Once again thank you very much.
सर आपके आत्मीयता भरे पत्र को पाकर मन प्रफुल्लित हो गया ,आप जैसे पुरातत्व वेदत्ता आलेख को हर पहलु से सही पाते हों तो मुझे बेहद संतुष्टि मिलती है ,आपने हर बार मेरा उत्साहवर्धन किया है ,बहुत कुछ सीखने को मिला है आपसे ,यह क्रम आज भी जारी है विस्तार ज़रूर हुआ है पर आप भी इससे सहमत होंगे कि दक्षिण के मंदिरों के विराट स्वरूप को छोटे दायरे में समेट पाना मुश्किल था आपने कितना रस लेकर एकोएक बिन्दु पर ग़ौर किया है आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है इसलिए भी कि मंदिरों की शैली ,पुरातात्विक महत्व को आप से अच्छा कौन जान सकता हैअनेकानेक धन्यवाद ,एेसे ही प्रोत्साहित करते रहिए लक्ष्य आसान होता जाएगा ?
Aap ka rameshwaram barnan padke swayam jake aa gaya hoo aasa anubhab hota he bhagban aap par krapa kare jay sankar jay shri ram
देवेन्द्र दुबे
दुबे जी ,प्रणाम आप दक्षिण के मंदिरों के सौन्दर्य और शिल्प के साथ सात्विकता से प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाए्ंगे आप ज़रूर जाइए और लौटकर बताइये भी कि आपकी यात्रा कैसी रही ,बहुत धन्यवाद
एक यात्रा का समापन ही दूसरी यात्रा का समारम्भ है। ..कितना सही कहा है आपने . मैं जानता हूँ कि लिखने से पहले काफी पढ़ना भी पढ़ता है .आपके लेख को देख कर मैं अंदाजा लगा सकता हूँ इसके पीछे कितनी मेहनत की गयी है . शब्दों का चयन और व्याकरण पर व्यापक पकड़ ने इस लेख को विशिष्ठ दर्जे पर ला दिया है . लेकिन लेख काफी लम्बा हो गया है जिससे तर्मयता टूट जाती है . इसी को आप एक से अधिक भागों में लिख सकते थे . बाकि जो है सो है ..जय भोले नाथ की …………
https://nareshsehgal.blogspot.in/
नरेश जी ,धन्यवाद आलेख की विशिष्टता के विश्लेषण के लिए ,भाषा आपको उपयुक्त लगी यह भी अच्छा लगा पर लम्बाई ने कष्ट दिया,असल में यह विषय ही इतना व्यापक था कि मन नहीं मान रहा था और क़लम थमने का नाम ही नहीं ले रही थी पता नहीं टुकड़ों में देने से लोग उससे स्वयं को जोड़ पाते या नहीं …..
ख़ैर आप ने पत्र लिखा धन्यवाद ,जय भोले नाथ
हमने तुम्हारे ब्लाग के ज़रिए दक्षिण के मंदिरों की यात्रा कर ली ,बहुत आनंद आया ,वहाँ के देवी मंदिरों के बारे में नहीं पता था वह भी मालूम पड़ा ,मंदिर के शिल्प और पूजा वग़ैरह के बारे में भी बहुत बढ़िया जानकारी मिली ,अब हम भी जाएँगे
मृदुला अवस्थी
होशंगाबाद
मृदुला जी ,आपको ब्लाग ने यात्रा पर जाने के लिए प्रेरित किया तो मेरा उद्देश्य पूरा हुआ ,देखकर आइए
आपकी रोड डायरी रामेश्वरम धाम की सुरम्य और ढेर सारी माहिती का ख़ज़ाना है,भोपाल,नागरकोइल,कन्याकुमारी ,भद्रकाली ,विवेकानंद धाम,संत तिरुवल्लूवर आदि स्थानों की सूक्ष्म और सुन्दर जानकारी पढ़कर मन तृप्त होता है प्राकृतिक,सामाजिक,सांस्कृतिक परिवेश से भरी भरी रामेश्वरम तक विस्तारित है तब तक जब तक कि पढ़ने वाला शिव स्वरूप हो जाता है ,बहन जी मुझे तो यह रोड डायरी से ज़्यादा शिव डायरी लग रही है ,शिव को केन्द्र में रखकर आप विभिन्न स्थानों की यात्रा शब्दश: करतीं हैं ।एक बात और मुझे आपकी पानी की लाचारी ……पानी होने का अर्थ ही दूसरे के लिए होना है वाली बात बहुत अच्छी लगी ।
आपकी यात्रा निरंतर चलती रहेऔर शिव कृपा आप पर बनी रहे एेसी अभ्यर्थना है
|| जय रामेश्वर महादेव ||
बी एम राम,जूनागढ़.
