भैंसवाकलाली मंदिर, दुर्गतिनाशिनी मां बीजासन माता का दिव्य स्थान, लाखा बंजारे की पुत्री विजया की उत्त्पत्ति कथा से जुड़ी है माँ की गाथा, श्रीकृष्ण ने अर्जुन से माँ बीजासेन की पूजा कराई
त्रिकोण यात्रा के अंतिम पड़ाव के रूप में भैंसवामाता के दर्शनार्थ हमें सारंगपुर संडावता मार्ग पर सारंगपुर से 19 किमी दूर भैंसवाकलाली गांव जाना था। मालवा के अनेक गृहस्थों की कुलमाता बीजासनी माता को कुछ विद्वान भवभूति के मालती माधव वर्णित चामुंडा की शक्ति का स्थान बताते हैं। हमारे मार्गदर्शक वंशीधरबन्धु जी और हमारे बीच हुई परस्पर संवाद प्रक्रिया में बहुत सी बातें निकलकर सामने आती गयीं, जैसे बीजासन मइया माँ विन्ध्यवासिनी का ही लोकप्रचलित स्वरुप है। बुंदेलखंड में उन्हें खंगारों की देवी भी माना जाता है। रणबांकुरे युद्ध से पूर्व बीजासन देवी को धोक देकर ही युद्ध में उतरते थे। विवाहादि में वंशवृद्धि हेतु बीजासन की पुतरिया का ताबीज कन्याओं द्वारा धारण किया जाता रहा है । पुत्र रणकामी हो, रणकौशल में निपुण हो इसके लिए बीजासन मइया की मनौती की जाती रही है।
मांई के सम्बन्ध में लोक में एक और धारणा प्रबलता से मिलती है। महाभारत युद्ध के समय अभिमन्यु के मरणोपरांत उत्तरा के गर्भस्थ शिशु की रक्षा हेतु भगवान श्री कृष्ण ने बीजाशयनी देवी की पूजा करवाई थी। परिणामस्वरूप अश्वत्थामा के उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र छोड़ने पर भी उसका गर्भक्षरण नहीं हो सका था। मां बीजासनी देवी उस बीज की रक्षा कर उसे सेती रहीं थीं। बूढ़े-बूढ़ों द्वारा रुच रुच कर सुनाई गयी कथाओं में ये प्रसंग प्रायः आते हैं। युद्धभूमि में जाने वाले रणबांकुरे इसलिए शक्ति को ध्याते हैं क्योंकि महाभारत युद्धारम्भ से पूर्व श्री कृष्ण ने अर्जुन से माँ बीजासेन की पूजा कराई थी। नौ टिपकियाँ, नौ खूंटे और नौ चौक वाली बीजासन माता नव बिन्दुमयी नव बीजाधिष्ठाता हैं। यही वन देवी भी हैं। बीजा नामक वृक्ष की बाहुलता वाली सघन वनराशि में एकांतिक निर्जन स्थान पर विराजती हैं। वज्र की भांति दृढ़निश्चयी और अटल अटूट बनाने वाली मां बीजासन बौद्धों की तंत्रसाधना के प्रभाव के कारन वज्र वाराही से वज्रदेवी और फिर बीजासेन होते हुए बीजासन हो गयीं ऐसी भी संभावना है । वज्रयान मत में बौद्धों की तांत्रिक देवी वज्रवाराही की प्रतिष्ठा मिलती है। शास्त्रों में भी लोकभाविनी मां सर्वदानवघातिनी का बिजया के रूप में ध्यान किया जाता है। उदयकालीन बाल सूर्य की भांति काली मां विजया संसार की दानवी बाधाओं की संहारिका शक्ति हैं। त्रैलोक्य के समस्त विघ्नों को हरने वाली मां बिजया सर्वदा असुरशक्ति पर विजय दिलाती हैं इसीलिए भैंसवा माता मंदिर में भी नवरात्रि की नवमी पर मायपूजन कर वर्ष भर मंगल कार्यों के निर्विघ्न संपन्न हो जाने की कामना की जाती