संवत 1248 में बाबा गरीबनाथ जी द्वारा अवंतीपुर बड़ोदिया साधना स्थली के रूप में चयनित
बाबा गरीबनाथ की समाधि, माता अन्नपूर्णा और बाबा गरीबनाथ का ध्वज स्तम्भ
दुर्लभ लेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार संवत 1246 में झांसी में 108 श्रीमंत महाराज हरिगिरदास जी के शिष्य बने गोंसाई जाति के बाबा गरीबनाथ ने गुरू के झांसी में जूना मठ के निकट समाधिस्थ होने के पश्चात संवत 1248 में अवंतीपुर बड़ोदिया को साधना स्थली के रूप में चयनित किया और आसापुरा व धरमपुरी नामक प्राच्य नगरियों के मध्य एक किमी की परिधि में दूधि नेवज नदी के तीरे कुटिया बनाकर रहने लगे। वर्तमान में पुराने भवनों के भग्नावशेष वाले इस परिक्षेत्र में कृषि की जाती है। गांव के चन्द्रवंशी खांती पटेलों ने निष्काम भाव से बाबा गरीबनाथ जी की सेवा की। अन्नपूर्णा देवी के अनन्य भक्त बाबा गरीबनाथ की समाधि-स्थल के निकट ही माँ विराजमान थीं। उन्हीं के समक्ष शीष नवां कर ज्यों ही उठे सामने तरफ़ 5 के स्मरण रहे यहां तरफ़ मोहल्ले के लिए प्रयुक्त होता है , श्री बाबूलाल वर्मा खड़े थे उन्हीं से बाबा गरीबनाथ जी से संदर्भित सविस्तार जानकारी मिली। संवत् 1344 में बाबा गरीबनाथ ने यहीं जीवित समाधि ले ली थी । कुछ समय पश्चात् गांव के पटेल समाज के कुछ लोगों का सौंरोजी गंगा तीर्थ क्षेत्र गमन हुआ जहां उन्हें बाबा के दर्शन का पुनः सौभाग्य प्राप्त हुआ। उनके गांव पुनरागम के अनुनय निवेदन पर बाबा ने गांव पर ओलावृष्टि से होने वाले भावी संकट का वहीं से निराकरण कर दिया, पर अवन्तिपुर नहीं लौटने के अपने अडिग निर्णय की हठ पकड़े रहे। बाबा ने कहते हैं गांव के पटेलों को बताया कि उनके गांव में भीषण ओलावृष्टि से क्षति पहुंचने वाली है जिसे उन्होंने अपनी सिद्धियों के बल पर गांव के बड़े कुँए (मोती वाले) में एकत्रित कर दिया है। गांव वालों में सौंरोजी से लौटकर कुएँ में ओलों को देखा तो बाबा की दिव्यता, आलौकिक क्षमता और चारित्रिक निर्मलता को लेकर उनका विश्वास और भी गहरा गया। हमें यह भी बताया गया कि पटेलों ने गरीबनाथ जी को हठधर्मिता दिखाते हुए सौंरोजी से डोली में बिठाकर बलात गांव लिवा लाने का जतन भी किया पर लश्कर में वे अन्तर्ध्यान हो गये और उनके स्थान पर एक पत्र लिखा मिला जिसमें उनके स्मृति स्थल पर नौ-नौ हाथ के नौ पाट जोड़कर ध्वज स्तंभ खड़ा करने के संकेत दिए गए थे । 9 की शुभता को उचित जानकार गाँव वालों ने 9 दिवड़ा (13 1/2 फीट) लम्बे सागौन के पाटों को लोहे की कीलों के बिना जोड़कर एक ऐसे ध्वज स्तम्भ के निर्माण की प्रथा प्रारम्भ की जो कई दशकों से आज भी यथावत जारी है। सात जातियों के पारस्परिक सहयोग से गाँव का खाती समाज सन उगाने, गलाने और एक क्विंटल भार वाली 5 नाड़ियों से नीम के वृक्ष के सहारे ध्वज स्तंभ को सीधा खड़े करने के दायित्व का निर्वाहन करने लगा । सामजिक समरसता व आपसी सौहार्द के इस उत्सव की लोकप्रियता की अनुमानना इस बात से ही लगाई जा सकती है कि यह मेला आज उज्जैन संभाग के छठे सर्वाधिक चर्चित मेले का स्वरुप ले चुका है। आस-पास के 180 गाँवों के 50 हजार से अधिक श्रद्धालुओं के दाल बाटी वाले सत्कार का पूरा दायित्व यहाँ की स्थानीय जनता की सहभागिता से ही संभव हो पाता है। जात-पात का विभेद त्यज्य कर बाबा गरीबनाथ के सिद्धांतों की अनुगामी बनी यहाँ की जनता इसका विशेष ध्यान रखती है कि कोई भी आगंतुक मेला प्रांगण से बिना खाये-पिये वापस नहीं लौट जाये । अवन्तिपुर बड़ोदिया के 13 हलकों के निवासी ओलावृष्टि के आसार दिखने की स्थिति में आज भी शंखनाद व घंटा ध्वनि क्षेपण कर बाबा