राम जी आपकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी ,आपने हिन्दी में लिखा पत्र यह और भी अच्छा लगा ,शिव डायरी नाम बढ़िया है ,आपने कितनी तन्मयता के साथ पढ़ा है यह पत्र इस बात की गवाही दे रहा है ,आप लोगों की शुभ कामनाएँ ही मुझे अच्छा लिखने को प्रेरित करतीं हैं बहुत धन्यवाद
अदभुत!आपने जो लिखा है न उससे स्थान का महत्व सही मायनों में पता चलता है हम जो स्नान कर रहे हैं या हम किस आगम पद्धति से पूजा कर रहे हैं या फिर रामेश्वरम धाम और काशी यात्रा का क्या जुड़ाव है यह ब्लाग पढ़ने से ही पता चलता है नागरकोइल ,कन्याकुमारी और नारायणी देवी के बारे में भी बहुत सी जानकारियाँ पहली बार प्रकाश में आईं ,हमारी आने वाली पीढ़ी के कौन यह सब बतायेगा बल्कि हम लोग भी जो कर रहे हैं कितना सही है या ग़लत यह भी आपके ब्लाग से पढ़कर जाना जा सकता है,धार्मिक जानकारियों की इतनी प्रभावी प्रस्तुति देखकर मैं तो बहुत ही उत्साहित हूँ कि चलो अपने जानने वालों में से ही कोई यह नेक काम कर रहा है।
दीपक जी आपने अपने पत्रों में ब्लाग की प्रशंसा की ,नयी पीढ़ी के लिए इसमें दी सामग्री को उपयोगी बताया,भाषा को सराहा ,दक्षिण के शिल्प शास्त्र और पूजा विधान में दिलचस्पी ली ,और आख़िर में इसे किताब की शक्ल में निकालने का सुझाव भी दिया बहुत धन्यवाद ,दो पत्रों के लिए ढेर सारा धन्यवाद ।
अदभूत यात्रा विश्लेषण
समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन आपकी शब्द यात्रा द्वारा
साथ ही अन्य तीर्थों का भी दर्शन लाभ
ऐसा लगा मानो आपके शव्दो द्वारा सभी कुण्डों स्नान कर लिया
आपके आलेख की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है ,बहुत ही परिश्रम से लिखा गया लेख ,सविस्तार विधि विधानों की चर्चा,पढ़कर बहुत सी नयी जानकारी मिलीं ,शक्तिपीठों और शिव धाम का विस्तृत वर्णन पढ़कर वहाँ जाने का कार्यक्रम बना लिया है
जय माँ विंध्यवासिनी, पंडित पंकज द्विवेदी
प्रणाम,आपने आलेख की तारीफ कर मुझे संतुष्ट कर दिया ,आप अवश्य जाएें दक्षिण के शक्तिपीठों और रामेश्वरम हरिहर क्षेत्र की यात्रा में रोड डायरी आपकी कितनी सहायक सिद्ध हुई यह अवश्य बताइएगा, जय माँ विंध्यवासिनी बहुत धन्यवाद?
आपका आलेख बहुत बढ़िया है फ़ोटोग्राफ़ भी उच्चस्तरीय हैं ठाकुर जी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे धार्मिक स्थलों के संबंध में आप जो जानकारियाँ तीर्थ पुरोहितों और विद्वानों से एकत्र कर लोगों तक पहुँचा रहीं हैं वह अति उत्तम सेवा है श्री द्वारकाधीश आपके मनोरथ सिद्ध करें आपकी यात्रा सफल करें
अमर उपाध्याय ,द्वारका
प्रणाम, आप सभी तीर्थ पुरोहितों के आर्शीवाद के कारण ही हम यह कार्य कर पा रहे हैं जय द्वारिकाधीश, बहुत धन्यवाद ?
बहुत अच्छा दिशा जी ,प्रस्तुतीकरण भी बढ़िया है आपने द्रविड़ और आर्य संस्कृति के समन्वय की बड़ी सुन्दर व्याख्या की है,भाषा और व्याकरण की दृष्टि से भी बढ़िया है ,जय श्री ओंकारेश्वर
पं अखिलेश दीक्षित
प्रणाम ,बहुत धन्यवाद ,आपको प्रस्तुति ने प्रभावित किया यह जानकर प्रसन्नता हुई जय ओंकारेश्वर ?
Bohot badiya Disha.
Tunhari adbhut yatra ka sundar chitran sunkr bohot aanand aata hai..
Tum bohot hi achha chitran krti ho tumhari yatra Ka varnan padkr aisa lagta hai ki hum khud hi is yatra ko kr rhe hai.
कल्पना ,तुमने ब्लाग पढ़कर प्रतिक्रिया लिखी दिल से बहुत अच्छा लगा,इसी तरह जुड़े रहना और अपनी राय भी बताते रहना ?
