200 से अधिक शिष्यों को वर्तमान में ओडिसी नृत्य में दीक्षित करने वाले श्री अशोक घोसाल इस विधा के अग्रणी स्व. गुरू पद्मभूषण केलूचरण महापात्र की नृत्य नाटिकाओं अशोक और कुरूक्षेत्र, शीर्षस्थ पद्मश्री नृत्यांगना संजुक्ता पाणिग्रही के साथ महिसासुर मर्दिनी और पद्मश्री कुकुम मोहंती के किंग लायर आदि में अपने विलक्षण नृत्य सामर्थ्य से प्रभावक प्रदर्शन करते रहे हैं। स्वयं उन्होंने भी अनेक प्रभावकारी नृत्य नाटिकाओं का निर्देशन किया है। वर्षा बसन्त वैशाख, विश्वरूपा, नीलसैला, बुद्धकारा हे क्षमा, शक्ति , श्री जयदेव एवं मुन और कान्हा उनके द्वारा तैयार की गई ऐसी ही कृतियां हैं जिन्हें प्रतिष्ठित मंचों पर दर्शकों की सराहना मिलती रही है। देश-विदेश में अपने कला प्राखर्य से भावों की व रसों की निष्पतित को क्रियात्मक रूप से सामने लाने वाले अशोक जी जर्मनी, अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अफ्रिका, श्रीलंका, फ्रांस, थाईलैण्ड और तंजानिया आदि देशों में ओडिसी नृत्य का सफल मंचन करते रहे है। देश की सर्वाधिक प्राचीनतम नृत्य विधा में से एक ओडिसी में नये प्रयोगों के हामी अशोक घोसाल शास्त्रीय पक्ष के पूर्ण निर्वहन के भी प्रबल पक्षधर है। अशोक जी बताते है कि नृत्य उन्हें प्रकीर्ति ही नहीं देता वरन् आत्मिक संतुष्टि और आध्यात्मिक संगति भी देता है नृत्य से इतर उनके लिए कुछ सोच पाना भी असंभव है। अपने गुरूओं सर्वश्री पं. ज्योति राउत, पं. निरंजन राउत, पं. नब किशोर मिश्र (शास्त्रीय ओडिसी नृत्य शैली) और श्री हरि नायक (छाऊ लोक शैली) के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए श्री घोसाल कहते है कि इन्हीं गुरूओं के मार्गदर्शन में नृत्य पारंगत होकर ही वे विशुद्ध ओडिसी नृत्य और छाऊ लोक विधा की बारीकियां अपने नृत्यशाला के प्रशिक्षणार्थियों को सिखा पा रहे हैं। अंततः हम यह कह सकते हैं कि शताब्दियों पुरानी ओडिसी और मुखौटे वाले छाऊ नृत्य विधान को श्री अशोक घोसाल की नृत्यशाला संस्था और उनके सहकलाकारों ने अपने उदात्त लावण्यमय प्रदर्शन से चिर स्मरणीय बना दिया।