धार्मिक विहार – लोकास्था और लोकविश्वास की त्रिकोण यात्रा : नलखेड़ा माता, करेड़ी माता और भैंसवा माता

चौंसठ योगनियों के पूजार्चन केलिए मध्ययुगीन इतिहास में कौलमत के प्रवर्तक रहे पराशक्ति साधना सिद्ध योगीन्द्र मत्स्येन्द्रनाथ-गोरक्षनाथ ने श्री त्रयंबक क्षेत्र में कौल ज्ञान का प्रतिपादन किया 

जिसकी जैसी चित्त वृत्ति है वह उसी भाव से शक्ति  के दर्शन करता है। चौंसठ योगनियों के पूजार्चन के लिए मध्ययुगीन इतिहास में कौलमत के प्रवर्तक रहे पराशक्ति साधना सिद्ध योगीन्द्र मत्स्येन्द्रनाथ और गोरक्षनाथ ने श्री त्रयंबक पुण्य क्षेत्र में ही अकुल (शिव) कुल (कुण्डलिनी स्वरूपिणी पराशक्ति)  के सामरस्य वाली  साधना और तांत्रिक कौलज्ञान की आधार शिला रखी थीअतः हमने महाराष्ट्र स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में गणनीत त्र्यंबकेश्वर मंदिर के सुप्रसिद्ध अर्चक ज्योतिषाचार्य पं राजेश दीक्षित से चर्चा की।  उन्होनें हमें बताया कि नाथ सम्प्रदाय के सर्वमान्य आचर्य मत्स्येन्द्र नाथ का योगिनी कौलमार्ग बौद्धों के सहजयानी और वज्रयानी साधना से साम्यता लिए हुए है, जबकि शंकराचार्य के बाद सर्वाधिक प्रभामयी महापुरुष गोरक्षनाथ का योगमार्ग शेषनाग के अवतार पतंजलि मुनि के पातंजल योगदर्शन से अभिन्न रहा है। दीक्षित जी, मछंदरनाथ द्वारा प्रतिपादित कौल ज्ञान और मध्ययुगीन योगिनी पूजा पर गंभीरता से शोध किये जाने की आवश्यकता बताते हैं। हमारी नाथ सम्प्रदाय के गूढ़ार्थ को समझने के पीछे मंशा इसलिए भी  थी क्योंकि हमारा अगला गंतव्य स्थल करेड़ी का कनकावती माता मंदिर था जो नाथपंथ के सिद्धयोगियों की चमत्कारिक गतिविधियों का अभिकेंद्र रहा है।

शाजापुर की रोडेश्वरी देवी के दर्शन के उपरान्त करेड़ी की कनकावती माता के दर्शन, कर्ण की अराध्या माँ कणकेश्वरी

