धूप का सूट पहन पीताभ-धवल फूलों की टाई लगा ऋतु का राजकुमार आज स्वयं सड़कों पर उतर आया हो, कुछ ऐसी ही अनुभूति हमें महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में औरंगाबाद से बीड़ जिले की परली तहसील जाने वाले मार्गों पर हो रही थी। अपनी आध्यात्मिक यात्रा के सांतवें चरण में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के गणनाक्रम में पांचवें स्थान पर प्रतिष्ठित श्री परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शिव धाम हमारा अगला गंतव्य स्थल था। 212 किमी की साढ़े चार घण्टे की यात्रा में NH-82 और परली-बीड़ राजमार्ग से गुजरते हुए हम बसंत के आगमन से पुलकित धरा, मौसमदार कपास, अंकुराए ज्वार-बाजरा और गन्ने के खेत, पुल के नीचे अलसायी लेटी वान नदी, बबूल की फुन्गियों पर झिलमिलाते सूर्य का बिम्ब निहारते हुए सम्मोहित हुए जा रहे थे कि सहसा हमारी दृष्टि माजलगांव में तमाशा मण्डली के प्रचार वाहन पर पड़ी। लोक संस्कृति की श्रृंगारिकता वाली इस शैली का प्रादुर्भाव सातवाहन काल से माना जाता है। भक्तिरस से परिपूर्ण प्रहसन और पारंपरिक नृत्यों वाली ऐसी बहुतेरी मण्डलियां महाराष्ट्र के सतारां, सांगली, सोलापुर, कोल्हापुर और अहमदनगर जिलों से पर्व और त्यौहारों के अवसर पर आयोजित होने वाले मेलों में अन्य जिलों में प्रदर्शन करने आती हैं। यह बात और है कि काल के परिवर्तन के प्रभाव से तमाशा मण्डलियॉं भी अछूती नहीं रह पायी हैं। आगे मार्ग में क्षितिज छूती पर्वत श्रृंखलाओं ने ध्यान आकृष्ट किया। पुणे के भूगोलशास्त्री अभिनव कुरकुटे ने इस क्षेत्र में हरिश्चन्द्र गढ़ रेंज की जानकारी साझा की। हम सोचने लगे सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र भी वाराणसी से ऐसे ही आये होंगे, वानप्रस्थाश्रम ग्रहण कर जंगलों और पहाड़ों को पार करते हुए फिर बाद में रानी (शैव्या) तारामती और पुत्र रोहिताश्व भी यहीं आ गये होगें। हमारी निगाहें रोहिताश्वगढ़ और तारामतीगढ़ पर्वतश्रृंगों को तलाश रही थीं।अभिनव जी ने इसके लिए अहमदनगर जिले का रूख करने की सलाह दी, चलिए फिर कभी देखेंगे।
औरंगाबाद से परली की यात्रा में हरिश्चन्द्र गढ़ रेंज
1890 में दो इतालवी व्यापारियों कैजिओं और गुस्ताव उल्सी ने इस क्षेत्र विशेष में 52(जिनें) धुनाई बिनाई सूत केन्द्र खोले
यही सोचकर हम आगे बढ़ गये। सड़क के दोनों ओर कंटीली झाड़ियों में उलझे, रूई के अनगिनत फाहों के पीछे से झांकते, उत्साही बच्चों की तरह नए नवेले पत्ते पहने वृक्ष ‘बसंत का तमाशा’ देखने के लिए व्याकुल से लग रहे थे। स्थानीय किसानों से कपास की व्यापकता के बारे में मालूम किया तो यहां की उर्वरा भूमि पर चार हाथ नीचे तक काली मिट्टी होने की बात सामने आयी, जो कपास की पैदावार लेने के लिए अत्युत्तम व्यवस्था है। हम सोच रहे थे सम्भवतः यही कारण रहा होगा जब 1890 में दो इतालवी व्यापारियों कैजिओं और गुस्ताव उल्सी ने इस क्षेत्र विशेष में 52(जिनें) धुनाई बिनाई सूत केन्द्र खोले होंगे। यही नहीं उन्होंने मुनाफे की राशि श्री वैद्यनाथ अराध्य देवस्थान फण्ड में देने की प्रथा भी प्रारम्भ की थी। उनकी आसक्ति और अतिदान से मुग्धवत उन्हें देव संस्थान का जनरल सेक्रेट्री तक बना दिया गया था। वर्तमान में भी यह फण्ड विद्यमान है और यहां के व्यापारी अपने मुनाफे का दो टका स्वयंस्फूर्त फण्ड में जमा भी कराते हैं। आगे औष्णिक विद्युत केन्द्र की भीमकाय चिमनियों का नजारा लेते हुए अब तक दीर्घायुकारिणी दक्षिण की काशी ‘परली’ में हमारी प्रविष्टि हो चुकी थी।
अद्भुत और आलौकिक स्थल,,,
आपके इस सातवें यात्रा वृतांत के लिए बहुत बहुत बधाई,,
संदीप मुझे तुम्हारा तत्परता से प्रतिक्रिया देना हर बार अच्छा लगता है एेसे ही साथ -साथ यात्रा करते रहना ,बहुत धन्यवाद
महान शिवभक्त दिशाजी मॅडम यांचे आभार व त्यांचे कौतुक करण्यासाठी माझ्या कडे शब्दच नाहीत . त्यांनी माझ्या जन्मभूमीत येवून .प्रभू वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग तिर्थ क्षेत्रा बद्दल अतिशय आपुलकिने आणी श्रध्देने लिखाण केले आहे .ते वाचून आम्हा परळीकरांचे मन तृप्त झाले .
आमच्या तिर्थ क्षेत्रास प्रभू वैद्यनाथांमुळे सिध्दी प्राप्त आहे .परंतू आपण यास प्रसिद्धी देवून
देवाची महती जगासमोर आणली .
