औरंगाबाद के निरभ्र आकाश में विश्व के कण-कण के नियामक प्रत्यक्ष देव दिवाकर के शुभागमन के साथ ही हमारी आध्यात्मिक यात्रा के अगले गंतव्य की ओर जाने का समय हो गया। द्वादश ज्योतिर्लिगों के परिगणन में दसवें क्रमांक पर प्रतिष्ठित श्री त्र्यंम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग दिव्य शैव तीर्थ हमारा अगला पड़ाव था।
श्री त्र्यंम्बकेश्वर: जहां की अणु-रेणु ही तीर्थस्वरूपा है
श्री त्र्यंम्बकेश्वर: जहां की अणु-रेणु ही तीर्थस्वरूपा है
यात्रा की शुरुआत
औरंगाबाद से नासिक 182 कि.मी. दूर है और वहां से श्री त्र्यंम्बकनाथ का शाश्वत धाम 30 कि.मी. दूरी पर स्थित है यह जानते हुए तीन घण्टे की यात्रा का प्रारब्ध आॅडी से 8 बजे हुआ। नागपुर-मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग और महाराष्ट्र राजमार्ग 30 से गुजरते हुए एक के बाद एक नयन तृप्ति करने वाली दृश्यावलियाॅं आती रहीं कभी दूर तक विस्तीर्ण शैलमाला सूर्य की किरणों से उद्भासित दिखायी दीं तो कभी आम, नीम, बड़ और बीही के झुरमुटों के बीच से झांकती कृषि क्षेत्रों की प्राकृतिक सुषमा ने मन मोह लिया। खेतों में असीम भाव से विलासित यह सौंदर्य प्रसार उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम सर्वत्र समान ही है। माटी की सौंधी गंध और वही चिर परिचित पशु-पक्षियों की गुंजार में निर्निमेष भाव से रमते-रमाते सहसा हमारी दृष्टि दो बेढ़ब से दिखने वाले पर्वतों पर जा टिकीं। एक ओर अंगूठे की आकृति वाली शैल रचना तो दूसरी ओर किले की प्राचीर और बुर्जो वाला पहाड़ द्रष्ट्रव्य था। नासिक के प्रोफेसर भूगोल शास्त्री डॉ. प्रमोदकुमार शिवाजी राव हिरे से मालूम किया तो “थम्बअप” (हदबी ची शेंडी) और अंकाई-टंकाई नामक दो पर्वत गिरियों की जानकारियां प्रकाश में आयीं। खैर अब तक हम 100 कि.मी. का फासला तय कर येवला गांव पहुंच चुके थे।
महाराष्ट्र में चूंकि ‘मिडवेज़’ संस्कृति का सर्वथा अभाव है इसलिए महिला प्रसाधनों की तलाश में विकल्पों की खोज सतत् जारी रहती है। मार्ग में आधुनिक साज सज्जा वाले शासकीय भवन ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया। पर्यटन विभाग द्वारा पैठंणी साड़ी के संवर्धन और विपणन के लिए स्थापित इस केन्द्र में हमारी अपरिहार्य परिस्थितियों की पूर्ति के निमित्त उत्तम व्यवस्था थी। यहीं महाराष्ट्र के पारंपरिक राजसी परिधान के वैशिष्ट्य ने हमारी ज्ञान पिपासा को और बढ़ा दिया। यहां हमें ज्ञात हुआ कि कोई 2000 वर्ष पूर्व सातवाहन काल में, पेशवाओं और मुगलों की सरपरस्ती में भी पैठंणी की प्रसिद्धि पराकाष्ठा पर थी। यहां तक कि रेशम और जरी के ताने बाने से बुने पैठंणी वस्त्र तो रोमन साम्राज्य तक भेजे जाते थे। यहीं हमारी भेंट पैठंणी के व्यवसाय से पीढ़ियो से जुड़े श्री राजेन्द्र खेरूड़ से हुई। उन्होंने बताया कि येवला में पैठंणी को लाने का श्रेय राजे रघुजी बाबा को जाता है जो 16वीं सदी में राजस्थान से यहां आये थे। पैंठणी के संरक्षण और विस्तारण में उनका योगदान अभूतपूर्व है। आज येवला के 70% परिवार इस कार्य से संबद्ध हैं। बैंगलोर से रेशम और सूरत से जरी मंगवाकर तांबे के पात्रों में डाई करने, वांगी बनाने, साइकिल के चकरे पर चढ़ाने, कांडी तैयार करने का कार्य मूलतः महिलाओं द्वारा किया जाता है। फिर जरीदार बूटियाॅं, किनारों और पल्लू पर बुनी जाने वाली आकृतियों का खाका तैयार करने और अपनी रचनात्मकता से उसे करघे पर धोट्टा की सहायता से परिणिति तक पहूंचाने का दायित्व निर्वहन पुरूष करते हैं। राजेन्द्र जी के अनुसार साढ़े 4 हजार रूपये से ढाई लाख रूपये तक बिकवाली के लिए उपलब्ध पैंठणीं साड़ियों में मुख्यतः मुनिया ब्राॅकेट और लोट्स ब्राॅकेट, अशर्फी, हुमा परिंदा, तोता मैंना, बांगड़ी मोर, रूई फूल, कलश, कुएरी, कंगन जैसी आकृतियां बुनी जाती हैं। सौभग्य चिन्हों और प्रकृति प्रदत्त संरचनाओं को साड़ी में उतारने वाले बुनकरों की कला का मान रखते हुए एक पैंठणीं साड़ी खरीदकर हम आगे बढ़ गए। मार्ग में सह्याद्रि की पार्वतिक श्रृंखलाओं की रमणीयता के बीच गन्ने की पैदावार, दलहन फसलों की बुआई और कपास की रौनकें देखते हुए नासिक पहुंच गए।
अत्यन्त भव्य ताज ग्रुप का होटल द गेटवे नासिक
यहां 20 एकड़ परिक्षेत्र में फैले अत्यन्त भव्य ताज ग्रुप के होटल द गेटवे नासिक में हमारा रूकना नियत था। सुरूचि सम्पन्न सजावट और हरे भरे बागीचों वाले इस आकर्षक होटल का आतिथ्य सत्कार राजसी है और व्यवस्थाएं चाक चैंबंद। यहीं महाराष्ट्र की पारंपरिक शाकाहारी थाली का रसास्वादन कर नासिक शहर के महात्म्य को जानने की उत्कंठा में हमने कार नासिक शहर की ओर मोड़ दी।
छोटे-बड़े 60 मंदिरों और अनेक सीढ़ीदार घाटों वाला शहर नासिक
पुण्यतोया गंगा के समकक्ष आद्य और श्रेष्ठ दक्षिण की गंगा कहलाने वाली गोदावरी (गौतमी) के सुरम्य तट पर बसा है नासिक शहर। जिसे सतयुग में पद्माकर, त्रेतायुग में त्रिकंटक, द्वापर में जनस्थ और कलियुग में नासिक्य पुकारा गया। पुण्य सलिला गोदावरी के दाएं तट पर है शहर का मुख्य भाग, बाएं तट पर स्थित पंचवटी में कई देवालयों की बसाहट है। छोटे-बड़े 60 मंदिरों और अनेक सीढ़ीदार घाटों वाले इस शहर के कपालेश्वर मंदिर विक्टोरिया पुल के समीप स्थित सुंदर नारायण मंदिर का महात्म्य वंदनीय है। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से सम्पन्न इस क्षेत्र के संबंध में यह धारणा प्रचलित है कि कुरूक्षेत्र में दान करने, नर्मदा तट पर तप करने, गंगा तट पर मृत्यु होने पर जो पुण्य मिलता है यदि वही कृत्य गोदावरी के तट पर किये जायें तो मोक्ष प्राप्त होता है।