आपका सफरनामा गजब है। आप इतना सारा लिखती हैं और हम इत्तु से में सब कह दें। आप तो जब भी सफर करती हैं अपने साथ साथ हमें तो ले ही चलती हैं.. साथ चलते हैं… गाछ, पेड़, नदिया, नाले, गांव के राजवैद नीम, आम, सुपारी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा… धान की सुनहरी ढेरियां आपको लुभाती हैं। आपकी अनंत कीगाथा… लाजवाब है…
आप जिस प्रकार हमें दक्षिण के शिवाध्यात्म से अवगत कराती हैं वह हरेक नहीं करा सकता। अनेक नयी जानकारियों से ओतप्रोत है… कथाओं की बारिकियां…. शब्दों की सटीकता… आपको नमन करने का मन कर रहा है।यह आलेख सजीव चित्रण से और भी अद्भुत बन गया है।
आपको इस यात्रा पर मुझे ले चलने के लिए आभार।
अमित जी ,पत्रकारिता के दिन याद दिला दिएे ,जब हम सभी मिलकर विभिन्न विषयों पर तफ़सील ये चर्चा करते थे ,दिल्ली के फ़ीचर लेखन वाले दिन ….और फिर जो आलेख मुक्कमिल शक्ल अख़्तियार करता था बस वैसा ही कुछ करने की कोशिश की है मेहनत आपको रंग लाती दिख रही है यह जानकर बहुत तसल्ली हुई शब्दों का चयन आपको पसंद आया यह भी अच्छा लगा इसी तरह हौसला बढ़ाते रहिए बहुत धन्यवाद
दिशा रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की तुम्हारी यात्रा का विवरण अद्भुत है। तुम्हारी दृष्टि और सोच को सलाम इतनी लंबी यात्रा का विवरण इतनी सहज एयर सरल शैली में प्रस्तुत करना केवल तुम्हारे ही बूते की बात है। मार्ग में पड़ने वाले सभी राज्यों, वन प्रांतरो ,पर्वत शृंखलाओं, हरीतिमा, वनवासी, उनके जीवन और संस्कृति से जुड़ी हर वस्तु का इस ब्लॉग में सटीक परिचय मिलता है।
मंदिरों का इतिहास, पूजा पाठ और उनके पुजारियों की कार्यविधि का भी बोध कराता है यह सुंदर आलेख।
तुमने मदुरै के बहाने अपनी माता श्री को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया। उनको नमन।
सच ही कहा है तुमने कि जहां काशी के दर्शन और यात्रा से मरणोपरांत मुक्ति मिलती है रामेश्वरम के दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है।
बहुत ही सुंदर है यह ब्लॉग। बधाई और साधुवाद।
सर,यह मेरे लिए सिर्फ़ प्रतिक्रिया नहीं है आपका आर्शीवाद है ,सुबह की ताज़ी हवा का झोंका है आपने ब्लाग पढ़कर पत्र लिखा यह भी मेरे लिए चौंकाने वाली बात थी ,माँ की बात लिखकर तो आपने द्रवित ही कर दिया ,सर आपके निर्देशन में काम सीखने के कारण ही तो हम दृश्यपरक लेखन कर पाए हैं ,किन शब्दों में आपको धन्यवाद कहूँ बस एेसे ही स्नेहवर्षा करते रहिएगा ,अतिशय धन्यवाद ,दिल्ली में अपने व्यस्त रचनात्मक जीवन से आप मेरे लिए कुछ समय निकाल पाए ?
विस्तृत शोध विषयक की प्रस्तुती, शब्दों के बन्धन ने इस ब्लॉग की उपयोगिता को नामानुसार सिद्ध किया है। भानू मिश्रा ,वाराणसी
भानू जी ,बनारस से आई आपकी प्रतिक्रिया में आलेख की सराहना और शब्दों के चयन वाली बात बहुत ही अच्छी लगी आप ने भक्तिरस में डूबकर आलेख पढ़ा ,बहुत धन्यवाद
आपने अपने ब्लॉग के द्वारा सच्चिदानंद शिव और महाविष्णु के हरिहर क्षेत्र और ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग श्री रामेश्वरम शाश्वत धाम ,शक्तिपीठ श्री कन्याकुमारी देवी,श्री मीनाक्षी देवी ,श्री मुन्न उदिता नांन्गई देवी ,नागदेवता के दिव्य स्थान नागरकोईल और शूचिन्द्रम के दर्शन करने का अवसर दिया,,,
बहुत प्रशंसनीय एवं धन्यवाद,,,
संदीप ,बहुत धन्यवाद,रूचि लेकर ब्लाग पढ़ने और प्रशंसा करने के लिए ,आप ब्लाग से शुरूआत से ही जुड़े हैं और हमेशा अपनी राय से अवगत भी कराते रहते हैं यह बात भली लगती है।
जिस तरह अच्छा संगीत वातावरण में उर्जा भर देता है ! अनुप्राणित कर देता है ! उसी तरह आपके द्वारा लिखित यात्रा वृतांत का वर्णन एवं आपके द्वारा लिखित शब्द शांत मन को प्रफुल्ल एवं आनंदित कर उत्सव मनाते हुए से प्रतीत होते हैं ! जो व्यक्ति की चेतना पर दस्तक देकर महाविराट में महत् में ले जाते हैं ! जो निराशा की निशा की मूकता को प्रथम कलरव का नवल स्वर प्रदान करते हैं ! तिमिर में अनजान खोई मनुजता को नया लोचन एवं नई पहचान देते हैं ! जीवन एवं स्वयं के अस्तित्व से संबंधित मूल प्रश्नों को स्पर्श करना एक लंबी यात्रा के बाद ही संभव हो पाता है ! जिस घड़ी आपके कदम यात्रा पर बढ़ते हैं वही प्रकाश परिपूर्ण सुबह है ! आपकी शिव की तरफ यात्रा तमिस्रा के क्षणों का अंत करके ज्योति के अरुणा में क्षण प्रकट करती है ! जिससे हम शिवमय हो जाते हैं ! पुनः धन्यवाद आपका इतना सुंदर व्रतांत हम से सांझा करने के लिए आगे के यात्रा वृतांत के लिए प्रतीक्षारत !!