आपले मनःस्वी आभार
आपला
गोपाळकृष्ण रावसाहेब आंधळे
सभापती
शिक्षण ,क्रिडा व सांस्कृतीक कार्य समीती
नगरपरिषद परळी वैद्यनाथ
आंधले जी,आपका सहयोग न होता तो हमारे लिए परली पर लिख पाना मुश्किल था,आपने ब्लाग की प्रशंसा की इसके लिए हार्दिक धन्यवाद ,आपसे अनुरोध है आगे भी ब्लाग से जुड़े रहिएगा
बहुत खूबसूरत साहित्यिक शब्दों का प्रयोग
पूरे लेख में पाठक को बाँध कर रखने की कला अच्छी तरह जानती हो तुम ..? ? ?
प्रिय सखी मुझे नाज़ है तुम पर ..!!!!!
दीपा तुम्हारी प्रतिक्रिया ने मेरे दिल को छू लिया ,स्कूल के दिनों की यादें ताज़ा हो आईं बहुत धन्यवाद
आप किसी विषयवस्तू को जब हाथ लगाती है।लेखन करती है ।आपके प्रयत्न आपकी लगन हर शब्दमें नजर आती हैं। आपका ये लेखन हर ज्योतिर्लिंग के अनछुये पहेलु प्रगट करता है। आपने कैलास मंदिर का उल्लेख करके वादा निभाया धन्यवाद
योगेश जी पहले तो बहुत सारा धन्यवाद ,आपकी मदद के बग़ैर लिख पाना संभव नहीं था ,मुझे अपना वचन निभाना तो था ही,आपको अच्छा लगा इस बात की संतुष्टि है
बहुत खुब वर्णन.
वर्षा तुम्हारी प्रतिक्रिया के लिए बहुत धन्यवाद,तुम महाराष्ट्र से मेरे ब्लाग को सराह रही हो मुझे बहुत अच्छा लगा
हमेशा की तरह विस्तृत और शोधपरक यात्रा विवरण जो नास्तिकों में भी आस्तिकता जगाने के लिये उपयोगी है। पौरोणिक कथाओं का संदर्भ के साथ उनकी प्रासंगिकता फिर उसे आज की नजरों से तलाशना इस वर्णन को अलग उंचाई पर ले जाता है। मन होता है काश इसे पत्रिका के पन्नों पर पढते तो आनंद बढ जाता । दिशा की मेहनत को प्रणाम
ब्रजेश तुम पत्रकारिता के दृष्टिकोण से विवेचन कर रहे हो यह मेरे लिए और भी आनंद का विषय है यही है जो मुझे गहरे और गहरे उतरने की उत्सुकता पैदा करता है तुम्हारी नास्तिकता में आस्तिकता वाली बात में भी बहुत गहराई है ,बहुत धन्यवाद
अभिभूत हु आप की यात्रा का दर्शन कर।
दीपक जी ,प्रतिक्रिया भेजने के लिए बहुत सारा धन्यवाद
एक और शानदार धार्मिक यात्रा कराने के लिए धन्यवाद
विनय तुम उ.प्र के चुनावों से समय निकालकर आध्यात्मिक यात्रा में सम्मिलित हुए मेरे लिए यही बहुत मायने रखता है
Ek or sandar yatra k lie dhanyabad bhut khub romanchit krne vala varnan
राहुल,बहुत धन्यवाद,तुम तो आध्यात्मिक यात्रा के पहले चरण से साथ हो आगे भी बने रहना
बसंत का प्रारंभ,ऋतु की खेती,प्रकृति की सुंदरता,लोक संस्कृति की एतिहासिकता,परली का महत्व, मेरुपर्वत,पूरण पोली की महक,बिना सूंड के गणेश जी इत्यादि। एक और धार्मिक यात्रा में आपके साथ हमसफ़र बनने के लिए साधुबाद। मेरे पास शब्द नहीं है क्या कहूं में। हर हर महादेव ।धन्यवाद।
कमल ,आपने भी हरेक पक्ष को गहराई से पढ़ा है और पत्र भी बहुत शिद्दत से लिखा है हार्दिक धन्यवाद ,आगे भी जुड़े रहियेगा
Aap ki lekhni me sabse aachhi baat ye hai ki aap Kisi bhi vishay ko chhodti nahi hein. Aap ke varnan me paryavaran, itihas, dharma shastra or bhi sab hota hai jo samjhne me saral or rochak hota hai. Aap ke is Karya aur prayas Ke liye aap sadhuvad ki patra Hein. Shiv ji aap ke raksha karein.
पं. देवेन्द्र दुबे. सागर
देवेन्द्र जी आपको लेख रूचिकर लगा बहुत धन्यवाद,सकारात्मक परिश्रम को जब आप जैसे लोगों का आर्शीवाद मिल जाए तो मन प्रसन्न हो जाता है ।
Bahut hi khubsurat Anand Dayak Manohar I varnan h bhagwan Shri bejnath baba ka varnan me bhasha bahut pravahman aur hraday ko sparsh karti h….Jai Shri parlibaiznath baba ki.
राजेन्द्र ,तुम लगातार रोड डायरीज़ पढ़ते हो और उतने ही उत्साह से प्रतिक्रिया भी भेजते हो ऐसे ही जुड़े रहना बहुत धन्यवाद
बसंत के आगमन से पुलकित धरा, मौसमदार कपास, अंकुराए ज्वार-बाजरा और गन्ने के खेत, पुल के नीचे अलसायी लेटी वान नदी, बबूल की फुन्गियों पर झिलमिलाते सूर्य का बिम्ब निहारते हुए सम्मोहित हुए जा रहे थे….
