मालवा के लोकनाट्य माच में राजा भरथरी का कथानक

प्रारंभिक चरणों में भिश्ती ने रंगत इकेरी गाकर पानी का छिड़काव किया। उज्जयिनी का वर्णन करते हुए भिश्ती का गीत दर्शकों को स्फुरित कर गया ।

 वीर विक्रमादित्य की बस्ती, आया नगर अवन्तिका भिश्ती  / मालव देस अवंतिका नगरी सब तीरथ से मोटी हस्ती / जो कालों का काल बिराजे महाकाल की हे पर बस्ती  / धनवंत्री सा वेद हुआ, बूँटी में अमरत बूँद बरस्ती  / कालिदास सा ज्ञानी कवि को कविता में चतुराई दरस्ती  / सारी सभा सीतल हुइ जावे फुरती बढ़े उड़ जावे सुस्ती   

फर्रासन ने रंगत ठेका दौड़ गाकर बिछात बिछाई। कड़वक्क गाकर नाचते ‘भ्रुकुंस’ अर्थात नारी-पात्र मंच पर प्रविष्ट हुए। मंच पर आसीन गायन मंडली ने उनकी टेक को झेलकर कई रंगतें सुनाई जिनमें पिंगला की कड़ी हलूर और राजा भरथरी की रंगत चलत देखने वालों के हिय में उतरती  गयी। राजा भरथरी का अभिनय करने वाला कलाकार सलमा सितारे टकीं पगड़ी, जरी का कोट, कमर में केसरिया परिकर, मखमली म्यान वाली तलवार लिए अपने बँधावा (गीत) से दर्शकों को बाँधने में सफल रहा। राजा भरथरी ने  मालवा की प्रशंसा में यह गीत गाया ।

मध्य मालवो देस हमारो जूँ तारा बिच ध्रू को तारो  / नगर अवंती को राज करां हाँ राजा भरतरी नाम हमारो ।।

राजयोगी भरथरी के गीत में  हिरण की दानभावना और उदारता  अभिव्यक्त हुई।

 म्हाराज सुणो म्हारी अरजी मरते मरते की राखो म्हारी मरजी  / सिंग्गी नाथ के सींग हमारा चंचल नार के दीजो नेन तारा  / मन के मोहित करे जीवन भरजी मरते मरते की  /कायर चोर के दीजो पांव चारी तपसी संत के खाल हमारी  / म्हारा मन में होवे सबरजी…..मरते मरते की  / माँस पापी कोइ राजा के दीजो अंतकाल विदा म्हारे कीजो  / तम मत रखजो कसर जी…..मरते मरते की 

गुरु गादी को नमन करने के  उपरान्त मंच पर अवतरित हुए चौपदार  व  गुरु गोरखनाथ का सोरठ गीत, मृगनियों का लावणी, भिक्षा देती माताओं की लोकधुन और दासी रानी संवाद में ठेका दौड़ के अतिरिक्त झुरना का करुणरस दर्शकों के मन को भा गया। लहँगा, लुगड़ा, काँचली, लाख का चूड़ा, बोर, कंधौरा और खाँच पहने घुंघरू की गमक के साथ मंच पर आने वाले पुरुष कलाकारों के मुंह घूंघट से ढके हुए थे। मंच पर रमेश मकवाना, इंद्रा सिंह डाबी, बलराम सिसौदिया, शुभम सिकरवार, हरिसिंह सोलंकी, रतनलाल, सत्यनारायण बाड़ौद, सुनील और कन्हैया दास मोतीराम के मनमोहक प्रदर्शन ने दर्शकों को हिलरा दिया, दुलरा दिया। कन्हैया लाल बैरागी की टेक झेलकर गाने वाली शैली ने लोकनाट्य में जान फूंक दी।