रही है। ॐ के आकार की पहाड़ी पर जहाँ चंद्रबिंदु आस्थित है वहीं भैंसवामाता की प्रतिष्ठा है। अब तक हम मंदिर के समक्ष पहुंच चुके थे 60 बीघा क्षेत्र में विस्तारित मंदिर की भव्यता और दिव्यता का समागम अनूप लग रहा था। लाल बंडी कुर्ता-धोती और पचरंगी पगड़ी (मोलिया) पहने मंदिर के भिलाला और धाकड़ समाज के पण्डे पूजा अर्चना में लगे हुए थे। यहीं परिसर में खड़े हुए लोक विश्वासों में भैंसवामाता की महत्ता बताते हुए एक लोक प्रसंग का लोकविद वंशीधर बंधु जी ने वर्णन किया। मालवी साहित्य में अपने अभूतपूर्व योगदान के लिए मध्यप्रदेश के ईसुरी सम्मान से सम्मानित बंधु जी ने बताया कि यहाँ 16वीं 17वीं शताब्दी में गौर बंजारा समाज के व्यापारी भगवानदारस बढ़तीया हुआ करते थे। वे 700 तांडों का संचालन करते थे। दो लाख बैलों वाला उनका तांडा लाक्खा (लाखा) कहलाता था। बंजारा जाति घुमक्कड़ जाति थी। ये लोग मवेशियों के पालक क्रेता-विक्रेता दुग्ध के व्यापारी हुआ करते थे। साथ ही नमक की आपूर्ति का जिम्मा भी इन्हीं के सुपुर्द होता था। सुल्तानिया गाँव जो भैंसवा कलाली गाँव से वर्तमान में 10-12 किलोमीटर दूर स्थित है,वहाँ बंजारों ने तांडा डाला था। तांडे के संचालक लाखा निःसंतान थे। उनकी पत्नी ने ‘शिव भैया’ की 12 वर्षों तक अनवरत तपस्या की। व्रत संपन्न होने के दिन देवी प्रगट हुईं। उन्होंने लाखा की पत्नी से स्वप्न में कहा कि उनके यहाँ ‘पुत्र प्राप्ति’ संभव नहीं है।
राजगढ़ जिले की बीजासनी माता (भैंसवा माता), लाखा बंजारे की पुत्री विजया से जुड़ी दूधतलाई, श्री नरेंद्र शर्मा वैद्य, चोर जिसने माता का श्रृंगार चुराया, विवहित जोड़े और लोक देवताओं के देवरे
हाँ एक कन्या उनकी सूनी गोद शीघ्रातिशीघ्र भरने वाली है। एक दिन संध्याकाल में सघन वन क्षेत्र से तांडे की ओर लौटते हुए दोनों को एक नन्ही बालिका रोती बिलखती मिली। देवी कृपा मानकर वे उसे घर ले आये और उसका नाम ‘बिजया’ रख दिया। ‘उत्पत्तिकथा’ के अनुसार बिजया जब दस वर्ष की हुई तो मवेशी चराने जंगल जाने लगी। घने जंगल में तांडे के अन्य मवेशी भी चरने जाया करते थे। नित्यप्रति चरने के बाद मवेशियों को हरान-तरान गांव के तालाब में पानी पिलाने के बाद तांडे के लोग लौट जाया करते थे। बिजया ऐसा कुछ नहीं करती थी। बल्कि पहाड़ी के पश्चिम में बरगद के वृक्ष के नीचे बैठ कर ध्यानमग्न रहती थी। संध्या समय तांडे के मवेशियों को हांककर घर लिवा लाती थी। तांडे के लोगों ने लाखा को इस सम्बन्ध में अवगत कराया। लाखा को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ। उन्होंने उनकी कही अनसुनी कर दी यह कहकर कि प्यास की अधिकता के उपरांत भी बिजया द्वारा चराये जाने वाले मवेशी हट्टे कट्टे हैं। फिर भी बात की सच्चाई का पता लगाने के लिए लाखा ने एक दिन लुकछिप कर बिजया का पीछा किया हर