हम सोच रहे थे सारे विभेदों, विरोधाभासों को तज कर शंकर का शमशान निवास, उनका सर्वांगीपन, उनका विषपान, उनकी उन्मतत्ता, उनकी सर्वशक्तिमत्ता, उनकी सर्वज्ञता, सर्वतन्त्र-स्वतंत्रता को समझने के लिए हम सब शिव जैसा आचरण करें तो कितना अच्छा हो।…
भोपाल लौटते हए मार्ग में अजन्ता और सतपुड़ा की पर्वतमालाओं को पीछे छोड़ते हुए, अमराई की उमंग में तिरते हुए, नानी की कहानी में अक्सर आ जाने वाले शिव के तीन नेत्रों की भांति दिखने वाले पलाश के ज्वाला स्वरूपी लाल
पुष्पों को बटोर-बटारकर और ढाक के तीन पान वाली कहावत को याद करते हुए हम अपने शहर की सरहदों में दाखिल हो गए।
दिशा जी… आप तो लाजवाब लिखती हैं। भाषा पर गहन पकड़… इतिहास की अद्भुत जानकारी…शब्दों का सटीक चयन… मृत्यु को मंगलकारी… स्तम्भों के पीछे की पूरी कथा… शोधपूर्ण लेखन। प्रकृति पूर्ण परिवेश…. वाह।… जैसे कोई लेखक चित्रकार… शब्दों से चित्र बनाता चल रहा हो। और हम बरबस मूक दृष्टा की तरह उसके साथ बस शिवमय हो एक अनंत यात्रा पर निकल पड़े हों।……
अमित जी,आपकी स्वयं की लेखनी बहुत प्रभावी है लेखक के तौर पर आपकी सराहना से मैं गदगदायमान हूँ ,आपने एक -एक शब्द को जज़्ब किया है यह मेरे लिए अहमियत रखता है,एेसे ही लिखती रहूँगी आप भी एेसे ही हौसला बढ़ाते रहिएगा ,बहुत धन्यवाद
आपका वर्णन पढ़कर एेसा लगता है जैसे कोई चलचित्र चल रहा हो,विवादों से बचकर सरलता और तरलता के साथ आपने परली के स्थान महात्म्य का बड़े ही सुन्दर शब्दों में विवरण दिया है समझ लीजिए आपने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली ,एेसा मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मेरे गुरू प्रवचन केसरी वरिष्ठ दार्शनिक श्री भालचन्द्र शास्त्री मुले कहा करते थे जिसने परली पर लिख लिया समझ लीजिए उसने परीक्षा पास कर ली आपने तो अव्वल नम्बर में पास कर ली है ,हम संशोधकों के पास सामग्री तो रहती है पर शैली नहीं होती आपके पास शैली भी है और संशोधन करने की जिज्ञासा भी है आपके लेखन में गध और पध का सुंदर सामंजस्य है परली के ऊपर इतना विस्तृत ,गहन शोध के साथ लिखा गया लेख पढ़ने को नहीं मिलता ,इन्टरनेट के पाठकों को बिना किसी लाग लपेट के इतना सटीक लेखन पहुँचाने का काम आपने पूरी ज़िम्मेवारी के साथ निभाया है।
राजेश दीक्षित,त्र्यम्बक
राजेश जी किन शब्दों में आपका धन्यवाद करूँ ,शब्द भी कम पड़ जाएँगे ,आप सभी से तो सीखा है ,लेखन की यह शैली और हिन्दी की सेवा तो मुझे विरासत में मिली है ,अभी तो बहुत काम करना बाक़ी है कितना कुछ है समेटने को ,आप के गुरू को प्रणाम करते हुए मैं यह तो स्वीकार करूँगी कि परली पर लिखना अन्य ज्योतिर्लिंगों की अपेक्षा कठिन था लेकिन कठिनाइयों ने और उत्साह बढ़ाया और शिव जी की कृपा से सब आसान हो गया ,फिर आपका भी आशीष मिल गया ,हमारे महाराष्ट्र के ज्योतिर्लिंगों की यात्रा सम्पन्न हो गई पर इतने भले विद्वानों से जुड़ गए इन दिनों में कभी सोचा न था इतने सुधि पाठक मिले सब सदाशिव की कृपा है।इंटरनेट संस्कृति का यह एक सुखद पहलू है।
दिशा जी अपने पूर्व ज्योतिर्लिंग का जेसा लिखा है बैसा ही परली बैजनाथ ज्योतिर्लिंग एवं इतिहास की अद्भुत जानकारी जो की है बह बहुत ही सुन्दर है एवं आगे के ज्योतिर्लिंग की यात्रा की लेखनी का इंतजार रहेगा
कमल जी आपकी प्रतिक्रिया हर बार मेरा हौंसला बढ़ाती है आगे भी बढ़ाती रहे इसी उम्मीद के साथ ,बहुत धन्यवाद,
परली बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा का विवरण बहुत ही सुन्दर है पड़कर ऐसा लग रहा था की हम भी बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की हर जगह के दर्शन कर रहे हो साथ ही साथ आपने हमे प्रकृति की सुंदरता,लोक संस्कृति की एतिहासिकता,परली बैजनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व के वारे में जानकारी दी आपकी हर एक यात्रा के वृतांत में हमे कुछ न कुछ नया मिलता है आपकी अगली लेखनी का हमे इन्तजार रहेगा ………..
अंकिता,तुम्हारी प्रतिक्रिया से दिल ख़ुश हो जाता है ,इतनी सी उम्र में तुम आध्यात्मिकता के सफ़र में हमारे साथ अब तक जुड़ी हो अपनी उम्र की और लड़कियों को भी जोड़ो।
बाबा परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा का विवरण बहुत ही सुन्दर है महान शिवशक्ति जिसका अदि है न अंत है ऐसे भोले नाथ के ज्योतिर्लिंग के दर्शन हम आपके लेखनी के माधयम से हो रहे है …..
