स्वर्णकारों की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्धि, 11 गाँवों का नामकरण क प्रथमाक्षर से, 75 प्रतिमाओं का संग्रहण, छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा, सूट बूट और हैट धारी अंग्रेज़ की प्रतिमा
विक्रमादित्य के अग्रज भृर्तहरि के भी यहाँ ध्यानस्थ होने के प्रसंग मिलते हैं। नारायण सिंह गुर्जर स्थानीय व्यक्ति हमें वहीं मिल गए थे उन्होंने करेड़ी के नामकरण के संबंध में एक और किंवदंती का उल्लेखन किया जिसके अंतर्गत सती के स्वर्णमयी कृणाभूषण के पतन के कारण करेड़ी वाली माता कनकावती माता कहलायीं और स्वर्णकारों की कुलदेवी के रूप में उनकी प्रसिद्धि हुईं इसीलिए नवरात्रि पर पंचमी के दिन शाजापुर जिले के रहवासी सोनी परिवार अत्याधिक मात्रा में यहां एकत्रित होकर माँ के अर्चावतार की अराधना करते हैं।नाथयोग साधना में हृदयपरम में जीवात्मा और मूलाधार कमल में कुल शक्ति विराजमान मानी गयी हैं यह बताते हुए वहीं खड़े शर्मा जी इस क्षेत्र को नौ नाथों में से एक काणेरीनाथ की एकान्तिक तपश्चर्या के कारण करेड़ी कहलाने का पक्ष भी जोड़ देते हैं।एक और अनूठा संयोग करेड़ी गाँव से आबद्ध है। इस गाँव के चतुर्दिक 11 गाँवों का नामकरण क प्रथमाक्षर का मिलता है जैसे करेड़ी, कनौदिया, कपेली, कनादी, करंज, कैथा, काकरिया, कतवारिया, कनासिया, कचनारिया और कालवा। कभी बावन तलैयों वाले इस परिक्षेत्र में 11 और 52 शुभांक माने गए हैं। ग्यारह गाँव के लोगों की आस्था का अतिरेक इसी से भाँपा जा सकता है कि ये लोग मंगल कार्यों की तिथि का निर्धारण हो या लगुन पत्रिका लिखवाने के लिए पंचांग का अनुसरण नहीं करते वरन वधुपक्ष गर्भगृह में देवी के समक्ष मन में तिथि का निर्धारण कर लेता है जिसे वह पुजारी को बाहर आकर बताता है। पुरोहित लगुन पत्रिका पर वही दिनांक डाल देता है जो वर पक्ष को भी मान्य हो जाती है । मुख्य गांव से लगभग 150 -200 मीटर दूर मंदिर प्रांगण में देवी को भक्तिपरक गीतों के माध्यम से पुकारती तरुणी व महिलाएं बहुत भली लग रही थीं , लोकनुभूतियां जब लोकमुख से निस्सृत होकर लोकमान्यताओं का डंका बजाएँ तो समझ लीजिये लोकग्राह्य लोकगीत आपके हृदय को भी संस्पर्श करने वाला है। हम वहीं बैठ गए।हमारे ठीक पीछे त्रैलोक्य दर्शाता एक प्रस्तर स्तम्भ था। जमुना बाई की पूजा सामग्री की दुकान ठेले पर उससे सटकर ही सजी हुई थी।नागकन्या की एक भग्नप्राय प्रतिमा तथा नागधारी गरुड़ प्रतिमा हमारे पीछे उत्कीर्ण थी।
विंध्य पर्वत श्रृंगों से आवृत्त इस स्थान पर प्रकृति की मंजुल क्रोड़ में लक्ष्मणा (लखुंदर) नदी के सन्निकट ऐसी प्रतीति हो रही थी मानो सारे चिन्मयी तत्व यहाँ एकसाथ घनीभूत हो गए हों । गांववाले बताते हैं कि श्री कृष्ण सखा सुदामा के साथ विद्यार्जन के समय मां कनकावती से आशीर्वाद प्राप्ति हेतु शरणागामी हुए थे। पाशुपत सम्प्रदाय और नाथ सम्प्रदाय के साधकों की तप साधनों से तपःपूतः तेजवंत यह त्रयोदशाधरी धरा हादिविद्या के आचार्य महर्षि दुर्वासा, हादिविद्या की ऋषिका भगवती लोपामुद्रा, परमाचार्य दत्तात्रेय की श्रीविधि सिद्धियों के अर्जन का भी स्थान रहा। हमें बताया गया कि यहाँ एक शिलालेख पर सम्वत 1055 लिखे शिलाक्षर प्राप्त हुए हैं पर अत्यधिक रंग रोगन के कारण यह अस्पष्ट है। गणपति की विशलित प्रतिमा, ब्रह्मा का मंदिर भग्नावस्था में और श्रीदेवी की प्रतिमा के परिसर के अन्य चिन्मयी आकर्षण थे । यहां एक सर्वव्यापक चेतन सत्ता का सदैव आभास होता रहा। महयोगियों और परम साधकों की अर्चा के कारण भी यहाँ के अणु -परमाणु जाग्रत प्रतीत होते रहे । शर्मा जी के अनुसार प्रतिवर्ष होलिका उत्सव के उपरांत रंगपंचमी के बाद पहले मंगलवार को यहाँ त्रिदिवसीय