अवन्तिपुर बड़ोदिया में बड़ोद का शाब्दिक अर्थ ही तालाबों की निर्मिति से जुड़ा हुआ है, यहाँ कभी अनेक ताल और तलाई रहे
कभी प्रति 1000 बीघा भूमि के स्वामी रहे खाती समाज की एक और विशेषता है कि ये लोग अकूत भू-संपदा वाले होते हैं। मेहनती इतने होते हैं कि कई फुट गड्ढा खोदना तो इनके बाएँ हाथ का खेल होता है। मालवी भाषा में खोह अर्थात कूप स्वरूपी अनाज भण्डारण व्यवस्था के लिए विख्यात ये लोग 25 फीट गहरा गड्ढा खोदकर गन्ने की बलौंडी लगाकर अनाज को मिट्टी के संपर्क से दूर रखकर लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के तौर-तरीकों के लिए भी जाने जाते रहे हैं। गेहूँ, चना, प्याज, लहसुन उगाने वाले खाती समाज गेहूँ और चना मिली रोटी माखणी कांदे (प्याज) के साथ चाव से खाते हैं। इसलिए भी ये ‘कांदा खानी जात’ के रूप में भी ख्यात रहे हैं। वैसे धान-मक्का की मालवी राबड़ी भी इनका प्रिय व्यंजन है। अवन्तिपुर बड़ोदिया में जो बड़ोदिया शब्द आता है उसका शाब्दिक अर्थ ही तालाबों की निर्मिति से जुड़ा हुआ है। श्रमसाध्य कार्य करने वाले खातियों के कारण ही अवन्तिपुर बड़ोदिया में अनेक बावड़ियों की उपस्थिति रही है। खारी की बावड़ी, राधा बाई की बावड़ी, सात बारेने (दरवाज़े) की बावड़ी, कोलिया की बावड़ी और भूषण बाबा की बावड़ी उनमें सम्मिलित रहीं। कालांतर में इन बावड़ियों के ध्वंसावेश पूरे गाँव में दिखाई देते हैं। भोर भरे बाहों में सुखद उजाले बाँटकर धूप धीरे-धीरे सरकने लगी थी। यहां का हर स्पंदन हमें उल्लसित मालवी संस्कृति की निश्चलता का प्रत्यक्षदर्शी बना रहा था। अवन्तिपुर बड़ोदिया की परिचित गलियों की टोहम टोही में गाँव को अर्ध चन्द्राकार घेरे दूधि नेवज नदी की पृष्ठभूमि में छोटे-छोटे आले व ताक वाले लकड़ी के घर मोजड़िया, धोती, बंडी, खादी का पिछोड़ा और टोपी पहने पुरूष, छींटदार लुगड़ा, कांचली, घाघरा, पहने महिलाएं टिमण्या बजट्टी, सतफुली, ठुस्सी, हंसली, चूड़ा, गलसरी, झाल, बाजरी, गोखरू, सांकला, पोंची, कड़ी, बिछिया, पोले, आंवले, रकम बनवाने वाली महिलाएं बाजार चौक में स्थित महेंद्र सोनी की पुश्तैनी दुकान पर जमघट लगाए हुए दिखाई दे रही थीं । हथौड़ी, अम्बूर, कतिया, चुग्गा, चिमटी, छैनी, घुँघरू की पिरायी करते चांदी को गलाकर घन से लम्बा करते, सोनी जी हमेंपन्ह वहीं मिले। महेन्द्र बताने लगे पहले कभी यहां के पुरूषों में ठोस सरमुखी कान में पहनने का प्रचलन हुआ करता था। उन्हीं के साथ दाल बाटी वाले मालवी भोजन का स्वाद बस लिया ही लिया था कि पड़ोसी गांव पगरावद के कैलाश नारायण माहेश्वरी भी हमारी चर्चा में सम्मिलित हो गये थे।
राजा मोरध्वज की लोककंठों में पीढ़ियों से सहेजी रस से पगी गाथा पगरावद गाँव में