दिन की भांति तांडे के अन्य सदस्य बल्डी के नीचे सरोवर में मवेशियों को पानी पिलाने चले गए ,दैवीय शक्तियों से सम्पन्न बिजया पहाड़ी के ऊपर स्थित एक सूखी तलैया तक पहुंच गयी , घने जंगल के बीचोंबीच निकटवर्ती पेड़ पर छिपकर बैठ गए। दोपहर के समय विजया ने प्रतिदिन की भांति मवेशियों को शुष्क तलाई के सामने छोड़ दिया जिसे वर्तमान में दूध तलाई कहते हैं ,लाखा ने देखा मवेशी स्वतः एक स्थान पर एकत्रित हो गए थे, प्रतिदिन की भाँति बिजया तप कर बरगद के पास से उठकर तलाई तक आई और निर्वस्त्र होकर झील के बींचोबीच बैठ ओम हर हर गंगे का जाप करने लगी। तलाई पानी से लबालब हो गयी। मवेशियों ने अपनी प्यास बुझाई। बिजया ने स्नान से निवृत्त होकर ज्यों ही आँखें ऊपर उठाईं तो पेड़ पर लाखा बंजारा को बैठा पाया। लाज के मारे विजया धरती में समा गई। लाखा की आंखें मिचा गयीं ,लाखा बंजारा ने बिजया को हर कहीं ढूँढा पर वह नहीं मिली। कुछ माह बाद टांडा वहां से चला गया। बहुत बाद में कलाली गाँव के मुखिया के स्वप्न में बिजया ने दर्शन दिए और बताया कि वे विन्ध्य पर्वत मालाओं में भटक रही हैं। तुम गाँव के मुखिया हो मेरा स्थान नियत करो। तालाब के पास बलड़ी पर जहाँ मेरा हाथ दिखाई दे वहाँ विधिवत मेरी स्थापना करो। हुआ भी वही माता का हाथ जहाँ प्राकट्य हुआ वह स्थान बड़ी गादी के रूप में पूजित हुआ। तलाई के पास का पुण्य वृक्ष वंदनीय हो गया जिस पर बैठकर लाखा ने बिजया के दर्शन किये थे। इस स्थान पर आज वस्त्रादि चढ़ाने की परंपरा है। मालवा के जनपदों में बिखरी आख्यायिकाएँ मूलतः देवसाहित्य ही हैं। मदाना गाँव की महिलाओं के विजया द्वारा पूजित सिद्धवृक्ष के सामने शीश नवा कर कृतकृत्य होता देख हम अचंभित थे सामूहिक आस्था ,विश्वास और समर्पण के उच्चतम भाव हमारे सामने थे , महिलाएँ विश्वेश्वरी का स्तवन करतीं सजल नेत्रों से बहती अश्रुधारा को पल्लु से बारम्बार पोंछतीं हमें हतप्रभ कर रहीं थीं । उनका माँ के सामने गेहूँ से सातिया बनाना,आर्त पुकार करना और भक्तिपरक लोक गीत गाना इस सब में हमें गंगा यमुना जैसा पावन प्रवाह दिखाई दिया था।ऐसे ही लोकविश्वास का विस्तार मंदिर प्रांगण में झूला बांधकर पूर्णतृप्त भाव से मालवी गीत गाती महिलाओं में भी दिखा था ।
बहुत ही सुंदर विवरण और फोटोग्राफी?
दिशा तुम्हारी मेहनत से हमे भी काफी रोचक जनकारियां मिलती हैं।????
बढिया रिपोर्ट।कपिल जी का भाषण अद्भुत।वे हमारे
समय के लोक और शास्त्र के बड़े चिन्तकों मे से एक हैं।उनको सुनना हमारे लोक और शास्त्र की नई व्याख्या सुनना है।
बहुत ही अच्छा ,भाषा आपकी बहुत ही अच्छी और जानकारियाँ अद्भुत हैं बहुत सी बांते तो हमें भी नहीं ज्ञात थीं
सुप्रभात दीदी?आपकी कलम को नमन बहुत सुंदर ब्लॉग लिखा है। वर्णित सारे चित्र सजीव हो उठे हैं ।
शानदार कवरेज़ है,धन्यवाद आपका ?
