लोकनाट्य, लोक की श्रमशील स्थितियों, संघर्षों, प्रकृतिजन्य बाधाओं और सामजिक आवश्यकताओं की भावभूमि पर यथार्थ की उपज होते हैं। भोपाल स्थित जनजाति संग्रहालय के सभागार में उज्जैन के खेमासा गाँव की महावीर माच मंडली के राजा भरथरी के प्रदर्शन में हमने यही अनुभूत किया। मालवा के प्रतिष्ठित, समर्पित और मर्यादित माचकारों में गुरु सिद्धेश्वर सेन का नाम आदरपूर्वक लिया जाता रहा है। उन्हीं की कलमबद्ध रचना को मंचित करती राजा भरथरी की पारम्परिक प्रस्तुति में रंगतों, हलूर, लावणी और लोकधुनों के साथ झुरना का सराहनीय समन्वय दिखाई दिया। पौरुष प्रधान अभिनय और नृत्य की समन्विति वाली यह लोकनाट्य शैली मुक्त कण्ठ की …