भव्य मेले का आयोजन होता है। परम देवी उपासक छत्रपति शिवाजी के भी इस मंदिर में दर्शनार्थ आने और स्वप्न में रजत किरीट चढ़ाने का वर्णन सुनी-सुनाई बातों में मिलता रहा । अपने कथन की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए गांववाले हमें बावड़ी की सीढ़ियों पर उत्कीर्ण एक प्रतिमा तक ले गए जिसमें एक अश्वारूढ़ प्रतिमा का शिल्पांकन था । ओम्कारेश्वर मंदिर के निकट स्थित यह प्रतिमा शिवाजी की हो भी सकती है और नहीं भी। हमें पशुपतिनाथ की भग्न प्रतिमा मंदिर के दायीं ओर संरक्षित रखीं 75 प्रतिमाओं में अवश्य दिखाई दी। नंदी की सुषुप्ति मुद्रा की ओर ध्यानाकर्षित करते हुए शर्मा जी ने पाशुपत दर्शन में साधना की व्यापार विधि क्राथन का उल्लेखन किया। उनके अनुसार सुषुप्त नंदी क्राथन साधना का प्रगटीकरण है। शर्मा जी चतुष्कोणीय, पंचकोणीय, षटकोणीय आदि जलहरियों व शिवलिंगो की विद्यमानता को यहाँ प्रणव की तांत्रिक साधना के मोक्ष बोध से जुड़ा बताते रहे ।हमारे सामने नाथयोग साधना के परम साधक मत्यसेन्द्रनाथ के पुत्र पद्मासन में समाधिस्थ थे जिन्हें मत्स्य युग्म के कारण मीननाथ पुकारा गया है। , राजसी परिधान में ध्यानचित्त अवस्था में विराजे राजा भृतृहरि की प्रतिमाओं की विद्यमानता करेड़ी में ऐसे ही नहीं है शर्माजी कर्ण के करेड़ी में स्वर्णदान की विद्या उत्सर्ग साधना में दक्ष होने और राजा विक्रमादित्य के उज्जयिनी आने तथा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाने साथ ही नाथपंथियों के पीठ व रुद्रावतार हनुमान की उपस्थिति को सम्रगता में देखे जाने की आवश्यकता बताते हुए करेड़ी को पर्यटन के मानचित्र पर लाये जाने पर बल देते रहे । विद्वानों का भी मत है कि महाकाल वन में देवाधिदेव महादेव की अनुज्ञा पाकर करेणीनाथ ने परम महाशक्ति की योग साधना की थी। भगवती के कृपाप्रभव से अनेक दुर्लभ सिद्धियाँ प्राप्त करने वाले नाथों की पीठ के अतिरिक्त यहाँ विस्तारित जानकाचार्य पार्शवनाथ और ध्यानस्थ गौतम बुद्ध की प्रतिमाएँ भी हैं। मन ने यही विचार आया कि हो न हो यहाँ कुंडलिनी शक्ति जागृत करने वाले शास्त्रोक्त उपायों में निष्णात करने वाले साधना केंद्र की अस्ति हो सकती है । प्राँगण में होल्कर राजवंश द्वारा माता कणकेश्वरी के पूजानुष्ठान हेतु नित्य राशि,अखंड ज्योत के लिए तेल और खेती के लिए जमीन उपलब्ध कराने के कारण यहाँ पुण्यश्लोका अहिल्याबाई की भी प्रतिमा स्थापित दिखी,रमल विद्या के सिद्धहस्त शाजापुर के भट्ट पुजारी यहां बरसों सावन की हरियाली अमावस्या पर आते रहे परकाया प्रवेश जानकर भट्ट पुजारी देवी के परमोपासक थे। शर्मा जी ने हमें बावड़ी की सीढ़ियों पर एक सूट बूट और हैट धारी अंग्रेज़ की प्रतिमा दिखाई और बताया कि एक अंग्रेज़ अधिकारी का पुत्र कहीं खो गया था। वह उसे खोजता रहता था। किसी ने उसे माँ कनकावती का माहात्म्य सुनाया। उसने देवी से मनौती माँगी और माँ की कृपा से उसे उसका बेटा मिल भी गया। बाद में वह अंग्रेज़ साधु स्वरूप में बरसों यहां रहा और तपस्वी बन गया। वर्तमान में एक और प्रसंग इसमें जोड़ दिया गया है। अँगरेज़ की प्रतिमा को बावड़ी की सीढ़ियों के अंतिम पायदान पर इसलिए उत्कीर्णन मिलता है क्योंकि ज्यों ज्यों बावड़ी का जल स्तर बढ़ता है त्यों त्यों अंग्रेज़ की प्रतिमा का स्नान कार्यक्रम संपन्न होता रहता है। एक युवा उत्साही बबलेश ने करेड़ी माता का महात्म्य गीत के माध्यम से सुनाकर हमें करेड़ी से विदा किया। जाने, माने इतिहासकार डॉ. प्रशांत पौराणिक से हमने उज्जैन जिले के करेड़ी और आगर मालवा जिले के नलखेड़ा माता मंदिरों के इतिहास सम्बन्धी जानकारियाँ उज्जैन जाकर प्राप्त कीं।
बहुत ही सुंदर विवरण और फोटोग्राफी?