इसके अतिरिक्त गोदावरी में राम कुण्ड, सीता कुण्ड, लक्ष्मण कुण्ड, हनुमान कुण्ड और धनुष कुण्ड भी दर्शनीय स्थलियां हैं। यही वह पावन भूमि है जहां मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने वनवास का दीर्घकाल भ्राता लक्ष्मण और भार्या जानकी के साथ व्यतीत किया था। यहीं हमारी भेंट पंडित श्री सुरेश शंकर शुक्ला (सीताराम पंडा) जी से इुई जो गंगा गोदावरी पुरोहित संघ के सभासद हैं अपनी नामावलियों की बही संभालते हुए शुक्ला जी ने बताया कि 10 पीढ़ियों से पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ इस कार्य से संबंद्ध रहकर वे अब तक 300 से अधिक परिवारों की वंशावलियों का लेखा-जोखा 500 से अधिक बही (पोथियों) में सहेज चुके हैं जिनमें व्यवसायी घराने बिरला और पोद्दार भी सम्मिलित हैं। उन्होंने बताया कि राम कुण्ड में ही ब्रम्हहत्या के पापक्षालन के लिए शिव जी ने स्नान किया था श्री राम ने भी पिता दशरथ का श्राद्ध यहीं किया था। गोदावरी नदी के दक्षिण वाहिनी हो जाने के कारण यहां पितरों का वास माना गया है। यहीं नैकट्य में अस्थिविलय तीर्थ है ऐसी मान्यता है कि यहां अस्थियां विसर्जित करने पर मात्र साढ़े 3 घड़ी में (84 मिनट में 1 घड़ी) 24 मिनट में अस्थियां विलुप्त हो जाती हैं। अरूणा-वरूणा और गोदावरी का त्रिवेणी संगम भी यहीं हैं। वाघाड़ी नदी भी यही पापविमोचिनी गंगा में मिलती है। पंचवटी के संदर्भ में एक किवदंती हैं तपोबल से उन्मत्त पांच ऋषियों द्वारा सूर्य का उपहास किये जाने पर शापित ऋषिगण पंचवट वृक्ष बन गए जिन्हें श्री राम दर्शन के पश्चात् ही मुक्ति मिली। पंचवटी से डेढ़ किलोमीटर पर तपोवन है। दण्डकारण्य क्षेत्र कहलाने वाले तपोवन में ही शूर्पणरखा की नाक काटे जाने के प्रमाण मिलते हैं। पाणिनी प्रणीत पातंजलि भाष्य में नासिक्य शब्द की व्युत्तपति को भी इस प्रकरण से ही जोड़ा गया है। सीताजी की सुरक्षा के लिए खींची गयी लक्ष्मण रेखा अब जल रेखा है। अग्नि तीर्थ की यहीं है। ऐसी धरणा प्रचलन में है कि रामजी ने सीता को अग्नि में गुप्त कर दिया था और यहीं से रावण छाया सीता का हरण कर ले गया था। नासिक में अब शाम ढलने लगी थी। सूरज पहाड़ियों की ओर में दुबकने को आमादा था। पश्चिमी सिरे पर ऐसा लग रहा था किसी ने ढेर सारा सिंदूर बिखरा दिया था। ललछौंही आसमान और अपने आश्रयों को लौटते पंछी मानो हमसे भी कह रहे हों चलो चिड़िया हुआ पूरा यहां का आबोदाना है और हम होटल लौट आये।
जगत्सृष्टा परमात्मा शिवशंकर का शाश्वत निवास त्र्यंम्बक श्री क्षेत्र
हम अगले दिन 5 बजे अलसुबह नासिक से एन एच 848 मार्ग पकड़ कर श्री त्र्यंम्बकनाथ के दर्शन की अभिलाषा लिये निकल पड़े। नासिक शहर अभी अंगड़ाई लेकर जागा भी नहीं था लेकिन त्र्यंम्बक श्री क्षेत्र का स्वरूप अतुल, नमनीय और पूजनीय था। यहां श्रद्धास्पद साधकों का जमावड़ा, नारायण नाग बली पूजन विधान त्रिंपिड़ी श्राद्ध कर्म और कालसर्प दोष निवाराणार्थ धवल वस्त्रधारी अराधकों के समूह दिखायी दे रहे थे। अल्प पद यात्रा के उपरान्त सर्वदुःख प्रमोष, जगत्सृष्टा परमात्मा शिवशंकर का शाश्वत निवास हमारे सामने था। पार्श्व में ब्रम्हगिरी पर्वत पर सूर्य की पीतवर्णी किरणे शनैः-शनैः झर रही थीं जिनसे साक्षात् ध्यानविष्ट गिरिराज की पिंगल जटाएं कभी धूसर तो कभी रक्तिम दिखायी दे रही थीं। ब्रम्हगिरी के पंच शिखर सद्योजत, वामदेव, अघोर, तत्पुरूष और ईशान सूर्य की किरणों से दैदीप्यमान थे। मंदिर के समीप पूजा उपादानों के विक्रेताओं की दूकानें पार करते हुए हम कुशावर्त तीर्थ तक पदयात्रा करके पहुंच गए। तीर्थ के समक्ष लगभग 12 पीढ़ियों से निवास कर रहे पुरोहित श्री पुरूषोत्तम बालासाहेब लोहगांवकर जी से भेंट का सुअवसर मिल गया। उन्होंने बताया कि गोदावरी का उद्गम स्थल ब्रम्हगिरी पर्वत पर औदूम्बर का वृक्ष है।
27 मीटर वर्गाकार महा तीर्थ कुशावर्त
ऋषि श्रेष्ठ गौतम की तपस्चर्या का प्रतिफल हैं दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी का प्रवाह। यहां से लुप्त होकर गंगाद्वार पर उनका प्रवाह पुनः दृष्टिगोचर होता है और पुनः विलुप्त प्राय हो जाता है। उपाध्ये श्री लोहगांवकर के अनुसार गोदावरी के पलायन से क्षुब्ध महर्षि गौतम ने कुशों के घेरे से पुण्यसलिला गोदावरी के प्रवाह को अवरूद्ध कर दिया। इसीलिए 27 मीटर वर्गाकार यह महा तीर्थ कुशावर्त कहलाया। दरअसल धुर्जटी की जटाओं से दो जल प्रवाहों का धरती पर अवतरण माना गया है। जिस तरह महातपस्वी भगीरथ के प्रयत्नों से भूतल पर अवतरित हुईं माता जान्हवी भागीरथी कहलायीं उसी प्रकार गौतम ऋषि की तपस्या के फलस्वरूप धरा पर आयीं गोदावरी गौतमी गंगा पुकारी गयीं। गोदावरी को ज्येष्ठा का स्थान मिलने के कारण इसे वृद्ध गंगा भी कहा जाता है। श्री पुरूषोत्तम जी का मानना है कि भगवान की चरण तीर्थ गंगा हैं लीला तीर्थ यमुना हैं, हृदय तीर्थ सरस्वती हैं और इन त्रिवेणी सरिताओं का सरताज गोदावरी हैं। कुशावर्त में स्नानोपरान्त ही मंदिर में देवदर्शन करने की परंपरा हैं हांलाकि कुछ श्रद्धालु यहां से 4 कि.मी. आगे स्थित चक्रतीर्थ में गोदा का प्रत्यक्ष उद्गम मानकर वहीं स्नान ध्यान करना श्रेयस्कर समझते हैं। पुरूषोत्म जी गोदावरी के महात्य को व्याख्यायित करते है कुछ इस प्रकार ‘मोक्षप्रदा गोदावरी का मुख है त्र्यंम्बकेश्वर, कंठ है नासिक, पुनताम्बा है हृदय, नांदेड़ है नाभिस्थल, आन्ध्रप्रदेश के पास अन्तरवद्री है उसका निचला हिस्सा जहां से वह सागर में समाहित हो जाती हैं’ सत्य सनातन संस्कारों की संरक्षिका और उत्तर तथा दक्षिण की साझा संस्कृति की निर्मात्री गोदावरी आगे 1450 कि.मी. विस्तार के साथ अविरल प्रवाहमान रहती हैं। श्री पुरूषोत्तम जी से यह जानकारी भी मिली कि त्र्यंम्बक में स्थानिक पंडितों के लगभग 250-300 घर हैं पौरोहित्य कर्म के लिए यहां आकर बस जाने वाले पुजारियों को भी सम्मिलित कर लें तों यह संख्या 500 के आस पास बैठती है। स्नान के निवृत्त होकर हम भी श्री त्र्यंम्बकेश्वर के दर्शन के लिए अग्रसर हो गये।
मकराना के संगमरमर और स्थानीय काले पाषाण के समुचित सम्मिश्रण से निर्मित श्री त्र्यंम्बकेश्वर मंदिर
