लोकरंजन में शिव – राजस्थानी कूचामणि ख्याल, बघेली गीत, निमाड़ी गणगौर नृत्य

लोकरंजन में शिव

रेतीले धोरों से निकली मांड गायकी के माधुर्य से पगे रजवाड़ी गीत केसरिया बालम आवोनी पधारों म्हारे देश, हिचकी और मूमल का भावप्रधान प्रस्तुतीकरण दर्शकों को लुभा गया। श्री दयाराम भांड की शिवशक्ति मण्डली ने स्वरदीर्घना और स्वरसंक्रम (उतार चढ़ाव) के साथ कूचामणि ख्याल गायकी खेल के तेजस्वी तत्वों से दर्शकों का भलिभांति परिचय कराया। नागौर के जोगिया सारंगी के स्थान पर वर्तमान में प्रचलित हारमोनियम, नगाड़े के तोड़ों, ढोलक की थापों, करताल, खंजरी और मंजीरे के सहारे संगीतात्मक मधुरत्व देने वाले दयाराम भाण्ड ने तानसेन छाप और लच्छीराम छाप के साथ खमाज, मिश्र, भैरवी और कांलिगड़ा रागों में गुम्फित कुचामणि ख्याल गायकी से लोककथा को इतना प्रेषणीय बना दिया कि मन डिंगल भाषा को भी सहजता से ग्रहण करने लगा। पार्वती जी द्वारा पूरणमल की मां के रुदन को सुनकर शंकर जी से यह कहना पूरण भक्त को कर दो सरजीवण हे शंकर निरवाणी और भगवान का प्रत्युत्तर में यह कहना कुण कुण को करसी जग में जीवता हठ छोड़ भवानी कथा को भावुकता से जोड़कर रसवान बना गया। छन्दों का लास्यंग और लावणी का लावण्य लिए मौलिकता व सरसता वाले कुचामणि ख़्याल का प्रारंभ गजानन वंदना और शारदा गान से हुआ ,घूमतड़ा घर आओ म्हारा प्यारा गजानन गाकर संगतकारों ने प्रथम पूज्य गणेश जी से सम्पूर्ण लीला को पार उतारने का निवेदन किया।

हमने कूचामणि ख्याल गायकी के संबंध में दयाराम जी से बात की उन्होंने हमें बताया कि कूचामणि ख्याल गायकी परंपरा का प्रारब्ध नागौर जिले के कूचामन गांव से हुआ है। कुचामन के निकट बूड़सू गांव के पं लच्छीराम जी इस वाचिक परंपरा के रचयिता माने गये हैं। उनके द्वारा प्रवर्तित ख्यालों को सर्वप्रथम दयाराम के परदादा सत्ताराम जी दादा रामलाल जी और पिता उमंगराज जी ने लोकगृहीत बनाकर लोक चर्चित कर दिया बाद में दयाराम ने इसके विशिष्टांग को जन-जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। दयाराम भाण्ड से हमें यह पता चला कि त्रिमुखी मंचीय व्यवस्था में मंचित होने वाली इस मारवाड़ी ख़्याल गायकी में कथोपकथन के साथ कथा स्वत: प्रवहमान होती चलती है। दो लोगों के पारस्परिक वार्ताक्रम में हलकारा हास्य विनोद के लिए बीच-बीच में मंच पर आता है और अपने चुटीले संवादों से दर्शकों को ठट्ठा मारने के लिए विवश भी करता रहता है। भक्त पूरणमल में भी राजा रानी प्रसंग में बाग में गेंद खेलने वाले दृश्य में राजा हलकारे से बोलता है यदि मैं खेल में जीत गया तो तुमको उपहार स्वरूप नवलखा हार दूँगा और अगर तुम विजयी हुए तो तुम हमें क्या दोगे,हलकारा हँसी ठिठोली कर कहता है पांच रूपये की मूँगफली ,दर्शक ताली बजाते हैं । दयाराम से यह भी जानकारी मिली कि  १९ वीं सदी के पूर्वार्द्ध से लेकर उत्तरार्ध तक आते-आते कूचामणि ख्याल गायक सफलता के नये प्रतिमान स्थापित कर चुके थे स्वयं दयाराम के परदादा की संगीतिक प्रस्तुतियों के कारण जोधपुर के सिनेमागृह तक बंद हो गये थें।