पगरावद गांव तुर्रा अखाड़े वालों का था। संभवतः अत्यंत निकटवर्ती गांव होने के कारण कंलगी अखाड़े की प्रस्तुति की अनुगूंज उनके कानों में मिश्री घोल आयी थी, सो वे भी स्पर्धात्मक खयाल गायकी वाली विलुप्त होती लोक गायकी के रचनात्मक अंग बन गये। उन्होंने राजा मोरध्वज की लोकश्रुत कथा को माधुर्य के साथ स्वरों में इस तरह पिरोया कि हम भौंचक्के रह गये। बात इतने तक ही नहीं थमी। पगरावद की पूर्व सरपंच 80 वर्षीया सीता बाई ने राजा मोरध्वज की लोककंठों में पीढ़ियों से सहेजी रस से पगी गाथा सुनाकर हमें रससिक्त कर दिया। लोकनायक राजा मोरध्वज की मुरावर नगरी यहां से मात्र 3 कि.मी. की दूरी पर स्थित थी जहां का पिंग्लेश्वर महादेव मंदिर लोकास्था का सदियों से केन्द्र रहा है। अब लगा इतनी दूर आये हैं मुरावर देखे बिना लौटना अनुचित होगा। किसी ने कहा भी है कि बिना ढूँढे का श्रम किए प्रियवस्तु की अनुपमता और अमूल्यता का बोध भी तो नहीं होता। अन्चीन्हें स्थान को ढूंढना अमृतफल की प्राप्ति जैसा ही तो होता है।
आप के द्वारा निर्मीत इस डायरी में आपने जिन उतकृष्ट शब्दों का प्रयोग किया है मैं उससे अभिभुत हूं । आपका मालवा की माटी को यू कागज पे उकेरना सादर स्वागत योग्य है ।
में प्रदीप uplawdiya अपने आप को बहुत खुश नसीब समझता हूं।जो मेरा जन्म अवन्तिपुर बरोदिया बाबा गरीबनाथ ओर माँ लालबाई फूलबाई की पावन नगरी में हुआ मेरा गाव हमारे पुरे mp के गावो में सबसे बेस्ट है जैसा आनंद मुझे मेरे गाँव में मिलता है ऐसा आनंद मेने कभी महसूस नही किया चाहे इंदौर हो या भोपाल
Very nice sir ji, I like your work and proud of your life.
आपको सादर नमन
बहुत सुंदर है आपकी शैली, और आपका प्रयास
सादर नमन
Nice article based on fact
Many thanks for describing our village beautifully….???
सुन्दर आलेख! सजीव वर्णन। सुन्दर चित्रों का समावेश। पढ़ने से लगा मानो स्वयं यात्रा के सहभागी रहे हों।
*बहुत ही सटीक, सरल, सारगर्भित शब्दावली के प्रयोग के साथ अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति देने वाला लेख प्रस्तुत किया है दीदी आपने…*☝?? *आपके प्रयासों एवं अथक परिश्रम द्वारा अवंतीपुर बड़ोदिया नगरी के धार्मिक, ऐतिहासिक, एवं सामाजिक वस्तुस्थिति के चरित्र चित्रण के उक्त उत्कृष्ट लेख हेतु समस्त नगरवासियों की ओर से हृदय से आभार…. एवं सादर धन्यवाद…* ?????????
महेन्द्र सोनी
I have read 12page dairy on badodia awantipur.this travel dairy is exhaustive and more information about this area.temples,sculptures and treasury,Saturday remains etc.are very useful for researchers.thank you very much for your original field work.once again thank you for such type of original contributions.pl.continue this informative dairy.
उत्तम प्रसंग विवरण धन्यवाद??
जगदीश भावसार, शाजापुर
आपकी लेखनी व शैली अनोखी है ?