Good collection.
अतिi उत्तम
Good work mam for three lok devi ??????????
बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने इस के माध्य्म से आगे की ओर जानकारी मिलती रहे
यही अभिलाषा है
जय माँ बगुलामुखी
जय महाकाल??
आपका बहुत अच्छा लगा मैडम
मैं नलखेड़ा वाली माता जी से पहले ही बहुत अभीभूत हूँ आपके आलेख ने मुझे बहुत प्रभावित किया है
दीदी अति सुन्दर वर्णन
बहुत सुंदर दीदी आपकी कलम को नमन है जय माता दी
Good morning, I have completed the lecture of kapil Ji. Excellent. Pl. Cover as much as photographs from all over the madhya pradesh and also tourist destination of your area. You are working for future. Cunningham surveyed like this before hundred years back. Now you are on the same line. Congratulations. Malwa area having good research material. Needs only researchers. Wakankar also doing such survey by foot. H v trivedi of also cover limited field . Please go ahead in your social study which will cover all field. I am behind your research and you are free to contact me at every stage of academic field. Once again jai chhathi maiya. Thanks.
हमको तो आपका काम एक नंबर का लगा बहुत बढ़िया
दृश्य बहुत अच्छे हैं। उज्जैन, राजगढ़ और शाजापुर की पुरानी यादें ताजा हो गईं।
मेङम जी आप ने जो हमारी माँ महाकाली करेङी वाली के बारे मे जानकारी दी उसके लिए आप को साधुवाद बहूत बधाई हो पहली बार शोध करके लिखा गया है करेड़ी के बारे में बहुत ही बढ़िया
अच्छी प्रस्तुति है…… सम्पूर्ण वृत में इतिहास के साथ धार्मिक, आध्यात्मिक एवं लोक-मान्यताओ को उजागर करने में स्थानीय लोगों की मान्यताओ को पुस्तकीय तत्त्व से क्षेत्र की प्राचीनता और सामाजिक अवधारणा का सुन्दर चित्रण है।
क्षेत्र की तीन देवियों की लोकास्था-लोक विश्वास की त्रिकोण यात्रा का विशेष अध्याय प्रस्तुत किया है।
चरैवेति चरैवेति…….? मंगलकामनाएं
आपकी यात्रा डायरी गांव,नगर,नदी,खेत -खलिहान , प्रकृति न सिर्फ क्षेत्र के भौगोलिक परिदृश्य से रूबरू कराती है।बल्कि क्षेत्र की पुरातात्विक, ऐतिहासिक,धर्मिक,सामाजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की समृद्धि से भी साक्षात्कार करवाती है। इसकी पुष्टि डायरी की सजीव दृष्यवली,अद्भुत मूर्तिशिल्प, वर्णित परंपराएं, लोकाचरण से भरापुरा सहचर देव लोक, डॉ कपिल तिवारी ,डॉ केदार नाथ शुक्ल जी, डॉ प्रतिभा दत्त चतुर्वेदी जी, डॉ ओ.पी. शर्मा, डॉ रमन सोलंकी जी, डॉ प्रशांत पौराणिक जी आदि विद्वानों के महत्वपूर्ण सारगर्भित साक्षात्कारों और श्री मनोहरलाल पंदाजी,श्री रामचन्द्र गायरी, पंडित श्री महेश नगर,श्री राजेश दीक्षित आदि की अभिभूत कर देने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों से होती है।
मालवा की मिठास घोलती मालवी के रसासिक्त संजा के लोकगीत,भोपी कृष्णा बई की संगत में भोपा भोलाराम की सारंगी के तारों से निसर्ग मनमोहक ध्वनि पर थिरकती लोक धुन से आबद्ध देवनारायण की फड़ गायकी, क्षेत्र को विशेष पहचान देती है ।
इस महत्वपूर्ण,सारगर्भित यात्रा डायरी के लिए बहुत बहुत बधाई।
बहुत ही अच्छा कवरेज मैडम बधाइयां??