गरीबनाथ जी की समाधि स्थली पर एकत्रित होते हैं। रंगपंचमी के अवसर पर गड्ढे में डाले गये नमक, पान, नारियल, रुपए इत्यादि का विनष्ट हुए बिना प्राप्त होना हो या 82 फीट के ध्वज दण्ड पर आरूढ़ मोड़ली, मोरपंख, स्वर्ण कलश तथा रजत छत्र का गरिमामयी अलंकरण हो बाबा गरीबनाथ के प्रति गाँव वालों की सच्ची श्रद्धा दर्शाते हैं । नाथ पंथ की गगन मण्डल में फहराती यश पताका ने हमें भी अभिमंत्रित सा कर दिया था। यहाँ के रहवासी कहते नहीं थकते जब तक सूर्य और चन्द्रमा का अस्तित्व है और शेष के शीश पर धरती सुरक्षित है तब तक बाबा गरीबनाथ हमारे वरदायक रहेंगे। जग को आलोकमान करते सूरज ने अब तक अवनीपुर बड़ोदिया में अपना कारोबार जमा लिया था।
कर्मोपासना और ज्ञान का योग ही नाथ पंथ का मूलाधार, मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित मेलों में बाबा गरीबनाथ का मेला छठवें स्थान पर
गाँव के आध्यात्मिककर्म , माला, जाप, मंत्र, भजन, भक्ति, दान, दया, ज्ञान, सभी नाथ पंथ की सात्विकता से प्रभावान्वित दृष्टिगत हो रहे थे। हम गोबर से बने धार्मिक निष्ठा के प्रतिरूप उलटे स्वस्तिक चिन्ह (सातियां) के दर्शी बने थे। पूछने पर पता चला कि इन्हें मनौती पूरी होने पर सीधा करने की परिपाटी है। कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि ध्वज स्तंभ को खड़ा करने के क्रम में 45° कोण तक पहुँचते ही एक भौंरा पश्चिम दिशा से आकर छत्र की परिक्रमा लगाकर पूर्व दिशा में चला जाता है।दंड के 45°पर बाबा की सांकेतिक उपस्थिति मानकर गाँव वाले आकाशगामी भौंरे के आगमन की आस लगा के प्रतीक्षा भी करते हैं। ये कोई धर्म से विलग साधना नहीं थी और न ही कोई भिन्न आध्यात्मिक दॄष्टि थी सत्यतः कर्मोपासना और ज्ञान का योग ही नाथ पंथ का मूलाधार रहा ये साधक अपनी सिद्धियों के बल पर लोक के कल्याण के कार्य करते रहे और अपने आदर्श आचरण से लोक के हिय में स्थान बनाते गए इन्होने ही जाति, वर्ग, भेद से परे गांव वालों को सुमार्ग दिखाया। महेंद्र सोनी हमारे दिग्दर्शक बने हमें बताते चल रहे थे कि चैत्र की पंचमी पर हर साल गांव की दक्षिण दिशा में नेवज नदी के तट पर बाबा की समाधि से सटे खुले मैदान में मेले का आयोजन किया जाता था जो ढाई महीने तक चलता था। गरीबनाथ जी का मेला ईमारती लकड़ियों की सिल्लियों, पाटों, बल्लियों के क्रय-विक्रय का केंद्र हुआ करता था। निमाड़ के हरदा, होशंगाबाद, कन्नौज, खातेगाँव और न जाने कहाँ-कहाँ से सागौन की हट्टी-कट्टी लकड़ियाँ यहाँ लाई जाती थीं। उन्हीं लकड़ियों के पाटों की प्रतिच्छाया अवन्तिपुर बड़ोदिया के लकड़ी के खिड़की-किवाड़, चौखट वाली अलंकृत सजावट और घरों की बनावट में आज भी देखी जा सकती थी । आजकल यह मेला 15 दिवसीय हो गया है।
ढाई महीने तक चलने वाले गरीबनाथ मेले में लकड़ियों की आमद से गाँव के घरों की सजावट
आप के द्वारा निर्मीत इस डायरी में आपने जिन उतकृष्ट शब्दों का प्रयोग किया है मैं उससे अभिभुत हूं । आपका मालवा की माटी को यू कागज पे उकेरना सादर स्वागत योग्य है ।
में प्रदीप uplawdiya अपने आप को बहुत खुश नसीब समझता हूं।जो मेरा जन्म अवन्तिपुर बरोदिया बाबा गरीबनाथ ओर माँ लालबाई फूलबाई की पावन नगरी में हुआ मेरा गाव हमारे पुरे mp के गावो में सबसे बेस्ट है जैसा आनंद मुझे मेरे गाँव में मिलता है ऐसा आनंद मेने कभी महसूस नही किया चाहे इंदौर हो या भोपाल
Very nice sir ji, I like your work and proud of your life.
आपको सादर नमन
बहुत सुंदर है आपकी शैली, और आपका प्रयास
सादर नमन
Nice article based on fact
Many thanks for describing our village beautifully….???