It is said that India’s heart lies in villages and you tried to reach this ground level to know the heritage and civilization of villagers life.I am prod of your devoted work.
दीदी सादर नमन
कला जब सृजनधर्मियों के हाथ में आती है तो अनंतकाल तक पूज्यनीय हो जाती है शब्द नहीं है कैसे इसकी प्रशंसा करूँ पहली बार कोई ब्लॉग पढ़ा है बहुत अच्छा बहुत अच्छा बहुत अच्छा!!!
उमेश पाठक सौरों
“उत्सवधर्मिता और औदात्य” वाली नगरी अवन्तिपुर बड़ोदिया शीर्षक से रचना करने वालीं परम विदुषी, हम ग्रामवासियों के लिये साक्षात सरस्वती पुत्री श्रीमती दिशा अविनाश जी शर्मा जी (भोपाल) को इस उत्तम कार्य के लिये कोटिशः साधुवाद, बधाई। आप स्वस्थ, प्रसन्न रहकर शतायु होने तक इसी प्रकार ग्रामवासियों के दिलों पर राज करती रहें।
अबसे 54 वर्ष पूर्व श्री प्रेमनारायण जी गाँधी जी व मैं माधव कॉलेज, उज्जैन में पढ़ते थे। तब विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हमारे कुलपति श्री नन्ददुलारे वाजपेयी जी थे। उनकी वंशज दिशा जी हैं।
बड़े गणेश, उज्जैन स्थित ज्योतिषाचार्य पण्डित आनन्दशंकर जी व्यास जी ने दिशा जी को बाबा गरीबनाथ जी की नगरी अवन्तीपुर बड़ोदिया पर लेख लिखने के लिए प्रेरित किया था। श्री व्यास जी एक पारिवारिक कार्य में अवन्तीपुर बड़ोदिया आये थे। बाबा की महिमा से परिचित थे।
हमारी तहसील अवन्तीपुर बड़ोदिया की ऊर्जा व समाजसेवी भावना से ओत-प्रोत, कलमकार कलम के धनी, अखिल भारतवर्ष के बाबा के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा व धर्मनगरी अवन्तीपुर बड़ोदिया की महिमा को सिलसिलेवार बताने वाले व उनका सब तरह से आदर सत्कार कर संतुष्ट कर विदा करने वाले जनाब महेंद्र जी सोनी व समाजसेवी ग्रामवासियों को साधुवाद।
अपना ही – शांतिलाल उपाध्याय
आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा भी बढ़ गयी अंवती पुर बडौदीया को और अधिक जानने और देखने की, मालवा की धरती ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कितनी संपन रही है पर कैसे समय की आंधी में सब खो जाता है अंवतीका जो कभी पुरे भारत भू-भाग पर राज किया करती थी कैसे धीरे-धीरे इतिहास में विलीन हो गयी पर आपने उसे पुनः अपने संबल से आज प्रकट करने का सफल प्रयास किया है अंवती पुर बडौदीया नाम से लगता है कि यह एक छोटा सा गांव है पर आपने अपनी लेखनी की कुदाली से पुनः अंकुरित कर दिया वहां के परमार कालीन मन्दिर और उनके भग्नावशेष जिस तरह से वहां बिखरे पड़े हैं उसे देखकर हमें अपने अतीत पर गर्व भी होता है परन्तु साथ ही मानसिक पीड़ा भी कि ,जिस तरह से वहां के रह वासी उसे सहेज रहे हैं उससे प्रसन्नता भी हुयी परन्तु सरकार के उपेक्षा से पीड़ा भी होती है ।
वीरेन्द्र सिंह
Many many Thanks for written on my Village.
I am so happy and feel proud to born in Barodiya
बहुत ही शानदार लेख। आदि से अंत तक बांधे रखने में सफ़ल।
Enchantingly beautiful. Great efforts to revive lost glory.???