त्र्यंम्बक का अभिप्राय ही है ब्रम्हाण्ड के त्रिदेव ब्रम्हा विष्णु और महेश तीनों के अम्ब अर्थात् कारण। वैदिक शब्दों में रूद्र तो स्वयं त्र्यंम्बक हैं भूत वर्तमान भविष्य तीनों के ज्ञाता। शिव ही तो सर्वाभिभावक हैं वे ही दया के समुद्र हैं ऐसी ही भावनाओं के साथ हम परिसर में प्रविष्ट हुए। काले बसाल्टिक प्रस्तर खण्डों से निर्मित पेशवाकालीन शिवालय का विलक्षण शिल्प सौष्ठव हमारे सम्मुख था निर्गुण, निराकार, निष्कल, निर्विशेष, निरंजन परमत्यागी जिनके दर्शन, स्तवन अवगाहन नामोच्चारण और स्मरण से ही समस्त तापों का तत्क्षण उपशम होता हो ऐसे सच्चिदानंद शिव को गर्भगृह में लगे विराट दर्पण में निहारकर हम शिवमय हो चुके थे। गर्भगृह में अर्घा के भीतर अंगूठे की आकृति की तीन पिण्डियां और उन पर पतितपावनी गोदावरी का जल अनन्त शिव तत्व की अनुभूति करा रहा था। यहां स्त्रियों का प्रवेश वर्जित है इसलिए हमने भी पुरातन परंपराओं का अक्षरक्षः पालन किया। ज्योतिार्लिंग के संदर्भ में पंडित पुरूषोत्तम जी ने बताया कि परमर्षि गौतम और अहल्या ने यहां आए भीषण अवर्षण (अकाल) के समय वरूण देवता को कठोर तप के बल पर प्रसन्न कर अखण्ड दिव्य जल के प्रभाव से भूमि में अन्न उपजाया। द्वेष वश ऋषिगणों ने अहल्या और महर्षि गौतम पर गौहत्या का पाप लगाकर उन्हें बहिष्कृत कर दिया। पाप के प्रायश्चितस्वरूप पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करने, मासव्रत रखने, ब्रह्मगिरी पर्वत पर सौ बार प्रदक्षिणा करने, गंगाजल अवतरित कर उसमें स्नानकरने और एक करोड़ पार्थिव शिवलिंग निर्माण कर पूजन करने को कहा गया। शिव जी महर्षि की कठोर साधना से अभीभूत हुए उन्होंने महर्षि की कामना के अनुरूप गंगा को लोकोपकार्थ अवतरण का आदेश दिया तत्पश्चात महर्षि, देवगण और ऋषिमुनियों के अनुनय निवेदन पर स्वयं शिव सदा सर्वदा के लिए यहां विद्यमान हो गये। जब वृहस्पति सिंह राशि में आते हैं तब ऐसा माना जाता है कि गौतमी तट पर सकल तीर्थ, देवगण और नदियों में श्रेष्ठ गंगा जी यहां पधारती हैं।
मंदिर में चहुं ओर उच्चारित ओम की अनुगूंज ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया था तीन अक्षर अ उ म ही तो तीन शक्तियों के द्योतक हैं अ उत्पत्ति शक्ति का (ब्रम्ह) उ धारक शक्ति का (विष्णु) म प्रलय संहारक शक्ति का (रूद्र) तीनों शक्तियों का पुन्ज ही तो परमेश्वर हैं। यहीं हमारी भेंट ज्योतिषविद् श्री राजेश दीक्षित जी से हुई उन्होंने मंदिर की निर्मिति के संदर्भ में जानकारियां दीं ‘‘मार्ग शीर्ष माह के कृष्ण शुक्ल पक्ष की अष्टमी शक 1677 (26 दिसंबर 1755) में पहले से मौजूद मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य सवाई माधोराव पेशवा जी ने प्रारम्भ किया जो 17 फरवरी 1783 में महाशिवरात्रि के दिन सम्पन्न हआ’’ इस संबंध में संस्कृत में उत्कीर्ण शिलापट्टिका मंदिर के उत्तरी प्रवेश द्वार के नगारखाने में ऊपर दृष्टव्य है। राजेश जी मंदिर की शिल्पण शैली को हिन्दु शिल्प शास्त्र की मेरूप्रासाद प्रणाली पर आधारित बताते हैं। तत्कालीन वास्तुशिल्पी यशवंत राव हर्षे की परिकल्पना पर निर्मित यह मंदिर नाना साहब पेशवा के प्रधान कार्यकर्ता नारायण भगवंत और उनके पुत्र नागेश नारायण की देख-रेख में बनकर तैयार हुआ। हांलाकि कुछ विद्वानों ने मंदिर के मालवा और मराठा शैलियों में निबद्ध होने की भी संभावनाएं व्यक्त की हैं। 31 वर्षों तक चले इस कार्य में उस कालखण्ड में 9 लाख रूपये व्यय किये गये। 48 ऊॅंटों, 88 हाथियों 112 घोड़ों पर राजस्थान के मकराना से लाये संगमरमर और स्थानीय काले पाषाण के समुचित सम्मिश्रण से निर्मित मंदिर की तारेनुमा संरचना इसे विशिष्टता प्रदान करती है। सवा 4 फीट की चैड़ाई वाली प्राचीर से सुरक्षित मंदिर पूर्व पश्चिम में 265 फीट और उत्तर-दक्षिण में 218 फीट लम्बाई में चैड़ाई में विस्तारित है। राजेश जी के अनुसार चारों दिशाओं में प्रवेश द्वारों वाले इस मंदिर के उत्तरी महाद्वार के ऊपर 38×15 फीट का नगारखाना है जहां आज भी श्री हरि की पूजा के उपरांत नगाड़ों का वादन होता है। पश्चिम और दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार के भीतर कोने में स्थित अमृत कुण्ड की गहरायी मंदिर की ऊंचाई के बराबर है। विस्तृत प्रांगण के मध्य पूर्वाभिमुख देवालय की 160 फीट लंबाई (पूर्व-पश्चिम) 131 फीट लम्बाई (दक्षिण-उत्तर) ऊंचाई 96 फीट और गोलाई का व्यास 185 फीट है। प्रासाद के शीर्ष पर तीन स्वर्ण कलश तथा वृषभ चिंन्हाकिंत स्वर्णध्वज है श्री राजेश के मुताबिक यह ध्वज नगर की संस्कृति और राष्ट्र के संरक्षण का वाहक है भारत पाक युद्ध के समय और कुंभ में घटित अप्रिय घटना के दौरान यह खण्डित हुआ था। पेशवा सरदार अण्णा साहिब विंसुरकर के नेतृत्व में 1872 इसकी स्थापना की गयी थी। मंदिर के पूर्व प्रवेशद्वार पर नंदी विराजे हैं। मंदिर के आकर्षक अर्धमण्डप, सभामण्डप, विशालकाय कच्छप, मेघाण्डम्बरी वितान, द्वार के सम्मुख कीर्ति संरचनाएं शैल्पिक विद्वता की प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
हांलाकि पुरातत्व वेदत्ता एम.एस. चैहान मंदिर की निर्मिति भूमिज शैली में होने की तर्क संगत व्याख्या करते हैं उनके अनुसार मंदिर की पीठ, वेदीबंध, जंघा और शिखर का स्थापत्य इसके भूमिज शैली में निर्माण की पुष्टि करता है। बहुकोणीय तारेनुमा मंदिर के उध्र्वगामी शिखर के आधे हिस्से में कोनों पर कुंभ की योजना, गर्भगृह के ऊपर वक्रीय शिखर, अनेक लघु शिखरों की पूर्णता पर पूर्णकुम्भों की शिल्पाकृतियां श्री चैहान की दृष्टि से मंदिर के भूमिज और मराठा शैलियों के सम्मिश्रण का संकेत देते हैं। मंदिर की भीतो पर भैरव, विष्णु और महिषासुर मर्दिनी, के लोक अलंकरण को वे बाद के दौर का मानते हैं। मानवाकृतियां, देवाकृतियां, यक्ष और पुष्पीय उत्कीर्णन के अतिरिक्त मेहराबदार प्रवेशद्वारों वाले इस पावन तीर्थ की अलौकिकता अनिवर्चनीय है हमें बताया गया कि महारानी अहिल्या बाई होलकर ने सन् 1789 में पुनः उसका जीर्णाेंद्वार कराया।
प्रतिदिन प्रातः काल 5.30 बजे मंदिर खुलता है। 6 से 7 के मध्य का समय उत्तर प्रवेश द्वार से प्रविष्ट होने वाले यजमानों के जलाभिषेक और पंचामृतअभिषेक के लिये सुनिश्चित है। आरतियाॅं 8 बजे से 10.30 देवस्थान ट्रस्ट के पूजक (दशपुतरे घराने) द्वारा, 12 से 12.20 तक पूजक (शुक्ला घराने) द्वारा 8.30 से 9 बजे रात्रि पूजक (तेलंग घराने) द्वारा सम्पन्न करायी जाती हैं। प्रथम दो आरतियों में वेदोक्त मंत्रोच्चारण होता है जबकि तृतीय आरती में जय-जय त्र्यंम्बकराज का जयघोष पूरे परिक्षेत्र को शिवमय बना देता है। मंदिर की सुचारू व्यवस्था का नियंत्रण तुंगढ़ संघ के सुपुर्द होता है। मंदिर के 50 से 60 गौरव पूर्ण निष्ठा और कर्तव्य परायणता के साथ इस दायित्व का निर्वहन करते हैं हम और आप मंदिर परिसर में रखी हुण्डी (थाली) में जो दान-दक्षिणा देते हैं। वह गुरव के हिस्से में आती है और दान पेटी में डाली गई राशि ट्रस्ट को जाती है यह जानकारी हमें पण्डित मंगेश श्रीनिवास चांदवड़कर जी से प्राप्त हुई।