नाथ सम्प्रदाय संबंधित अपनी ज्ञानपिपासा को शांत कर अब हम नलखेड़ा से पिलवासा, दमदम पचलाना नारायण गांव, कानड़ दुपाड़ा मार्ग पकड़कर विकट तांत्रिक साधना स्थल करेड़ी की ओर बढ़ गए थे चीलर नदी के तटस्थ, शमशानवासिनी शाजापुर की रुद्रेश्वरी माता मंदिर में माथा टेकने का मन अचानक ही हो  गया था। अपनी शाजापुर जिले की डायरी लिखते समय यहां आना पहले भी  हुआ था ,6 फीट ऊँचे  देवी के  रुण्डमालाधारी मंगलमयी अर्चाविग्रह के समक्ष नतमस्तक होकर हम परिसर में आस्थित देवी दाहिने चरण भाग के दर्शनार्थ सीढियाँ उतरकर नीचे आ गए , देवी के चरणभाग के पतन के कारण यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में सुप्रतिष्ठ है ,इस मंदिर को रोडवाल समाज की ताराबाई नामक धर्मनिष्ठ महिला द्वारा 1719 ई में 4106 रु में पुनरुद्धारित करने के कारण रोडेश्वरी देवी के रूप में भी जाना जाता है। यहां भी भक्तों पर अनुग्रह करने वाली भगवती की लीला का विलास दृष्टिगत हुआ। जपापुष्प, कुंकुम, अक्षत के माध्यम से भगवती को प्रसन्न करते भक्तगण रक्त वर्णी चुनरी लिए पंक्तिबद्ध दिख रहे थे । इसी राजराजेश्वरी मंदिर के सामने से एक पदचालित चुनरी यात्रा निकलती है  प्रति आश्विन शुक्ल पक्ष पंचमी को आयोजित होने वाली चुनरी यात्रा सोमवारिया के फुटादेवल मंदिर से प्रारंभ होकर करेड़ी  स्थित कणकेश्वरी मंदिर पर संपन्न होती है जिसके मार्ग में गवलिया खोह ग्वालप ऋषि का तपःभूत स्थान भी पड़ता है। सगुन और असगुन की चिंता, प्रफुल्ला नदियां, संतोष के साथ सम्पत्ति रहित जीवनचर्या जीनेवाले गांववालों की अगाध भक्ति को देख विचार आया जिनके संस्कार गावों से बने हैं उनसे गांव छूटते कहां हैं। बहुतेरे ग्रामवासी पराम्बा जगजननी के सामने करबद्ध खड़े थे जिन्हें छोड़कर  गिरिवर होते हुए हमने  करेड़ी का रास्ता पकड़ लिया था  । गिरिवर में नाथमतावलबियों की तपस्विता धरा पर एक प्राचीन हनुमान मंदिर दाएं हाथ पर दिखाई दिया। नव मूलनाथ के अतिरिक्त चौरासी नाथ सिद्धों की जो तालिका मिलती है उसमें गिरिवर नाथ का  नाम चौवनवें क्रमांक पर मिलता है। मंदिर में योगियों का आज भी वास है।आगे बढ़ने पर हमारे सह मार्गी बंधु जी मार्ग में लगे पेड़ पौधों को दिखाकर कई उपयोगी जानकारियां साझा कर ने लगे जैसे  गाज घमोड़ी बेल बादल के गरजने पर निकलती है। हाड़जुड़ी  बेल हड्डी को जोड़ देती है।आक, जिसे मालवा में आंकडा कहते हैं, के पत्ते सिरदर्द की समस्या से छुटकारा दिला देते हैं। मशरूम यों तो  60 प्रकार के मिलते  हैं परन्तु गजार मशरूम मालवा  क्षेत्र में बहुतायत से पाया जाता है, जो शरीर में शीत बैठने नहीं देता। कुमड़िया सब्जी कमजोरी के लिए खायी जाती है। जहरीली गाजरघास सर्प  काटने पर काम आती है। आंवला ब्रह्म, देवगण और गौरी के अंश से उत्पन्न माना जाता है। नारियल विश्वामित्र की सृष्टि माना जाता है। बुखार, फोड़े-फुंसी और भूत प्रेत से मुक्ति के लिए नीम ,शिरीष और आम की पत्तियों का झाड़ा दिया जाता है। बबूल की छाल को उबालकर कुल्ला करने से मुंह के घाव भर जाते हैं। आक में सूर्य का वास,  वासुदेव व  विष्णु नारायण पीपल में, नृसिंह के नखों से गूलर, बालमुकुंद, विष्णु , कलि और भूत प्रेत वट वृक्ष में, पाकर की जड़ में सरस्वती का प्राकट्य, हरदौल महुआ के पेड़ में, छौंकर में बब्रु वाहन,अरंड में राक्षस देवी,की उपस्थिति और भगवान के केश से दूब, की उत्तपत्ति   मानकर उन्हें गांववाले कभी कष्ट नहीं पहुंचाते।

माँ कनकावती मंदिर करेड़ी में नाथ संप्रदाय के नौ प्रमुख नाथों की प्रतिमाएँ, परमारकालीन भग्नावशेष, कापालिकों की प्रतिमाओं के साथ-साथ शेषनाग, बासक नाग, कर्कोटक नाग, कर्शनाग, इंदुनाग 