महेश, तुमने तो बहुत ही अच्छी व्याख्या की है शिवमय होकर तुमने आलेख को रूच -रूच कर पढ़ा ,शिवासक्त होकर प्रतिक्रिया लिखी ,सभी पक्षों को आत्मसात करते हुए हरिहर क्षेत्र के महात्म्य को पूर्णरूपेण समझा,मुझे बेहद ख़ुशी हुई ,दिल से धन्यवाद ,एेसे ही लिखते रहना ।
इतना सुंदर वर्णन, बहुत मनभावन, और इतनी अनूठी हिंदी भाषा में .. अतिविशेष!!
विवेक जी ,सात समन्दर पार से हिन्दी की प्रशंसा पढ़कर मन संतृप्त हो गया ,बहुत अच्छा लगता है जब आप अपने व्यस्त समय में से कुछ वक़्त रचनात्मक कार्यों के लिए भी निकाल पाते हैं ह्रदय से आभार
बहुत ही सुन्दर और अद्भुत वर्णन ।आपका लेख बहुत ही सूक्ष्म जानकारियों से परिपूण॔ और मन को आनंदित करने वाला होता है ।साथ ही साथ यह भी अनुभव देता है कि हम भी आपके साथ साक्षात् दर्शन का लाभ उठा रहे हैं ।सारे धामों का वर्णन अतुलनीय है ।आपकी लेखनी की जितनी तारीफ़ की जाए कम है ।पता लगता है कि इस शोध काय॔ में आपकी कितनी मेहनत और लगन है ।गर्व होता है आपकी लेखनी पर और अपने भारत के इतिहास पर।धन्यवाद दीदी इतनी सुन्दर यात्रा के लिए ।
शिल्पा ,तुम जैसे अच्छे पाठक मिलते हैं तो बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती रहती है तुमने बहुत अच्छा पत्र लिखा है रूचि लेकर पढ़ा भी है ,बहुत धन्यवाद,ब्लाग से एेसे ही जुड़े रहना ?
हर बार की तरह अप्रतिम ब्लाग
अगर आपके ब्लाग पढकर किसीने द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा कर ली, तो भी वो बहुत बहुत सफल हो जायेगी इसमे कोई संदेह नही।
अभिनव , पुणे
अभिनव जी ,आप स्वयं शोधपरक लेख लिखते हैं आपके द्वारा प्रशंसा किए जाने से बहुत अच्छा लगा अनेक धन्यवाद
सराहनीय कार्य,शोधपरक,मैं तो कहूँगा आप डॉक्टर हो गए हैं ,यानि विषय के विशेषज्ञ ,शब्दों के चयन से मध्यप्रदेश के आदिवासी गाँव ,तेलंगाना का प्रकृति चित्रण और तमिलनाडु के मंदिरों की पूजा पद्धति का वर्णन आपने बहुत ही बढ़िया अंदाज में किया है ,पढ़ते समय एेसा लग रहा था मानो हम आपके साथ -साथ यात्रा कर रहे हों ,श्री घृष्णेश्वर जी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे
प्रणाम ,आप सभी गुणीजनों से सीखा है,,हम तो बस माध्यम हैं पंडित जी ,आप लोगों का आर्शीवाद मिलता रहता है तो उत्साह और भी बढ़ जाता है,अतिशय धन्यवाद,जय श्री घृष्णेश्वर
हमेशा की तरह श्रीमती दिशा द्वारा अपनी हस्त सिद्ध लेखनी से अत्यधिक पूजनीय है श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग का घर बैठे ही दर्शन करा दिया है इसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हो रहा हूं
है नागरकोइल का मंदिर ,कन्याकुमारी सुचिंद्रम मीनाक्षी मंदिर तथा शिव धाम रामेश्वरम के मंदिरों की पावन यात्रा इन सबके लिए दिशा धन्यवाद की पात्र हैं
इतनी विस्तृत जानकारी देना वह भी अपने अल्प प्रवास में केवल वोही संभव कर सकती हैं
धन्यवाद
राजन के प्रणाम सहित
