तीर्थ की सात्विक शक्ति से सराबोर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

तीर्थ की सात्विक शक्ति से सराबोर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

तीर्थ की सात्विक शक्ति से सराबोर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर
तीर्थ की सात्विक शक्ति से सराबोर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर

निःसन्देह हम सभी का आंतरिक पक्ष है संस्कृति और बाह्य पक्ष सभ्यता। अनजाने सत्य को जानने की उत्कंठा ही हमारी स्वभावगत विशेषता है। संस्कृतियों और सभ्यताओं की विपुल निधि से तादात्म्य स्थापित करने की लालसा ही तो हमें यायावर बनाती है।
यात्रा का प्रारम्भ
सो इस बार लॉंग वीकेण्ड टूर के अन्तर्गत महाराष्ट्र स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में परिगणित दिव्य शिव तीर्थों की यात्रा का कार्यक्रम बना। श्री घृष्णेश्वर, श्री भीमाशंकर और श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिर्गों के परम मंगलमय, चिन्मय और अलौकिक स्वरूप की दर्शनाभिलाषा में हम यात्रा पर निकल पड़े। भोपाल से 518 कि.मी. दूर वेरूल अथवा एलोरा गांव में प्रतिष्ठित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को यात्रा के पहले पड़ाव के तौर पर चुना गया। 10 घण्टे की यात्रा का श्रीगणेश ऑडी से सुबह 7 बजे हुआ। सीहोर से देवास SH-18 राजमार्ग पर 100 कि.मी. की दूरी सुनिश्चित कर लेने पर मध्यप्रदेश पर्यटन का सुविधा सम्पन्न ‘मिडवे’ डोडी हाइवे रिट्रीट आया। आगे मुंबई-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग NH-52 पर 280 कि.मी. बढ़ने पर मध्यप्रदेश पर्यटन का मोटल खलघाट आता है जो डोडी की अपेक्षाकृत मिडवे सुविधाओं की दृष्टि से कमतर ही आंका जायेगा। बहरहाल राजमार्गों पर शौचालयों का अभाव अखरता है सभी सरकारों को महिला यात्रियों की अपरिहार्य परिस्थतियों को ध्यान में रखकर ही राजमार्गों का विकास करना चाहिए। अब आगे बाल समुन्द, सेंधवा, जमुनियां (बॉर्डर चैक प्वाइंट) पलासनेर और चालीसगांव एक के बाद एक नाम पट्टिकाएं आंखों के सामने आने और ओझल हो जाने का क्रम जारी रहा।

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भोपाल से वेरुल तक की यात्रा, खलघाट स्थित मिडवे, चालीसगाँव, शिवालय सरोवर

महाराष्ट्र में प्रविष्टि के साथ ही मन में विचार आया धन्य है महाराष्ट्र की पुनीत धरा, तीर्थों की सात्विक शक्ति से पूर्णतः आप्लुत। तीर्थ का शाब्दिक अर्थ ही है तारक। जरा सोचिए, समुद्धारक होना ही जिसकी अनुपमता का परिचायक हो इस दिव्य स्थान का महात्म्य सतत सौरभित तो होगा ही, इसी अनुभूति की प्रतीती के लिए तो हम महाराष्ट्र आये हैं। धुले से वेरूल SH-22 मार्ग कन्नड़ तक तो सीधा सपाट है लेकिन बाद में नयनाभिराम दृश्यावलियों से लैस होकर घुमावदार सहयाद्रि श्रंखलाओं के बीच से गुजारते हुए गंतव्य स्थल शाश्वत शिवधाम घृष्णेश्वर ले आता है।
शिवालय सरोवर और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर
अन्य श्रद्धालुओं की भांति हमारी तीर्थ यात्रा का प्रारम्भ शिवालय सरोवर के दर्शन से ही हुआ। औरंगाबाद-धूलिया मार्ग पर घृष्णेश्वर मंदिर के निकट शिवालय सरोवर स्थित है। पुण्य सरिता एल गंगा का जलप्रवाह भी मंदिर के समीप्य है। इस सरोवर में स्नानोपरान्त ही भग्वदुपासक आशुतोष भगवान शंकर के दर्शन के लिए अग्रसर होते हैं। जनश्रुतियों में इस सरोवर के प्रादुर्भाव को लेकर एक प्रसंग मिलता है जिसके अनुसार एल नामक राजा को सर्वांग कृमि श्राप से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाले गाय के खुर के आकार के कुण्ड को बाद में शिव सरोवर के रूप में प्रतिष्ठा मिली। परम शिवोपासिका महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने यहां 54 सीढ़ियां वाले घाट का निर्माण कराया था जिसका शिलालेख यहां दृष्टव्य भी है। आठ तीर्थों के समागम स्वरूप संरचित शिवालय सरोवर की हरी जल राशि के संबंध में स्थानीय जानकार श्री योगेश जोशी बताते हैं कृतियुग में इसके स्वर्ण, त्रेतायुग में रजत, द्वापरयुग में नीले और कलियुग में सर्पविच्छल आभा युक्त होने का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है।
देश के पवित्रतम तीर्थों में बारहवें रूद्रावतार के रूप में जिनका परिगणन हुआ है उन्हीं परात्पर सच्चिदानंद परमेश्वर शिव का प्राकट्य इसी दिव्य क्षेत्र में हुआ है। मंदिर के बाहर पूजा के उपादानों से सजी दूकानें हैं, उपासकों की भावभंगिमाओं को कैमरे में कैद करने को लालायित फोटोग्राफर्स हैं और है भगत्प्राप्ति की चाहना लिए उमड़ता जन सैलाब। केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मंदिर परिसर में कैमरे और मोबाइल ले जाने प्रतिबंधित हैं। खैर परिसर में प्रविष्ट होते ही नीम, पीपल, बड़ और औदुम्बर के घने वृक्ष दिखायी देते हैं इन्हीं वृक्षों की छाया में मंदिर में पौरोहित्य कर्म से संलग्न पुजारियों से भेंट हुई। यहां पर रसीद कटाने के बाद ही कृपा सिन्धु शिव की पूजार्चना और दर्शनावधि सुनिश्चित कर दी जाती है। मंदिर के उपाध्ये श्री केदार उमाकांत राव जोशी ने हमें बताया जलाभिषेक के 551 रू. (15 मिनट) रूद्राभिषेक विधान 1100 रू. (30 मिनट अवधि) महापूजा और रूद्राभिषेक पूजन पद्धति 2501 रू. (45 मिनट) और लघुरूद्राभिषेक विधान 11000 रू. (1 घण्टा समयावधि) निर्धारित किये गये हैं।

कल्याणकारी शिव का दिव्य निवास, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, देवी पार्वती और नंदीकेश्वर
कल्याणकारी शिव का दिव्य निवास, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, देवी पार्वती और नंदीकेश्वर