दांगोड़िया तालाब और लक्ष्मणा नदी के सामने से निकले तो मन विचारने लगा परम्पराएँ सतत् प्रवाहमान नदी की भांति ही तो हैं जो नए तटबंध व कटाव रचती चलती हैं। मन और बुद्धि का भोजन विचार है उनके आये बिना हमारा काम भी तो नहीं चलता। आगे बढ़ने पर चारकोस में विस्तारित महाकाल वनक्षेत्र में स्थित करेड़ी मंदिर को देखकर मन वैसे ही प्रकम्पित था जैसे पीपल ,जिसके पत्ते वायु की स्थिरअवस्था में भी प्रकम्पित रहते हैं। बड़े और पुराने ये मोटे-मोटे  तने वाले रोगनाशक पीपल के पेड़  जिनकी परिक्रमा मात्र से मांगल्य की प्राप्ति हो जाती हो आँखों के सामने थे,। साक्षात् शिवस्वरूप इस वृक्ष को चाणक्य ने भी सर्प विष को निष्प्रभावित करने के लिए उपयोगी बताकर स्थान स्थान पर लगाने की आवश्यकता बताई थी। कुंए और जलाशयों के आसपास पीपल रोपने को महत्व सम्भवतः इसी कारण बताया गया था। तांत्रिक भी पीपल के पत्तों को सहस्त्रारचक्र जागृत करने में उपयोग में लाते रहे हैं। हम तांत्रिकों के गढ़ महाकालवन  में ही तो थे। मूर्धन्य साहित्यकार आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी के शब्दों में चारकोस तक विस्तारित महाकालवन क्षेत्र में रमण करने मात्र से समस्त पातक क्षीण हो जाते हैं। महाकाल की अधिष्ठान भूमि उज्जयिनी और अवंतिका परस्पर पर्यायर्थी रहे हैं। पुराणों में त्रिपुरासुर का वध करने के लिए देवगणों के साथ महादेव ने रक्त दंडिका चंडिका की आराधना कर महापाशुपत अस्त्र की प्राप्ति जहां की थी, हम उसी महाकालवन क्षेत्र में विचर रहे थे। प्रबल शत्रु का जहां देवाधिदेव महादेव स्वंय उज्जासन करते हैं वह स्थान उज्जैन कहलाया और वह पुरी जिसके तीर्थों प्राणियों और बीजों का उनके द्वारा अवन (रक्षण) किया गया  है वह क्षेत्र अवंतिका कहलाया। इसी पुण्य क्षेत्र में आस्थित है करेड़ी मां कनकावती का सिद्धपीठ। मंदिर के प्रवेश द्वार के दाएँ बाएँ जहाँ तक दृष्टि जा सकती थी वहाँ तक प्रज्ञावान प्रशस्य योगियों की प्रतिमाओं का उत्कीर्णन दृश्यमान था। नाथ सम्प्रदाय के आदिगुरु हठ योग के परमाचार्य योगीन्द्र मस्तस्येन्द्रनाथ जिन्होंने अलख निरंजन शिव और पराम्बा जगदीश्वरी को मन और जीव का संयुग्मन निरूपित किया था। शिव स्वरुप महायोगी गुरु गोरखनाथ, बद्रीनाथ, मीननाथ, ऋषभनाथ, भृतहरि, भगवान बुद्ध इत्यादि की प्रतिमाएं हमें प्रारम्भ में ही दिख गयीं थीं, स्वर्ण प्रदात्री माँ कनकावती के मंदिर के  16 अलंकृत स्तम्भों पर गरुड़, शिव, ललाट बिम्ब पर सप्तमातृकाएँ, गणेश, विष्णु, भैरव, का शिलोत्कीर्णन प्रभावित कर रहा था। शिव गोरक्ष का सोटा (डेढ़ हाथ का डंडा) लिए शिवावतार समाधिष्ठ महायोगी गोरखनाथ की प्रतिमा जिनमें एक हाथ में शिवलिंग था हमारे सामने थी , कापालिकों की प्रतिमाओं के साथ-साथ शेषनाग, बासक नाग, कर्कोटक नाग, शेष नाग ,धृतराष्ट्र ,तक्षक ,सावित्र , इंदुनाग आदि नौ कुली नागदेवताओं की प्रतिष्ठापना थी । हमने मन ही मन सोचा  नागबलि ,नागबोध, नागार्जुन नाथपंथी जैसे नाथ योगियों की भी करेड़ी प्रिय स्थली रही हो सकती है । ललितादित्य में तो कश्मीर राजाओं का वंश कार्कोटक राजाओं से उद्भूत हुआ ही माना गया है। बौद्धों में भी नागपूजा का प्रचलन रहा है। नाग प्रतिमाएँ यहाँ अन्तःकरण की संकल्प विकल्प वृत्तियां  दर्शा रहीं थीं ।  