सर बहुत धन्यवाद ,आपका पत्र मुझे दिली सुकून देता है साथ ही तसल्ली भी देता है कि हम जो कर पा रहे हैं उसे आप जैसे विद्वानों की सराहना मिल रही है आपके एकोएक शब्द मेरे लिए अहमियत रखता है इसलिए भी कि फ़ीचर लेखन के गुर तो मैंने आपसे ही सीखे हैं आपके इन्हीं आर्शीवचनों की तो मुझे प्रतीक्षा रहती है
अद्भुत, अलौकिक और अवर्णनीय इस यात्रा वर्णन को पढने के बाद यही कुछ शब्द याद रह जाते है। इतना विशद, विवरणात्मक, जानकारीप्रद और रोचक वर्णन इन दिनों पढने नहीं मिलता। तुम्हारी मेहनत लगन धीरज और जिज्ञासु प्रवृत्ति को प्रणाम। इतनी शिद्दत से लिखना दुश्कर कर्म है जिसे तुम बहुत बेहतर तरीके से अंजाम दे कहीं हों। भोपाल से रामेश्वर की यात्रा की थकान पढने के बाद अब हमें भी महसूस होने लगी है। इस रोचक यात्रा पर साथ ले जाने का शुक्रिया दिशा..
ब्रजेश,आशा है तुम्हारी थकान अब उतर गई होगी,तुमने कितनी पते की बात लिखी है कि इतना खोज परक आध्यात्मिक लेखन अब पढ़ने को नहीं मिलता ,क्योंकि हम अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं ,मेरे लिए भी वाक़ई सब कुछ बहुत आसान नहीं है पर तुम जैसे पढ़ने लिखने वाले आला दर्जे के कलमनवीस जब तारीफ करते हैं तो हौसला दूना हो जाता है और रास्ते आसान हो जाते हैं ,तुमने अपने अति व्यस्त समय में से समय निकाला और मेरा उत्साहवर्धन किया ,ह्रदय से धन्यवाद?
Disha, I m very much pleased to read your blog. You have described your journey and experience so minutely and beautifully that I am not unknown to this place anymore.
Thank you..
Priti
प्रीती बेन,तुम्हारे पत्र की राह तक रही थी ,इतना सुन्दर और सटीक पत्र लिखने के लिए दिल से शुक्रिया ,चलो अब रामेश्वरम से तुम क़तई नावाक़िफ़ नहीं हो,यह जानकर बहुत अच्छा लगा ,एेसे ही मेरे संग-संग घूमो,दर्शन करो और अपनी राय ज़ाहिर करती रहो?
अद्वितीय ,आपने पूरी लगन और मेहनत से इस बार का आलेख तैयार किया है पढ़कर नई जानकारियाँ मिलीं ,एेसे ही लिखती रहें श्री घृष्णेश्वर जी की कृपा आप पर बनी रहे और आप अपने उद्देश्य में सफल हों।
पंडित संतोष पैठनकर ,वेरूल
प्रणाम,आपको अतिशय धन्यवाद,आपने अपने विचारों से हमें अवगत कराया,जय श्री घृष्णेश्वर?
दिशा जी आपकी शब्द रचना बहुत ही प्रभावशाली है एेसी कि पढ़ते साथ ही साक्षात् भगवान के दर्शन हो जाते हैं और हम शाश्वत धाम की दिव्यता का अनुभव कर लेते हैं आप सही मायने में सनातन संस्कृति का प्रसार कर रहीं हैं श्री त्र्यम्बकेश्वर जी वाले आलेख की तरह यह भी बहुत मेहनत से लिखा है,मैं चाहती हूँ ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक यह पहुँचे
सौ.ललिता शिन्दे
न्यासी,त्र्यम्बकेश्वर संस्थान
ललिता ताई ह्रदय से धन्यवाद ,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि लेख के माध्यम से मैं आपको ईश्वर के साक्षात् दर्शन करा पायी ,मेरा उद्देश्य भी यही है,अधिक से अधिक पाठकों को ब्लाग से जोड़ सकूँ ,इसी में ब्लाग की सार्थकता निहित है आप भी मेरे इन प्रयासों में सहभागी बनिए यही विनम्र निवेदन है,मेरे ब्लाग का लाभ आने वाली पीढ़ियों को मिले यही कामना है ?