अद्वितीय शिल्प सौष्ठव दर्शाता भव्य मंदिर
खुले प्रांगण में कुछ कदम आगे बढ़ने पर कल्याणकारी शिव का दिव्य निवास है रक्तिम आभा युक्त अद्वितीय शिल्प सौष्ठव का परिचय देते इस मंदिर का निर्माण हेमाड़पंथी शैली में हुआ है। 13वीं सदी के आस-पास महाराष्ट्र में विकसी इस स्थापत्य कला के आविर्भाव का श्रेय देवगिरी के सेयोना यादवों के मंत्री हेमाडपन्त को जाता है, यह जानकारी हमें मंदिर के एक अन्य उपाध्ये श्री राजेन्द्र त्रंयबकराव कौशिके से प्राप्त हुई। कौशिके जी की बीस पीढ़ियां उदारशिरोमणि शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप की भक्ति भाव से सेवा में तत्पर रही हैं, उन्होंने बताया कि ज्वालामुखी निक्षेपों से निकले उद्गार से निर्मित बसाल्टिक शैल संरचनाओं से मंदिर का निर्माण हुआ है। ये बेसाल्टिक चट्टानें शिल्प अलंकरण के लिए अभीष्ट इसलिए समझी गयीं क्योंकि ये प्रारंभिक उत्खनन के समय नरम और पर्यावरण से सम्पर्क में आने के बाद कठोर स्वरूप ग्रहण कर लेने का वैशिष्ट्य लिये होती हैं। मंदिर आधी ऊंचाई तक तो इन्हीं शैल संचनाओं से निर्मित है। शेष अर्ध भाग अत्यधिक ताप पर पकायी गयी काले कलेवर वाली इंटों पर विशिष्ट लेपन से तैयार किया गया है। श्री कौशिके के अुनसार 250 X 185 फीट क्षेत्र में विस्तारित और 100 फीट 8 इंच ऊंचाई लिए मंदिर की भीतें चूना (लाइम), बेलफल, काली उड़द की दाल और चावल के माड़ वाली लेपन कला का प्रतिफल है। भविष्य के भूगर्भीय परिवर्तनों के अंदेशे को भांपकर शिलाखण्डों को ‘इन्टरलॉकिंग’ पद्धति से जोड़ा गया है जो तत्कालीन यादव काल की समृद्धशाली शिल्प परंपरा की ओर इंगित करती है। श्री कौशिके मंदिर का निर्माण काल 17वीं सदी का उत्तरार्ध बताते हैं मंदिर के पंचस्तरीय शिखर पर कलश के नीचे ब्रम्हसूत्र का निष्पादन, नासिका कहे जाने वाले अग्र भाग पर उत्कीर्ण वृषभ पर आसीन शिव-पार्वती और पृष्ठ भाग पर शिव परिवार वानराकृतियां व वृषभाकृतियां उत्कृष्ट शैल्पिक सृजनधर्मिता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। दशावतार, रामायण और महाभारत काल के नायकों का चित्रांकन मंदिर की भीतो पर शिल्पकारों की परिपक्व कलात्मकता दर्शाती हैं। चौबीस अलंकृत स्तम्भों पर निर्मित सभामण्डप और उसकी छत पर उत्कीर्ण 64 कमल कृतियों का अलंकरण मंदिर के सौन्दर्य को और विलक्षण बनाता है। एक और सत्य सामने आया कि मंदिर के 18 X 18 आकार के गर्भगृह में पूर्वाभिमुख ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा है जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। सम्भवतः यह रूद्रावतारों की स्थापना पूर्ति का संकेत है। मंदिर में की जाने वाली पूर्ण प्रदक्षिणा के नियम को भी इसी पृष्ठभूमि में देखा जाता है।
कुछ सीढ़ियां उतरने पर भूः, भुवः और स्वः अर्थात् भूमि, अंतरिक्ष और धुलोक में जो परिव्याप्त हैं घृष्णेश्वर उनके ज्योतिर्मय स्वरूप के दर्शन, स्तवन और संस्पर्श ने अन्तःकरण को भक्ति रस से सराबोर कर दिया। यहीं संगमरमर की श्वेत आभा में भगवती पार्वती अवस्थित हैं। ज्योतिर्लिंग पर अविरल टपकने वाली जलधारा वस्तुतः साधक पर ब्रम्हाण्ड से अवतरित चेतना की अमृतधारा बरसने का द्योतक है। गर्भगृह में अगाध आस्था, अटल विश्वास और अपरीमित मनोकामनाओं के ज्वार का प्राबल्य परमानंद की अनुभूति करा रहा था। यहीं श्री कौशिके जी ने बताया कि घृष्णेश्वर मंदिर पंच परमात्म तत्वों में अग्नि तत्व प्रधान है साथ ही मंदिर की निर्मिति भी आग्नेय कोण आधारित होने के कारण परिसर में अग्नि प्रज्वलन और हवन इत्यादि की अनुमति नहीं दी जाती। यही नहीं, मूलतः इसके इसी वैशिष्ट्य के दृष्टिगत प्रागंण के दक्षिण-पूर्व की प्राचीर मंदिर के नैकट्य स्थित है जबकि उत्तर पश्चिम प्राचीर खुले अहाते में मंदिर से विशेष दूरी पर बनी हुई है। मंदिर के विशिष्ट अंलकरणों से सुसज्जित स्तम्भों पर पंचमुखी हनुमान, नवग्रह और सप्तमात्रिकाओं के अतिरिक्त नागबंद और पौराणिक कथानायकों का उत्कीर्णन है।

हेमाड़पंथी शैली में निर्मित मंदिर
हेमाड़पंथी शैली में निर्मित मंदिर

पंच द्वार शाखा पर रूद्राक्ष की प्रतिकृतियां मंदिर के अप्रतिम सौंदर्य में श्री वृद्धि करती दृष्टिगोचर होती हैं। सर्वतोभद्र प्रवेश, वितान, शिखर, महामण्डप में विराजे विशालकाय नंदीकेश्वर और कच्छप हमें देहाभिमुख नहीं अपितु आत्माभिमुख बनने की प्रेरणा देते हैं। वार्तालाप के इस क्रम में अब तक एक और पुजारी श्री संतोष भगवानराव पैंठणकर भी सम्मिलित हो गये। उन्होंने घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रादुर्भाव की कथा की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सुधर्मा नामक तपोनिष्ठ ब्राह्मण की धर्मपत्नी सुदेहा ने संतानहीनता से व्यथित होकर अपनी बहन घुश्मा से तत्वज्ञ सुधर्मा का आग्रहपूर्वक विवाह करा दिया। समय बीतने पर घुश्मा पुत्रवती हुई। घुश्मा की संतानोत्पत्ति से ईर्श्याद्वेष के वशीभूत सुदेहा ने बालक का वध कर शव सरोवर में फेंक दिया। उसके इस घृणित कृत्य से कुपित शिव का प्राकट्य हुआ। वे ज्यों ही सुदेहा को मारने के लिए उद्यत हुए घुश्मा ने याचक भाव से उसे क्षमा करने की विनति की और लोक कल्याणर्थ सदा सर्वदा इस दिव्य क्षेत्र में स्थापित होने की याचना की। यों तो इस पवित्र स्थान पर ज्योतिर्लिंग के अविर्भाव की अनेक पौराणिक कथाएं वर्णित हैं लेकिन शिवपुराण में वर्णित यही कथा सर्वमान्य है। आदिदेव घुश्मा के अराध्य होने के कारण ज्योतिर्लिंग स्वरूप को घृष्णेश्वर की संज्ञा दी गयी। हांलाकि इस पवित्र ज्योतिर्लिंग को घृष्णेश्वर और कुंकुमेश्वर नामों से भी पुकारे जाने के पीछे समय-समय पर जनश्रुतियां विकसती रही हैं। बातें करते-करते हम मंदिर प्रांगण तक आ गये यहीं श्री योगेश जोशी ने एक रहस्योद्घाटन किया ऐसी मान्यता है कि प्रबल शिव उपासक छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी राजे भोंसले ने मंदिर का निर्माण सम्भवतः 15वीं सदी के उत्तरार्ध में कराया। अपने कथ्य की पुष्टि में वे दत्तों त्रिमल वाकनीस और बखर (मराठी भाषा में निबद्ध वंशावली कीर्ति गाथा) में उल्लेखित तथ्यों को व्याख्यायित करते हैं। इस संबंध में एक ‘शिलालेख’ भी मंदिर में उपलब्ध है जिसमें येकोजी जैतोजी भोंसले, दास मालोजी बाबाजी व विठोजी बाबाजी भोंसले और सेवक आऊजि गोंविन्द हनवत्या नाम उकेरे हुऐ हैं। 18वीं सदी में रचित विनायक बुआ टोपरे की पोथी में 33 अध्यायों में 6570 श्लोकों की सहायता से इस क्षेत्र विशेष की विविध नामावलियों का स्पष्टीकरण मिलता है जैसे कृतियुग में शिवालय, त्रेता युग में शिवस्थान, द्वापर युग में इलापुर और कलियुग में नागस्थान। समझा जाता है कि वेरूल के पटेल मालोजी ने सर्वप्रथम और बाद में परम शिवोपासिका अहिल्या बाई होल्कर ने मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्वार करवाया। वारूल को मराठी में बांबी कहते हैं इसलिये ये अनुमान लगाया गया कि पहले यह क्षेत्र नागाजाति बाहुल्य रहा होगा। वारूल से वेरूल और ऐलगंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण इसे येरूल पुकारा जाने लगा। जिसके अपभ्रंश स्वरूप एलोरा प्रचलन में आ गया। एक अन्य जनश्रुति ये भी है कि एल राजा की दो धर्मपत्नियां हुआ करती थीं एक घृष्णावती दूसरी मनकावती। घृष्णावती के नाम पर घृष्णेश्वर और मनकावती के नाम पर मनकेश्वर की स्थापना की गयी। विश्वदायी स्मारक एलोरा की 16 नं. गुफा में स्थित कैलाश मंदिर ही मनकेश्वर मंदिर के तौर पर विख्यात है घृष्णेश्वर मंदिर और भव्य मनकेश्वर मंदिर के एक ही रेखांश में होने के कारण भी ऐसे अनुमानों को बल मिला।