मेखला, सृंगी, सेली,गुदरी, खप्पर, कर्ण मुद्रा, बघंबर झोला लिए योगियों की प्रतिमाएं प्रभावी लग रही थीं। राजा हाथ में किंगरी सिर पर जटा मेखला योग को शुद्ध करने वाला धंधारी चक्र, रुद्राक्ष, कंथा पहने हाथ में सोंटा लिए बगल में खप्पर पैरों में पाँवरी छाता लगाए ध्यानस्थ थे। मानो गोरख गोरख का अजपा जाप कर रहे हों। सिंदूर आलेपित ये प्रतिमाएं इतनी सजीव थीं कि इनके पास से गुजरने भर से यूँ लगा  मानो दर्जनों योगी एकसाथ सिंगनाद (हिरण के सींग से बना बाजा) बजा रहे हों। गर्भगृह में वेदबीज स्वरूपा सावित्री योगेश्वर कृष्ण का विराट स्वरूप और स्वर्ग  वाहिनी विकराल स्वरूपा, जपापुष्प का कर्णाभूषण धारण किये साक्षात् मृत्युदेवी  कालरात्रि ललिता भैरवी विराजी थीं। लोक में इनकी शीतला माता के रूप में प्रतिष्ठा मिलती है। ब्रम्हा के साथ सावित्री और गायत्री ,चतुर्हस्ता भगवान त्रिविक्रम का नृसिंह अवतार भव्यता लिए हुए गर्भगृह में प्रतिष्ठित था ,ठीक  सामने अति भव्य  कमलासीन माँ महिषासुर मर्दिनी  हस्तकमल में अश्वभाला, परशु, गदा, बाण, वज्र, कमल, धनुष, कुंडिका, शक्ति, खड़ग, चर्म, शङ्ग, घंटा, सुधापात्र, शूल, पाश, और सुदर्शन चक्र धारिणी  की दिव्य प्रतिष्ठा थी । स्वर्णाभ कांतिमान ललाट में नेत्रवाली देवी, मणिजड़ित मुकुट और कुण्डलभूषणों से सुसज्जित महिष की आकृति धारण करने वाले असुर की संहारिका, गले में मुंडमाला धारण किये उनका स्वरुप अति विलक्षण  था । खरवांग, डमरू, त्रिशूल तथा कटार धारण किये देवी नरमुंडों की माला से सुशोभित थीं। गुह्य साधना में महामहती शक्ति की यह मुंडमाला असुरों के शीषभेदन से निर्मित मानी जाती हैं। जिन्हें माँ ने न्यायशक्ति हो विजित किया था।भारतीय तंत्रशास्त्र की आंतरिक व्यवस्था भी नरमुंडों से  51 वर्णों की वर्णमाला अ आ इ ई उ ऊ से लेकर श ष स ह ल क्ष का प्रादुर्भवि मानती है।यहीं  हमारी भेंट डॉ.भगवान शर्मा जी से हुई जिन्होने माँ की गुणमयी मायाशक्ति के सन्दर्भ में अनेक आलेख लिखे, पुरखों जनशश्रुतियों को सहेजा और सभी से साझा भी किया था । उन्होंने हमें बताया कि पूर्व में गर्भगृह से निकलकर एक गुह्य मार्ग, भूतभावन भगवान् महाकाल की अधिष्ठान भूमि, भूमिपुत्र मंगल की जन्मस्थली भर्तृहरि, महाकवि गुणाढ्य,  कालिदास,  योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली मालवललामभूत मोक्षदायिनी उज्जैयिनी तक जाया करता  था।अष्टभुजाधारी माँ कनकावती के  खप्पर पर आरूढ़ कच्छप से निरंतर जल प्रवाहमान था  जिसके आचमन से भक्तगण परमतुष्टि का अनुभव कर रहे थे । प्रणति मुद्रा में माँ के अर्चाविग्रह को निहारते हुए हम धन्यता का अनुभव कर रहे थे। सबकी आश्रयभूता माँ कनकावती का रजत मुकुट उतारकर गर्भगृह में  उपस्थित अर्चकों के शीष पर रखकर आशीष देते पुजारी श्री जगदीश नाथ ने हमें देवी के वर्णनातीत दिव्य स्वरूप से अवगत कराया। अष्टभुजाधारी अत्कर्यमहिमा शालिनी माँ कनकावती के अक्षयपात्र के जल का आचमन कर हम कृतकृत्य हो गए। पुजारी जी ने बताया कि यह युगयुगीन अक्षय पात्र सदैव जलप्लावित रहता है। घर -घर को शिवत्व (अलख निरंजन) नाथ सम्प्रदाय का सूत्र वाक्य रहा है। हम और वंशीधर बंधु जी यहाँ उसी स्पंदन की चप्पे चप्पे पर अनुभूत कर पा रहे थे और  देवी के कलमंजीरंजिनि स्वरुप में मंजीरे का अंतर्नाद  पल प्रतिपल हमको आलोड़ित कर रहा था ।  प्रत्यक्षतः अमित आकारवाली शक्ति स्वरूपा माँ कनकावती का गरिमामयी स्थान इतना प्रभावोत्पादक है कि नास्तिक भी भगवत्भक्त हो जाए और आस्तिक प्रज्ञावान होकर अन्तःकरण में तेजोमय प्रकाश को अनुभूत करने लगे । देवी  मंदिर के ऊपरी तल पर जाने के लिए बाएँ हाथ पर एक सीढ़ी की व्यवस्था थी उसी से होकर हम ऊपरी तल पर अवस्थित महाकालेश्वर मंदिर तक पहुंच गए थे ।मंदिर में  पंडिताई का दायित्व निभाते पंडित कमल शर्मा वहीं पूजन करते मिल गए ,अपने पूर्वजों पं श्रीनाथ जी शर्मा ,पं भैंरूलाल जी शर्मा ,पं घासीदास जी शर्मा के नाम गिनाकर उन्होंने बताया कि मंदिर में पीढ़ियों से अभिषेकादि का दायित्व उनका परिवार ही निभाता रहा है। यहां मूलतः बलिप्रथा का विधान रहा है आज भी उसका निर्वहन होता है। गुर्जर समाज प्राधान्य इस क्षेत्र के समस्त कार्य देवी से  अनुमति लेकर  ही किये जाते हैं।

