पिपलिया लोरका में 4000 वर्ष पूर्व की ताम्राश्मयुगीन सभ्यता,लोहे की ईंटे, धातु मिट्टी की सीलें, तीर, भाले, कृष्ण रक्त वर्णी मृदपात्र-मृदभाण्ड, कांच की मणियां, ताटकचक्र
जो भी हो ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं लिए यह सम्पूर्ण प्रक्षेत्र पुरातात्विक ऐतिहासिक और लोक सांस्कृतिक परिवेश से तृप्त है और आपका मुक्तहस्त से अभिनंदन करने को व्याकुल भी है। यहां हर मुस्कान एक नई स्फूर्ति है। यहां हर अनुभूति ईश्वर की मूर्ति है। यहां घूरने का अर्थ ही कुछ मिलना है। यहां घूमने का तर्क ही खुद को बदलना है तो फिर चलो क्योंकि तुम एक यात्रा हो। हम भी गतिमान थे हमें आशापुरी से एक और ग्रामीण रास्ता मगरपूंछ होते हुए पिपलिया लोरका ले आया यह गॉंव यों तो ज्यादा बड़ा नहीं है परन्तु महत्वपूर्ण है। यहां उत्खनन में ताम्राश्मयुगीन सभ्यता के अवशेष की बहुलता मिली है। गांव के प्राचीन आवासीय टीले [500 से 700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित] से प्राप्त कृष्ण मृदभांड अवशेषों ,पंचमार्क आहत सिक्कों तथा मृण्मयी सीलों का भोपाल स्थित राज्यपुरातत्व संग्रहालय की वीथिका में संग्रहण हुआ हैं। लगभग 4000 वर्ष पूर्व विकसी यह सभ्यता समझा जाता है कि प्रलयकारी जलप्लावन के कारण काल कवलित हो गयी थी। यहाँ के रहवासी श्री गोविन्द प्रसाद तिवारी पंडिताई करते हैं।वे हमें स्कूल भवन के निकट स्थित मंदिर के सामने ही मिल गए थे। उन्होंने हमें बताया कि तीन से चार मीटर ऊँचा टीला अब बसाहट के कारण ढँक गया है। वैसे यह टीला ढोंगरा गांव के पीछे इतना निकट है कि एक पान जब तक चबाया भी न जा सके तब तक वहां पहुंचा जा सकता है। स्थानीय मंदिर में हमें बलुआ पत्थर से निर्मित अनेक शैव शाक्त और वैष्णव परामारकालीन शिल्प मिले। श्री तिवारी ने सर्वप्रथम प्रसिद्ध भूगोलशास्त्री स्व. डाॅ. शंकर तिवारी द्वारा उत्खनित लोहे की ईंटे, धातु मिट्टी की सीलें, प्राचीर के भग्नावशेष, तीर, भाले, कृष्ण रक्त वर्णी मृदपात्र-मृदभाण्ड, कांच की मणियां, ताटकचक्र, पिशाची व शंखलिपि में शिलालेख, महादण्डनायक पर्णक आदि प्राप्तियों से हमें अवगत कराया। साथ में प्रसिद्ध पुराशास्त्री डाॅ. के डी वाजपेयी और डाॅ. वाकणकर द्वय द्वारा निरीक्षित कार्य को बढ़ाने पर ताम्रश्मयुगीन सभ्यता से जुड़ी बहुतेरी सामग्रियां यहीं से मिलने की जानकारी भी दी।
पिपलिया लोरका में 4000 वर्ष पूर्व की ताम्राश्मयुगीन सभ्यता
हमने उत्खननकर्ता श्री बालकृष्ण लोखण्डे से इसे समझने की चेष्टा की। उन्होंने भोपाल स्थित राज्य पुरातत्व संग्रहालय की वीथिका में प्रदर्शित पिपलिया लोरका सहित निनोर, नांदोर और नांदनेर गाँवों के अतिरिक्त भोपाल के निकट बैरसिया तहसील में बाएं नदी के किनारे गंगाखेड़ी, इत्यादि में मिले चतुर्दिक प्राक्य ताम्राश्मीय सभ्यता के पात्रावशेषों की सविस्तार जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्राक्य मौर्यकालीन सभ्यता के वृहदाकार नगरविन्यास में जल निकासी से लेकर जल संचय वाली व्यापक व्यवस्था थी, निकासी भी इस प्रकार की गयी थी की राख, रेत और मिटटी के पात्रों के टुकड़ों के भराव से जल वहीं अवशोषित किया जा सके और समीपवर्ती भी किंचित प्रभावित न हो। श्री लोखण्डे चार हजार वर्षों पूर्व की समुन्नत कला और ज्ञान के उत्तरोत्तर विकास का उल्लेख करते हुए स्वास्तिक के उस कालावधि में हुए प्रयोग की भी चर्चा करते हैं।उनके अनुसार पिपलिया लोरका में चमकीले मृद भांड, चित्रित लाल और काले रंग के मृद भांड तथा सफ़ेद चित्रण युक्त मृद भांड मिले हैं। 