भोंसले कुल के स्मारक, मराठवाड़ा का विशुद्ध लोक जीवन
भोंसले कुल के स्मारक, मराठवाड़ा का विशुद्ध लोक जीवन

बहरहाल परिसर से बाहर निकलते ही तीन फारसी और मूरिश प्रभाव लिए समाधियां दिखायी दीं हमें बताया गया ये भोंसले कुल के स्मारक हैं।
दिवस का अवसान समीप था सृष्टि के सत्ताधीश तत्व के स्तवन ने हमें यह सोचने को विवश कर दिया था कि जिनके भय से सूर्य प्रतिदिन यथा समय उदित और अस्त होता हो, चन्द्र प्रतिपक्ष घटता-बढ़ता हो, वायु अविरल बहती हो, ऋतुएं यथावसर आविर्भूत होती हों, अभी कुछ देर पहले तक हम ऐसे परमतत्व के समक्ष ही तो थे, अब तक हम पूरी तरह कृतकृत्य हो चुके थे।
होटल ताज औरंगाबाद
लोकोत्तर आध्यात्म की आलौकिक छटा से साक्षात्कार के उपरान्त औरंगाबाद की ओर प्रस्थान किया। 30 मिनट की यात्रा के पश्चात् होटल ताज औरंगाबाद में रात्रिविश्राम का कार्यक्रम नियत था। देशी विदेशी सैलानियों में लोकप्रिय पारंपरिक और आकर्षक साज-सज्जा वाला यह होटल वैसे भी अपने राजसी आतिथ्य सत्कार के कारण विशेष रूप से चर्चित है। सुविधा सम्पन्न विशालकाय कक्षों से सटे खुले बरामदों में डले झूलों का आनंद लेकर महाराष्ट्र के शाकाहारी भोजन का रूख किया। वड़ापाव, भरली वांगी, भेंडी फ्राई, वरनदाल-भात खाकर विश्राम का समय आ गया।

आकर्षक साज-सज्जा वाला होटल ताज औरंगाबाद
आकर्षक साज-सज्जा वाला होटल ताज औरंगाबाद

रात गहरा रही थी और हम सोच रहे थे मराठवाड़ा के विशुद्ध लोक जीवन में यहां के गन्नों सरीकी मिठास रची-बसी है। असीम आत्मीयता और व्यक्तित्व में अत्यन्त लचीलापन जो इन्हें स्थितियों के उग्रप्रवाह के सामने भी झुकने और टूटने कहां देता है। निरी सादगी में भी वैभव का सराजाम जुटा लेना कोई भारतीय ग्रामीण संस्कृति से सीखे यही सोचते-सोचते आंख लग गई। इसलिए यात्रा को यहीं विराम देते हैं आगे अगले अंक में …

Comments

  1. Rajendra kumar malviya says:

    जय श्री घुश्मेश्वर भगवान की,बहुत ही भक्तिपूर्ण यात्रा वर्णन है भगवान का।

    1. Disha Avinash says:

      राजेन्द्र- आपको यात्रा विवरण सराहना योग्य लगा यही हमारे लिए उपलब्धि से कम नहीं

  2. Rahul says:

    बहुत ही मनोरम वर्णन,शब्दों का सटीक प्रयोग,मन में अलौकिक शान्ति जगाता है,जय हो भगवान घुश्मेश्वर की।

    1. Disha Avinash says:

      राहुल आप ने प्रतिक्रिया लिखी और यात्रा वृत्तान्त को पठनीय पाया इसके लिए धन्यवाद

  3. Sandeep Gour says:

    इस शानदार एवं अद्भुत वर्णन की जितनी प्रशंसा की जाए कम है,, बहुत बहुत बधाई,,,,

    1. Disha Avinash says:

      संदीप आपको ब्लाग की सामग्री ने प्रभावित किया और अापने प्रतिक्रिया लिख भेजी इसके लिए हम आपके आभारी हैं

  4. योगेश जोशी says:

    मैडम आपके पिछले यात्रावर्णन पढकर यह विश्वास तो था, कि घृष्णेश्वर यात्रावर्णन भी उसी अलंकृत आशय से युक्त होगा। आपके शब्द, वाक्य आशय,निश्चित ही प्रशंसनीय हैं। आपका लेखन,वर्णन शैली द्वारा हमें नए वेरूळ की पहचान हुई। सारी विषयवस्तुओ को छूते हुवे आपने ऐसा वेरूळ,घृष्णेश्वर हमारे सामने खडा किया कि शायद विनायकबुवा टोपरे जी के समय आप होतीं तो उनके समान पोथी आप बना देती। आपका वर्णन आने वाले यात्रियों के मन में घृष्णेश्वर के प्रति आदर भाव बढाने वाला है। आपसे पहले भी अभ्यासक आये यह सोचकर कि वेरूळ पर कुछ लिखेंगे । मगर जब विषयों का पिटारा खोल जाता तब विस्तार भय से वह ना लिख पाते न बाद में संपर्क करते। कम शब्दों में बहुत कुछ बता देना यह आपको निश्चित ही अभ्याससे प्राप्त हुवा है। मगर भगवत कृपा भी जरुरी है। मेरा मन कहता है शायद किसी जन्म का घृष्णेश्वर भगवान का आप पर ऋण है जो आप द्वारा इस जन्म में उतारा जा रहा है। और यह तो केवल एक संयोग है कि घृष्णेश्वर भगवान के मंदिर का जीर्णोद्धार जिस महान महाराणी ने 17 वीं शताब्दी में किया था वह भी आपकी ही मिट्टी से हैं।(हॉं तब प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश न होते हुये अलग था) और आज 21 वीं शताब्दी में आपने शब्दों द्वारा जो लिखा वह भी तो जीर्णोधार से कम नही है और आप दोनो का एक मिट्टी से होना केवल संयोग भी कैसे कहें………………………

    आप ऐसे ही लिखते रहें, अभी कैलास मंदिर और गुफायें आपकी राह देख रही हैं। हमारा नामोल्लेख करना यह आपकी उदारता है। धन्यवाद

    1. Disha Avinash says:

      योगेश जी आपकी प्रतिक्रिया ने भाव विह्वल कर दिया यह आपकी अति उदारता है कि आप ने मेरे लेखनकर्म को इतना सम्मान दिया,मुझे गर्व है कि मैं महारानी अहिल्या बाई होल्कर की पुण्य धरा से ही हूँ मैंने तो आप सभी महानुभावों के बताये ज्ञान के साथ न्याय करने का प्रयास किया है,आप को मेरा लेखन रूचिकर लगा इसके लिए तो घृष्णेश्वर जी का स्मरण और कृतज्ञता ज्ञापन करना होगा जिनके आर्शीवाद से ही यह सब संभव हो पाया,कैलाश और एलोरा गुफाएँ मेरी फ़ेहरिस्त में हैं देखिए कब कार्यक्रम बन जाए,आगे भी लिखते रहिएगा