जय,तुमने मेरे ब्लाग को पढ़ा अच्छी बात है इसे अपने युवा साथियों से ज़्यादा से ज़्यादा जोड़ने के प्रयास करना ,बहुत धन्यवाद
आपका आलेख बहुत अच्छा है पूजा और विधि विधान के बारे में जो जानकारी आपने दी है साथ ही परली का जो पौराणिक महत्व बताया है वह बहुत ही अच्छा लगा।
कैलाश जोशी ,एेलोरा
कैलाश जी आपको बहुत धन्यवाद, परली वैधनाथ ज्योतिर्लिंग के महत्व और पूजा के तौर तरीक़ों को ब्लाग के माध्यम से आप जान पाए यह भोलेनाथ की कृपा दृष्टि से ही मुमकिन हो पाया है
पंकज द्विवेदी ,श्री विंध्यवासिनी देवी स्थान
आपकी रचना अति सुन्दर है,जिस तरह आप संग्रह कर सामग्री एकत्रित करती हैं और फिर उसे अपनी शैली में ढालती हैं वह प्रशंसनीय है माता रानी आप पर यूँ ही कृपा बनाए रखें।
पंकज जी आपको ब्लाग में मेरे द्वारा जुटाई सामग्री अच्छी लगी यह जानना संतोषप्रद है देवी माँ की कृपा से ही बुद्धि और शक्ति मिल रही है,बहुत धन्यवाद
मैंने आपके महाराष्ट्र के सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे में पढ़ा बहुत ही सुन्दर ,तार्किक वर्णन,आपका संग्रह बहुत ही बढ़िया है और शैली बहुत प्रभावकारी है,??✍
हरीश जी गुजरात के श्री नागेश्वर शिव धाम से आई आपकी प्रतिक्रिया से यह जानकर संतोष हुआ कि आपको महाराष्ट्र के पाँचों ज्योतिर्लिंगों के बारे में ब्लाग में दी गई सामग्री बेहतर लगी है बहुत धन्यवाद
आपने ब्लाग के माध्यम से देश के अलग अलग हिस्सों में स्थापित बारह ज्योतिर्लिंगों के विषय में सही जानकारी देकर अपनी लेखनी का सटीक उपयोग किया है। आपके इस पोस्ट से ख़ासकर बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल की बिहार से सटे इलाक़े एंव आसाम के लोगों को सही जानकारी मिलेगी जो लोग बारह ज्योतिर्लिंग में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित बैद्यनाथ को मानते है।
भानू जी आपकी प्रतिक्रिया बेहद सटीक और प्रासंगिक है आपने जिस विषय के स्पष्ट होने की बात लिखी है वाक़ई यही मेरे लिए भी कौतूहल भरा था अगर मैं अपने लेखन से कुछ तर्क आधारित विश्लेषण कर पाई हूँ तो मैं समझूंगीं मेरा परिश्रम सफल हो गया हार्दिक धन्यवाद
आपका आलेख सर्वांग सुन्दर है ,महाराष्ट्र की लोकधारा तमाशा,बसंत , खेत खलिहान वग़ैरह शब्दों की कारीगरी के साथ आपने जो परली का वर्णन किया है वह अद्भुत है।
राजेन्द्र कौशिके,एलोरा
राजेन्द्र जी आपका पत्र मेरे लिए महत्वपूर्ण है आपको लोकसंस्कृति और जनजीवन के अतिरिक्त परली की महिमा वर्णन ने प्रभावित किया यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई ,बहुत धन्यवाद
दिशाजी .
सस्नेह नमस्कार .
आपका परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे मे ब्लॉक को पढकर मन प्रसन्न हुआ आप के ब्लॉक में शब्दो का प्रयोग अद्भुत तथा अद्वितीय है . शब्द कि रचना मन मोहित कर देती है . आप के विचार यानी शब्दकोष का भण्डार है . ये निरन्तर बढ़ता रहे यह शिव के चरणों में प्रार्थना है
औरं आने वाले नये ब्लॉग के लिये शुभकामना …
जय घृष्णेश्वर जय महादेव ….संतोष पैठनकर ,एेलोरा
संतोष जी ,आपकी स्नेहमयी प्रतिक्रिया पाकर मन अतिप्रसन्न है आपको लेख स्तरीय लगा यह जानकर बेहद सुकून मिला,आप आगे भी जुड़े रहिएगा ,अतिशय धन्यवाद
अद्भुत और आलौकिक स्थल,,,
आपके इस सातवें यात्रा वृतांत के लिए बहुत बहुत बधाई,,मैंने आपके महाराष्ट्र के सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे में पढ़ा बहुत ही सुन्दर ,तार्किक वर्णन,आपका संग्रह बहुत ही बढ़िया है और शैली बहुत प्रभावकारी है।
रिया तुम्हें ढेर सारा धन्यवाद,तुम्हें ब्लाग पसंद आया,आलेख के तथ्यों और पौराणिक संदर्भों ने तुम्हें प्रभावित किया यह हर्ष का विषय है एेसे ही जुड़े रहना
परली के वैद्यनाथ का दर्शन कर धन्य हुआ । आपके सजीव वर्णन ने इस भक्तिमय यात्रा को और सुरुचिपूर्ण बनाया । पिछले सारे वृतांतों ने द्वादश ज्योतिर्लिंगों की परिक्रमा का जो सुख दिया है उसके लिए आपको अनेको साधुवाद।
शैलेष जी ,आप हमारी आध्यात्मिक यात्रा का आनंद ले रहे हैं यह जानकर बहुत अच्छा लगा ,द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा में हमारे साथ जुड़े रहिएगा आप जैसे गुणीजनों का साथ रहेगा तो लेखनी में और स्वत:निखार आता जाएगा
बहुत सुन्दर विवरण। भाषा सशक्त। अभिव्यक्ति जीवंत । पढने के साथ साथ उस क्षेत्र से साक्षात्कार हुआ।लिखना जारी रखें।
अरूण सर,आपकी प्रतिक्रिया मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देती है,आप एेसे ही ब्लाग से जुड़े रहिएगा पत्र लिखकर अपने विचार साझा करते रहिएगा,बहुत धन्यवाद
dear mam ji ,
i have read the road show of maharastra. excellent material for the tourists as well as for researchers. thank you very much .
opmisra
मिश्रा सर,आपका स्नेह ही मेरा संबल है आप जैसा विद्वान पुरातत्व शास्त्री जब ब्लाग को रूचिकर ठहराता है तो हौसलों को पंख लग जाते हैं अनेकानेक धन्यवाद
Mohak aur vistrit vernan , kab yatra sampoorn ho gai pata nahi laga, thoda aur dhyan den to Shiv dershan pe mahakavya tayar ho jayega. Jo anmol dharoher hoga.
