निःसन्देह किसी अंचल विशेष की संस्कृति को उसकी वाचिक परंपरा से भली भांति समझा जा सकता है। पिछले दिनों भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय के सभागार में निमाड़ प्रान्त की लोकसंस्कृति को रंग प्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला में पारंपरिक लोक नाट्य ‘गम्मत’ के रसास्वादन के साथ समझने का सुअवसर मिला। श्री शोभाराम वासुरे के निर्देशन में पटेल-पटलन का मंचन निमाड़ी बोली की समग्रता का सौन्दर्य बोध करा गया। मण्डलेश्वर की खरगोन रोड के छप्पन देव के निवासी 62 वर्षीय शोभाराम जी की सांवरिया गम्मत मण्डली के लोक कलाकारों ने अपनी रचनात्मकता से पश्चिम भारत के निमाड़ लोकांचल की समृद्ध संस्कृति के दर्शन करा दिये। एक घण्टे की समयावधि में निमाड़ की रसवन्ती गम्मत शैली में पटेल-पटलन की कथा-वस्तु देव दर्शन की आस लिए द्वादश ज्योर्तिलिंग में परिगणित ओंकारेश्वर तीर्थ यात्रा पर जाने के प्रसंग के आस-पास घूमती है। पटलन की हठ के सामने विवश पटेल ‘जतरा’ ओंकारेश्वर के मेले में पहुंचता है जहां नर्मदा परिकम्मा धारी बड़ी बहन से भीड़-भाड़ के चलते निर्धारित मिलाप नहीं हो पाता है।
घर लौटकर इस विषयक पटलन-पटेल में कहासुनी हो जाती है। आपसी तनातनी में पटलन मायके चले जाने की धौंस दिखाती है। पटेल उससे मिन्नतें करता है कि वह मायके नहीं जाये। वह पटेल के निवेदन पर रूक तो जाती है पर पटेल के समक्ष भविष्य में मदिरा सेवन न करने की शर्त रख देती है। इस प्रकार सुखान्त कथानक लिए गम्मत शैली अपने आत्मीयता भरे संवादों,लोक सम्मत आस्था से पगे लोक गीतों और लोच लिए नृत्यों के साथ मन में उतर जाती है। नृत्य संगीत, अभिनय, वार्तालाप की इस समन्वित प्रस्तुति की सफलता का समग्र श्रेय शोभाराम जी की सृजन धर्मिता को जाता है।