  5. Vivekanand Gaur says:

    हर बार की तरह ही अतिसुन्दर विवरण । छोटी छोटी चीज़ों का बहुत अच्छा उल्लेख किया है। इस बात की भी खुशी है कि हम भी आडी प्रेमी हैं आौर ऐसी यात्रा करने को मिस करते हैं ।

    1. Disha Avinash says:

      विवेक जी सात समुन्दर पार जब आप ब्लाग की आध्यात्मिक सुवास को महसूसने की बात लिखते हैं तो ख़ुशी दुगनी हो जाती है।इसी तरह जुड़े रहिए

  6. Shailesh Tripathi says:

    फिर एक बार भगवान शिव के इस अदभुत स्वरुप का दर्शन लाभ देने के लिए आपको साधुवाद। आपके चमत्कारी लेखन का तो मैं कायल हूँ ही। जो यात्रा अनुभव से आप हमें अवगत कराती है वह बहुत ही उपयोगी साबित होता है। माँ शारदा की कृपा पात्र बनी रहे यही प्रार्थना करता हूँ।।।

    1. Disha Avinash says:

      त्रिपाठी जी,आपका पत्र मेरे हौंसलों को हर नई उड़ान के लिए एकदम तैयार कर देता है शब्दों में कितनी ताक़त होती है यह आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर लगता है

  7. archana PARASHAR says:

    अति सुन्दर।दिशा बहुत सुन्दर वर्णन किया है तुमने।शब्दों का चयन भी सटीक है।घृष्णेश्वर की सारी जानकारी तुम्हारे लेख में समाहित है उम्मीद करती हूँ ऐसे ही अच्छी अच्छी जगह की जानकारी तुम हैम लोगो को देती रहोगी

    1. Disha Avinash says:

      अर्चना तुम्हारी प्रतिक्रिया मेरी लेखनी को और अधिक पैंनी बनाने में कारगर साबित होगी अतिशय धन्यवाद

  8. कमल दुबे says:

    दिशा जी आपकी घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का वर्णन पढकर बहुत ख़ुशी हुई इसमे अपने अपनी लेखनी से हमें बहुत सी बातो की जानकारी दी है आपकी अगली लेखनी की प्रतीक्षा रहेगी |

    1. Disha Avinash says:

      कमल जी आप ब्लाग की आध्यात्मिक यात्राओं का आनंद सही मायनों में ले रहे हैं

  9. mradula Awasthy says:

    Bahut shandar varnan kiya pata chal gsya ki shivling kaise bana aur wahan par lokhi hui bhasha ke bare me bhi pata chal gaya eise hi jankariya tumhari taraph se ham logo ko milati rahenhi aur hamlog yatra kar lenge

    1. Disha Avinash says:

      मृदुला जी,आप मेरी आध्यात्मिक यात्राओं का मोड़ दर मोड़ रसास्वादन कर पा रहीं हैं अकेले नहीं बल्कि परिवार के साथ यह जानकर तो मन अति प्रसन्न हो गया,इसी तरह लिखते रहना

  10. deepak sharma says:

    सुंदरम
    आप की भाषा शैली को सत सत नमन। आज मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हो गया ।

    1. Disha Avinash says:

      दीपक जी हम सभी शिवमय हो जाएँ इसी में ब्लाग की सार्थकता है ।

  11. Ankita dubey says:

    अपने आपकी लेखनी से भगवान शिव जिनका आदि है न अंत है……. अपने आपके लेख में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग श्री भीमाशंकर और श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का वर्णन बहुत ही सुन्दर किया है मंदिर परिसर में एसे बहुत से स्थान है जिनका वर्णन अपने किया….. तथा साथ ही साथ अपने मंदिर से जुडी इतिहासिक बातो की जानकारी दी | [महारानी अहिल्या बाई होल्कर तथा शिवाजी महाराज के दादा मालोजी राजे भोंसले] के बारे में बताया….. यात्रा का लेख पढ़कर ऐसा लगा की मनो हम ने भी यात्रा की है आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा |….. नमामि देवी नर्मदे

    1. Disha Avinash says:

      अंकिता तुम ख़ुद बहुत अच्छा लिख लेती हो , तुमने एकोएक जानकारी का बारीकी से अध्ययन किया ,चिंतन किया,फिर प्रतिक्रिया लिखी ये मेरे लिए सुखद आश्चर्य है

  12. nitya dubey says:

    आपकी यात्रा का वर्णन बहुत अच्छा लगा और पढ़कर मन में ख़ुशी हुई | हर हर महादेव…..

    1. Disha Avinash says:

      नित्या तुम ने पढ़ाई से वक़्त निकालकर ब्लाग पढ़ा और फिर प्रतिक्रिया भी लिख डाली ये मुझे प्रभावित कर गया

  13. brajeshrajputbhopal@gmail.com says:

    बधाई दिशा, धार्मिक स्थलों का पर्यटन और उस पर इतना तथ्यात्मक लेखन अब कम ही पढने को मिलता है। भाषा कठिन है मगर पढने को उकसाती है। सरल और बाज़ारू भाषा से हटकर सुंदर और सारगर्भित भाषा का उपयोग आलेख में प्राण डाल देता है। मंदिरों का इतिहास और वर्तमान हालत पर बहुत बारीक निगाह की दाद देता हूँ। यूँ ही लिखते रहो और तारने वाले स्थलों की यात्राएँ कराते रहो। धन्यवाद
    ब्रजेश राजपूत

    1. Disha Avinash says:

      ब्रजेश आपने बेहद सधी प्रतिक्रिया देकर भावविभोर कर दिया हिन्दी को भी तो सशक्त बनाना ही है हम सभी को,कुछ शब्द तो वक़्त के साथ कहीं गुम हो गये हैं,यात्राएँ आपके मन को स्पर्श कर पा रहीं हैं मेरे लिए उतना ही काफ़ी है

  14. deepak sharma says:

    बहुत ही सूक्ष्म जानकारी इतनी अच्छी भाषा में।ये भी शिव आराधना का अपने आप में एक अनूठा तरीका हे।। बधाई

    1. Disha Avinash says:

      दीपक जी ,प्रत्युत्तर के लिए अनेकानेक धन्यवाद

  15. Dr Sanjay Sharma says:

    प्रिय दिशाजी,

    आध्यात्मिक यात्रा के लिए आपकाअभिनंदन. पूरा व्रतानत पढ़ कर ऐसा प्रतीत हुआ की मैं स्वयं यात्रा पर हूँ. अद्भुत लेखनी एवं भाषा पर ग़ज़ब का नियंत्रण.