इरा जी आपकी प्रतिक्रिया हमारे हौंसलों को पंख लगा देती है,शिव जी की कृपा रही तो महाकाव्य बन ही जाएगा ,आपकी शुभकामनाएँ मिल गईं अब रास्ते खुदबखुद बनते जायेंगे
बसंत रितु एवं महाराष्ट्र की प्रष्ठभूमि का सजीव चित्रण शुरुवात् को रोचक बनाता ही है किवंदतियों और परंपराओ का विस्त्रत वर्णन वही पर रच बस जाने का अहसास कराता है
कुशाग्र लेखन
अभिनंदन
निशान्त,बहुत धन्यवाद बिलकुल सही हमारे पुण्य शिव धाम हैं ही एेसे आप एक बार दर्शन कर आइये वहाँ की सात्विकता आपमें रच बस जाती है ।
आपकी लेखनी बहुत ही प्रभावकारी है,वाक्यविन्यास,शब्दों का चयन उच्चस्तरीय है,आपने परली के संबंध में लिखा है उसमें निःसन्देह गहन चिन्तन,पड़ताल,विचार मन्थन है।आपसे माँ सरस्वती आगे भी बहुत उच्च स्तर का लिखवाएँ यही आशीष है
पुरूषोत्तम लोहगांवकर, त्र्यम्बक
अदभूत और अकल्पनीय परली वैदयनाथ ज्योतिर्लिंग शिवधाम का शाब्दिक सजीव सचित्र चित्रण साक्षात एक शिवधाम यात्रा की ओर खींच ले जाता है, आपके प्रत्येक ब्लाग में विषय ओर स्थान से जुडी प्राचीन घटनाओं का वर्णन अद्वितीय है।
महेन्द्र बहुत शुक्रिया,तुमने ब्लाग को मन लगाकर पढ़ा शिवधाम से जुड़ी कथाओं और परंपराओं को आत्मसात किया,यह जानकर बहुत अच्छा लगा
आपके कार्य की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है ,आपके लेख को पढ़ने के बाद मेरा भी मन हो रहा है कि मैं परली जाकर श्री वैधनाथ जी के दर्शन कर आऊँ।एेसे ही आध्यात्मिक यात्राएँ कराते रहिए।
मंगेश चांदवड़कर , त्र्यम्बक
मंगेश जी,आपकी चिठ्ठी पढ़कर अच्छा लगा आपने ब्लाग में रूचि ली यही मेरे लिए काफ़ी है आप परली ज़रूर जाइए मेरा ब्लाग आपके किस रूप में मददगार साबित हुआ यह अवश्य बतलाइयेगा
आपने बहुत ही अच्छा लिखा,भास्कराचार्य वाला संदर्भ,गणेश जी और देवी स्थानों की पौराणिक पृष्ठभूमि ,पूरनपोली और लड्डू का नैवेध ,सब कुछ अद्भुत है।अमृतकूपी और अन्य जलाशयों के बारे में जो उल्लेख आपने किए हैं उनसे हमें एक नई दिशा मिली है हम लोग समुद्र मंथन के संबंध में शोध कर रहे हैं,नेवासा की प्रवरा नदी (अमृतवाहिनी )भी हमारे शोध का विषय है और आपके आलेख से हमें कई नए बिन्दु मिले हैं जिन्हें जोड़कर देखने की ज़रूरत है आप लिखिए एेसे ही, हमारा आर्शीवाद आपके साथ है
संकेत दीक्षित,त्र्यम्बक
संकेत गुरू जी आप का पत्र पाकर यह नई जानकारी मिली कि कोई शोध आप कर रहे हैं जिसमें नेवासाऔर प्रवरा भी सम्मिलित हैं मेरा ब्लाग अगर आपके शोध में काम आए तो मुझे बताएँ स्थान महात्म्य की पूरी पोथी मराठी में ही है ,बहुत धन्यवाद
Dear Disha,
I recently had the good fortune of reading your article. It is so beautifully written that I was feeling that I was with you on that journey. I am very proud of you Disha. God bless you.