Comments

  1. Sangeeta Tripathi says:

    बहुत ही सुंदर विवरण और फोटोग्राफी?
    दिशा तुम्हारी मेहनत से हमे भी काफी रोचक जनकारियां मिलती हैं।????

  2. बसन्त निरगुणे says:

    बढिया रिपोर्ट।कपिल जी का भाषण अद्भुत।वे हमारे
    समय के लोक और शास्त्र के बड़े चिन्तकों मे से एक हैं।उनको सुनना हमारे लोक और शास्त्र की नई व्याख्या सुनना है।

  3. रामचन्द्र गायरी नलखेड़ा says:

    बहुत ही अच्छा ,भाषा आपकी बहुत ही अच्छी और जानकारियाँ अद्भुत हैं बहुत सी बांते तो हमें भी नहीं ज्ञात थीं

  4. वंशीधर बंधु says:

    सुप्रभात दीदी?आपकी कलम को नमन बहुत सुंदर ब्लॉग लिखा है। वर्णित सारे चित्र सजीव हो उठे हैं ।

  5. जगदीश नागर says:

    शानदार कवरेज़ है,धन्यवाद आपका ?

  6. Kailash Chandra Pandey, Mandsaur says:

    Good collection.

  7. संजय शर्मा, भोपाल says:

    अतिi उत्तम

  8. Manju yadav Ujjain says:

    Good work mam for three lok devi ??????????

  9. मधुर त्रिवेदी, उज्जैन says:

    बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने इस के माध्य्म से आगे की ओर जानकारी मिलती रहे
    यही अभिलाषा है
    जय माँ बगुलामुखी
    जय महाकाल??