दिशा तुम्हारी मेहनत से हमे भी काफी रोचक जनकारियां मिलती हैं।????
बढिया रिपोर्ट।कपिल जी का भाषण अद्भुत।वे हमारे
समय के लोक और शास्त्र के बड़े चिन्तकों मे से एक हैं।उनको सुनना हमारे लोक और शास्त्र की नई व्याख्या सुनना है।
बहुत ही अच्छा ,भाषा आपकी बहुत ही अच्छी और जानकारियाँ अद्भुत हैं बहुत सी बांते तो हमें भी नहीं ज्ञात थीं
सुप्रभात दीदी?आपकी कलम को नमन बहुत सुंदर ब्लॉग लिखा है। वर्णित सारे चित्र सजीव हो उठे हैं ।
शानदार कवरेज़ है,धन्यवाद आपका ?
Good collection.
अतिi उत्तम
Good work mam for three lok devi ??????????
बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने इस के माध्य्म से आगे की ओर जानकारी मिलती रहे
यही अभिलाषा है
जय माँ बगुलामुखी
जय महाकाल??
आपका बहुत अच्छा लगा मैडम
मैं नलखेड़ा वाली माता जी से पहले ही बहुत अभीभूत हूँ आपके आलेख ने मुझे बहुत प्रभावित किया है
दीदी अति सुन्दर वर्णन
बहुत सुंदर दीदी आपकी कलम को नमन है जय माता दी
Good morning, I have completed the lecture of kapil Ji. Excellent. Pl. Cover as much as photographs from all over the madhya pradesh and also tourist destination of your area. You are working for future. Cunningham surveyed like this before hundred years back. Now you are on the same line. Congratulations. Malwa area having good research material. Needs only researchers. Wakankar also doing such survey by foot. H v trivedi of also cover limited field . Please go ahead in your social study which will cover all field. I am behind your research and you are free to contact me at every stage of academic field. Once again jai chhathi maiya. Thanks.