पूर्व में कई घरानों द्वारा प्रतिपादित मंदिर की कार्यप्रणाली के संबंध में मतैक्य न होने पाने के कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त 7 विश्वस्तों की समिति अब इसका संचालन करती है। इन्हीं में से एक प्रथम महिला विश्वस्त और प्रखर समाजसेवी श्रीमती ललिता शिन्दे जी से भी हमने बात की वे इन दिनों श्री त्र्यंम्बकेश्वर के पाण्डव कालीन रत्न जड़ित स्वर्ण मुकुट में जड़े 43.38 कैरेट वज़नी नस्साक हीरे को लेबनान के निजी संग्रहालय से भारत लाने के लिए संघर्षरत हैं। नासिक में गोदावरी के स्थूल प्रदूषण के लिए चिंतित और निवारण के लिए प्रयत्नशील श्रीमती शिंदे पुरातत्व विभाग द्वारा भक्तों से वसूले जाने वाले प्रवेश शुल्क का भी पुरजोर विरोध कर रही हैं। ललिता जी के प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। अब वक्त लौटने का हो गया है। लौटते हुए हम यही सोच रहे थे कि त्र्यंम्बक क्षेत्र की महिमा अगाध और अपरम्पार है। आध्यात्मिक जीवन को अनुप्राणित करती यहां की उदात्त धरणी प्रबल पुरूषार्थ और अखण्ड विश्वास की साक्षी है सही मायने में आर्यावर्त का वैभवशाली समृद्ध इतिहास और जीवन्त संस्कृति समेटे इस धरती का अणु-रेणु ही तीर्थस्वरूपा है। महाराष्ट्र की सात्विक जाग्रत धरा पर अभी और रूकेंगे।
Beautifully described every thing . While reading this blog seems that i was also a part of this beautiful journey .Best of luck Ma”am and looking forwrd for your another blog. Once again thank you so much for your blog.
मुकेश जी,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हो गया ,आपने सही लिखा है हम सभी द रोड डायरीज़ परिवार के सदस्य साथ -साथ आध्यात्मिक यात्रा पर ही तो निकले हैं अभी साथ में ही रहिएगा
My heartiest congratulations.please complete these research in a book form.heavy demand.
I will not give comment but I should say badhai. You have cover social life of that area, culture, textile history temple art and architecture religion rituals and everything of that area .you covered food hotel pujari who holds the commond on geneoLogy of the related family. I am proud of you.bhopal history book will be a contibutions to the heritage of bhopal.once again thanks for this roadshow dairy.
ओ. पी. मिश्रा
पुरातत्ववेत्ता,सलाहकार मप्र.पर्यटन
मिश्रा जी किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ ,बहुत ही बढ़िया प्रतिक्रिया ,भरपूर उत्साहवर्धन करती हुई,प्रयास यही रहते हैं कि सब कुछ समेट लूँ स्थानाभाव के कारण मुश्किलें बढ़ जाती हैं,आपकी शुभकामनाएँ मिलती रहीं एेसे ही तो बहुत जल्दी भोपाल वाली किताब भी वजूद में आ ही जाएगी
अत्यंत विस्त्रत विवरण !
प्रतीत होता है व्रत्तांत पढ़ने के बाद श्री त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के संबंध मे कुछ भी शेष नहीं रह जाएगा.
अभिनंदन !
निशान्त तुम्हें आलेख रूचिकर लगा यह जानकर अच्छा लगा ,यह विषय इतना व्यापक है कि अभी भी कई पहलू छूट गए लगते हैं फिर भी कोशिश पूरी रही कुछ छूट न जाए।
Wonderful command on language. Description of your journey is so real. While reading this, it seems l’m also part of this journey.
Keep it up…??
नम्रता तिवारी
नम्रता जी,अतिशय धन्यवाद,आप लोगों की हौसलाअफ़जाई ही तो मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देती है इसी तरह जुड़े रहिए
Very nice. Level of hindi used by you is astonishing ! Really appreciate her command over language and clarity of expression. Details are too many and minute. Its all divine inspiration! !! Keep it up and keep us enlightened too ?
A book will make a delightful reading . Particularly for non tech savies
संजय जी बहुत सारा धन्यवाद,आपका सुझाव निःसन्देह अमल करने लायक है ,आपको भाषा प्रभावित कर रही है यह मेरे लिए संतोष का विषय है हाँ मैं किसी भी विषय की जाँच पड़ताल गहराई ये करती हूँ यह पत्रकारिता की देन है
आपकी यात्रा का विवरण पढ़कर मन आनंदित हो गया एवं वहा के इतिहास की जानकारी भी प्राप्त हुई इससे श्री त्र्यंम्बकेश्वर मंदिर के दर्शन कर मन को ख़ुशी हुई आगे भी आपकी लेखनी का इन्तजार रहेगा
कमल जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन हर्ष से भर गया इसी तरह जुड़े रहिएगा ,अनेक धन्यवाद
माँ गंगा ( गोदावरी ) के तट पर विराजमान श्री त्र्यंम्बकेश्वर मंदिर जिनका वर्णन अपने किया और माँ गंगा के समीप स्थित कुण्ड के दर्शन हुए तथा उनके इतिहास की जानकारी दी साथ ही साथ हमे ओम शब्द का अर्थ भी आपने स्पष्ट किया श्री त्र्यंम्बकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार कैसे हुआ इसके बारे में जानकारी दी यहाँ पढ़कर ऐसा लगा हम भी आपकी यात्रा का आनंद ले रहे हो
अंकिता, तुम्हें ओम की व्याख्या ,मंदिर के स्थापत्य,श्री क्षेत्र के महात्म्य ने प्रभावित किया यह जानकर इसलिए अच्छा लगा क्योंकि तुम अभी कालेज छात्रा हो इंटरनेट प्रेमी युवा जनता जितनी इस ब्लाग से जुड़ेगी उतना ही पाठक वर्ग बढ़ेगा शुक्रिया
Very well described the whole road journey Disha, I have been to this jyotirling , but after reading your diary, I feel like, I must visit this place again. Keep it up?
स्वाति दूर देश से आई तुम्हारी प्रतिक्रिया मेरे भीतर स्फूर्ति भर देती है पैठणी साड़ी ,मंदिर की शैली और समूचे यात्रा वृत्तान्त ने तुम्हें ख़ासा प्रभावित किया है यह जानकर अच्छा लगा
प्रिय दिशा जी,
आपको साधुवाद…..
आपने इतना सूक्ष्मतम वर्णन किया है कि सम्पूर्ण यात्रा वृतांत मन मस्तिक पर अंकित हो गया है, वर्ष २००९ में मुझे भी दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था पर इतने व्यापक नज़रिए से पहली बार यात्रा वर्णन पढ़कर एक सुखद आध्यात्मिक तृप्ति हुई.आगे भी इस कड़ी को बनाए रखिएगा.
पुनः धन्यवाद…
डॉ. संजय शर्मा
संजय जी आप तो बहुत जल्दी ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करने वाले हैं ‘ द रोड डायरीज़ ” आपकी यात्रा में मददगार साबित हो एेसी आशा है ,अपने यात्रा संस्मरण अगर उचित लगे तो साझा कीजिएगा बहुत धन्यवाद
ये ब्लॉग मेरे लिये हिंदी सीखने की सबसे अच्छी जगह है…. काश मेरे हिंदी टीचर ने मुझे थोड़ा और मारा होता तो आज मैं इस यात्रा के वर्णन का आनंद और भी मजे से ले पता.