सुन्दर आलेख! सजीव वर्णन। सुन्दर चित्रों का समावेश। पढ़ने से लगा मानो स्वयं यात्रा के सहभागी रहे हों।
*बहुत ही सटीक, सरल, सारगर्भित शब्दावली के प्रयोग के साथ अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति देने वाला लेख प्रस्तुत किया है दीदी आपने…*☝?? *आपके प्रयासों एवं अथक परिश्रम द्वारा अवंतीपुर बड़ोदिया नगरी के धार्मिक, ऐतिहासिक, एवं सामाजिक वस्तुस्थिति के चरित्र चित्रण के उक्त उत्कृष्ट लेख हेतु समस्त नगरवासियों की ओर से हृदय से आभार…. एवं सादर धन्यवाद…* ?????????
महेन्द्र सोनी
I have read 12page dairy on badodia awantipur.this travel dairy is exhaustive and more information about this area.temples,sculptures and treasury,Saturday remains etc.are very useful for researchers.thank you very much for your original field work.once again thank you for such type of original contributions.pl.continue this informative dairy.
उत्तम प्रसंग विवरण धन्यवाद??
जगदीश भावसार, शाजापुर
आपकी लेखनी व शैली अनोखी है ?
It is said that India’s heart lies in villages and you tried to reach this ground level to know the heritage and civilization of villagers life.I am prod of your devoted work.
दीदी सादर नमन
कला जब सृजनधर्मियों के हाथ में आती है तो अनंतकाल तक पूज्यनीय हो जाती है शब्द नहीं है कैसे इसकी प्रशंसा करूँ पहली बार कोई ब्लॉग पढ़ा है बहुत अच्छा बहुत अच्छा बहुत अच्छा!!!
उमेश पाठक सौरों
“उत्सवधर्मिता और औदात्य” वाली नगरी अवन्तिपुर बड़ोदिया शीर्षक से रचना करने वालीं परम विदुषी, हम ग्रामवासियों के लिये साक्षात सरस्वती पुत्री श्रीमती दिशा अविनाश जी शर्मा जी (भोपाल) को इस उत्तम कार्य के लिये कोटिशः साधुवाद, बधाई। आप स्वस्थ, प्रसन्न रहकर शतायु होने तक इसी प्रकार ग्रामवासियों के दिलों पर राज करती रहें।
अबसे 54 वर्ष पूर्व श्री प्रेमनारायण जी गाँधी जी व मैं माधव कॉलेज, उज्जैन में पढ़ते थे। तब विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हमारे कुलपति श्री नन्ददुलारे वाजपेयी जी थे। उनकी वंशज दिशा जी हैं।
बड़े गणेश, उज्जैन स्थित ज्योतिषाचार्य पण्डित आनन्दशंकर जी व्यास जी ने दिशा जी को बाबा गरीबनाथ जी की नगरी अवन्तीपुर बड़ोदिया पर लेख लिखने के लिए प्रेरित किया था। श्री व्यास जी एक पारिवारिक कार्य में अवन्तीपुर बड़ोदिया आये थे। बाबा की महिमा से परिचित थे।
हमारी तहसील अवन्तीपुर बड़ोदिया की ऊर्जा व समाजसेवी भावना से ओत-प्रोत, कलमकार कलम के धनी, अखिल भारतवर्ष के बाबा के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा व धर्मनगरी अवन्तीपुर बड़ोदिया की महिमा को सिलसिलेवार बताने वाले व उनका सब तरह से आदर सत्कार कर संतुष्ट कर विदा करने वाले जनाब महेंद्र जी सोनी व समाजसेवी ग्रामवासियों को साधुवाद।
अपना ही – शांतिलाल उपाध्याय
आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा भी बढ़ गयी अंवती पुर बडौदीया को और अधिक जानने और देखने की, मालवा की धरती ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कितनी संपन रही है पर कैसे समय की आंधी में सब खो जाता है अंवतीका जो कभी पुरे भारत भू-भाग पर राज किया करती थी कैसे धीरे-धीरे इतिहास में विलीन हो गयी पर आपने उसे पुनः अपने संबल से आज प्रकट करने का सफल प्रयास किया है अंवती पुर बडौदीया नाम से लगता है कि यह एक छोटा सा गांव है पर आपने अपनी लेखनी की कुदाली से पुनः अंकुरित कर दिया वहां के परमार कालीन मन्दिर और उनके भग्नावशेष जिस तरह से वहां बिखरे पड़े हैं उसे देखकर हमें अपने अतीत पर गर्व भी होता है परन्तु साथ ही मानसिक पीड़ा भी कि ,जिस तरह से वहां के रह वासी उसे सहेज रहे हैं उससे प्रसन्नता भी हुयी परन्तु सरकार के उपेक्षा से पीड़ा भी होती है ।
वीरेन्द्र सिंह
Many many Thanks for written on my Village.
I am so happy and feel proud to born in Barodiya
बहुत ही शानदार लेख। आदि से अंत तक बांधे रखने में सफ़ल।
Enchantingly beautiful. Great efforts to revive lost glory.???