रेखा मैडम,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रफुल्लित हो गया वैसे ही जैसे आपकी रसायन शास्त्र की प्रायोगिक कक्षा में पदार्थो को पहचानने की मशक़्क़त के दौरान एक आद अव्यव के ही सही निकल जाने पर हुआ करता था बहुत सारा धन्यवाद,एेसे चौंकाने वाला पत्र भेजकर शुभेच्छा व्यक्त करने के लिए।
दिशा जी
हमेशा की तरह यात्रा वृतांत जीवंत, प्रेरणा दाई और जिज्ञासा को शांत करने वाला रहा. मैं आपकी लेखनी का सदा ही प्रशंसक रहा हूं परंतु इस लेख की भाषा ने तो मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया . प्रकृति वर्णन ,लोक संस्कृति की उपादेयता ,परली का महत्व जिससे कम लोग ही परिचित हैं और आध्यात्मिक पक्ष का कागज पर उत्कीर्णन बहुत बहुत बधाई
शुभकामनाए
राजन सर,आपकी स्नेहमयी प्रतिक्रिया के लिए बहुत सारा धन्यवाद,आप स्वयं कितना सुन्दर लिखते हैं और जब आप जैसा रचनाकार तारीफ करता है तो यह तसल्ली रहती है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं।
दिशा
मानना पड़ेगा, तुम्हारे लेखन में बहुत ओज है, बहुत वेग है प्रवाह है। इतनी बारीक नज़र कहाँ से लाती हो? यात्रा के मूल लक्ष्य के इतर भी मार्ग में आने वाले गाँवों और कस्बों की जीवन चर्या ,सामाजिक स्थिति, जनजीवन , लोक संस्कृति और इतिहास भूगोल का भी अत्यंत सहज भाव से प्रस्तुतीकरण तुम्हारी विशेषता बनती जा रही है। जहाँ तक यात्रा के धार्मिक पहलू का प्रश्न है, तुम्हारे इस विवरण से मेरे ज्ञान में वृद्धि हुई है। मुझे परली के बारे में बहुत कम जानकारी थी। मुझे अच्छा लगा।
बहुत ही अच्छा विवरण। बधाई।
अवस्थी सर,आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए स्फूर्तिदायक होती है आप इतनी सकारात्मकता भरी पाती लिखते हैं कि मन अति आनंदित हो जाता है,और दूने उत्साह से नई खोज में लग जाता है,बहुत धन्यवाद
आपका आलेख विलोभनीय है आपने सविस्तार परली के महत्व का वर्णन किया है,आपने यात्रा वृत्तान्त के रूप में लिखा है इसलिए वह रोचक भी हो गया है,अंबाजोगाई और नामलगांव वाला विवरण भी पठनीय हैं
कैलाश शिखरे,त्र्यम्बक
कैलाश जी,आपकी प्रतिक्रिया मेरे आगामी आलेखों को और भी बेहतर अंदाज में प्रस्तुत करने की प्रेरणा देती रहेगी
हमेशा की तरह उम्दा, शोधपरक लेखन…..डॉ शिवाकान्त वाजपेयी ,औरंगाबाद ,महाराष्ट्र
डॉ वाजपेयी ,आपको बहुत धन्यवाद,आपने आलेख को शोधपरक और उम्दा कह दिया मेरी मेहनत सफल हो गई सर,?
दिशाजी आपके लेख के बारे में मै क्या कहूँ , आपका लेख इतना सुंदर और सटीक होता हैं कि सच में उसके उपरांत हम लिख नही पाते।
✍?????
आप ऐसे ही लिखते जाएं और हमे नयी जानकारी मिलती जाये, यही भगवान से दुआ मांगते हैं।
अभिनव कुरकुटे पुणे
दिशा …
बसंत के आगमन का जो वर्णन तुमने किया है… उससे मन अति प्रफुल्लित हो गया ,कुछ पल को तो मै भी उसमें खो गई….
दिशा , तुम लाजवाब लिखती हो , भाषा की अच्छी पकड़ , शब्दों का सटीक चयन , इतिहास की अद्भुत जानकारी, प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन । वाह….!!!
एक और शानदार धर्मिक यात्रा कराने के लिये धन्यवाद ….???
संगीता तुम्हारे शब्दों में बहुत दम है जो मुझे हमेशा पठनीय सामग्री देने के लिए प्रेरित करते हैं.दिल से धन्यवाद
“द्वादश ज्योतिर्लिंग क्रम में पांचवें श्री परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग धाम यात्रा व्रतांत का वर्णन अद्वितीय शक्ति एवं स्पष्टता के साथ एक विमोहक यात्रा को प्रदर्शित करता है ! जिसमें प्रारंभ से अंत तक दिलचस्प एवं स्पष्ट व्याख्या पूर्ण अध्ययन है ! यह यात्रा वृतांत हमे एक नवीन ऊर्जा से संपर्क स्थापित करने में मदद करता है ! जो इसे भौतिक तत्व पर इसकी मानसिक श्रेष्ठता एवं आध्यात्मिक अनुशासन को दर्शाता है ! यह हमारे लिए बहुत शिक्षाप्रद है ! इस विमोहक संसार में हमे कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए मे आपका बहुत – बहुत आभारी हूं ! आगे की यात्रा वृतांत के लिए प्रतीक्षारत !
“आपको होली की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं !!
महेश तुमने आलेख से नवीन ऊर्जा मिलने की बात कही है यह जानकर बहुत बढ़िया लगा ,तुम्हारी ख़ुद की भाषा उच्चस्तरीय है एेसे ही लिखते और पढ़ते रहो हम भी सतत् प्रयत्नशील रहेंगे कि अपने सुधि पाठकों को ज़्यादा से ज़्यादा आध्यात्मिक स्थानों की सैर कराएँ ।
Tumhari yatra ka varnan bahut achcha hai eise hi bhavishya me jankari dete rahana
मृदुला जी प्यार भरी पाती भेजने के लिए दिल से धन्यवाद
आपने बहुत अच्छा लिखा ,परली पर इतने विस्तार से लिखा लेख इससे पहले मैंने नहीं पढ़ा ,आपने तो एक-एक पक्ष को उठाया है ,आपका यात्रा वृत्तान्त अभिनंदनीय है
राजाभाऊ जोशी, परली , महाराष्ट्र
जोशी जी, आपकी प्रतिक्रिया पाकर बहुत प्रसन्नता हुई साथ ही यह तसल्ली भी हो गई कि हमने जो लिखा उसे परली वासियों का आर्शीवाद मिल गया ,आपको अतिशय धन्यवाद ?
अद्भुत एवं आलौकिक…… साहित्यिक शब्दों का प्रयोग नायाब है। लाजवाब लेखन एवं इतिहास की सटीक जानकारी………… मन मस्त कर दिया एक और यात्रा ने…….. वर्णन पढकर लग रहा था जैसे यात्रा के दौरान साथ साथ दर्शन कर रहा हूं। अद्भुत लेखन…….