एक वाक्य मुझे थोड़ा अजीब लगा ” माटी की सौंधी गंध” या फिर ” माटी की सौंधी सुगंध “
विपिन,तुम मेरे ब्लाग को हिन्दी सीखने का ज़रिया बना लो ,जितना पढ़ोगे उतना ही जानोगे साहित्य संस्कृति,संस्कार और इतिहास।शुक्रिया
त्र्यंबकेश्वर यात्रावृतॉंत यथार्थपरक,रोचक एवं सुन्दर बन पड़ा है।वृतांत की उँगली पकड़ के जिज्ञासामर्दन की अनंतयात्रा पर आप दिशा संग दिशा पाते चलते हैं।
तीर्थयात्रा अब वानप्रस्थ की यात्राओं सा पूर्णविराम पा कर संतुष्ट कहॉं होती है!अब आस्था की नई यात्राएँ नए अर्थशास्त्र को विस्तारित करती हुई आगे बढ़ती हैं।
‘दि रोड डायरीज़’ कभी भी अपनी पैकेजिंग नहीं छोड़ती किंचित यहॉं मंदिर हैं.नदी है,नदी सा प्रवाह है।पैठनी साड़ी है तो बुनकर समाज के सामाजिक तानेबाने की नाज़ुक बुनावट की कथा भी है।पाँचसितारा आवभगत का आमंत्रण है तो जिज्ञासु भावप्रवण पर्यटक को थामे आरामदेय सवारी भी है।आस्थाकर्म में निबद्ध सूत्राधारों के अर्थतंत्र में ताक-झाँक है तो मंदिर वास्तुकला की विवेचना का अध्ययन भी है।ये नई जिज्ञासु पीढ़ी का वृतांतपटल है जहॉं अभिव्यक्ति भाषाई सौन्दर्य के साथ साथ सूचना संदर्भों के नये आयामों में विस्तार पाती है।
यात्रामार्ग के अर्थशास्त्र का परोक्ष चित्रण इस वृतांत को और अधिक समृद्ध बनाता है।
दिशा जी आपके सुन्दर प्रयासों हेतु सादर आभार एवं साधुवाद ।
पद्म,बहुत ही स्तरीय प्रतिक्रिया ,लगता है तुमने हर पक्ष को शिद्दत से महसूसा फिर की बोर्ड पर उँगलियाँ चलाई हैं महाराष्ट्र की जाग्रत धरती दिव्य स्थलों की मौजूदगी के मामले में बहुत धनी है अभी बहुत कुछ लिखना है बस तुम जैसे पढ़ने वाले मिलते रहें तो हौसला बढ़ता ही रहेगा दिल से धन्यवाद
Another impressive blog in the series Auntie..it’s good to see that you being so eager to construct a bridge b/w indian culture and spiritualism with the modern present…the most imp thing is the way you do is the patch up of nature’s beauty with the journey..Not only that but it also enhance the knowledge related to the places…uff hard to find on Google..i am waiting for the next one…
अरे वाह ,अपर्णा तुम तो ख़ुद बहुत प्रभावशाली लिख लेती हो वह भी इस उम्र में बिटिया रानी,प्रकृति,इतिहास,संस्कृति ,सनातन संस्कारों के सामंजस्य की अनुपमता को तुम समझ पा रही हो तो मेरी यात्रा का उद्देश्य सफल हो गया
Bahut sundar varnan.tumhara shabdo ka chayan bahut uchh koti ka rahta hai disha…tumhari diary padhte samay aisa lagta hai jaise ham bhi tumhare sath yatra kar rahe ho..itne jankari mili vistar se…bahut umda shabdo ka chayan kiya tumne
…keep it up
Tryambkeshvar jyotirling ka bahut badhia varnan kiya he tumne disha. padhkar bahut jankari mili .aise hi aage hame tumhare blog padhne ko milte rahe.
वर्षा बहुत बहुत धन्यवाद,मुंबई से जब तुम ब्लाग की प्रशंसा करती हो मन और भी प्रफुल्लित हो जाता है
अर्चना तुम्हें बहुत धन्यवाद,हिन्दी ने तुम्हें प्रभावित किया यह जानकर मन ख़ुश हो गया तुम्हें यात्राएँ अपनेपन का अहसास करा रहीं हैं और क्या चाहिए प्रतिक्रिया में मुझे,ढेर सारा धन्यवाद
दिशा जी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग त्रयम्बकेश्वर के दर्शनों का लाभ और आशीर्वाद मैंने भी अपने परिवार के साथ लिया है,साथ-साथ नासिक की पवित्र भूमि का स्पर्श भी किया है, किन्तु आपने जिस रूप में इस यात्रा को ढाला है,वो अद्भुत है और लगता है हम भी उस यात्रा में आपके साथ सहभागी हैं। चलते जा रहे हैं आपके साथ ।महाराष्ट्र राज्य का सौंदर्य किसी से छिपा नहीं है और आपके वृत्तांत में वो शिद्दत से झलक रहा है। न केवल धार्मिक स्थल,अपितु वहां की कला-संस्कृति से पहचान कराने वाले इस संस्मरण से मैं बहुत प्रभावित हूँ दिशा जी। बहुत बधाई और शुभकामनाएं आपको।
संजय,तुम्हारी प्रतिक्रिया इस बार भी सटीक और सारगर्भित है,आस्था का केन्द्र श्री त्र्यंबकेश्वर का दिव्य धाम है ही इतना अद्भुत कि हम सभी शिवमय हो जाते हैं ,बहुत धन्यवाद
Aap ka barnan padke bhagwan shiv ke nasik jakar darsan Karane ki ekcha ho rahi He ham kam se kam 200 bar ho aaye He par etna phir bhe nahi Jan paye aap ka bahut dhanybad bhagwan Shiv aap par kripa kare
श्री देवेन्द्र दुबे
देवेन्द्र जी आपकी चिट्ठी इस बार समय पर मिल गई यह सब आशुतोष भगवान शिव का आदेश है जिसका हम सभी पालन कर रहे हैं कुछ जानकार मनीषी ज्ञान बाँटकर ,हम लिखकर और इतनी दूर -दूर से आप सभी जुड़कर आध्यात्मिक यात्रा में सिर्फ़ और सिर्फ़ शिव जी की इच्छा से ही निकले हैं धन्यवाद
आपका वृत्तान्त बहुत ही पठनीय है आप पत्रकार हैं इसलिए मेहनत अच्छी तरह कर पाते हैं और हम पुरोहितों से ज़्यादा से ज़्यादा सामग्री निकाल पाते हैं,आपकी कुछ तस्वीरें तो बहुत ही प्रभावित करने वाली हैं कितने लोगों से मालूम करके आपने लिखा होगा क्योंकि कुछेक जानकारियाँ तो हमें भी नहीं थीं विशेषकर मंदिर के स्थापत्य के बारे में जो कुछ भी ब्लाग में दिया है न वो सर्वोत्तम है
मंगेश जी बिना शिव जी की कृपा से आप हमें मिलते और न हीआप जैसे विद्वानों से गहन पड़ताल कर हम कुछ निकाल पाते ,हम तो माध्यम मात्र हैं ,अनेकानेक धन्यवाद
आपका ब्लाग पढ़ा अति सुन्दर,मैं आपकी लगनशीलता और किसी विषय की गहन छानबीन करने की कला से प्रभावित हूँ इतनी जानकारियाँ हासिल कर पाना आसान नहीं है श्री घृष्णेश्वर जी की कृपा आप पर सदा बनी रहे
राजेन्द्र जी,आपका पत्र पाकर यह संतुष्टि तो हुई कि हम सही दिशा में जा रहे हैं बहुत धन्यवाद लेखन कर्म को आप जैसे ज्ञानियों की जब सराहना मिलती है तो वो और भी निखरता है ,बहुत धन्यवाद
आपका आलेख उच्चतम स्तर का है जो प्रवाह और भाषा का चयन आपकी लेखनी में दिखता है वह साधारणत:नहीं दिखाई देता है ऐसा अनुभव होता है कि आप एक आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा हैं ,मैं श्री त्र्यम्बकेश्वर जी से आपकी आरोग्यता मांगल्य और सुखमय जीवन की प्रार्थना करता हूँ ,आपकी लेखनी सर्वोत्तकृष्ट हो,और आपका ब्लाग सफलता के शीर्ष पर पहुँचे
पुरूषोत्तम जी,आप के सहयोग के बिना मेरे लिए लिख पाना संभव कहाँ था ,आपके ज्ञान को बक़ौल आपके मैं सही तरीक़े से पाठकों तक पहुँचा पाने में सक्षम रही हूँ तो वह भी श्री त्र्यम्बकेश्वर जी के आर्शीवाद के कारण,ह्रदय से धन्यवाद
आपका ब्लाग पढ़ा बहुत अच्छा लगा नासिक शहर के अलावा श्री त्र्यम्बकेश्वर के बारे में जो आपने लिखा है वो भी बहुत ही बढ़िया है ईश्वर से प्रर्थना है की वह तुमको राजी ख़ुशी रखे
सुरेश जी ,बहुत धन्यवाद,आपका आर्शीवाद मिल गया बस और क्या कहूँ सब कुछ मिल गया
आपकी लेखनी के माध्यम से श्री त्र्यम्बकेश्वर जी की महिमा, शिल्प, शैली नासिक के बारे में सविस्तार जानकारी मिली फोटो भी अच्छे डाले है आप जो रास्ते के बारे में लिखती है उससे ब्लाग रोचक लगता है जय श्री त्र्यम्बकेश्वर…..