    आपको साधुवाद

    संजय शर्मा
    प्राध्यापक

    1. Disha Avinash says:

      शर्मा जी, आप ने ब्लाग पढ़कर पहली बार प्रतिक्रिया दी है आप का स्वागत है द रोड डायरीज़ परिवार में ,ब्लाग की सराहना के लिए अतिशय धन्यवाद

  16. Kamal Maheshwari says:

    धुले से वेरुल sh- 22 सीधा, बाद में घुमावदार
    यात्रा प्रारंभ सरोवर दर्शन से
    अहिल्या बाई द्वारा 54 सीढ़ियों का घाट
    12 रूद्र अवतार के रूप में परिणित
    हेमडपंथी शैली
    24 अलंकृत स्तंभो पर निर्मित सभामंडपो पर 64 कमल कृतियां
    सुधर्मा की कथा
    एलोरा का भिन्न भिन्न अपभ्रंश से साकार होना
    आपकी पूर्व यात्रा ब्रतान्त की इसमें नाम मात्र की झलक हे।आपको यात्रा ब्रतान्त रोचक मनोहर हे बहुत सुंदर वर्णन है सुभकामनामो के साथ जय हिंद।

    1. Disha Avinash says:

      कमल आपने जितनी शिद्दत के साथ ब्लाग की सामग्री का अध्ययन,मनन किया वह अतुलनीय है प्रतिक्रिया भी उतनी ही गहराई के साथ लिखी गई है ढेर सारा धन्यवाद

  17. घृष्णेश्वर यात्रा वृतांत चितचोर बन पड़ा है।
    दिशा जी जब आप मन से माननीय प्रभु की सत्ता का बखान करतीं हैं तो लोलुपता और संकीर्णता में निबद्ध स्वयंभू माननीयों की दुनिया लघुतर होती जाती है।इस यात्रा में प्रकृति अपने शाश्वत सौंदर्य के साथ सहयात्रि है तो श्रुतियाँ ,कथ्य और तथ्य अपने होने में संग साथ चलते हैं….
    अंतस में स्थिर अक्षांश पर बैठी चेतना यात्राओं के दौरान देशांतर परिवर्तित करती रहती है।जीवन में हर वय में यात्री का अनुभव भिन्न होता है।आपका वृतांत घुमक्कड़,घुमन्तु और यात्रियों सभी के लिए जिज्ञासा पखारता बढ़ता है।
    भाषा का परिष्कार सम्पूर्ण यात्रा में अध्येता बनाए रखता है।
    सुन्दर है डायरी का ये पन्ना…

    1. Disha Avinash says:

      पद्म तुम्हारी भाषा भी दमदार है और अंदाज भी जुदा ,मेरे ब्लाग के आलेख को तुमने पूरी तन्मयता के साथ बाँचा ,फिर महसूसा और गंभीरता के साथ न्याय किया जो क़ाबिले तारीफ़ है

  18. NISHANT VYAS says:

    श्रेष्ठ व्रत्तांत के साथ उत्क्रष्ठ छायाचित्रों द्वारा मंदिर भव्यता, कलात्मकता एवं भगवान श्री घ्रष्णेश्वर के साक्षात् दर्शन प्राप्त हुए।
    धन्यवाद।

    1. Disha Avinash says:

      निशान्त ब्लाग पढ़कर प्रतिक्रिया भेजने और सराहना करने के लिये ह्रदय से धन्यवाद ,ब्लाग से जुड़े रहो

  19. Shilpa.gaur says:

    अति सुन्दर भाव पूर्ण वर्णन किया है आपने।आपके अंक से हमें अपने देश के मंदिरों के इतिहास के साथ -साथ वहां की लोक कलाओं के बारे में जानकारी मिलती है।आपके द्वारा प्रस्तुत चित्र लेख में चार चांद लगा देते हैं ।अद्भुत लेखन और शब्दों का बहुत सुंदर समन्वय ..हार्दिक शुभकामनाओं के साथ एक अगली अलौकिक यात्रा का इंतजार।

    1. Disha Avinash says:

      शिल्पा तुमने ब्लाग की प्रशंसा की,उसके आध्यात्मिक पक्ष की गहन अनुभूति की बहुत धन्यवाद

  20. Riya Malviya says:

    आपने अपनी इस यात्रा का भी इतना सुदंर वर्णन किया है। फिर से भगवान शिव के इस अदभुत स्वरुप का दर्शन लाभ देने के लिए धन्यवाद आपका लेखन तो बहुत कमाल होता हैं पढ़कर आनंद आता हैं। जो यात्रा अनुभव से आप हमें अवगत कराती है वह बहुत ही मनोहारी लगता हैं। घुमेश्वर भगवान की यात्रा का भी बहुत अच्छा उल्लेख किया हैं आपने। तथा साथ ही साथ अपने मंदिर से जुडी इतिहासिक बातो की जानकारी दी |यात्रा का लेख पढ़कर ऐसा लगा की मनो हम ने भी यात्रा की है आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा।
    रिया मालवीय

    1. Disha Avinash says:

      रिया तुम्हें घृष्णेश्वर मंदिर के ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों पहलुओं के संबंध में ईश्वर कृपा से मेरी लेखनी के माध्यम से जानकारी हासिल हो पाई तो मेरा परिश्रम सफल हो गया।

  21. Dharmendra Malviy says:

    आप के द्वारा बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है । आने वाले समय में ऐसे ही और भी वृत्तांत की आप से अपेक्षा रहेगी ।

    1. Disha Avinash says:

      धर्मेन्द्र आपने प्रतिक्रिया लिखी इसके लिए धन्यवाद

  22. श्री राजेन्द्र त्रंयबकराव कौशिके says:

    आपका आलेख अभ्यासपूर्ण है,आप पर माँ सरस्वती की कृपा है ,लेख में इतिहास और संस्कृति का समन्वय है जो अद्भुत है कुछ पहलू एेसे हैं जिनका होना ज़रूरी है ऐसा मैं सोचता हूँ हिन्दू शास्त्रों में आध्यात्मिक संकल्पना में ९ का विशेष महत्व है जैसे मानवीय शरीर का संचालन भी ९ छिद्रों द्वारा ही होता है अब ९ का मूलांक ३ होता है इसलिए ज्योतिर्लिंग भी १+२=३ हैं,गणेश जी के स्थान भी २+१=३ ही हैं जगत में ब्रम्हा,विष्णु,महेश तीन देवता हैं,ब्रम्हाजी जगत के निर्माणकर्ता हैं,विष्णुजी पालनकर्ता हैं,शिवजी संहारकर्ता होने के कारण मोक्षदायक है इसीलिए बिल्ब पत्रों में भी ३ दल हैं,गणेश जी की दूर्वा भी ३ ही है,३ संख्या का मूलांक १ होता है अत:ईश्वर एक ही है
    एक और बात जो महत्वपूर्ण है १२ में से ११ ज्योतिर्लिंग उत्तराभिमुख हैं अकेले घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग ही पूर्वाभिमुख है अब चूँकि उत्तर दिशा हिन्दू धर्म के अनुसार मोक्ष की दिशा है और उत्तर में कैलाश पर्वत प्रत्यक्ष शिव का निवास स्थान है इसलिए १२ वाँ ज्येार्तिलिंग घृष्णेश्वर पूर्ण ज्योर्तिलिंग कहलाता है
    श्री राजेन्द्र त्रंयबकराव कौशिके

    1. Disha Avinash says:

      राजेन्द्र जी,सर्वप्रथम चरण स्पर्श,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन गदगदायमान हो गया ,मैं तो निमित्त मात्र हूँ सब शिव जी की कृपा है आपने जो जानकारी भेजी हैं वे अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं तकनीकी बाध्यता है वरना मैं इन्हें आलेख में ही सम्मिलित करती , पर मेरे लिये ये अमूल्य निधि है । आपने अपना समय निकालकर ज्ञान वर्धन किया इसके लिए ह्रदय से आभार व्यक्त कर रही हूँ
      राजेन्द्र जी आप जैसे मर्मज्ञों से मिलकर मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला मेरी जानने की उत्कंठा और आपके ज्ञान के अतिरेक के कारण ही हम पाठकों को कुछ नया परोस पाये

  23. संतोष भगवानराव पैठनकर says:

    दिशा जी नमस्कार .
    आपका ब्लॉग पढ के आपके शब्दों को शिव पूजन में शिव को समर्पित बिल्वद्ल का आभास होता है .
    जिस प्रेरणा से शिवभक्त बिल्वद्ल समर्पित करता है उसी प्रकार का भाव
    मन मे रखकर आपने शब्दों की रचना की है और ये एहसास होता है शिव जी का आशीर्वाद आप के साथ है और सदा रहेगा. इसी प्रकार आपके और आप के परिवार पर शिवकृपा बनी रहे यह कामना करते हुवे अपने छोटे से अभिप्राय का समापन करता हूँ
    संतोष भगवानराव पैठनकर

