मालवा की लोक नाट्य शैली माच, जबलपुर का देवीजस गान, जूनागढ़ का गरबा

मालवा जबलपुर जूनागढ़

बहुधा कृषि प्रधान अहीर रैबारी समाज में लोकगीतों और लोकनृत्यों की बहुलता मिलती है। कृष्ण आसक्त अहीर समाज मानता है कि महाभिनिष्क्रमण के समय रास की उत्सभूमि मथुरा से श्री कृष्ण के साथ आने वाले अहीरों के कारण ही सौराष्ट्र की लोकभूमि पर रास का अवतरण हुआ। कृष्ण और राधा के निश्चछल प्रेम से पगे लोकगीतों पर आधारित ‘मिश्ररास’ कार्यक्रम की एक अन्य प्रस्तुति थी। कृष्ण भक्ति से सिंचित सौराष्ट्र की माटी की गंध से पूरित इस नृत्य ने सभागार के वातावरण को उल्लसित कर दिया। समापन प्रस्तुति के रूप में चोरवाड़ गांव की कोरी समाज की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला टिप्पणी नृत्य सामने आया। संयुक्त परिवार की चित्रावलियों वाले इस श्रम गीत में चनियाँचोली का स्थान श्यामल पेरणा और चमकीली लाल ओढ़नी ने ले ली। प्रायः स्त्रियां श्रमसाध्य कार्य करते हुए अपनी थकन मिटाने के लिय गीत गुनगुनाते हुए लयबद्ध थिरकती हैं। इसमे एक लकड़ी के सिरे पर लगे एक लक्कड़ के माध्यम से घर के धरातल अथवा छत को पक्का करने के लिये चूना व रेती के सम्मिश्रण को रात भर ठोंकते हैं। पारिवारिक प्रेम उदारता और सहयोग की भावनाएं लिए ये नृत्य पहले मंथर गति से और अंत में शीघ्रता के साथ किया जाता है। गुजरात के लोक गीतों में शुरुआत में चार पंक्तियों का दोहा गाया जाता है साखी कभी अंत में और कभी बीच में बोली जाती है। जो इस प्रस्तुति में भी अत्यंत मधुर लग रही थी।

हमने गुजरात की नृत्य परम्परा के संदर्भ में संगीत विशादर उदय जी और मीनल जी से चर्चा की जिनके 70 के दशक में स्थापित नृतन केन्द्र के प्रशिक्षुओं ने अपने नृत्य कौशल्य से दर्शकों को रोमांचित कर दिया। उन्होंने हमें बताया कि सौराष्ट्र की लोक संस्कृति की सुवास को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से वे और उनका दल देश-विदेश में अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा ले चुके हैं। उन्हें राष्ट्रपति भवन में भी दो बार कार्यक्रम करने का सुअवसर मिला है। अनेक सम्मानों से सम्मानित इस दल ने यूरोप, अफ्रीका और अरब के कई देशों में अपनी नृत्य प्रतिभा से लोगों को चैंकाया है। नृत्य गुरु मीनल जी की नृत्य कक्षाओं में भी लोक संवर्धित नृत्य दीक्षा दी जाती है। उनकी बेटी ध्वनि सेवक बसावड़ा यों तो भरतनाट्यम से एंमए प्रावीण्य हैं पर सौराष्ट्र की लोकविद्याओं के उन्नयन में विशेष रूप से सक्रिय हैं। लोक शैलियों के संरक्षण के प्रति समर्पित यह परिवार मानता है कि अपनत्व से परिपूर्ण लोक शैलियां तो जीवन को संवारने का काम करती है। सीमाओं से परे लोकगीत लोककण्ठों की धरोहर बनकर कहीं भी और कभी भी गाये और बजाये जायें तो मन को छूते हैं और अपने से लगने लगते हैं। वास्तव में पारंपरिक लोक संस्कारों से आबद्ध लोककारी प्रदर्शन शैलियां हम सभी को अंचल विशेष की लोकप्रवृत्तियों से साक्षात्कार कराती है। जूनागढ़ से आई मीनल जी की टीम ने भी अपने मर्यादित नृत्य प्रदर्शन से मन को मोह लिया। दृष्टि मजूमदार, नीता बाल, निरीक्षा वैद्य, दिग्विजय सिंह राठौड़, रमेश, निकुंज, प्रतीक, मयूर, धवल, जयराम और नितिन सहित अन्य कलाकारों ने अभिनव नृत्य प्रदर्शन किया। हरदेव बराड़ और दीप सिंह हेरमा के ढोल वादन और लथाभाई मीर की शहनाई और बड़वंत के मंजीरे वादन ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया।

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Comments

  1. राम जूनागढ़ says:

    આલંકારિક ભાષા કે સાથ પ્રસ્તુતિ
    નૃત્ય સંબંધી પુખ્તા જાનકારી
    વિડીયો ભી ડાઉનલોડ કરકે તાદ્રશ્ય ચિત્રણ કિયા ગયા.
    આપની લેખની વિષય કો પ્રસ્તુત કરને મે પાવરફૂલ હૈ.
    બહનજી , મૈ પ્રશંસા નહિ કર રહા હૂ, બ્લકિ રીયાલીટી બતા રહા હૂ.
    પારંપરિક નૃત્ય સંબંધી માહિતી સબ કો સત્ય કે સાથ ઉપલબ્ધ હો રહી હૈ.
    ધન્યવાદ ?

  2. संजय महाजन says:

    अति सुन्दर
    संजय महाजन

  3. kamal dubey says:

    आपकी लेखनी बहुत ही सुन्दर है

  4. उदयसेवक धावनी says:

    Vah.. Excellent… Apni information aur lekhni bahot hi kabiledad he apne Garba.. Dandiya aur tippani ke bare me bahut hi aches likes he dhanyavad

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