हरिओम,बहुत ही बढ़िया,अबकी बार आपने बहुत रिसर्च करके लिखा है कितनी पुरानी पुस्तकों का आपने अध्ययन किया होगा मैं यहाँ बैठकर अंदाज़ा लगा सकता हूँ ,रामेश्वरम तीर्थ का वर्णन इतने विस्तार से नहीं पढ़ने में आता ,साथ ही आपने मीनाक्षी मंदिर ,कन्याकुमारी ,नागरकोइल का वर्णन लिखा है वो भी बहुत सारी नई जानकारियाँ लिए हुए है फ़ोटोग्राफ़ी कमाल की है मार्ग का विवरण तो ब्लाग को रूचिकर बनाता ही है और आप जिस तरह से
सजातीं हैं उससे ब्लाग बढ़िया लगने लगता है
पंडित मंगेश चांदवड़कर
प्रणाम, अनेक धन्यवाद,आप श्री त्र्यम्बकेश्वर जी के दिव्य धाम से श्री रामेश्वरम धाम के दर्शन और तीर्थों का आनंद ले पाये ,मीनाक्षी अम्मन और नागराज जी के बारे में जान पाए यह जानना मेरे लिए बहुत ही सुखदायी रहा ,लिखने के लिए पढ़ा बहुत ,पौराणिक महत्व की पुरानी पुस्तकों को खंगाला यह भी सच है ,फ़ोटोग्राफ़ी और ब्लाग की सज्जा भी आपको बेहतर लगी यह जानकर प्रसन्नचित हूँ । जय श्री त्र्यम्बकेश्वर ?
जितना व्रहद् व्रत्तांत, उतना ही अधिक रूचिकर भी.
श्री रामेश्वरम् के महात्म्य के साथ ही मार्ग मे पड़ने वाले प्रत्येक धार्मिक पड़ाव के नैसर्ग, मान्यताओं, परंपराओं, शिल्प, सोंदर्य एवं किवंदतियों का भी विस्त्रत उल्लेख आपके अथक परिश्रम एवं श्रंखला के प्रति आपके असीम उत्साह को प्रदर्शित करता है.
जय श्री रामेश्वरम्
निशान्त ,तुम्हारा पत्र इस बार देर से आया ,लेकिन तुमने मन लगाकर पढ़ा और लिखा भी बहुत मन से,तुम मेरे परिश्रम को आलेख में महसूस कर पा रहे हो यह भी बहुत सुखकर लगा इसी तरह ब्लाग से जुड़कर अपनी राय से हमें परिचित कराते रहना,बहुत सारा धन्यवाद
Adbhud varnan…..bahut achcha varnan Disha… Apke lekh padhne se humari Hindi sudhar jayegi…..
सपना ,पत्र लिखकर अपने सुविचारों से अवगत कराने के लिए तुम्हें पत्र के माध्यम से स्नेह सहित बहुत सारा धन्यवाद पहुँचा रही हूँ ,तुम्हारी संवाद क्षमता और हिन्दी तो वैसे ही बहुत अच्छी है हम सभी तो एक दूसरे से कुछ न कुछ सीखते हैं ,तुम जो नेक समाज सेवा का काम कर रही हो वह अपने आप प्रेरणादायी है
I hv read 3 time of your Rameshwaram Jyotirlinga road daerie nd now I can say 1 St time i hv read too good discription with Geographical nd Mythologycal of Rameshwarm .I never ever read with all religions nd religious tamil nd Kannad words with meaningful relationships with subject .when I was read i feel I m also in this trip with full of visualisation.I m thankful to you that you give me this a apporchunity in this life that I get MOKSH with this yatra
God bless you realy your steps is saving our culture nd torch for youth who far away from our history.
OM namha Shivay
जीतेन्द्र जी आपको बहुत धन्यवाद ,आपने यात्रा का भरपूर आनंद लिया ,द्रविड़ इतिहास और संस्कृति को ब्लाग के माध्यम से बेहतर ढंग से जाना,इतनी गहराई से जब आप जैसे पाठक पढ़ते हैं और फिर अपनी प्रतिक्रिया में मोक्ष की परम अनुभूति की बात साझा करते हैं तो कार्य में और मन लगता है और उत्त्कृष्ट लिखने की प्रेरणा मिलती है
महादेव महादेव,अापने आलेख बहुत बढ़िया लिखा है ,हमने अपने सभी जानने वालों को पहुँचाया,सभी ने तारीफ की ,आप भारतीय संस्कृति ,आध्यात्म और धार्मिक अनुष्ठानों को जन जन तक पहुँचाने का काम कर रही हैं वह अनूठा और जनकल्याणकारी है,आपने घर बैठे रामेश्वरम धाम की यात्रा करा दी
पंडित हरीश भारती गोस्वामी ,द्वारका
प्रणाम,आपके आशीष वचन मेरे लिए बहुत मायने रखते हैं आपको अतिशय धन्यवाद महादेव,महादेव ?