    1. Disha Avinash says:

      संतोष जी अतिशय धन्यवाद आपकी अति उदारता है जो आपने मेरे लेखन कर्म को बिल्ब पत्र के समकक्ष समझा ,ये तो राजेन्द्र जी और आप जैसे मनीषियों की संचित ज्ञानोपासना है जो मैं लिख पाई,मैं तो सिर्फ़ माध्यम भर हूँ,फिर भी आपको मनमाफिक लगा इसकी मुझे ख़ुशी है

  24. Sapna Gupta says:

    Gazab ka varnan……aap bahut achcha likhti hain……यूँ ही लिखती रहें और हमारा मनोरंजन करते रहिए

    1. Disha Avinash says:

      सपना दिल ख़ुश कर दिया ,आप की प्रतिक्रिया हमें और अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती रहेगी आगे भी जुड़े रहिएगा इसी तरह।

  25. Archana Tiwari says:

    Disha har bar ki tarah is bar bhi tumhari lekhani ne bahut prabhavit Kiya tum yatra vratant me un shabdo ka istemal karte ho jo Aaj kal prayah lupt hote ja rahe hai tumhari is road dairies se judkar hamare sanatan dharmik jyotirlingo ke bare me vistrat ghud atihasik jankari padhne ko milti hai ghrasneswar jyotirling ke purvabhimukh hone v aaspass ke shilalekho ke mahatav purn jankari dene ke liye bahut bahut dhanywad agle yatra vratant ka intazar rahega

    1. Disha Avinash says:

      अर्चना तुमने व्यस्तता में भी समय निकाल कर प्रतिक्रिया लिखी ये मुझे प्रभावित कर गया फिर हिन्दी के वाक्य विन्यास की प्रशंसा,और मंदिर पुरातात्विक महत्व को सराहने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद

  26. Birendra kumar singh says:

    आप का नया ब्लाग घृषमेश्वर जो कि भगवान शिव के बारह ज्योतिलिंग में से एक हैं कि यात्रा का अति मनमोहक एवं शोधित वर्णन पढ़कर अति प्रसन्नता हुई आप ने जिस प्रकार से भगवान घृष्मेश्वर का औलौकिक वर्णन ही नहीँ वरन् मन्दिर का वास्तुपरक वर्णनँ तथ ऐतिहासिक पृष्टभूमि का तथ्यात्मक उल्लेख आने वाले संततीयो के लिए एक अमूल्य थाती होगी।महाराष्ट्र के लिए ये बड़े ही गौरव की बात हैं कि बारह ज्योर्तिलिंग में से तीन महाराष्ट्र में ही स्थित हैं।और मध्य प्रदेश का और सौभाग्य हैं कि महारानी होल्कर ने सभी ज्योतिर्लिंगो को सजाया और पुर्नउद्धार किया जिसमें भगवान घुषमेश्वर भी शामिल हैं।जो कि आप के शोध से सिद्ध होता हैं । आगे और नए ब्लाग की उत्सुकता बनी रहेगी

    1. Disha Avinash says:

      वीरेन्द्र जी आप बनारस की धरती पर पले बढ़े हैं संभवत:इसीलिए हिन्दी की मिठास को महसूस कर पाये लेख को मन लगाकर पढ़ने के लिए और फिर प्रतिक्रिया लिखने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया

  27. सुरेश अवस्थी says:

    घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का वर्णन अत्यन्त सजीव बन पड़ा है। मुझे तो ऐसा लगा कि घर बैठे ही भगवान शिव के इस रूप के दर्शन हो गए।
    पुजारियों से बातचीत के आधार पर दिया गया विवरण कितना प्रामाणिक है यह तो जानकार ही बता सकेंगे लेकिन इतना तय है कि यह बहुत रोचक और प्रवाहपूर्ण है।
    हाँ मुझे यह भी लगा कि कार और होटल का नाम देने की कोई ज़रूरत नहीं थी।
    आलेख की भाषा कुछ क्लिष्ट सी लगी।सरल भाषा का प्रयोग हो तो और अधिक पाठक आनंद ले सकेंगे।
    चित्र भी बहुत सुन्दर लगे।
    सुरेश अवस्थी

    1. Disha Avinash says:

      अवस्थी जी ,आपकी प्रतिक्रिया से मुझे इतनी संतुष्टि तो हुई कि आप यात्रा वृत्तान्त के हर पहलू का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं हिन्दी को खोई हुई प्रतिष्ठा दिलाने और ब्लाग को अन्तर्राष्ट्रीय छवि दिलाने के लिए आडी का प्रयोग किया गया है ब्लाग दो भाषाओं में है अंग्रेज़ी संस्करण मैं होटलों और जर्मनी आडी में भेजकर अपने आध्यात्मिक चिंतन को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का उपक्रम कर रही हूँ जितने लोग जुड़ेंगे उतनी ही लोकप्रियता भी बढ़ेगी।ब्लाग से जुड़े रहने के लिए विशेष आभार

  28. Mahesh Chouksey says:

    Mahesh Chouksey says:
    OCTOBER 21, 2016
    ज्योतिर्लिंग यात्रा का इतना बेजोड़ वर्णन और क्या हो सकता है ! अशांत मन को शांति की गहन अनुभूति प्राप्त हुई, इसलिए मैंने इस यात्रा व्रतांत को कई बार पढ़ा, सुप्त मन में सोए पड़े भगवान शिव खड़े होकर मेरे जागृत मन पर छा गए, इस यात्रा वृतांत को पढ़कर लगा कि मैं खुद भगवान शिव की इस यात्रा में शामिल हूं , धन्यवाद आपका जो आपने यात्रा का इतना मोहक वर्णन कर हमारे मन पर एक अमिट छाप छोड़ दी है ।आगे की यात्रा के वृतांत के लिए प्रतीक्षारत ।

    1. Disha Avinash says:

      महेश ब्लाग को बार – बार पढ़ने और उसमें दी सामग्री को पठनयोग्य पाने के लिए आपका बार-बार धन्यवाद आगे भी हमारी आध्यात्मिक यात्रा वृत्तान्त को पढ़ते रहिए

  29. sanjay shrivastava says:

    disha ji aapki lekhni evam prastutikaran ke to hum pahle se hi kaayal rahe hain aur ye jaankar harsh ki anubhuti ho rahi hai ki wahi mizaj aaj bhi kaayam hai, jo kabhi dainik bhaskar athwa doordarshan ki script writing ke dauran hua karta tha. uprokth samast vrittant hriday sparshee hain aur khoobsurat photographs ne unnhen mano jeevant kar diya hai. mahsoos ho raha hai ki hum saakshat un sthalon par upasthit hain. na sirf dhaarmik pahluon ko aapne sundarta se varnit kiya hai,balki un jagahonn ki kala-sanskriti ko bhi saamne rakha hai. sundar prastutikaran ke liye aap badhaaee ki paatra hain. prateeksha rahegi aane waale samay me aise hi kuchh aur vrittanton ki.