दर्शन जी भोलेनाथ की कृपा बनी रहे हम सभी पर यही मनोकामना है आपको मंदिर के शिल्प,पैठणी ,नासिक,मंदिर की समय सारिणी भा गई यह जानकर तसल्ली हुई बहुत धन्यवाद
आपका ब्लाग बहुत ही अच्छा है फोटो भी बहुत ही अच्छे है वर्णन बहुत ही गहराई से किया गया है अपने मंदिर का इतिहास ,कुशावर्त तीर्थ की महिमा नासिक पैठणी के बारे में विस्तार से बताया है जय श्री त्र्यम्बकेश्वर
मयुरेश जी अतिशय धन्यवाद,श्री भीमाशंकर के दिव्य धाम से आई प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है
आपका ब्लाग बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर मन को शांति मिली
नित्या ढेर सारा धन्यवाद,अपने जैसी युवतियों को जितना ज़्यादा जोड़ोगी ब्लाग उतना अधिक लोकप्रिय होगा असल में तुम लोग हमसे ज़्यादा नेट प्रेमी पीढ़ी हो तुम आध्यात्म से जुड़ोगी तो मैं मानती हूँ आने वाली पीढ़ियों का उद्धार होगा
आपका ब्लाग पड़ा बहुत सुन्दर विवरण किया है आस पास के मंदिर के बारे में जानकारी मिली जय श्री त्र्यम्बकेश्वर…..
जय बहुत धन्यवाद अपने जैसे युवाओं को ब्लाग से जोड़ो
श्री त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा आपकी अगली लेखनी का इन्तजार रहेगा ….
अंकित बहुत अच्छा लगा आख़िरकार तुम इससे जुड़ ही गए
आपने आपकी लेखनी के माध्यम से श्री त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के बारे में बताया पढ़ कर आच्छा लगा ….
जया बहुत धन्यवाद
दिशा जी
श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिलिंग यात्रा द रोड डायरीज़ का पाँचवां अंक पढ़ा. अत्यंत रोचक ,जानकारियों से परिपूर्ण तथा धार्मिक आख्यानों से तृप्त ब्लॉग है. कोई 30 32 वर्ष पूर्व मेरा भी सौभाग्य मुझे वहां तक ले गया था. आप के सटीक चित्रात्मक और सशक्त लेखन से वह सभी स्मृतियां ताजा हो गई आप एक सफल ब्लॉग राइटर हैं और मेरे विचार से उच्च कोटि की
बधाई
राजन सर,बहुत धन्यवाद,आपकी प्रतिक्रिया ने वाक़ई मेरे हौंसलों को पंख लगा दिए हैं ,आकाशवाणी के फ़ीचर लेखन वाले दिन ताज़ा हो गए।
इस ब्लाँग के माध्यम से माँ गंगा ( गोदावरी ) के तट पर विराजमान श्री त्र्यंम्बकेश्वर मंदिर, पौराणिक संस्कृतिऔर सभोताल वर्णन अपने बहुत सुंदर किया है। मैं इसमेऔर संलग्न करना चाहती हूं कि इसे सांस्कृतिक धरोहार के तौर पर जागतिक स्तर पर समाविष्ट के लिये ब्लाग में स्थान देना चाहिये।साथ ही जागतिक, पवित्र ब्राम्हगिरी पर्वत, माँ गोदावरी , संकृती गाव त्रिम्बक स्मारक आणि अनु रेणू कुंभ सांकृतिक वारसा युनेस्को द्वारा घोषित करणे के लिये जनजागरण हेतू ब्लाक में समाविष्ट होना चाहिए।
मैं इस के लिए दो साल से कार्य कर रही हू्ं,और इसका फळ कुंभ जागतिक वारसा 2017 के लिये नाममंकीत हो रहा है अभी इस कार्य के लिये जनजागृती कीं आवश्यकता है। ताकि सरकार का इस पर ध्यान आकर्षित कर कर इसे जागतिक धरोहार के रूप में समाविष्ट करना असांन हॊगा।
सौ ललिता शिंदे
विश्वस्थ त्रंबकेशवर देवस्थान
ललिता जी अनेकानेक धन्यवाद ,आपकी माँगें महत्वपूर्ण हैं और इन्हें प्रकाश में आना भी चाहिए हम आपके साथ हैं और आपकी कोशिशों को जितना बलवती बना सकेंगे प्रयास करेंगे ,आपको ब्लाग सराहनीय लगा यह जानकर हम संतुष्ट हुए
Bhut rochak or mn ko harshit krne vala yatra varnan shabdo ka sateek pryog varnan ko or b romanchit bnata h
Bahut hi manohari aur adbhut varnan….Jai Shri trayambakeswar
राजेन्द्र तुम्हारी प्रतिक्रिया इस बार निचली पायदान पर क्यों है,तुम्हें ब्लाग अच्छा लगा यह जानकर मुझे भी प्रसन्नता हुई,बहुत धन्यवाद
O disha. You are doing some really good work. Keep it up. Hope to meet you when we are in MP. Pradeep
प्रदीप सर ,पत्रकारिता के गुर तो आप से ही सीखें हैं आप इतनी दूर बैठकर देख पा रहे हैं कि दिशा की दिशा एकदम सही है तो मैं संतुष्ट हूँ,जब भी आप मप्र आएँ सूचित अवश्य करें
Bahut hi sundar varnan kiya hai aapne.Pathni saree ke baare mai kitni achi jaankari mili aur usse juda itihas. Godawari kinare stith sri triyambkeshwar mandir ka bhavya varnan. Itni door hokar bhi aisa lagta hai jaise hum logo ne bhi saakshat darshan kar liye. Aapke blog se kitni jaankari hume apne itihas ki milti hai.once again thank you so much for your blog.
शिल्पा ,तुम सात समुंदर पार ब्लाग के माध्यम से पैठणी साड़ी के वैभव ,इतिहास और सौन्दर्य का अनुभव कर पाईं ,श्री त्र्यंबकेश्वर मंदिर की शिल्पण शैली और महिमा की अनुभूति कर पाईं मेरा उद्देश्य पूरा हो गया ,बहुत धन्यवाद
Ati uttm varnan,, yatra vratant padh kar sukhad anubhuti prapt hoti h,,,,
संदीप तुम्हें यह ब्लाग पसंद आ रहा है यह मेरे लिए हर्ष की बात है बहुत धन्यवाद
Om Namah Shivay…Merey Ishver ki mahima nyari…Me to…ho ja u baa vari baa vari… SatiPaarvati ke piya aur var..Mere to Viswa amber…Jay jay Shiv Shanker…Didi ka karana safal safer…
मैं ह्रदय से आभारी हूँ ,आपकी भावाव्यक्ति बहुत ही प्रभावी है,आपकी कवितामयी प्रतिक्रिया के लिए ,धन्यवाद
भगवान शिव के दसवे दिवयधाम त्र्यंबकेश्वर के अद्वितीय वर्णन की इतनी सूक्ष्म पकड़, शैली का इतना सुंदर निखार और भावनाओं की अभिव्यक्ति में इतना मार्मिक रसोद्रेक सब कुछ इस वृत्तांत में अनूठा है ! उर्जा को हर्षोल्लास के साथ समेट कर उसे परात्पर की विराटता की ओर ले जाने वाले आपके शब्द जिनमें सप्तर्षियों की प्रज्ञा, अनंत का चिंतन है ! जैसे एक प्रखर सूर्य शानदार गरिमा के साथ उगता है ! पुनःधन्यवाद आपका जो इस संक्षिप्त विवरण में आपने इतना कुछ कर दिखाया जिसकी तुलना शब्दों से परे है ! शिव के दिव्य धामों की आगे की यात्रा व्रतांत के लिए प्रतीक्षारत… !!