25 से 30 मीटर ऊँचे टीले के उत्खनन से प्रथम प्रावस्था में लघु स्वर्ण गुरिया, चालसी डोनी, जैस्पर, ब्लेड, लुनेट और ब्यूरिन की प्राप्ति हुई है। जैस्पर का सबसे बड़ा ब्लेड (5 सेमी), प्रावस्था 2 से प्राप्त हुआ है। मानव तथा पशु मृण मूर्तियों में मातृ देवी तथा बैल के अतिरिक्त कटोरे, तश्तरियाँ, लाल व सफ़ेद मृद भाण्ड, कोयला संग्रहीत फर्श, आंजनश्लाका और ताम्र आभूषण प्राप्त हुए हैं । श्री लोखंडे के अनुसार पिपलिया लोरका की ताम्रश्मयुगीन संस्कृति की उच्चावस्था नारंगी रंग के मृदभांड और पुरावशेषों में मिलती है । मौर्य, शुंग, क्षत्रप, गुप्त ,तथा मध्यकाल के पुरावशेषों में शंख की चूड़ियाँ, प्रस्तर गुरिया, लौह उपकरण, शीशा, काले मृद भांड मिले हैं। एकाकी गोलाकार, फूस के छप्पर और मिटटी के प्लास्टर वाले घर, मिटटी का फर्श, बालू से ढंकी हुई मिटटी की ईंटों की दीवारें, कोयले से लिपि हुई पशुओं की हड्डियां, सींग इत्यादि प्राप्त हुए हैं। उत्खननकर्ताओं को गोलाकार ताम्बे के सिक्के जिन पर अरबी लिपि में विहद लिखा हुआ था भी प्राप्त हुए हैं। नांदूर उत्खनन जो कि वर्ष 80 से ले के 83 तक 3 चरणों में हुआ। मध्यप्रदेश राज्य पुरातत्व संग्रहालय और सागर विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयासों से किये गए इस उत्खनन कार्य में महाजनपद काल में नांदूर के व्यापारिक मार्ग की जानकारी सामने आयी जो कि उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम होकर जाता था। बेतवा की बाढ़ से सुरक्षार्थ सातवाहन काल में मिटटी की एक प्राचीर का निर्माण, ईंटों के मकान से शुंग काल के वलय कूप की प्राप्ति, क्षत्रप और शुंग स्तरों से अनाज के दाने, उड़द चावल गेहूं, स्वर्णकारों के मकान, ब्राह्मी लिपि में गुप्तकाल की चार मोहरें, एक क्षत्रप काल की मोहर जिस पर दत्त नाग लिखा हुआ है भी प्राप्त हुए हैं। एक अन्य मुद्रा पर लेख दस गाम देवदास (दस ग्रामों का शासक देवदास) लिखा मिलता है। एक अंगूठी जिस पर देवदास लिखा हुआ है, मृणमुद्रा जिस पर महाराज राउत उत्कीर्ण है कि प्राप्ति विद्वानों को चौंकाती है क्योंकि इतिहास इस नाम से अपरिचित दिखता है। नाग सिक्के, आहत मुद्राएँ, हाथी दांत की मातृ देवी, बाणाम्र, एंटिमनी रॉड, कुषाण प्रभाव के मृद भाण्ड, लोहे की कीज, सिर खुरचने वाला जिस पर य प्रतीक अंकित है, विष्णु की आवक्ष प्रस्तर प्रतिमा और 20 x 15 आकर की क्षत्रप ईंटों वाली संरचना का नान्दूर से मिलना उत्खननकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि कही जाएगी ।
दीदी सादर प्रणाम एवं चरणस्पर्श,
दीदी सर्वप्रथम तो ये कहूँगा कि आप बहुत ही सुंदर लिखती है, आपकी शुद्ध और प्रवाहमान हिंदी मुझे सतत ही आपके आलेख पढ़ने को व्याकुल बनाती है। दीदी राजा भोज के बारे आप अपने अगले लेख में कुछ और अनसुना अनकहा ज़रूर बताइए जो आज तक लोगो को नही पता है। सभ्यता और संस्कृति को सहेजने का आपका ये प्रयास बहुत ही सराहनीय है। बस दीदी अंत मे आपसे इतना ही कहूँगा की आप हमें “द रोड डायरी” के माध्यम से भूले बिसरे इतिहासिक तथ्यों से अवगत करती रहें।
Mamji, thank you very much for taking a lots of interest in heritage.now you putting a path for future generation.ashapuri was my dream project as well Vishakha Ka BHI.you have quoted Sanskrit text and original references which a symbol of serious scholar.i am proud of your researches.bhojpur temple ashapuri are the centre of the paramaras.interviews of the scholars are their own.infuture disclaimer must be in your blogs.dhabla and devbadla you please visit in different angle.you please thanks to commissioner archaeology for keen interest.letus see the future for ashapuri.thanks to you and your driver for moving even in remote