    1. Disha Avinash says:

      संजय लंबे अतंराल के बाद सुखद आश्चर्य हुआ आपकी प्रतिक्रिया पाकर,रचनाकर्म के दिन याद आ गए ,यात्रा वृत्तान्त आपकी रूचिनुरूप है यह जानकर दिली सुकून मिला ,अब ब्लाग से जुड़े रहना हम पढ़ने लिखने वालों को परस्पर जुड़े रहना चाहिए बहुत धन्यवाद

  30. Anil Mudgal says:

    Gazab ki likhti ho …….aise hi likho khoob aage badho

    1. Disha Avinash says:

      अनिल जी ढेर सारा धन्यवाद ब्लाग से जुड़े रहिए

  31. पद्मा मिश्रा says:

    Bahut sudar…

    1. Disha Avinash says:

      पद्मा,तुमने ब्लाग पढ़ा और प्रतिक्रिया लिखी मेरे लिए यह बहुत मायने रखता है

  32. Amit Sinha says:

    आपका यह यात्रा वृतांत भीअद्भुत है। आपकी भाषा , इतिहास की जानकारी, संस्कृति की पैठ, साथ में अध्यात्म की चाशनी में डूबी कलम, ताजा सुगंधित बयार के साथ प्रकृति की गोद में बैठा मन अंनतिम ऊंचाईयों की ओर ले जाता है। मुझे आश्चर्य होता है कि आप कैसे इन सबको आत्मसात कर पाती हैं।
    यह पूरा वृतांत जीवंत लगता है। जैसे किसी आध्यात्मिक ट्रेन में बैठकर यात्रा पर निकल चले हों।

    1. Disha Avinash says:

      अमित जी आपको रेल सफ़र का अहसास हुआ मेरे लेखन से,ये जानकर प्रसन्नता हुई , इसलिए भी कि हम सभी रेलगाड़ी के डिब्बे में चढ़कर वाक़ई एक साथ यात्रा कर रहे हैं ऐसा ही लग रहा है ,सारे पाठक सहयात्री बनकर आध्यात्मिक यात्रा में सम्मिलित हैं,यह बात आपकी सौ फ़ीसदी सही है अभी कई स्टेशन आएँगे रास्ते में साथ नहीं छोड़िएगा ब्लाग से आपका जुड़ाव हमारे लिए महत्वपूर्ण है।

  33. Sangeeta Tripathi says:

    दिशा ….
    अति रोमांचक यात्रा का वर्णन….साथ ही तुम्हारी लेखन प्रस्तुति और भाषा का तो जवाब ही नही । घर बैठे ही स्वयं यात्रा का अनुभव करने लगती हूँ ।
    तुम ऐसे ही लिखती रहो ….और हम यात्रा का आनंद लेते रहे ।
    शुभकामनाओं के साथ….

    संगीता

    1. Disha Avinash says:

      संगीता तुमने ब्लाग की प्रशंसा की,यात्रा का भरपूर आनंद लिया मुझे अगले आलेख को और कसावट के साथ प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करेगी तुम्हारी प्रतिक्रिया ,यूँ ही जुड़े रहना धन्यवाद

  34. Varsha says:

    Disha yatra ka bahut hi umda varnan.bahut hi satik shabdo ka prayog kiya.varnan padhkar aisa laga mano hame bhi darshan ho gaye.

    1. Disha Avinash says:

      वर्षा महाराष्ट्र की धरती से जब तुम यात्रा वृत्तान्त की सराहना करती हो तो मन और प्रफुल्लित हो जाता है,अभी हम महाराष्ट्र के ज्योतिर्लिंगों पर ही ब्लाग में सामग्री पोस्ट कर रहें हैं इसलिए जुड़े रहना इसी तरह ,अनेकानेक धन्यवाद।

  35. अनुमिता पटेल says:

    कम भले हो तन का श्रायतन , प्यार का घनत्व कम न हो….!!
    लाख मुश्किलें हो राह में , शब्द का *शिवत्व*कम न हो…!!

    यह यात्रा वृताँन्त पूर्व के यात्रा विवरणो से ज्यादा रोचक सामग्री…अनसुनी कथाओं से मनोरंजक बन पड़ा हैं..।
    शिवालय सरोवर और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर का सजीव चित्रण किया हैं….अहिल्या बाई होलकर का नाम आते ही एक अपनापन सा लगता हैं… अहिल्या बाई द्वारा 54 सीढ़ियों का घाट
    अद्वितीय शिल्प सौष्ठव दर्शाता भव्य मंदिर
    12 रूद्र अवतार के रूप में परिणित
    हेमाडपंथी शैली..यह शैली प्रथम वार सुनी…
    24 अलंकृत स्तंभो पर निर्मित सभामंडपो पर 64 कमल कृतियां
    सुधर्मा की कथा
    एलोरा का भिन्न भिन्न अपभ्रंश से साकार होना
    अशांत मन को शांति की गहन अनुभूति प्राप्त हुई, इसलिए मैंने इस यात्रा वृतांत को कई बार पढ़ा, सुप्त मन में सोए पड़े भगवान शिव खड़े होकर मेरे जागृत मन पर छा गए,….

    चरेवैति…चरेवैति…..

    1. Disha Avinash says:

      अनुमिता तुमने आध्यात्मिक यात्रा की विवेचना विश्लेषणा बहुत ही प्रभावी तरीक़े से की है तुम ने आलेख को बारम्बार पढ़ा और तुम्हें शिवत्व की अनुभूति हुई मैं अभिभूत हूँ श्री घुश्मेश्वर की कृपा हम सभी पर वनी रहे,धन्यवाद

  36. Neeta Deo harne says:

    Wah disha varnan bahut hi sundar aur shandar hai. Tumne bahut sundar shabdo ka prayog kiya hai. Aise hi likhate raho. Shubhkamnao ke sath
    Neeta deo harne

    1. Disha Avinash says:

      नीता गुजरात की धरती से जब तुम महाराष्ट्र स्थित शिवधामों के महत्व को आत्मसात कर पाती हो तो मुझे आत्मिक संतुष्टि मिलती है धन्यवाद

  37. विनय मिश्रा says:

    दिशा एक बार तुमने फिर शानदार लेख लिखा। उम्मीद है सफर आगे भी जारी रहेगा।

    1. Disha Avinash says:

      विनय तुम यात्रा वृत्तान्त में रूचि ले रहे हो मेरे लिए यही महत्व रखता है इसी तरह जुड़े रहना

  38. Pandit Anand Shankar vyas says:

    दिशा नि:सन्देह तुम्हारी लेखनी पर बड़े गणपति की कृपा है मैं साठ साल पहले घृष्णेश्वर गया था अब चलने फिरने में दिक़्क़त होने लगी है इसलिए यात्राएँ करना मुश्किल हो गया है तुमने अपने आलेख से पुर्नजागृति का काम कर दिया ,मैं लेख में दिए मंदिर के पुरातात्विक महत्व,पंरपरा और आध्यात्मिक दर्शन के सजीव चित्रण से बहुत प्रभावित हुआ हूँ । इससे पहले के लेखों में प्रकृति की मनोरम दृश्यावलियों का जैसा मनोहारी प्रस्तुतीकरण किया गया वैसा इसमें नहीं दिखा ,प्रकृति में ही तो परमात्मा का वास होता है अत:प्रकृति को विस्मृत नहीं किया जा सकता ,एलोरा की गुफाएँ भी यदि लेख में सम्मिलित की जातीं तो ब्लाग की सुन्दरता में और अभिवृद्धि हो जाती ।तस्वीरें बेहद आकर्षक हैं,मुझे तुमने ६० साल पहले के घृष्णेश्वर मंदिर की याद ताज़ा करा दी ,उन दिनों में मुझे वहाँ शाकाहारी भोजन ढूँढने में बहुत असुविधा हुई थी तुम्हारे लेख से यह पता चल गया कि अब परेशानी नहीं आयेगी,होटल भी बड़े और सुविधाजनक खुल गये हैं ,अब तो घृष्णेश्वर जी के दर्शन का मन होने लगा है मुझ जैसे वृद्ध लोंगो को यूँ ही सड़क के ज़रिए यात्राएँ कराते रहो तुम्हारी यात्राएँ शुभ हो । मेरा आर्शीवाद तुम्हारे साथ है ।

    1. Disha Avinash says:

      व्यास जी ,चरण स्पर्श आप जैसे विद्वान धर्म मनीषी की प्रतिक्रिया पाकर मन अति भावुक हो गया , आपके यह लिख देने भर से कि आपको आलेख में प्रकाशित सामग्री उच्चस्तरीय लगीं मन परम संतुष्ट हो गया , रहा सवाल प्रकृति चित्रण का तो पचास-साठ पहले के पहाड़ी रास्ते सम्भवत:और अधिक वनाच्छादित और विलक्षण दिखाई देते होंगे लेकिन विकास की प्रक्रिया में वर्तमान में प्रकृति ने भी समर्पण कर दिया लगता है ,हाँ शहर में खाने -ठहरने की व्यवस्था अच्छी है,आप ज़रूर होकर आइए,यहाँ की सकारात्मक ऊर्जा गहराई से प्रभावित करती है,एलोरा की गुफाएँ आगे के अंक में प्रकाशित करूँगी ,आपको दो अन्य आलेख भी ब्लाग के सुरूचिपूर्ण लगे यह जानकर परिश्रम व्यर्थ नहीं गया ऐसी अनुभूति हुई ,मैं किस प्रकार आपका कृतज्ञता ज्ञापन करूँ नहीं समझ पा रहीं,भारी भरकम शब्द भी गौण नज़र आ रहे हैं ऐसे ही जुड़े रहिए और आर्शीवचन प्रेषित करते रहिए ।

