डाॅ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने निमाड़ के गणगौर गीत के लिए लिखा है यह गीत अकेला ही लाख गीतों के बराबर है। ढोल और थाली की थाप पर नाचते रेणु बाई और धनियर के रथ को सिर पर रखकर भावविव्हलता के साथ वक्राकार घूमते दम्पत्ति स्वयं को शिव और गौरा के समान अनुभूत करने लगते हैं। पूजन के उपरांत विधि विधान से जवारों को विजर्सन कर दिया जाता है। गणगौर की सरस अनुभूति करते गीत हृदय तंत्री को झंकृत कर देते हैं। निमाड़ी भाषा के केंद्र कहे जाने वाले खरगोन के श्री महाजन और उनके दल ने भी अपने प्रदर्शन से गणगौर लोकगीतों के भाव पक्ष को अपने विशुद्ध रूप में प्रस्तुत किया जो निश्चय ही अनुकरणीय व सराहनीय है।
घोड़़ी बठी न धणियेरजी आया,
रनुबाई कर सिंणंगार हो चंदा
कैसी भर लाउं जमुना को पाणी
घर म्हारों दूर धागर म्हारी भारी
घाटी चढ़ी हउं हारी हो चंदा
कसी भर लाउं जमुना को पासी
इस जैसे गीत के प्रदर्शन से तो ऐसा लगा मानो ठेठ ग्राम्य जीवन जैसा निमाड़ में जिया जाता रहा है वैसा ही उतार कर रख दिया गया हो। बड़वाह स्थित नटेश्वर नृत्य संस्थान के कर्ताधर्ता श्री संजय महाजन ने अल्पायु में ही जयपुर और रायगढ़ कत्थक नृत्य शैलियों की दीक्षा लेना प्रारम्भ कर दिया था वर्तमान में वे क्षेत्र के युवाओं को कत्थक सहित लोक नृत्य शैली में निशुल्क प्रशिक्षण दे रहे हैं। निमाड़ी अंचल की लोक विधाओं के संवर्धन तथा संरक्षण के प्रति कृतसंकल्पित श्री महाजन देश विदेश में अपनी प्रस्तुतियों के कारण सराहे जा चुके हैं।गणगौर के अतिरिक्त नर्मदा अर्चन,कृष्ण लीला,अतुल्य भारत और नारी के राम उनके द्वारा निर्देशित अन्य सांगीतिक प्रस्तुतियाँ हैं। यों तो निमाड़ के खण्डवा और बड़वानी जिलों में संगतकार पारंपरिक रूप से थाली और ढोल का प्रयोग करते हैं पर श्री महाजन अपने प्रदर्शन में हरदा जिले में संगतियों द्वारा प्रयुक्त होने वाले हारमोनियम तथा ढोलक को भी बजाना नहीं भूलते। भावों को उद्दीप्त करने के सामर्थ्य के कारण ही तीस सदस्यों वाला उनका दल आरंभ से अंत तक द्रशकों को बाँधे रख पाया। लोक की सूक्ष्मताओं में शिवत्व की रसानुभूति कराती शाम शिवमय बना गयी और कह गई जब तक लोक है लोकरंजन तो रहेगा ही रहेगा।
काफी शोध और गहन अध्ययन के बाद लिखा गया है यह आलेख। लोककाव्य और लोकनाट्य का अद्भुत सम्मिश्रण दिखा नाट्य प्रस्तुतियों में।
उत्तम ब्लॉग
साधुवाद।
अद्भुत! भारत को जानने के लिये एक जीवन कम है ।
बहुत ही सुंदर है।
संजय महाजन
???सुन्दर आलेख
रोशनी प्रसाद मिश्रा
बहुत ही सुंदर और विशेष पूर्ण लेखन
Excellent article on shiva as depicted through cultural performances.shiva history starts from pre history to the modern times.you have explain in detail through religional languages.you must continue with other gods and goddesses.badhai jaldi road dairy ke liye..thanks.
O P Mishra, Bhopal
लोक रन्जन में भगवान शिव के ऊपर आपका लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा ,मंचन में राजस्थानी-भाषा में भगवान शिव और पार्वती जी से दर्शक को जोडने का सात्विक प्रयास बहुत ही सराहनीय है आज के इस व्यस्त और कलयुगी जीवन में आपका एक प्रयास प्रशंसनीय है ।