हमको तो आपका काम एक नंबर का लगा बहुत बढ़िया
दृश्य बहुत अच्छे हैं। उज्जैन, राजगढ़ और शाजापुर की पुरानी यादें ताजा हो गईं।
मेङम जी आप ने जो हमारी माँ महाकाली करेङी वाली के बारे मे जानकारी दी उसके लिए आप को साधुवाद बहूत बधाई हो पहली बार शोध करके लिखा गया है करेड़ी के बारे में बहुत ही बढ़िया
अच्छी प्रस्तुति है…… सम्पूर्ण वृत में इतिहास के साथ धार्मिक, आध्यात्मिक एवं लोक-मान्यताओ को उजागर करने में स्थानीय लोगों की मान्यताओ को पुस्तकीय तत्त्व से क्षेत्र की प्राचीनता और सामाजिक अवधारणा का सुन्दर चित्रण है।
क्षेत्र की तीन देवियों की लोकास्था-लोक विश्वास की त्रिकोण यात्रा का विशेष अध्याय प्रस्तुत किया है।
चरैवेति चरैवेति…….? मंगलकामनाएं
आपकी यात्रा डायरी गांव,नगर,नदी,खेत -खलिहान , प्रकृति न सिर्फ क्षेत्र के भौगोलिक परिदृश्य से रूबरू कराती है।बल्कि क्षेत्र की पुरातात्विक, ऐतिहासिक,धर्मिक,सामाजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की समृद्धि से भी साक्षात्कार करवाती है। इसकी पुष्टि डायरी की सजीव दृष्यवली,अद्भुत मूर्तिशिल्प, वर्णित परंपराएं, लोकाचरण से भरापुरा सहचर देव लोक, डॉ कपिल तिवारी ,डॉ केदार नाथ शुक्ल जी, डॉ प्रतिभा दत्त चतुर्वेदी जी, डॉ ओ.पी. शर्मा, डॉ रमन सोलंकी जी, डॉ प्रशांत पौराणिक जी आदि विद्वानों के महत्वपूर्ण सारगर्भित साक्षात्कारों और श्री मनोहरलाल पंदाजी,श्री रामचन्द्र गायरी, पंडित श्री महेश नगर,श्री राजेश दीक्षित आदि की अभिभूत कर देने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों से होती है।
मालवा की मिठास घोलती मालवी के रसासिक्त संजा के लोकगीत,भोपी कृष्णा बई की संगत में भोपा भोलाराम की सारंगी के तारों से निसर्ग मनमोहक ध्वनि पर थिरकती लोक धुन से आबद्ध देवनारायण की फड़ गायकी, क्षेत्र को विशेष पहचान देती है ।
इस महत्वपूर्ण,सारगर्भित यात्रा डायरी के लिए बहुत बहुत बधाई।
बहुत ही अच्छा कवरेज मैडम बधाइयां??
दिशा बहुत ही अच्छा व्लॉग। हर बार की तरह सहज सरल भाषा का प्रयोग । गांव में बहुत सारे देवी देवता की पूजा की प्रथा और नाम पढ़कर बहुत सारी जानकारियां मिली। तुम इसी तरह घूमती रहो और सारा यात्रा वृतांत इसी प्रकार लिखो हमें पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगता है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम साक्षात उस गांव में ही घूम रहे हैं।
चरैवेति चरैवेति
मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति पर जनकार्य करने हेतु प्रख्यात श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने मालवा की करेड़ी माता, बगलामुखी, भैसवामाता सहित यहाँ के लोक के हृदय में बसे भैरव, शीतला, छींक, खोखुल, मोतीझरा, बैमाता, सहित लोकदेवता देवनारायण पर जो ब्लॉग बनाया है वह जमीनी तौर पर एक अमूल्य धरोहर है जो किसी भी एतद्विषयक शोध से कमतर नहीं है। उन्होंने स्थान विशेष पर जाकर वहाँ के पर्यावरण, ग्रामीण, परिवेश को गहरे से छुआ है। मध्यप्रदेश के लोक पर अभी तक जितना भी प्रकाशित हुआ है उसमें सोने में सुहागा वाली कहावत इस ब्लॉग में चरितार्थ होती है। प्रख्यात विद्वान कपिल तिवारी, केदारनाथ शुक्ल के वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार इस ब्लॉग को चार चाँद लगाते हैं। नलखेड़ा का वाममार्गी अवधारणा का देवीस्थल तथा लोक में शक्ति की अंगीकार वाली अवधारणा का क्रमिक विकास इस ब्लॉग का वैशिष्ट्य है। अनेक लोक विद्वानों, तांत्रिकों के मत ब्लॉग को पुष्टता प्रदान करते हैं। अनेक सुन्दर चित्रों से संयोजित इस ब्लॉग को पढ़कर सहज ही एक अनुपम ग्रन्थ की रचना की जा सकती है। यह दिशा जी की अथक मेहनत का फल है कि वे अकेली ही इस यात्रा में चरैवेति मंत्र को जीवंत कर रही हैं।
बहुत अच़्छा। आधार डॉ. कपिल तिवारी ने आगम से ही लिया है। लोक उससे भी परे है।
लोकास्था – लोकविश्वास मातृशक्ति धाम की त्रिकोण यात्रा
का आपने जो लालित्यपूर्ण शैली
में वर्णन किया है । वह अद्भुत है
ऐसा लगा जैसे ललित निबंध पड़
(सुन)रहें हों ।।
बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण ।
विद्वान अतिथि महोदय ने कितना
सहज व्याख्यायित किया गूढ़
तत्वों को । वाह वाह ।।
???????
आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा और बढती जा रही है साथ ही ये सवाल भी उठ रहाँ है कि कितना बडा केन्द्र किसी समय में रहा होगा ये स्थान वामपंथी तपस्या और तांत्रिक साधना का जिसके जीवंत प्रमाण आपके शोध में बहुत ही साफ देखा जा सकता है शायद इतना बड़ा केन्द्र पूरे अखण्ड भारत में नहीं होगा पर वो कैसे धीरे-धीरे समाप्त हो गया ये भी बहुत घना रहस्य है जो आपने चौंसठ योगीनी मंदिर के अवशेष, व भैरव के अवशेष आप ने खोजे है वो भी आज के समय में बहुत ही सराहनीय प्रयास है मुझे लगता है कि यदि सरकार इसे चाहे तो आज ये भारत का पुरी दुनिया के लिए एक बहुत ही बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है और देश व दुनिया के लिए ज्ञान विज्ञान को समझने मे भी सहायक होगा और भारत के गौरवशाली इतिहास को बताने मे भी सहायक होगा ।
बहुत ही सुंदर लेखनी है और आपके द्वारा हमें मां बगलामुखी मंदिर के दर्शन हुए इस बात के लिए बहुत आभारी है अगली लेखनी का इंतजार रहेगा ??
बहुत ही सुंदर लेखनी है बगुलामुखी जय महाकाल ?
हमने आपके पांचो ब्लाग पढ लिऐ है ।पढकर अच्छा लगा सबसे पहले दो बातो के लिऐ साधुवाद देना चाहुंगा ,पहला यह की आपने ज्यादातर शुद्व हिन्दी शब्दो को धाराप्रवाह प्रयोग किया है ।जो आपकी विदुता को दर्शाता है ।यह अच्छी बात है ।कि आप हिन्दी को अपने मुल स्वरूप में बहने देती है ।
दुसरा यह है कि आपने फोटोग्राफ़ी उत्तम कोटि की है ।जिस भी छवि चित्र को देखते मन को भा सा जाता है ।सारे ब्लागो को पढकर ही आपके लेखन को थोडा बहुत जाना जा सकता है ।सब कुछ ठीक ठाक है ।हमारी शूभकामनाऐ आपके लेखन को।
Disha mam ..आप मालवा की अन्जानी और छुपी हुई कला,संस्कृति ,और आस्था से सबको परिचित करवा रही हैं, हम मालवा वाले हृदय से आपका आभार एवं धन्यवाद प्रकट करते हैं ।????आपके ब्लोग पढ़ कर लगता हे हम आपके साथ घूम रहे हैं ?????????
अद्भुत संग्रहण
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है दिशा जी, कई दिनो बाद यौगनियों के बारे में सार्थक व उपयोगी सूचनाएं मिली.
दिशा जी, योगिनी शिल्प पर मैं एक पुस्तक लिख रही हुं इस बारे आपसे बात करूंगी ???
अच्छा वृत्तांत है।इसमें वर्णित अनेक देवी-देवता भील जनजाति समूह के लोगों की आस्था के केन्द्र भी हैं।डॉ. कपिल तिवारी जी ने बहुत गहराई से सृष्टि और देवलोक की अवधारणा को स्पष्ट किया है।
इसमें मैं केवल इतना जोड़ना चाहता हूँ कि शास्त्रों की रचना लोक मान्यताओं के अवलोकन और विवेचन के आधार पर हुई होगी,क्योंकि लोक मान्यताएँ मानव-सभ्यता के आरंभिक विकास के साथ ही धीरे-धीरे स्थापित होती चली गयी हैं।ये परंपरा के रूप में आगे बढ़ी हैं।शास्त्र इन्हीं मान्यताओं के परिष्कृत रूप हैं।यह भी कहा जा सकता है कि शास्त्र एक प्रकार से लोक मान्यताओं का कोडिफ़िकेशन हैं।यह काम चिंतक,अध्ययनशील और अन्वेषक ऋषियों ने किया है,जो बहुत बाद की स्थिति है।इसलिये यह सोचना एक बड़ी भूल होगी कि क्या वैदिक,शास्त्रीय, पौराणिक आदि देवी-देवता कम पड़ गये थे,जो लोक ने एक बड़े देवलोक की रचना कर ली? कपिल जी ने सही कहा है कि लोक आस्था के मूल केन्द्रबिंदु भी शिवशक्ति हैं।इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि लोक-आस्था और मान्यताएँ शास्त्रीय ज्ञान-परंपरा की अनुगामिनी नहीं हैं।
आपका यह वृत्तांत और कपिलजी की बातचीत अत्यंत ज्ञानवर्द्धक है।आपकी जिज्ञासा,अन्वेषणशीलता और परिश्रम को प्रणाम!
शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर आलेख
बहुत ही शानदार प्रस्तुति आपके साथ मां भेंसवा महारानी की व्याख्या रोमांचित करनेवाली यात्रा रही बहुत साधुवाद