प्रदीप जी बहुत धन्यवाद ,आपने तो मेरा उत्साह बढ़ा दिया ,अपने लाजवाब जवाब के ज़रिए आपने हममें बेहिसाब ऊर्जा भर दी है।
दीदी प्रणाम.
परली वैधनाथ ज्योर्तिलिंग धाम की जानकारियाँ बहुत ही बारिकियो से व्रतातं किया .समुद्रं मथनं की जानकारियाँ
पहली बार पढां कि समुद्रं मथनं के समय चौदह रत्न निकले थे.परली बैधनाथ ज्यौर्तिलिंग.कपास की पैदावार. वैधनाथ ज्यौर्तिलिंग परिसर.Parvati वासुदेव जलकुडं लकडी़ का सभामडंप आशा पुरक गजाननं.एलोरा का कैलाश मंदिर इन सभी की फोटो बहुत अच्छी है. मेरी ढेरो शुभकामनाऐ
श्याम बहुत धन्यवाद, तुमने दिल से लिखा है,बारीकी से पढ़ा है शिद्दत से देखा परखा है,तुम को फ़ोटो भी अच्छे लगे यह सब जानकर मुझे बेहद ख़ुशी हुई आगे भी ऐसे ही ब्लाग से जुड़े रहना
आपकी भाषा बहुत ही उत्तम है,तस्वीरें बेहद आकर्षक हैं,सामग्री उच्चस्तर की है कुल मिलाकर ब्लाग और आलेख का प्रस्तुतीकरण बहुत बढ़िया हैं
अखिलेश दीक्षित, ओंकारेश्वर
ओंकारेश्वर से आई प्रतिक्रिया को पाकर मन अति प्रसन्न हो गया ,आपसे तो हमारी बात भी हुई थी जाने के पहले ,हमने आपसे पूछा था कि द्वादश ज्योतिर्लिंगों के रूप में आप किसे मानते हैं और आपने परल्यां वैधनाथम को ही मानने की बात कही थी ,सो हमने वहाँ पहुँचकर आपको दर्शन भी करा दिए,बहुत धन्यवाद ।
Hamesha ki tarah bahut hi sundar aur jaankario se paripoorna lekh.Basant ritu ka sundar varnan, parli ka mahatv, bina soonda ke Ganesh ji,Baidyanath jyotirlinga parisar ityadi ka bahut sundar vivran Kiya aapne. Aapke saath humane bhi darshan kar liye. Itne sundar aalekh ke liye dhanyavad aur aane vale aalekh ke liye shubhkaamnaye.
शिल्पा,तुम्हारी प्रतिक्रिया मन को भा गई,तुम्हें तो हिन्दी विरासत में मिली है ,तुम ब्लाग में निहित अक्षरश: आध्यात्मिक शक्ति की अनुभूति कर पा रही हो इस बात से दिल बेहद ख़ुश है आगे भी एेसे ही लिखते रहना,प्यार भरा धन्यवाद
दिशा जी, हर बार की तरह यह सातवाँ अध्याय भी बहुत अच्छा है l पढ़ के लगता है जैसे साक्षात अनुभव हो रहा हो l ऐतिहासिक ज्ञान से सरोकार कराते रहने के लिए बहुत धन्यवाद l
विवेकानंद जी, आपका विदेश से लिखा पत्र पाकर मन इसलिए गदगदायमान है क्योंकि सात समुन्दर पार बैठा व्यक्ति भी ख़ुद को अगर हिन्दी में लिखे आध्यात्मिक ब्लाग से जोड़ पा रहा है तो लगता है हमारे प्रयास सार्थक हो गए हैं।अतिशय धन्यवाद
दिशा जी आपने तो कोई कसर ही नहीं छोड़ी,कहाँ -कहाँ से इतना सब ढूँढ निकाला,मैं तो परली जाता रहता हूँ पर आजतक इतनी गहराई से नहीं सोचा और न ही देखा।अभी तो मैं फिर जाने वाला हूँ अबकी बार आपका ब्लाग खोलकर परली को ध्यान से देखूँगा
दर्शन पाठक, श्री नागेश्वर ,औंढा महाराष्ट्र
दर्शन जी आपको परली का वर्णन पसंद आया,धन्यवाद,आप परली जल्दी जाइए और लौटकर अपने अनुभवों को पाठकों के साथ बाँटिए भी,यह तो आप सभी क्षेत्रोपाध्यायों का बड़प्पन है वरना हम तो निमित्त मात्र हैं थोड़ी बहुत मेहनत कर लेते हैं बस।
Happy holi, gone through your article on Parali, amazing!!! Simply superb…..wonderful
माधवी मैडम,बहुत धन्यवाद,आपके सहयोग के बग़ैर हम मराठी पोथी के २५०से ३०० पृष्ठ नहीं पढ़ पाते ,कितनी मिठास है हमारी भाषाओं में ,यह आपने बेहतर तरीक़े से समझाया ,अब हम स्वयं पढ़ पाते हैं मराठी के लेख,यह आत्मविश्वास भी तो आप ही ने जगाया है।
अतिउत्तम वर्णन अनुपम अनुभव है। आपके शोध के शब्दों में ढलने की प्रक्रिया में आप निमित्तमात्र और स्वयं भोलेनाथ कारक रूप में दृश्यमान हैं… यही आप सी अध्येत हेतु प्रभुप्रसाद है। मैं आपके मीठे मोहक भाषा प्रवाह का प्रशंसक हूँ। उत्सुक हूँ वह सब पढ़ने महसूसने के लिए जिसमें भारत के मानस के अंदरूनी ताने बाने को आप अपनी भाषाई दृष्टि से उकेरेंगी !