दिशा बहुत ही अच्छा व्लॉग। हर बार की तरह सहज सरल भाषा का प्रयोग । गांव में बहुत सारे देवी देवता की पूजा की प्रथा और नाम पढ़कर बहुत सारी जानकारियां मिली। तुम इसी तरह घूमती रहो और सारा यात्रा वृतांत इसी प्रकार लिखो हमें पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगता है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम साक्षात उस गांव में ही घूम रहे हैं।
चरैवेति चरैवेति
मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति पर जनकार्य करने हेतु प्रख्यात श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने मालवा की करेड़ी माता, बगलामुखी, भैसवामाता सहित यहाँ के लोक के हृदय में बसे भैरव, शीतला, छींक, खोखुल, मोतीझरा, बैमाता, सहित लोकदेवता देवनारायण पर जो ब्लॉग बनाया है वह जमीनी तौर पर एक अमूल्य धरोहर है जो किसी भी एतद्विषयक शोध से कमतर नहीं है। उन्होंने स्थान विशेष पर जाकर वहाँ के पर्यावरण, ग्रामीण, परिवेश को गहरे से छुआ है। मध्यप्रदेश के लोक पर अभी तक जितना भी प्रकाशित हुआ है उसमें सोने में सुहागा वाली कहावत इस ब्लॉग में चरितार्थ होती है। प्रख्यात विद्वान कपिल तिवारी, केदारनाथ शुक्ल के वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार इस ब्लॉग को चार चाँद लगाते हैं। नलखेड़ा का वाममार्गी अवधारणा का देवीस्थल तथा लोक में शक्ति की अंगीकार वाली अवधारणा का क्रमिक विकास इस ब्लॉग का वैशिष्ट्य है। अनेक लोक विद्वानों, तांत्रिकों के मत ब्लॉग को पुष्टता प्रदान करते हैं। अनेक सुन्दर चित्रों से संयोजित इस ब्लॉग को पढ़कर सहज ही एक अनुपम ग्रन्थ की रचना की जा सकती है। यह दिशा जी की अथक मेहनत का फल है कि वे अकेली ही इस यात्रा में चरैवेति मंत्र को जीवंत कर रही हैं।
बहुत अच़्छा। आधार डॉ. कपिल तिवारी ने आगम से ही लिया है। लोक उससे भी परे है।
लोकास्था – लोकविश्वास मातृशक्ति धाम की त्रिकोण यात्रा
का आपने जो लालित्यपूर्ण शैली
में वर्णन किया है । वह अद्भुत है
ऐसा लगा जैसे ललित निबंध पड़
(सुन)रहें हों ।।
बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण ।
विद्वान अतिथि महोदय ने कितना
सहज व्याख्यायित किया गूढ़
तत्वों को । वाह वाह ।।
???????
आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा और बढती जा रही है साथ ही ये सवाल भी उठ रहाँ है कि कितना बडा केन्द्र किसी समय में रहा होगा ये स्थान वामपंथी तपस्या और तांत्रिक साधना का जिसके जीवंत प्रमाण आपके शोध में बहुत ही साफ देखा जा सकता है शायद इतना बड़ा केन्द्र पूरे अखण्ड भारत में नहीं होगा पर वो कैसे धीरे-धीरे समाप्त हो गया ये भी बहुत घना रहस्य है जो आपने चौंसठ योगीनी मंदिर के अवशेष, व भैरव के अवशेष आप ने खोजे है वो भी आज के समय में बहुत ही सराहनीय प्रयास है मुझे लगता है कि यदि सरकार इसे चाहे तो आज ये भारत का पुरी दुनिया के लिए एक बहुत ही बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है और देश व दुनिया के लिए ज्ञान विज्ञान को समझने मे भी सहायक होगा और भारत के गौरवशाली इतिहास को बताने मे भी सहायक होगा ।
बहुत ही सुंदर लेखनी है और आपके द्वारा हमें मां बगलामुखी मंदिर के दर्शन हुए इस बात के लिए बहुत आभारी है अगली लेखनी का इंतजार रहेगा ??