ये उन दिनों की बात है जब चारआने और आठआने के टिकिटों पर लोकरंजन करने वाले बहुतेरे हो गये थे। कुचामणि ख़्याल गायकों ने वह समय भी देखा है जब मशाल जलाकर चौक चौराहों पर फहरायी जाने वाली लाल झंडियों से ही गाँव वालों और राहगीरों को मारवाड़ी ख़्याल गायकी के आयोजन की जानकारी मिल जाया करती थी। धीरे-धीरे मेड़ता पुष्कर, डेगाना, मूंडूवा स्थानों पर चांद नीलगिरी, राव रिड़मल, मीरा मंगल, राजा भृतहरि,भक्त प्रहलाद और पारस पीताम्बरी, कथानक लोकलयों में सज संवर कर लोकप्रिय होते गये। भक्ति, श्रंगार और वीर की रसमयता वाली ख्याल गायकी को डिंगल भाषा की मिठास ने और भी संप्रेष्य बना दिया। दयाराम के अनुसार राजस्थान के पशु मेलों मे लोकधर्मी चेतना का संचरण करने वाली इस गायकी में लोक संस्कृति के बिम्बों को देखने वालों की मनोस्थिति ऐसी कर दी थी मानो मरूभूमि में रस की झिरियां अन्दर ही अन्दर रिस कर तन-मन को भिगो रही हों। मेड़तिया राठौरों की धरती मेड़ता जो नागौरी बैलों के लिए भी सुप्रसिद्ध है के रहवासी दयाराम बताते हैं कि तेजा जी, गोगा जी, देव नारायण जी, राम देव जी के मेलों में आज भी कूचामणि खयाल गायकी के लालित्य को देखने दर्शकों की भारी भीड़ जुटती है। वैसे तो पं लच्छीराम जी के लिखे ४२ ख़्याल प्रचलन में हैं पर वर्तमान में मेड़ता के कवि जगन्नाथ के लिखे वीर पृथ्वीराज ,वीर महाराणा प्रताप,राजा बलि और शनिदेव के ख़्याल भी प्रदर्शित किये जाने लगे हैं आवश्यकतानुसार दयाराम अपने लोकनाट्य के माध्यम से जनजागृति संदेश भी देते हैं। सूर्य नगरी जोधपुर का भाषाई सौन्दर्य दयाराम की गायकी का वैशिष्टय है। दयाराम को पं लच्छीराम जी के लिखे सारे ख़्याल कंठस्थ हैं और उनकी मण्डली से संबद्ध ६० लोक कलाकार अनेक ख़्यालों को कंठाग्र किये हुए हैं। शहरों में बौद्धिकता और भौतिकता से प्रभावित जनमानस भले ही इस विद्या का मर्म कम समझता हो पर गांव में रसभोग करने वालों की कमी नहीं है।

Comments

  1. सुरेश अवस्थी says:

    काफी शोध और गहन अध्ययन के बाद लिखा गया है यह आलेख। लोककाव्य और लोकनाट्य का अद्भुत सम्मिश्रण दिखा नाट्य प्रस्तुतियों में।
    उत्तम ब्लॉग
    साधुवाद।

  2. Pratishrut says:

    अद्भुत! भारत को जानने के लिये एक जीवन कम है ।

  3. संजय महाजन says:

    बहुत ही सुंदर है।
    संजय महाजन

  4. रोशनी प्रसाद मिश्रा says:

    ???सुन्दर आलेख
    रोशनी प्रसाद मिश्रा

  5. कौशिके राजेंद्र says:

    बहुत ही सुंदर और विशेष पूर्ण लेखन

  6. O P Mishra says:

    Excellent article on shiva as depicted through cultural performances.shiva history starts from pre history to the modern times.you have explain in detail through religional languages.you must continue with other gods and goddesses.badhai jaldi road dairy ke liye..thanks.
    O P Mishra, Bhopal

  7. वीरेन्द्र सिंह says:

    लोक रन्जन में भगवान शिव के ऊपर आपका लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा ,मंचन में राजस्थानी-भाषा में भगवान शिव और पार्वती जी से दर्शक को जोडने का सात्विक प्रयास बहुत ही सराहनीय है आज के इस व्यस्त और कलयुगी जीवन में आपका एक प्रयास प्रशंसनीय है ।

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