  10. रामदयाल बंजारा, नलखेड़ा says:

    आपका बहुत अच्छा लगा मैडम

  11. अरूण सिंह, भोपाल says:

    मैं नलखेड़ा वाली माता जी से पहले ही बहुत अभीभूत हूँ आपके आलेख ने मुझे बहुत प्रभावित किया है

  12. कमलेश बुंदेला says:

    दीदी अति सुन्दर वर्णन

  13. श्याम सुन्दर पाठक says:

    बहुत सुंदर दीदी आपकी कलम को नमन है जय माता दी

  14. OP Misra, Bhopal says:

    Good morning, I have completed the lecture of kapil Ji. Excellent. Pl. Cover as much as photographs from all over the madhya pradesh and also tourist destination of your area. You are working for future. Cunningham surveyed like this before hundred years back. Now you are on the same line. Congratulations. Malwa area having good research material. Needs only researchers. Wakankar also doing such survey by foot. H v trivedi of also cover limited field . Please go ahead in your social study which will cover all field. I am behind your research and you are free to contact me at every stage of academic field. Once again jai chhathi maiya. Thanks.

  15. भोलाराम नायक says:

    हमको तो आपका काम एक नंबर का लगा बहुत बढ़िया

  16. सुरेश अवस्थी, दिल्ली says:

    दृश्य बहुत अच्छे हैं। उज्जैन, राजगढ़ और शाजापुर की पुरानी यादें ताजा हो गईं।

  17. भगवान दास शर्मा करेड़ी says:

    मेङम जी आप ने जो हमारी माँ महाकाली करेङी वाली के बारे मे जानकारी दी उसके लिए आप को साधुवाद बहूत बधाई हो पहली बार शोध करके लिखा गया है करेड़ी के बारे में बहुत ही बढ़िया

  18. जगदीश भावसार शाजापुर says:

    अच्छी प्रस्तुति है…… सम्पूर्ण वृत में इतिहास के साथ धार्मिक, आध्यात्मिक एवं लोक-मान्यताओ को उजागर करने में स्थानीय लोगों की मान्यताओ को पुस्तकीय तत्त्व से क्षेत्र की प्राचीनता और सामाजिक अवधारणा का सुन्दर चित्रण है।
    क्षेत्र की तीन देवियों की लोकास्था-लोक विश्वास की त्रिकोण यात्रा का विशेष अध्याय प्रस्तुत किया है।
    चरैवेति चरैवेति…….? मंगलकामनाएं

  19. बंशीधर बंधु शुजालपुर मंडी says:

    आपकी यात्रा डायरी गांव,नगर,नदी,खेत -खलिहान , प्रकृति न सिर्फ क्षेत्र के भौगोलिक परिदृश्य से रूबरू कराती है।बल्कि क्षेत्र की पुरातात्विक, ऐतिहासिक,धर्मिक,सामाजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की समृद्धि से भी साक्षात्कार करवाती है। इसकी पुष्टि डायरी की सजीव दृष्यवली,अद्भुत मूर्तिशिल्प, वर्णित परंपराएं, लोकाचरण से भरापुरा सहचर देव लोक, डॉ कपिल तिवारी ,डॉ केदार नाथ शुक्ल जी, डॉ प्रतिभा दत्त चतुर्वेदी जी, डॉ ओ.पी. शर्मा, डॉ रमन सोलंकी जी, डॉ प्रशांत पौराणिक जी आदि विद्वानों के महत्वपूर्ण सारगर्भित साक्षात्कारों और श्री मनोहरलाल पंदाजी,श्री रामचन्द्र गायरी, पंडित श्री महेश नगर,श्री राजेश दीक्षित आदि की अभिभूत कर देने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों से होती है।
    मालवा की मिठास घोलती मालवी के रसासिक्त संजा के लोकगीत,भोपी कृष्णा बई की संगत में भोपा भोलाराम की सारंगी के तारों से निसर्ग मनमोहक ध्वनि पर थिरकती लोक धुन से आबद्ध देवनारायण की फड़ गायकी, क्षेत्र को विशेष पहचान देती है ।
    इस महत्वपूर्ण,सारगर्भित यात्रा डायरी के लिए बहुत बहुत बधाई।

  20. संजीव सक्सेना,नलखेड़ा says:

    बहुत ही अच्छा कवरेज मैडम बधाइयां??

