उज्जैन की प्रतिभा रघुवंशी के नेतृत्व में मालवी लोकनृत्यों की अभिनव प्रस्तुति
इसी तारतम्य में मध्यप्रदेश के मालवा अंचल की लोकचेतना में जन्में और पले-पुसे लोकगीतों-लोकनृत्यों की अभिनव प्रस्तुति से सभागार गमक उठा। नर्मदा चम्बल और बेतवा नदियों से घिरे भूभाग मालवा की लोक संस्कृति के सुवास लेकर उज्जैन से आये प्रतिभा रघुवंशी की अगुवाई वाले दल ने पारंपरिक नृत्यों का सराहनीय प्रदर्शन किया। छींटदार घाघरा, लुगड़ा कांचली कुर्ती पहने बोर बजट्टी, बाजूबंद, कंदोरा और कड़े से अलंकृत दल की नृत्यांगनाएं ज्यों ही मंच पर अवतरित हुई दर्शकों ने करतल ध्वनियों से स्वागत किया। मालवा की बारहमासी उत्स भूमि जिसकी हवा के हर स्पंदन से मंगलाचार उच्चरित होते हों ऐसी विभूतिमय स्थान की नृत्यांगनाओं ने श्राद्ध पक्ष में 16 दिन तक कुवारी कन्याओं द्वारा मनाये जाने वाले संजापर्व के गीतों को नृत्य के माध्यम से जीवंत कर दिया। मालवा अंचल के लिए कहा जाता है।
मीठी बोली मालवी, मन का मीठा लोग
चाले मीठो वायरो, मीठा रस की ओग
मालवी बोली के मीठेपन का रसास्वादन कराते लोक गीतों पर आधारित सेवा म्हारी मानी लो गणेश देवता और म्हारो टूट गयो बाजूबंद कान्हा होरी में नृत्य ने दर्शकों को अंत तक बांधे रखा। हमने प्रतिभा रघुवंशी जी से बात की। उन्होंने हमें बताया कि उज्जैन स्थित उनकी प्रतिभा संगीत कला अकादमी जयपुर घराने के कथक नृत्य के साथ-साथ मालवी लोक नृत्यों का भी प्रशिक्षण देती है। सुप्रसिद्ध कथक गुरू पंडित राजेन्द्र गंगानी जी और मां श्रीमती पद्मजा घुवंशी से कथक में प्रशिक्षित प्रतिभा जी के महेश्वर में आयोजित निमाड़ उतसव में सांझी नृत्यों की अपार सफलता ने उन्हें लोक गीतों व नृत्यों के संचरण में मंचो के अवदान हेतु प्रोत्साहित किया।
समय-समय पर अखिल भारतीय कालीदस समारोह, सोमनाथ संस्कृत विश्वद्यालय के अंतराष्ट्रीय संस्कृति नाटक महोत्सव जैसे अनेक प्रतिष्ठित समारोह में उनके द्वारा निर्देशित शिवाष्टक शिवपंचाक्षर स्त्रोत, महाकाल की गाथा, शाम्भवी, अभिज्ञान शकुन्तलम इत्यादि रचनाएं प्रशंसित होती रहीं हैं। इंजीनियरिंग में स्नातक उत्तीर्ण प्रतिभा जी ने नृत्य को अपनी जीवनदायिनी मां की भांति ध्येय बना लिया उनकी मां भी राजस्थान के ‘भंवई’ नृत्य की प्रशंस्य नृत्यांगना रहीं हैं। सभागार में उनके द्वारा परिकल्पित संजा के प्रदर्शन में उन्होंने अपने भावपक्ष प्रधान कत्थक के व्यवहारिक प्रशिक्षण की अविस्मरणीय अभिव्यक्ति दी।
होली नृत्य में मालवा की होली और बोली के सारे रंगों का समागम दिखाई दिया। यों तो उनके दाल की सभी नृत्यांगनाओं चेतना पण्डेय, हर्षा व्यास, अनन्या गौड़, कावेरी भटनागर, नृत्या जोशी, अभिवृद्धि गेहलोद , सयाली मोदी, कनिष्का जोशी, कल्याणी पाटणकर, सौम्या भार्गव, गौरीशा चावड़ा, ऐश्वर्या शर्मा, विधी जोशी, श्रुति परमार, विभूति तेजनकर, श्रेया सैनी,रिया सोनी, भूमिका पवार, शाम्भवी टंडन, राघवी, अंशिका, अखंड, मुश्कान, जिया आदि का कौशल प्रशंसा के योग्य है लेकिन 150 प्रशिक्षुओं वाली उनकी अकादमी की नन्हीं कलाकार 6 वर्षीया वैदेही पंड्या ने अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति से दर्शकों को चौंका दिया। मालवा के समाजिक ताने-बाने को प्रतिबिम्बित करते लोकगीतों के अतिरिक्त मालवा का मटकी और आड़ा नृत्य भी कार्यक्रम का विशेष अंग रहे। विवाह तथा अन्य संस्कारों में किया जाने वाला मटकी नृत्य लयानुसार महिलाओं द्वारा मटक-मटक कर किया जाता है। घूंघट काड़कर किये जाने वाले आड़ा नृत्य में पल्ला पकड़ कर अंगसंचालन किया जाता है। ये दोनों नृत्यों के रसतत्व ने देखने वालों को अल्लहादित कर दिया। मालवा के लोकगीतों को लोकनृत्यों का स्वरूप देने वाले नृत्याचार्य सदगुरू पुरूदाधीच जी के योगदान का स्मरण कर प्रतिभा जी कहती हैं कि उज्जैन में पारंपरिक लोक नृत्यों की शुरुआत का श्रेय उन्हीं को जाता है। लोक नृत्यों के प्रति अपने रुझान के सम्बन्ध में उनका कहना था कि लोकगीतों की भाषा तो जीवन की भाषा होती है जिसमें शब्द व्यक्ति की भांति जीते हैं। सुमधुर गीतों के चयन, दृश्यों के उत्तम संधारण, आकल्पित भाव भंगिमाओं वाली प्रतिभा जी की प्रतिभा संपन्न शैली कुल मिलाकर समूची अवन्ति मालवाई संस्कृति को प्राणवंत कर गई।
आपकी बहुत मेहरबानी आपने हम कलाकारों को इतना मान दिया
कृष्णलाल
आपने बहुत सुन्दर लिखा है लोककलाओं को आपके जैसे समीक्षक की ज़रूरत है कला क्षेत्र में अच्छे समीक्षक सीमित रह गये हैं आपके लेखन से हम कलाकारों को स्वयं को माँजने के लिए मार्गदर्शन मिलता है बहुत धन्यवाद
प्रतिभा
लोकविधाओं के लिए आपका यह प्रयास बहुत अच्छा है
ज्ञानसिंह शाक्य