  39. Swati says:

    Hamesha ki tarah is baar bhi tumhari yatra ka varnan padh ka grashneshwar jyotirling ke darshan dobara karne ka man kar raha hai.jis tarah tum bhasha shaili ka istemal apni lekhni me karti ho bahut achha lagta hai , Aise hi likhti raho
    Looking forward

    1. Disha Avinash says:

      स्वाति तुम मेरे ब्लाग से जुड़कर ज्योतिलिंगों की यात्रा का आनंद ले रही हो ये मुझे तसल्ली देता है तुमने आठ ज्योतिर्लिंग कर लियें हैं अब तक ,देश से दूर होने के कारण शेष मेरे ब्लाग के माध्यम से करोगी इससे बड़ी बात मेरे लिए और क्या होगी भला,भाषा अच्छी लगी यह जानकर भी दिली सुकून मिला

  40. Prabhat Kumar Tiwari says:

    पिछले ब्लॉग की ही तरह सजीव।
    किसी और के शब्दों में खूबसूरती को समझना इतना आसान कभी नहीं लगा।
    सशरीर यात्रा का ही सुख मिला।

    आप बधाई की पात्र हैं।
    और धन्यवाद् की भी।

    1. Disha Avinash says:

      प्रभात जी ,आपने ख़ूबसूरती की नई इबारत पढ़ ली मेरे ब्लाग में इससे बेहतर मेरे लिए क्या होगा,आप यात्रा का भरपूर आनंद उठा पा रहे हैं यह जानकर प्रसन्नता हुई इसी तरह जुड़े रहिए

  41. kalpana chandravanshi says:

    Bahut achha lga padkr Disha…….. U done such a great work….. I really appreciate it……. It was wonderful to read…. It was beautifully explained by u….. Superb… Keep it up dearrr…..!!

    1. Disha Avinash says:

      कल्पना बहुत धन्यवाद,तुमने ब्लाग की तारीफ़ की इसी तरह जुड़े रहना ये सफ़र लम्बा है अभी तो इसमें कई पड़ाव आए्ंगे

  42. Manish tiwari says:

    Very nice blog, yatra jivant kar di aapney

    1. Disha Avinash says:

      मनीष जी यात्रा की जीवन्तता का अनुभव करने के लिए धन्यवाद

  43. Dr Ira Misra says:

    Mohak vrittant, ki yatra K liye Dil machal jaye, ajeeb hindi bolney walon K is yug aisi lekhni, saras bahti hui, shivaniji ki yaad aagai, aisey he hum sab ko dershan karati rahiye, apki lekhni sarthak hai….

    1. Disha Avinash says:

      इरा जी अनेक धन्यवाद,आपका बड़प्पन है कि आपको हमारी लेखनी हिन्दी की विदुषी प्रख्यात लेखिका शिवानी जी की तरह सरस लगी ,हम तो हिन्दी को उसकी पुरानी प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कृत्तसंकल्पित हैं यात्राएँ आपको रास आ रहीं हैं यह मेरे लिए महत्वपूर्ण है बस सहयात्री बने रहिएगा ।

  44. Smriti Tiwari says:

    असीम आनंद और ऊर्जा की प्राप्ति हुई।
    अगले अंक का इंतज़ार रहेगा।

    1. Disha Avinash says:

      स्मृति प्रतिक्रिया लिख कर पोस्ट करने के लिए दिल से धन्यवाद

  45. मयुरेश आर कोडिलकर says:

    bahot sundar lekh likha he aapne
    मयुरेश आर कोडिलकर ,महाराष्ट्र

    1. Disha Avinash says:

      मयुरेश जी श्री भीमाशंकर जी की पवित्र स्थली से ब्लाग की प्रशंसा पाकर मन प्रसन्न हो गया आप ऐसे ही जुड़े रहिएगा

  46. गौरव विजय काण्णव says:

    ? dishaji aapka artical padha ye varanan bhi bahot sundar kiya hai aapne.
    गौरव विजय काण्णव ,महाराष्ट्र

    1. Disha Avinash says:

      गौरव जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए अति महत्वपूर्ण है इसलिए भी क्योंकि ये सीधे त्र्यंबकेश्वर जी की पुण्य धरा से आई है धन्यवाद

  47. Anil Sharma says:

    It’s the bee’s knees article on famous Grishneshwar Temple. Beautiful Mandir photographs along with vivid description of Grishneshwar Temple. Striking photographs express about exotic stay in Hotel Taj.

    1. Disha Avinash says:

      अनिल जी इस बार विलम्ब से आई प्रतिक्रिया,लगता है दीवाली में व्यस्त रहे आप,बहरहाल लिखने के लिए और दुरुस्त लिखने के लिए आपका आभार

  48. JAY DUBEY says:

    बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा

    1. Disha Avinash says:

      जय तुम को बहुत-बहुत धन्यवाद

  49. ankit sharma says:

    घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर का विवरण अपने बहुत ही सुन्दर किया है

    1. Disha Avinash says:

      अंकित आपको यात्रा वृत्तान्त बेहतर लगा शुक्रिया

  50. Poonam Bhardwaj says:

    Blog jabardast hai Disha ji.Pathneeya, soochnaparak aur darshaneeya. Mujhe bhi ghumakkadi bahut pasand hai khaskar theerth sthaloan ki, sachmuch anand ki anubhooti ho gayi

    1. Disha Avinash says:

      पूनम आपकी प्रतिक्रिया पहली बार मिली ,फ़ोन से राय व्यक्त कर देने से सिर्फ़ मैं जान पाती हूँ कि आपको ब्लाग बेहतर लग रहा है लिखने से ब्लाग के सभी लोग एक दूसरे की राय जान पाते हैं अब हम सब द रोड डायरीज़ परिवार का हिस्सा हैं।

  51. Darshan Pathak says:

    आपका ब्लाग बहुत सारी जानकारियाँ समेटे हुए है,आकर्षक साज-सज्जा के साथ आलेख में प्रदत्त सामग्री भी ज्ञानवर्धक है एक कमी जो खलती है वह है आरती /महाआरती का समय और किन्हीं -किन्हीं मंदिरों में जलाभिषेक के समय की जानकारी ,भक्तों को इससे सुविधा होगी ,कई बार जानकारी के अभाव में श्रद्धालु दर्शन लाभ से वंचित रह जाते हैं बाक़ी आपके प्रयासों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है

    1. Disha Avinash says:

      दर्शन जी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र की दिव्य स्थली से प्रतिक्रिया भेजकर आपने मन आनंदित कर दिया ,आपके सुझावों पर बहुत जल्दी अमल होगा ,ऐसे ही जुड़े रहिएगा

  52. Vishal mishra says:

    Bahut sunder yatra vritanat hai.bhavishaya mein bhi aise hi ghoom ghoom kar yatra varnan likhti rahiye.Shiv ji ki aap pad Kripa bani rahe.

  53. Chitrendra Swarup Rajan says:

    दिशा जी आपकी लेखनी का तो मैं आपनी आकाशवाणी की नौकरी के समय से ही प्रशंसक रहा हूं .मुझे बेहद प्रसन्नता है की आप साहित्य और लेखन से.सतत जुड़ी हुई है .आपका लेख पढ़ा बेहद सार्थक और जानकारी से भरपूर है
    बधाई

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