दिशा की लेखनी सार्थक हो रही है,पढ़ते समय मम्मी की याद दिलाती है,
दिशा साधुवाद,तुमने सामयिक विषयो पर कॅरियर के किस पढ़ाव में लिखा मुझे नही मालूम,लेकिन मेरा दावा है अब लिखोगी तो बहुत उम्दा और श्रेष्ठ होगा,बचपन से ही हमारे बीच में साहित्य,भाषा,सामयिक विषयो का महत्व रहा,
पढ़ाई छूटी अब कम से कम तुम तो लगी हो,बाकी सब तो 99 के फेर में लग गए हैं
विपिन अग्रवाल
बहुत लिखा बतौर संवाददाता ,राजनैतिक ,सामाजिक और सामयिक विषयों पर अब तो मन इसी में रम रहा है बहुत धन्यवाद,तुम्हें मेरा शोधपरक लेख अच्छा लगा मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है जो इस बात को दर्शाता है कि तुम भले ही९९के फेर में लग गए हो लेकिन साहित्य के प्रति तुम्हारी ललक अब भी बाक़ी है ,इसे हमेशा जिलाए रखना……यही तो हमारे संस्कार हैं और यही हमारी पूँजी …तुम्हें मम्मी की लेखनी की याद आ गई,ब्लाग पढ़कर ,मुझे प्रसन्नता हुई,बस जो कुछ भी तुम पढ़ रहे हो न यह सब उन्हीं की शिक्षा दीक्षा का नतीजा है ,एेसे ही लिखते रहना।बचपन के दिनों का स्मरण कराने के लिए भी बहुत सारा धन्यवाद?
Disha bahut achhe se vistar purvak varnan kiya he tumne???
वर्षा ,मुंबई की व्यस्त महानगरी ज़िन्दगी से मेरे ब्लाग को पढ़कर प्रतिक्रिया लिखने के लिए दिल से शुक्रिया इसी तरह जुड़े रहना
Disha very nice . You are very good writer
उमेश , विचार साझा करने के लिए बहुत सारा धन्यवाद
Disha bahut Sundar likha hai, Maa Saraswati ka Ashirwad sadev Aap Par bana rahe.
Vivek Mahajan
विवेक ,अपनी राय ज़ाहिर कर मेरी लेखनी में विश्वास बयां करने के लिए शुक्रिया
दिशा बहुत ,बहुत साधुवाद ?�यात्रा विवरण पढ़कर मजा आ गया।तुम्हारी लेखनी मे दम हैं।बाबा महादेव एवं श्री गणेश की कृपा तुम पर बनी रहे।
प्रेमशंकर पाण्डेय
प्रेमशंकर ,तुम्हें मेरी लेखनी ने प्रभावित किया उसमें दम भी दिखाई दिया, इस बाबत बहुत धन्यवाद
Very nice we are feeling proud of you
Sanjay Sharma
संजय ,बहुत धन्यवाद,सराहना करने के लिए ,बहुत अच्छा लगा तुमने पत्र लिखा
आपका काम बहुत बढ़िया है ,पंडा जी से आपने विस्तार से बात कर जो रामेश्वरम की महती लिखी है वो बहुत ज्ञानवर्धक है जय परली वैधनाथ ,बाबा आपकी यात्रा सफल करे
पंडित राजभाऊ जोशी
प्रणाम,आपको बहुत धन्यवाद,आपने लेख की प्रशंसा की,जय श्री परली वैधनाथ
दिशा, आई ने तुम्हारा लेख पढा, पढकर उन्हें बहुत आनंद हुआ, उन्हें लगा जैसे वे सारी जगहें फिर से घूम आई हों, उनकी इन जगहों की यादें मनपटल पर फिर से ताजा हो गई। आई ने तुम्हारी बहुत तारीफ की और तुम्हारे लगन और मेहनत की बहुत सराहना की। उनकी mobile पर पढ़ते-पढ़ते आँखे दुख आई, परंतु उन्हें इतनी अच्छी अनुभूति हो रही थी कि पूरा लेख पढने के बाद ही दम लिया। तुम्हें इसी तरह और अच्छा-अच्छा लिखने के लिये आई की तरफ से ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद।तुम्हारे लेख, हिंदी में लिखने के लिए मेरे लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। पहले मैं सोच रहा था, क्या मैं आई के विचारों की अभिव्यक्ति हिंदी में लिख पाऊंगा? परंतु जब लिखने की शुरुआत की तो सहजता से शब्दों का सिलसिला शुरू हो गया। मुझे अपने आप पर बहुत आश्चर्य हो रहा है, क्योंकि हिंदी की परीक्षा से मुझे नानी याद आ जाती थी, ग्यारहवीं class में भी सारे प्रश्नों के जवाब, कविता के अर्थ