महेश तुम तो त्र्यम्बकेश्वर हो कर आए हो तुम को इस ब्लाग से बहुत सी नयी जानकारियाँ मिलीं यह जानकर ख़ुशी हुई,तुमने शिद्दत से प्रतिक्रिया लिखी है धन्यवाद,इसी तरह जुड़े रहना
आपके आध्यात्मिक यात्रा वृतानंत की लेखन शैली की पराकाष्ठा ने साक्षात् स्वयंभू के दर्शन लाभ करा दिये । आपने जिस लेखन शैली से शब्दों को संवारा है वो आज के परिवेश में देखने को नहीं मिलती। सधन्यवाद।
महेन्द्र तुमने पहली बार प्रतिक्रिया लिखी है द रोड डायरीज़ परिवार में तुम्हारा स्वागत है बहुत धन्यवाद इसी तरह लिखते रहो
त्रयम्बकेश्वर यात्रा का वर्णन भी आपकी अपनी शैली जो की अद्भुत एवं आकर्षित करने वाली है दो पर्वत ,ऐतिहासिक,आधात्मिक,सांस्कृतिक जानकारी, सबकुछ प्राप्त हो जाता है आपकी यात्रा का वर्णन पड़कर!कुल मिलाकर में यह कहूंगा कि यदि अपने यात्रा वर्णन का सम्पूर्ण अध्य्यन किया तो आपका यदि उस स्थान पर जाने का मौका लगे तो आपको किसी गाइड करने की आवश्यकता नहीं महसूस होगी। धन्यवाद् आपके अगले अंक का इंतजार रहेगा ।हर हर महादेव। ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन,यात्रा वृत्तान्त ,रास्ते के दृश्यों ने आपको प्रभावित किया यह जानकर बेहद ख़ुशी हुई आपको बहुत सारा धन्यवाद,हर हर हर महादेव
I read your travelogue on Triambakeshwar, Bhimashankar & Grishneshwar. The script is very nice, you are a journalist and have a fine quality of observation. Very nice in all aspects, excellent!
मोडक मैडम ,बहुत धन्यवाद,आप स्वयं शोधपरक अनुसंधान की पक्षधर हैं ,वरिष्ठ प्रोफ़ेसर होने के नाते मैं डर रही थी पर आपकी प्रतिक्रिया ने तो मेरे हौंसलों को उड़ान ही दे दी ,बहुत धन्यवाद
Aap ki lekhni ko sat sat namn
दीपक जी बहुत धन्यवाद भविष्य में भी द रोड डायरीज़ से आप यही अपेक्षा रखिएगा
लेख बहुत अच्छा है हम इस जगह पर जा चुके हैं लेकिन लेख पढ़कर लग रहा है जैसे दोबारा इस जगह पर पहुंच गए हो
विनय तुम्हें ब्लाग की सामग्री ने प्रभावित किया ,सक्रीय पत्रकारिता से जुड़कर भी तुम समय निकाल पाए ,बहुत अच्छा लगा
दिशा, अद्भुत वर्णन शैली है आपकी। रास्ते के छोटे छोटे पहलुओं को तो समेटती ही हो मगर अपने मूल मंतव्य को भी नहीं भूलतीं। बहुत बारीक चीज़ों का भी विस्तृत और सारगर्भित विवरण मिलता है इस यात्रा वृत्तांत में। प्रयास कर तलाशने पर भी ऐसा कुछ नहीं मिलता जो आपकी नज़रों से छूटा हो। हिन्दी तो उच्च स्तरीय और प्रमाणित है ही जो अब पढने सुने में नहीं मिलती। तीर्थ वृत्तांत के बारे में क्या कहना लगा नासिक और त्रयंम्बकेश्वर सब में वक्त बिता लिया। ऐसे ही लिखते रहें पाठक लाभांन्वित होंगे…एक बेहद अच्छे वृत्तांत की बहुत बधाई
ब्रजेश तुम दृश्य माध्यम के ज़रिए लोंगों को नोटबंदी की ख़बरें देने के दौरान भी ब्लाग के लिए समय निकाल पाए और फिर गहराई से प्रतिक्रिया भी लिख भेजी दिल ख़ुश कर दिया,ब्लाग से जुड़े रहने के लिए तहे दिल से शुक्रिया
Your article is really nice.Very well written.Like the way you described the journey. The weavers of Paithan will surely be benefitted by your article.
राजेन्द्र जी मुझसे जितना होगा पैठणी के बुनकरों के हुनर को आगे बढ़ाऊँगी आपको ब्लाग अच्छा लगा मुझे यह जानकर संतुष्टि हुई
तुम्हारे द्वारा हमने भी दर्शन कर लिए,हम नासिक भी गए थे पर इतना सब कुछ हमने नहीं देखा ऐसा पढ़ लो जाने के पहले तो मार्ग दर्शन मिल जाता है कहाँ खाना ,क्या देखना है जिसे देख रहे हैं उसका इतिहास क्या है,पैठणी साड़ी के बारे में तो बिलकुल नहीं पता था ,अगली बार तुम्हारी दृष्टि से श्री त्र्यम्बक क्षेत्र को देखेंगे ,बहुत सी उपयोगी जानकारियाँ मिलीं
मृदुला अवस्थी
मृदुला जी ,माँ नर्मदा के क्षेत्र से भेजी प्रतिक्रिया आपकी मन को भा गई ,आप एक बार और हो कर आइए नासिक,श्री त्र्यम्बक क्षेत्र,पवित्र मनभावन स्थलियाँ हैं ,पैठणी का अपना महत्व है ,बहुत धन्यवाद
Very nice
आशु आपकी प्रतिक्रिया पाना मुझे सुखद आश्चर्य के जैसा लगा ,दिल से धन्यवाद
दिशा ,त्रयंबकेश्वर की यात्रा और ज्योतिर्लिंग के दर्शन का लाभ घर बैठे कराने के लिए कोटिशः धन्यवाद।
गज़ब की आँख है तुम्हारी। क्या क्या देख लेती हो जाते जाते। धर्म की बात न भी की जाये टी संस्कृति और ग्राम्य जीवन के भी सजीव दर्शन होते हैं तुम्हारे ब्लॉग में।
येवला और नासिक के जन जीवन , साडी के शिल्प और स्थानीय लोगों के जीवन और रहन सहन की जो सहज जानकारी मिलती है वह अत्यंत रोचक होने के साथ साथ उपयोगी भी है।
भाषा को थोड़ा और सहज सरल रखा जाये तो और लोग पूरा पूरा आनंद ले सकेंगे।
आजकल हिंदी शब्दकोष सभी नहीं रखते । कई जगह इससे प्रवाह थम सा जाता है।
और पर्यटन के शौक़ीन लोगों के लिए अच्छी तथा उपयोगी माहिती भी मिलती है।
कुल मिला कर उत्तम।
अवस्थी सर,आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए हमेशा प्रेरणादायी होती है आप दूरदर्शन के समाचारों के सम्पादन के दिनों से बोलचाल की भाषा के पक्षधर रहे हैं ,हाँ आपने सही कहा मुझे छोटी से छोटी जानकारियाँ एकत्रित करना रूचता है,आपको दिल से धन्यवाद
Very nice Disha…..great writing, very much realistic. Keep the good work going!!!!
सपना तुम्हारा पत्र पढ़कर लगा,कि तुमने मन लगाकर ब्लाग पढ़ा है,इसी स्नेह को बरक़रार रखना बहुत सारा धन्यवाद
बहुत अच्छा वर्णन….नासिक दर्शनकरवाने के लिए धन्यवाद
अनिल जी बहुत धन्यवाद ,आप जो समाज सेवा कर रहे हैं वह अपने आप में अनुकरणीय है आपने वक़्त निकाला,यही बहुत है
Yatra varna padh kar man prasanna ho gaya. 2013 me mujhe bhi darshan karane ka saubhagya mila tha. Tumhare varna ko padh kar phir 1 bar yade taza ho gayi. Bahut khub disha. Keep it up.