यात्राओं के भीतर की यात्राएं बहुत दूर तक साथ लिए चलती हैं आपके पाठक को… धन्यवाद और बधाई
पद्म,बहुत सारा धन्यवाद,तुमने बहुत सही लिखा है यात्राओं के भीतर की यात्राएं दूर तक साथ चलती हैं ,हम जो बचपन में यात्राएं कर चुके हैं वो आज भी भले ही ननिहाल की हों या ददिहाल कीं धुँधलाती नहीं हैं ,बल्कि रह रह कर कुरेदती रहतीं हैं ,वैसे ही धार्मिक यात्राएँ भी हमारे भीतर गहरे उतर जाती हैं क्योंकि वे हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं।तुमने तो ख़ुद भी बहुत सुन्दर व्याख्या की है,एेसे ही जुड़े रहना ,अभी तो बहुत सफ़र करना है
Ati Uttam vivechna sheli
Sargarbhit vistrat vivran ke liye hamari or aanewali generation apki abhari rhaengi
Jitendra
जीतेन्द्र जी आपकी प्रशंसा भरी पाती पाकर बहुत अच्छा लगा आपने सही लिखा है हम लिखकर और आप सब ब्लाग को अपने परिचितों तक पहुँचाकर नेक काम कर रहे हैं जिनसे पीढ़ियाँ लाभान्वित होंगी ,बहुत धन्यवाद
श्री मोरया अतिशय महत्वाची माहिती आपण प्रसिद्ध केली.या माहिती मूळे देशभरातील भक्तांना याचा भरपूर उपयोग होईल. आपण माहिती अगदी व्यवस्थितपणे मांडली आहे.व आपल्या पाठिशी सदैव गजाननाचा आशीर्वाद राहो .
Pavan Kulkarni
पवन जी नामलगांव से मराठी में लिखी आपकी चिठ्ठी से मन बेहद ख़ुश है ,आपको बहुत धन्यवाद,श्री मोरया ?
दिशाजी .
सस्नेह नमस्कार .
आपका परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे मे ब्लॉक को पढकर मन प्रसन्न हुआ आप के ब्लॉक में शब्दो का प्रयोग अद्भुत तथा अद्वितीय है . शब्द कि रचना मन मोहित कर देती है . आप के विचार यानी शब्दकोष का भण्डार है . ये निरन्तर बढ़ता रहे यह शिव के चरणों में प्रार्थना है
औरं आने वाले नये ब्लॉग के लिये शुभकामना …
जय घृष्णेश्वर जय महादेव ….संतोष पैठनकर ,एेलोरा
संतोष जी,गूढ़ार्थ वाली प्रतिक्रिया भेजकर आपने मन को प्रफुल्लित कर दिया ,बहुत धन्यवाद
ऊ नमः शिवाय आप का नया खण्ड परली वैद्यनाथ पर पढ़ने को मिला जो पहले के बाकी चार लेखो से बहुत ही अधिक ग़ंभीर लगा जिसमें कई रहस्यमयी तहों पर से पर्दा हटाने का एक सफल प्रयास आपकी तरफ़ से किया गया है जिसे एक बार पढ़कर बार -बार पढ़ने की इच्छा होती है और यही कारण था की मैं आपको तुरंत प्रतिक्रिया नहीँ लिख पाता।आपके द्वारा भगवान वैद्यनाथ जी का जिस प्रमाणिकता के साथ -साथ एैतिहासिक साक्ष्यों के साथ वर्णन प्रस्तुत किया वो बड़ा ही सराहनीय है ।परली नाम का अर्थ भी बड़ा ही रुचिकर लगा लेकिन यहाँ के लोगों को काशी जाने की मनाही क्यो ! तथा वहाँ पर त्रिमुखी भगवान नंदी की मूर्ति जो अद्भुत है और संभवत: अकेली है आप को इस नये संकलन की बहुत बहुत बधाई ।
वीरेन्द्र सिंह
वीरेन्द्र जी आपके पत्र के लिए यही कहूँगी देर आए दुरुस्त आए, बहुत धन्यवाद,आपने छोटे छोटे पर महत्वपूर्ण पक्षों पर ध्यान दिया परली जाकर देखिए असंख्य पौराणिक कथाओं से जुड़े साक्ष्य अपने आसपास ही पायेंगे।
अति सुंदर वर्णन दिशा । पढ़ने में समय लगा इसलिए प्रतिक्रिया देने में देर हुई । आपका यह प्रयास अति सराहनीय है। यूँही चलते रहें और चलते रहें ।
सपना तुमने देर से ही सही दिल से तारीफ कर दिल जीत लिया तहेदिल से शुक्रिया।
Didi sorry for late reaction…chama kijiye.
Apki yeh pehel aane wale kai varshon tak nayi evam yva pidi ko dharm,sanskriti,aur matra bhasa se jode rakhehi..
आपके यात्रा वृतांत को पढ़ा।काफी सुरुचि पूर्ण जानकारियों से सुसज्जित हैं।बेहद रोचक व विस्तार से लिखा हैं।क्षेत्र की भौगोलिक,व्यावसायिक गतिविधिया,भाषा,संस्कृति का समावेश इसे अर्थपूर्ण बनाता है। फिलहाल संक्षिप्त प्रतिक्रिया दे रहा हूँ,जो आपके अथक परिश्रम और गहन शोध पर नाकाफी हैं।मैं पुनः विस्तार से आपके पूर्व के सभी लिखे गये आलेख को पढ़ना चाहूँगा।मेरी कोटिशः शुभकामनाये आपके साथ है। बधाई दिशा..???
श्रीकांत जी,आख़िरकार आपने पढ़ ही लिया ,आप तो स्वयं लिखते बढ़िया हैं हमारी भी हौसलाअफ़जाई करते रहा करिए बहुत धन्यवाद
प्रतिशुत तुम्हारी प्रतिक्रिया देर से मिली पर मिली तो यही बात मुझे बहुत भाती है तुम देश से बाहर होकर भी देश की संस्कृति,संस्कार और आध्यात्म से ब्लाग के ज़रिए जुड़ा महसूस कर रहे हो जानकर बहुत अच्छा लगा ,दिल से धन्यवाद