आचार्य नरेन्द्र देव ने कहा था संस्कृति लोक चित्त की खेती है। निःसन्देह जिये हुए जीवन पर निर्भर लोक साहित्य लोकरस की प्रधानता के कारण ही लोक संस्कृति को उर्वरत्व प्रदान करता है। लोकसंस्कृति का यही वैशिष्ट्य हमें भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय के मंच पर अभिनयन श्रृंखला के अन्तर्गत आयोजित मालवा के लोकनाट्य ‘माच’ के प्रभावशाली प्रदर्शन में दिखाई दिया। मध्यप्रदेश के मालवा की चिरप्रचलित लोकनाट्य शैली में मालीपुरा सांस्कृतिक माच मण्डल एवं लोक कल्याण समिति उज्जैन के लोक कलाकारों द्वारा प्रणवीर तेजा जी का मंचन मन को लुभा गया। वीरवर तेजा जी का खेल मालवा संस्कृति का अभिन्न अंग है। तेजा जी के चबूतरे यहां के गांव गांव में हैं। मालवा से मध्ययगुगीन जाट देवता श्री तेजाजी के चौंतरे पर सर्प की प्रतिमा (गात)स्थापित रहती है गांव वालों का विश्वास है कि चौंतरे पर शीश नवाने से सर्पबाधा दूर होती है। लोक में यह विश्वास आज भी प्रबल है कि सांप के काटे हुए व्यक्ति को तेजाजी का नाम लेने से राहत मिलती है। भाद्रपद की शुक्ल दशमी को उनकी जयंती पर अनेक आयोजन होते हैं। जाट वंशी तेजा जी की वचनबद्धता को दर्शाती इस प्रस्तुति में नागराज की पूजार्चना के बाद तेजा जी का जन्मना, 20 वर्ष की अवस्था में अपनी ब्याहता को लेने गांव जाना, मार्ग में सर्पराज को पुनरागमन के लिए आश्वस्त करना और अंत में स्वतः वचनबद्ध नाग देवता के समक्ष प्रस्तुत होकर समर्पण भाव से देह तयागना उन्हें लोक नायक के रूप में लोकधर्मी जनमानस में प्रतिष्ठित करता है इस जनमान्य कथानक का श्री सत्यानाराण बारोड़ के दल ने अत्यंत कुशलता से प्रस्तुतीकरण कर कलारसिकों को प्रभावित कर दिया।
આલંકારિક ભાષા કે સાથ પ્રસ્તુતિ
નૃત્ય સંબંધી પુખ્તા જાનકારી
વિડીયો ભી ડાઉનલોડ કરકે તાદ્રશ્ય ચિત્રણ કિયા ગયા.
આપની લેખની વિષય કો પ્રસ્તુત કરને મે પાવરફૂલ હૈ.
બહનજી , મૈ પ્રશંસા નહિ કર રહા હૂ, બ્લકિ રીયાલીટી બતા રહા હૂ.
પારંપરિક નૃત્ય સંબંધી માહિતી સબ કો સત્ય કે સાથ ઉપલબ્ધ હો રહી હૈ.
ધન્યવાદ ?
अति सुन्दर
संजय महाजन
आपकी लेखनी बहुत ही सुन्दर है
Vah.. Excellent… Apni information aur lekhni bahot hi kabiledad he apne Garba.. Dandiya aur tippani ke bare me bahut hi aches likes he dhanyavad