आपने बहुत बढ़िया लिखा ,शब्दों का चयन और वाक्य विन्यास भी अच्छा है विशेष रूप से भरा समन्दर लिख कर जो आपने इस विषय को उठाया है वह नया है
नारायण व्यास
भोजपुर मंदिर व आशापूरी मंदिर के बारे में लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मुझे पहले एक बार भोजपुर जाने का व दर्शन करने का अवसर मिला है परन्तु दर्शन के पश्चात मन में अनेक सवाल आने लगे और वहां के पुजारी व आम लोगों की बातें सुनकर और कौतूहल बढ़ गया था ।मन्दिर कि वास्तु कला व निर्माण के बारे मे आप के लेख से मन्दिर से जुडी अनेक जिज्ञासा के उत्तर अपने आप मिल गये,परन्तु एक यक्ष प्रश्न का उत्तर अभी भी शेष रह गया है कि वह मन्दिर आखिर अधुरा क्यो रह गया ।साथ ही आपने वहा पर आशा पूरा देवी से जुडी अनेक जिज्ञासा का आपने बहुत ही सुन्दर रूप शमाधान कर दिया है ।परन्तु सबसे विशेष बात पर आपने ध्यान दिया जो कोई नहीं देता है वह हैं उसके आस पास के क्षेत्र मेंफैले व बिखरे हुए अनेक मन्दिरों के अवशेष जो हमारी समृद्ध संस्कृति को चिख चिख कर बता रहे हैं इससे ये भी पता चलता है आज ये जैसे जंगल और सुनसान स्था न में दिखाई दे रहा है वह कभी बहुत ही सुंदर और व्यवस्थित रूप से बसा हुआ समृद्ध नगर रहा होगा जो समय के थपेडों से उजड़ गया मगर जो वहां वर्तमान में है उसे सरकार और जनता दोनों को सहेजना और सुरक्षा के लिए आगे आना चाहिए ।
इतिहासको चालना देनेके लिहाजसे यह ब्लॉग्ज उपयुक्त है…आपकी संशोधन पद्धती एवं सादरीकरण बढिया है…आपने इस ब्लॉगमे हमारा उल्लेख किया है – शुक्रिया…
प्रिय दिशा जी,
एक बार फिर थोड़े विलम्ब के बाद आपका चरवैती पवित्र ब्लॉग पढ़ा जिसमें आपने भोजपुर जैसे प्राचीन पवित्र मंदिर को राजा भोज सहित अपने पाठकों को कण-कण से अवगत कराया। हम और हमारा परिवार वहाँ दर्शन करने एक-दो बार जा चुके हैं पर इतना विस्तार हम लोग भी करने में असमर्थ हैं। आपने तो जैसे पाठकों को साक्षात वहाँ खड़ा कर दिया, सबको शिवमय बना दिया। मंदिर के साथ राजा सहित वो जानकारियाँ जो शायद हमारे पास थी हीं नहीं आपने नारायण व्यास जी से भी जो प्रश्न पूछे वो रही सही हमारी और आपके और पाठकों की जानकारी पूरी कर रहे थे। चरवैती के हर ब्लॉग में आपने जैसे अपनी आत्मा डाल दी।
मैंने आपके ब्लॉग द्वारा चरवैती की ज्यादातर यात्राएँ कीं। आपने जैसे यात्रा के साथ हमें उस शहर, वहाँ के भोजन, वहाँ की आबो-हवा, वहाँ की मिट्टी की सौंध, मंदिर का साक्षात विवरण किया। मैंने अभी तक इतना दिलचस्प पवित्र ब्लॉग नहीं पढ़ा। सिर्फ लिखना ही काफी नहीं है, पाठकों को यह दिखाना भी ज़रूरी है कि मेरी यात्रा में आप कहीं भी धूमिल नहीं हों। हर यात्रा चरवैती आपके लिए है। जो आपने किया आपका ब्लॉग पढ़कर अपने आप होठ ॐ नमः शिवाय का जाप करने को आतुर हो जाते हैं। आप ऐसे ही चरवैती हमारे लिए लिखती रहें। आपको बहुत बहुत आशीर्वाद, प्यार और शुभकामनाएँ। मुझे आपके साथ अगली यात्रा का इंतज़ार है।
आपकी हिन्दी इतनी सरल, मीठी और नवीनतम शब्दोवाली है कि मैं हिन्दी भाषा का अभ्यासक न होते हुए भी पूरा पढ़ता हूँ सच तो यह है कि आपका लिखा लेख पढना शुरू करने के बाद अंत तक मोबाईल नीचे रखने को मन ही नही करता।बहुत सुंदर और जानकारी युक्त लिखा है।
मेरी हिन्दी में ग़लतियाँ हो सकती हैं , उन्हें नजरअंदाज किजीए।
??????