, निबंध, लेखकों की जीवनी, व्याकरण सबकुछ घोटकर जाता था क्योंकि अपने आप से हिंदी में लिख पाना मेरे लिए असंभव था और घोटना उससे भी कठिन कार्य। और अब हिंदी पढ़ने और लिखने का नाता करीब-करीब 20-22 सालों से टूट चुका है, हिंदी पढ़ने-लिखने को फिर से जोड़ने के लिये शत-शत धन्यवाद।
गिरिराज उत्तरवार
गिरिराज ,आई को प्रणाम ,उनसे तारीफ सुनकर बहुत अच्छा लगा ,तुम्हारी हिन्दी वाक़ई सुधर और निखर गई है ,बहुत धन्यवाद
दिशा जी यात्रा का पुनः अविस्मरणीय वर्णन। इतनी ज्ञानवर्धक जानकारी शायद ही और कहीं मिले। मीनाक्षी नागराज एवं रामेश्वरम का वर्णन अत्यंत सारगर्भित है। पढकर ऎसा लगा जैसे मैं भी यात्रा में शामिल हूं। विशेष सहयोग में मुझे स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
प्रदीप जी ,बहुत धन्यवाद,आपके सहयोग से वन क्षेत्र को समझना आसान हो गया ,आप हमारे साथ जुड़े रहिए आगे भी आपसे सहयोग की अपेक्षा रहेगी
आपका रोड डायरी का नया संस्करण ज्योतिर्लिंग के एकादश स्थान पर भगवान रामेश्वरम् की सड़क मार्ग द्वारा यात्रा वर्णन अत्यंत मन को आंदोलित करने वाला लगा । जिसे पढ़कर ऐसा लगा की हम भी आपके साथ-साथ सभी स्थानों एवं प्रसाद लाभ प्राप्ति कर रहे हो। साथ ज्योतिर्लिंग के अलावा कन्याकुमारी शक्तिपीठ का वर्णन भी अति रूप से किया गया है । साथ ही वहीँ पर नागलोक भी हुआ करता था जिसका प्रमाण नागरकोइल से मिलता है जहाँ के मंदिर आज भी प्रमाण रूप में प्रस्तुत है । तथा वहाँ के संस्कृति के साथ – साथ वहां के खान पान का वर्णन भी अति रुचिकर रूप से किया है । इसे पढ़कर आज के युवा जो अपने संस्कृति एवं संस्कार से दूर होते जा रहे है वह भी बिना वहां गए बहुत कुछ सीख सकते है । आशा है आगे और यात्रा संस्मरण हमे पढ़ने को मिलेगें जिससे हम जैसे और लोग भी दर्शन लाभ पा सकेगें ।
ॐ नमः शिवाय, वीरेंदर सिंह
वीरेन्द्र जी आपको बहुत धन्यवाद,आप सभी आध्यात्मिक यात्रा का भरपूर आनंद ले रहे हैं यह जानकर बेहद ख़ुशी मिलती है और इस बात की प्रेरणा भी मिलती है कि बहुत गहराई से लिखूँ ,ज़्यादा तथ्यों को समाहित करूँ ,ज्ञानी लोगों से अधिक से अधिक ज्ञानार्जन कर सकूँ
Didi amazing ..journey ..feeling proud of our rich heritagae..at the same time i wonder why todays parents and system has kept away their offsprings from such an amazing and invaluable heritage?
कभी रामेश्वर जाने का अवसर प्राप्त नही हुवा किंतु आपका लेख पढ़कर के ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मैं रामेश्वर की यात्रा कर रहा ह किन्तुूं पूरा नहीं पढ़ पाया जितना भी पढा असीम आनंद की अनुभूति प्राप्त हुई।आशा है आपकी लेखनी के माध्यम से इसी प्रकार से मे अनदेखे धार्मिक स्थलों का भ्रमण करता रहूंगा।
बहुत सुंदर लिखा आपने जाने का समय तो कभी मिल नहीं पाया लेकिन आपके लेख से आज कन्याकुमारी हैदराबाद मदुरई घूम गया भगवान से प्रार्थना करता हूं कि आपकी लेखनी का जादू ऐसा ही छाया रहे।
आदरणीय दिशा जी,
धाम, ज्योतिर्लिंग, सिद्ध तीर्थ, हरिहर क्षेत्र: श्री रामेश्वरम् —–इस आर्टिकल के पृष्ठ ९ पर आप ने माधव पुराण का उल्लेख किया है।
क्या आप मुझे माधव पुराण के विषय में अधिक कुछ बता सकती हैं? मैंने इस पुराण का नाम सुना था , परन्तु मुझे यह ग्रंथ कहीं पर भी प्राप्त नहीं हो पाया। इंटरनेट पर भी तलाशनेसे कुछ भी हाथ नहीं लगा।
क्या आप इस ग्रंथ के विषय में मुझे जानकारी दे सकती हैं, या फिर आप इसके प्राप्तिस्थान के विषय में हि कुछ बता दीजिए।
आप का आभारी…
गिरीश