नीता तुमने प्रतिक्रिया भेजकर मन ख़ुश कर दिया,तुम्हें अनेक धन्यवाद ,मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि मैंअपने पाठकों को बहुत सी नई जानकारियाँ मुहैया कराऊं
दिशा
यात्रा का इतना सजीव वर्णन और तुम्हारे प्रस्तुतिकरण के तरीके से मै बहुत प्रभावित हूँ ।
त्र्यम्बकेश्वर तो हम भी गये हैं, लेकिन तुम्हारे द्वारा कराई यात्रा से कई नई व रोचक जानकारियां मिल और आगे भी मिलती रहें……
मै सोचती हूँ पढ़ने मे इतना आनन्द आता है तो यात्रा करने मे कितना आता होगा… ☺
संगीता
संगीता ,यात्राएँ वाक़ई ज्ञानवर्धन करती हैं ,मन होता है संस्कृति धरोहर और आध्यात्म से परिपूर्ण इस देश के हर कोने से सामग्री एकत्रित करूँ और अपने पाठकों तक पहुँचा दूँ तुम्हें बहुत धन्यवाद।
दिशा बैण,नर्मदे हर?!!! तुमख त्रयम्बकेश्वर तीरथ यात्रा की घणी बधाई छे।तुम्हारा निमित सी बैण, हम खूब सारा शिव भक्त घर बठी न ज्योतिर्लिंग दर्शन को लाभ लई रहयाज। इनी काव भी तुमन एक-एक जानकारी दई न रास्ता की,धार्मिक कथा, पौराणिक मेत्व अरु शिव तत्व को खूब सुन्दर बखान करयो,की लग्यो हम खुद ही दर्शन करी रयाज।न भाषा खुबई सुंदर लिखोज तुम,बधाई का पात्र हो बैण ।? नासिक की भी पूरी ऐतिहासिक,पौराणिक जानकारी मिली गई हमख। धन्यवाद।फ़ोटो भी अच्छा छे बैण । मख एक वात अरु अच्छी लगी,पैठनी साड़ी की जानकारी।इनी यात्रा की तुमख खूब सारी बधाई।
पूनम इन्दौर
पूनम तुम्हारी प्रतिक्रिया पढ़कर कालेज के दिनों की यादें ताज़ा हो गईं जब हम लोग अपने -अपने निमाड़ी और मालवी ज्ञान की मीमांसा करते थे कितनी मिठास है इन बोलियों में ,कहीं भी सुनो या पढ़ो अपनेपन का अहसास करा देती हैं तुम्हें भी बहुत सारा धन्यवाद ,इतनी घुली मिश्री सी ज़ुबान में इतने विस्तार से पत्र लिखने के लिए और कालेज वाली पुरानी स्मतृियों में लौटाने के लिए इसी तरह ब्लाग पर आंचलिक भाषा की रसवर्षा करती रहना
आपका वर्णन बहुत ही सुन्दर है सभी पक्षों के समावेश के कारण पठनीय भी है जिस बात ने मुझे प्रभावित किया वह था मंदिर का शिल्प शास्त्र,मार्ग का सचित्र वर्णन,वृक्ष,खेत खलिहानों का सविस्तार उल्लेख,प्रतिमा का महत्व और पूजन की परम्परा का क्रमवार लेखन।आपका नासिक वर्णन राम कुण्ड,सीता तथा हनुमान कुण्ड समेत बहुत ही सुरूचिपूर्ण है ,हमारे उज्जैन से नासिक शहर का कुंभ का कनेक्शन जगज़ाहिर है महाराष्ट्र सरकार कुंभ की बेहतर व्यवस्था करती है हमें तो सातवाहन क़ालीन पैठणी साड़ियों के बारे में भी नयी जानकारियाँ मिलीं ,एेसे ही लिखती रहो ,आप पर महाकाल की कृपा हमेशा बनी रहे
पण्डित आनंद शंकर व्यास,ज्योतिषाचार्य उज्जैन
पण्डित जी,आपकीआर्शीवाद स्वरूप प्रतिक्रिया मिलने से मन प्रसन्न और संतुष्ट है,महाकाल की कृपा बनी रहे बस यही प्रार्थना है,आपको ब्लाग पढ़कर कई नई जानकारियाँ मिलीं यह जानना मेरे लिए सुकून भरा है इसलिए भी कि आप जैसे वयोवृद्ध धर्मप्राण,ज्योतिषाचार्य ,मनीषी द्वारा ब्लाग को पढ़ लेने मात्र से मन तृप्त हो जाता है आपने तो प्रतिक्रिया भेजकर मेरा हौसला बढ़ा दिया,चरण स्पर्श
दिशा बहुत बढ़िया हर बार की तरह इस बार भी तुम्हारी लेखनी ने बहुत प्रभावित किया शब्दो का चयन बहुत उम्दा है पैठणी साड़ी के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी पहली बार मिली। वैसे तो इस यात्रा में उल्लेखित स्थानों को मैं देख चुकी हूं पर इस रोड डायरीज को पढ़ कर पुनः दर्शन की लालसा बढ़ गई है इतनी गूढ़ व उपयोगी जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद्
अर्चना तुम हाल ही में धर्म स्थल की यात्रा करके आई हो तुम्हें मेरा ब्लाग अच्छा लगता है मुझे तुम्हारा ब्लाग में दिलचस्पी लेना अच्छा लगता है तुम सबका ब्लाग के प्रति स्नेह मुझे बेहतर और उम्दा लिखने के लिए ज़्यादा मेहनत करने की प्रेरणा देता है बहुत धन्यवाद
Disha Ji, perfect description of the trip. So well narrated that I felt like a part of this journey. I appreciate the in depth explanations of even small things. It’s so nice to learn such interesting places and have darshan through yours.
Apologies for late comment due to overseas traveling yet.
Thanks
विवेकानंद जी आपकी व्यस्तता मैं समझ सकती हूँ पर सात समुन्दर पार आप ब्लाग को पढ़ रहे हैं बल्कि उसमें गहराई से दिलचस्पी भी ले रहें हैं मेरे लिए यही बहुत मायने रखता है भविष्य में भी एेसे ही संवाद का क्रम बनाए रखना ,बहुत धन्यवाद
आप का नया लघु यात्रा वित्रांत भगवान शिव के दसवें ज्योतिलिंग के श्री त्रयम्बकेश्वर का अत्यत रमणीक वर्णन पढ़ने को मिला ।जिसे बार-बार पढ़ने से और भी इच्छा प्रबल ही होती जाती हैं ,इसके साथ -साथ आपका शब्द चुनाव इतने सहज भी है और सटीक भी जो आज किंचित ही देखने को मिलता है जैसे सँझा का आसमानी वर्णन में ललछोयी रंग की उपमा सहज ही अपना ध्यान खींचती है।साथ ही नासिक शहर का वर्णन भी बड़े ही प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है।और जिसमें यह भी पता चला की नासिक शहर का संबंध भगवान राम से जुड़ा है।पैढ़नी साड़ियाँ कि खूबसूरती भी आपकी कलम से और निखरती हुयी दिखायी पड़ती है ।
सर आप उत्तरप्रदेश के हैं इसीलिए आप ललछौंही आकाश को महसूस कर पाए,आपकी प्रतिक्रिया बहुत सधी हुई है ,विलम्ब से मिली आपकी ईपाती ने मेरा भरपूर उत्साहवर्धन किया है अतिशय धन्यवाद
Apki shradha aur lagan ko pranam. Humey bhi 2012 mey dershan ka saubhagya mila, parantu ye vistrit dershan aj huye, pyar bhara dhanyavad.
इरा जी संक्षेप में आपने प्रशंसा कर दिल जीत लिया ,आपने ब्लाग के माध्यम से त्र्यम्बक दिव्य क्षेत्र की पुन: यात्रा कर ली यह मेरे लिए संतुष्टि का विषय है बहुत धन्यवाद
दीदी प्रणाम
आपने हमें जहा की अणु -रेणु तीर्थ स्वरूपा हे ।
मेने साक्षांत दर्शन कर लिये रेशम जरी.पैठणी वस्त्र बनाने का तरीका.कुण्डो का विवरण अस्थियो का विवरण.तीर्थ स्थलो के बारे में ओर भी बहुत सारी जानकारियाँ मेने साक्षात दर्शन कर लिये आपका आभार .
श्याम, तुम्हें ब्लाग के सभी पहलुओं ने प्रभावित किया यह जानकर प्रसन्नता हुई,धन्यवाद,इसी तरह ब्लाग से जुड़कर आगे भी लिखते रहना
वाह वाह पुनः आपके द्वारा एक धाम का दर्शन हो गया ।
कभी मौका मिले न मिले इन तीर्थो जाने का आपके द्वारा सकल तीर्थ का दर्शन हो गया।।
पुनि पुनि कोटि सा धन्यवाद
कमल ,आपको बहुत धन्यवाद,आप हमारे साथ बने रहिए ईश्वर की कृपा बनी रहे इसी प्रकार हम हर माह तीर्थ यात्रा पर जाएँगे।