  21. अनुमिता says:

    दिशा बहुत ही अच्छा व्लॉग। हर बार की तरह सहज सरल भाषा का प्रयोग । गांव में बहुत सारे देवी देवता की पूजा की प्रथा और नाम पढ़कर बहुत सारी जानकारियां मिली। तुम इसी तरह घूमती रहो और सारा यात्रा वृतांत इसी प्रकार लिखो हमें पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगता है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम साक्षात उस गांव में ही घूम रहे हैं।
    चरैवेति चरैवेति

  22. ललित शर्मा, इतिहासकार (महाराणा कुम्भा इतिहास अलंकरण) says:

    मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति पर जनकार्य करने हेतु प्रख्यात श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने मालवा की करेड़ी माता, बगलामुखी, भैसवामाता सहित यहाँ के लोक के हृदय में बसे भैरव, शीतला, छींक, खोखुल, मोतीझरा, बैमाता, सहित लोकदेवता देवनारायण पर जो ब्लॉग बनाया है वह जमीनी तौर पर एक अमूल्य धरोहर है जो किसी भी एतद्विषयक शोध से कमतर नहीं है। उन्होंने स्थान विशेष पर जाकर वहाँ के पर्यावरण, ग्रामीण, परिवेश को गहरे से छुआ है। मध्यप्रदेश के लोक पर अभी तक जितना भी प्रकाशित हुआ है उसमें सोने में सुहागा वाली कहावत इस ब्लॉग में चरितार्थ होती है। प्रख्यात विद्वान कपिल तिवारी, केदारनाथ शुक्ल के वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार इस ब्लॉग को चार चाँद लगाते हैं। नलखेड़ा का वाममार्गी अवधारणा का देवीस्थल तथा लोक में शक्ति की अंगीकार वाली अवधारणा का क्रमिक विकास इस ब्लॉग का वैशिष्ट्य है। अनेक लोक विद्वानों, तांत्रिकों के मत ब्लॉग को पुष्टता प्रदान करते हैं। अनेक सुन्दर चित्रों से संयोजित इस ब्लॉग को पढ़कर सहज ही एक अनुपम ग्रन्थ की रचना की जा सकती है। यह दिशा जी की अथक मेहनत का फल है कि वे अकेली ही इस यात्रा में चरैवेति मंत्र को जीवंत कर रही हैं।

  23. डॉ मोहन गुप्त उज्जैन says:

    बहुत अच़्छा। आधार डॉ. कपिल तिवारी ने आगम से ही लिया है। लोक उससे भी परे है।

  24. हरीश दुबे, महेश्वर says:

    लोकास्था – लोकविश्वास मातृशक्ति धाम की त्रिकोण यात्रा
    का आपने जो लालित्यपूर्ण शैली
    में वर्णन किया है । वह अद्भुत है
    ऐसा लगा जैसे ललित निबंध पड़
    (सुन)रहें हों ।।
    बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण ।
    विद्वान अतिथि महोदय ने कितना
    सहज व्याख्यायित किया गूढ़
    तत्वों को । वाह वाह ।।
    ???????

  25. वीरेंद्र सिंह says:

    आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा और बढती जा रही है साथ ही ये सवाल भी उठ रहाँ है कि कितना बडा केन्द्र किसी समय में रहा होगा ये स्थान वामपंथी तपस्या और तांत्रिक साधना का जिसके जीवंत प्रमाण आपके शोध में बहुत ही साफ देखा जा सकता है शायद इतना बड़ा केन्द्र पूरे अखण्ड भारत में नहीं होगा पर वो कैसे धीरे-धीरे समाप्त हो गया ये भी बहुत घना रहस्य है जो आपने चौंसठ योगीनी मंदिर के अवशेष, व भैरव के अवशेष आप ने खोजे है वो भी आज के समय में बहुत ही सराहनीय प्रयास है मुझे लगता है कि यदि सरकार इसे चाहे तो आज ये भारत का पुरी दुनिया के लिए एक बहुत ही बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है और देश व दुनिया के लिए ज्ञान विज्ञान को समझने मे भी सहायक होगा और भारत के गौरवशाली इतिहास को बताने मे भी सहायक होगा ।

  26. Nitya dubey says:

    बहुत ही सुंदर लेखनी है और आपके द्वारा हमें मां बगलामुखी मंदिर के दर्शन हुए इस बात के लिए बहुत आभारी है अगली लेखनी का इंतजार रहेगा ??