शानदार जी , जानकारियां संग्रह और उनकी मीमांसा , मनीषियों का ही कार्य है ।आपकी भाषा आलेख को पठनीय बनाती है,वाक्यविन्यास और शब्दों के चयन से ही लबालब भरे तालाब और द्वीपों की निर्मिति का भान हो जाता है ,बहुत सुन्दर ????
दिशा आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा ब्लॉक चरैवेति पढ़ने को मिला। बहुत ही अच्छा विवरण बहुत अच्छे शब्द विन्यास का प्रयोग किया है। अभी मार्च 2020 में हम इस पूरी जगह को देखकर आए 26 मंदिरों का समूह भूतनाथ मंदिर आशापुरी देखकर बहुत दुख हुआ कि वहां पर कई मंदिरों के पत्थर गायब हैं और मंदिर बनाये जा सकते । बहुत गर्व महसूस हुआ कि पूर्वजों के पास बहुत सही कलाकारी थी बहुत ही गुणवत्ता से मूर्तियां तराशी गई हैं। पत्थरों पर की गई कलाकारी मंदिर समूह बनाना और कितना समृद्ध रहा होगा उस काल में हमारा भोपाल बहुत गर्व महसूस होता है और तुमने इतना अच्छा विश्लेषण किया है सारे मंदिर समूह आंखों के सामने आ गए। इसी प्रकार हमें इतिहास के बारे में बताती रहो । #चरैवेति #चरैवेति
आपके द्वारा भेजा सचित्र ब्लॉग देखा।बहुत अच्छा लगा। आपने भोजपुर, आशापुरी इत्यादि मेरा, राजपुरोहित जी एवं आशापुरी के सज्जन का vdo ब्लॉग बहुत अच्छा बनाया है ,वीडियो सारे बहुत सुँदर हैं,सुँदर वर्णन है। आपने सभी के ज्ञान को गागर मे सागर जैसा प्रस्तुत किया हैं। आपको धन्यवाद एवं साधुवाद।
स्थिरता की अभिलाषा में पूण्य सलिला सरिता निरंतर प्रवाहवान रहती है।उसी प्रकार आपकी लेखनी कभी तालाब के किनारे,कभी नदी के तट पर,कभी कुए की पाल पर तो कभी कटीली झाड़ियों के मध्यम से पथरीली पगडंडी से होते हुए इतिहास के उन धुंधले पृष्ठों को उजागर करने में सतत अग्रसर होकर नये रुप में प्रस्तुत करती है।
आपका भोजपुर क्षेत्र के शैव मंदिर पर शोध परक लेखन जिज्ञासुओं के अन्तर-मन को स्पर्श करेगा ।
आपके द्वारा भेजा ब्लॉग देखा. भोजपुर कई बार गए परंतु इस दृष्टि से नहीं देखा. चित्रों और वीडीयों के माध्यम से बहुत ही भाषा में सादरी करण किया गया है. बधाई एवं अभिनंदन.
Bahut sunder article
जी नमन कल देखा बहुत सुन्दर ये कला मैं भी सीख जाऊं ??????
भोजपुर के शिवलिंग के दर्शन हमने भी किये है दिशा मैडम पर आपने वहाँ की संस्कृति एवं प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।????????
आपका लेखन बहुत शानदार हैं।
चित्र और विवरण दोनों ही उम्दा हैं, स्थल भ्रमण का आनंद प्रदान करते हैं, शब्दों का चयन उत्कृष्ट है
बहुत उत्कृष्ट लेखन शैली से सज्जित आपका ब्लॉग है,धारा प्रवाह कलम मुझे आपके लेख पढ़ने को निरंतर प्रेरित करती है,,दीदी को सादर प्रणाम
भोजपुर के मंदिर के संदर्भ मे रोचक जानकारी आसपास के परिदृश्य का दर्शन और आपकी सहज सरल और चुम्बकीय भाषाशैली मन को लुभा गई
बेहद उत्कृष्ट शैली में भारत के एक प्रमुख शिल्प कला केंद्र का उत्कृष्ट वर्णन वाकई अद्वितीय है।
अद्भूत…. शब्दों का चयन, भाषा शैली,और प्रवाह ,हम भी आपके साथ साथ चलते हैं । 25साल पहले देखे भोजपुर की यादें ताजा हो गयी हैं ।पुन: आने की तीव्र उत्कंठा जाग गयी…बधाई और शुभकामनाएं, शानदार लेखन के लिये 😊🙏🙏