बहुत ही सुंदर लेखनी है बगुलामुखी जय महाकाल ?
हमने आपके पांचो ब्लाग पढ लिऐ है ।पढकर अच्छा लगा सबसे पहले दो बातो के लिऐ साधुवाद देना चाहुंगा ,पहला यह की आपने ज्यादातर शुद्व हिन्दी शब्दो को धाराप्रवाह प्रयोग किया है ।जो आपकी विदुता को दर्शाता है ।यह अच्छी बात है ।कि आप हिन्दी को अपने मुल स्वरूप में बहने देती है ।
दुसरा यह है कि आपने फोटोग्राफ़ी उत्तम कोटि की है ।जिस भी छवि चित्र को देखते मन को भा सा जाता है ।सारे ब्लागो को पढकर ही आपके लेखन को थोडा बहुत जाना जा सकता है ।सब कुछ ठीक ठाक है ।हमारी शूभकामनाऐ आपके लेखन को।
Disha mam ..आप मालवा की अन्जानी और छुपी हुई कला,संस्कृति ,और आस्था से सबको परिचित करवा रही हैं, हम मालवा वाले हृदय से आपका आभार एवं धन्यवाद प्रकट करते हैं ।????आपके ब्लोग पढ़ कर लगता हे हम आपके साथ घूम रहे हैं ?????????
अद्भुत संग्रहण
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है दिशा जी, कई दिनो बाद यौगनियों के बारे में सार्थक व उपयोगी सूचनाएं मिली.
दिशा जी, योगिनी शिल्प पर मैं एक पुस्तक लिख रही हुं इस बारे आपसे बात करूंगी ???
अच्छा वृत्तांत है।इसमें वर्णित अनेक देवी-देवता भील जनजाति समूह के लोगों की आस्था के केन्द्र भी हैं।डॉ. कपिल तिवारी जी ने बहुत गहराई से सृष्टि और देवलोक की अवधारणा को स्पष्ट किया है।
इसमें मैं केवल इतना जोड़ना चाहता हूँ कि शास्त्रों की रचना लोक मान्यताओं के अवलोकन और विवेचन के आधार पर हुई होगी,क्योंकि लोक मान्यताएँ मानव-सभ्यता के आरंभिक विकास के साथ ही धीरे-धीरे स्थापित होती चली गयी हैं।ये परंपरा के रूप में आगे बढ़ी हैं।शास्त्र इन्हीं मान्यताओं के परिष्कृत रूप हैं।यह भी कहा जा सकता है कि शास्त्र एक प्रकार से लोक मान्यताओं का कोडिफ़िकेशन हैं।यह काम चिंतक,अध्ययनशील और अन्वेषक ऋषियों ने किया है,जो बहुत बाद की स्थिति है।इसलिये यह सोचना एक बड़ी भूल होगी कि क्या वैदिक,शास्त्रीय, पौराणिक आदि देवी-देवता कम पड़ गये थे,जो लोक ने एक बड़े देवलोक की रचना कर ली? कपिल जी ने सही कहा है कि लोक आस्था के मूल केन्द्रबिंदु भी शिवशक्ति हैं।इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि लोक-आस्था और मान्यताएँ शास्त्रीय ज्ञान-परंपरा की अनुगामिनी नहीं हैं।
आपका यह वृत्तांत और कपिलजी की बातचीत अत्यंत ज्ञानवर्द्धक है।आपकी जिज्ञासा,अन्वेषणशीलता और परिश्रम को प्रणाम!
शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर आलेख
बहुत ही शानदार प्रस्तुति आपके साथ मां भेंसवा महारानी की व्याख्या रोमांचित करनेवाली यात्रा रही बहुत साधुवाद