  27. Kamal Dubey says:

    बहुत ही सुंदर लेखनी है बगुलामुखी जय महाकाल ?

  28. हंसराज नागर कोटा says:

    हमने आपके पांचो ब्लाग पढ लिऐ है ।पढकर अच्छा लगा सबसे पहले दो बातो के लिऐ साधुवाद देना चाहुंगा ,पहला यह की आपने ज्यादातर शुद्व हिन्दी शब्दो को धाराप्रवाह प्रयोग किया है ।जो आपकी विदुता को दर्शाता है ।यह अच्छी बात है ।कि आप हिन्दी को अपने मुल स्वरूप में  बहने देती है ।
    दुसरा यह है कि आपने फोटोग्राफ़ी उत्तम कोटि की है ।जिस भी छवि चित्र को देखते मन को भा सा जाता है ।सारे ब्लागो को पढकर ही आपके लेखन को थोडा बहुत जाना जा सकता है ।सब कुछ ठीक ठाक है ।हमारी शूभकामनाऐ आपके लेखन को।

  29. वर्षा नाल्मे अजमेर says:

    Disha mam ..आप मालवा की अन्जानी और छुपी हुई कला,संस्कृति ,और आस्था से सबको परिचित करवा रही हैं, हम मालवा वाले हृदय से आपका आभार एवं धन्यवाद प्रकट करते हैं ।????आपके ब्लोग पढ़ कर लगता हे हम आपके साथ घूम रहे हैं ?????????

  30. रजनीश भामौरिया पोलायकलां says:

    अद्भुत संग्रहण

  31. डॉ धरमजीत कौर वरिष्ठ पुराविद जयपुर says:

    बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है दिशा जी, कई दिनो बाद यौगनियों के बारे में सार्थक व उपयोगी सूचनाएं मिली.

    दिशा जी, योगिनी शिल्प पर मैं एक पुस्तक लिख रही हुं इस बारे आपसे बात करूंगी ???

  32. लक्ष्मीनारायण पयोधि, भोपाल says:

    अच्छा वृत्तांत है।इसमें वर्णित अनेक देवी-देवता भील जनजाति समूह के लोगों की आस्था के केन्द्र भी हैं।डॉ. कपिल तिवारी जी ने बहुत गहराई से सृष्टि और देवलोक की अवधारणा को स्पष्ट किया है।
    इसमें मैं केवल इतना जोड़ना चाहता हूँ कि शास्त्रों की रचना लोक मान्यताओं के अवलोकन और विवेचन के आधार पर हुई होगी,क्योंकि लोक मान्यताएँ मानव-सभ्यता के आरंभिक विकास के साथ ही धीरे-धीरे स्थापित होती चली गयी हैं।ये परंपरा के रूप में आगे बढ़ी हैं।शास्त्र इन्हीं मान्यताओं के परिष्कृत रूप हैं।यह भी कहा जा सकता है कि शास्त्र एक प्रकार से लोक मान्यताओं का कोडिफ़िकेशन हैं।यह काम चिंतक,अध्ययनशील और अन्वेषक ऋषियों ने किया है,जो बहुत बाद की स्थिति है।इसलिये यह सोचना एक बड़ी भूल होगी कि क्या वैदिक,शास्त्रीय, पौराणिक आदि देवी-देवता कम पड़ गये थे,जो लोक ने एक बड़े देवलोक की रचना कर ली? कपिल जी ने सही कहा है कि लोक आस्था के मूल केन्द्रबिंदु भी शिवशक्ति हैं।इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि लोक-आस्था और मान्यताएँ शास्त्रीय ज्ञान-परंपरा की अनुगामिनी नहीं हैं।
    आपका यह वृत्तांत और कपिलजी की बातचीत अत्यंत ज्ञानवर्द्धक है।आपकी जिज्ञासा,अन्वेषणशीलता और परिश्रम को प्रणाम!
    शुभकामनाएँ!

  33. पंडित गजानंद तिवारी says:

    बहुत सुन्दर आलेख

  34. नागर जी राजगढ़ says:

    बहुत ही शानदार प्रस्तुति आपके साथ मां भेंसवा महारानी की व्याख्या रोमांचित करनेवाली यात्रा रही बहुत साधुवाद

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