प्रभावोत्पादक प्रस्तुतियों की श्रृंखला में अगले क्रम में गुजरात के जूनागढ़ के नतृन कला केन्द्र के 25 कलाकारों के दल ने सौराष्ट्र की स्फूर्तिवान लोक संस्कृति के माधुर्य की रस वर्षा कर दर्शकों को आल्हादित कर दिया। जूनागढ़ के काठियावाड़ी गरबा रास डांडिया का वैशिष्टय लिये इन सामूहिक नृत्यों में ढोल की थापों और शहनाई की अनुगूंज से दर्शक सम्मोहित होते दिखे। कार्यक्रम का प्रारंभ मांडवड़ी स्थापना के पश्वात् होने वाले ‘रांदल का गरबा’ के साथ हुआ पारंपरिक परिधानों में स्त्रियों द्वारा किये जाने वाले नृत्य के आरंभ में मां रांदल देवी की अराधना हुई। प्रत्येक मंगलवार और रविवार को सौराष्ट्र के गांवों में सदा शुभ की कामना से स्त्रियों द्वारा किये जाने वाले इस नृत्य में मां पार्वती से मंगलमय जीवन का समवेत निवेदन होता है। वंशवृद्धि और पुत्र की इच्छापूर्ति हेतु मां रांदल का आव्हान किया जाता है अंत में कुंवारी कन्याओं को जिमाया भी जाता है। आसन (बाजट) पर विराजी देवी को समर्पित इस नृत्य के साथ गाये जाने वाले लोकगीतों की भावना भी उदातता लिए हुए होती है। रांदल देवी के मुख्य मंदिर पोरबंदर के समीप बगवादर और किनरखेड़ा में स्थित हैं। यही रांदल देवी पूर्ण प्रतिष्ठा के साथ रणुबाई के रूप में जब मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ में आती है तो यहां की लोकधर्मी स्त्रियां थारो कांई-कांई रूप बखाणूं रणुबाई सोरठ देश से आई हो कह कर उनकी आरती उतारती हैं। ग्राम कंठो से निकले सतत प्रवाहमान लोकगीत लोक की अजस्त्र धारा का अंग बने परम्पराओं और स्मृतियों में मिठास के साथ सदा के लिए बसते जाते है और फिर बिसराए नहीं बिसरते। यहीं विचार मन में कौंध ही रहे थे तबतक दूसरी प्रस्तुति हमारे समक्ष थी।
इसके बाद पुरुष प्रधान मणियारों नृत्य में पुरुषों की शौर्यता का अद्वितीय प्रदर्शन हुआ परम्परागत काठियावाड़ी पहनावे केडीयू, चौयणी, भेटाई और फेंटा धारी पुरुष कलाकारों ने अपने नृत्य कौशल और लयबद्ध गत्यात्मकता से देखने वालों को स्पंदित कर दिया। इस नृत्य की पृष्ठभूमि में गाये गये लोक गीत में मणियारों (चूड़ी विक्रेता) से स्त्रियों के बीच के पारस्परिक संवाद को बिम्बित किया गया। भावपरक इस गीत में अपने प्रियतम को स्त्रियां सामर्थ्यवान और वीर दर्प से भरा हुआ देखने की अभिलाषी हैं और चाहना करती हैं कि उनका प्रियतम शूरवीर हो। कभी कभी तो वीर पुरुषों के जैसे शिवाजी आदि का नाम तक लिया जाता है। पोरबंदर के आसपास मेर समुदाय के लोगों में होली के बाद धुलंडी (धुलेटी) पर आयोजित होने वाले लोकोत्सवों में मणियारों नृत्य करने की परंपरा है। लोकगीत के माध्यम से हृदय की बातें कहने की परिपाटी सर्वाधिक लोकप्रिय रही है। काठियावाड़ के हालार, गोहिलवाड़, झालावाड़, नाघेर क्षेत्रों में खेले जाने वाले तालीरास और डांडिया लड़ाने वाले नृत्यों में संस्कार गीत समाहित होते हैं। मंगल कार्य के प्रारंभ तीज त्यौहार और तीर्थ यात्री के स्वागत में भी गरबा खेले जाने का विधान होता है। गांवों के लोक संबंध, लोकोपचार और लोकविचार को सम्प्रेषणीय बनाने वाले लोकगीत और लोकनृत्य के प्रदर्शनों की अगली कड़ी में सोण्यारास (सूर्यारास) की प्रस्तुति हुई। उत्साह-उमंग और शूरता का परिचय देता सौराष्ट्र के रणबाकुरों की जीवटता की छंटा दिखाने वाले इस नृत्य में पुरूषों ने ढाल और तलवार के साथ चमत्कारिक प्रदर्शन किया। यहां आपको बताते चलें कि गुजरात में गरबी से तात्पर्य पुरुषों के नृत्य से है। स्त्रियों का नृत्य गरबा कहलाता है।
આલંકારિક ભાષા કે સાથ પ્રસ્તુતિ
નૃત્ય સંબંધી પુખ્તા જાનકારી
વિડીયો ભી ડાઉનલોડ કરકે તાદ્રશ્ય ચિત્રણ કિયા ગયા.
આપની લેખની વિષય કો પ્રસ્તુત કરને મે પાવરફૂલ હૈ.
બહનજી , મૈ પ્રશંસા નહિ કર રહા હૂ, બ્લકિ રીયાલીટી બતા રહા હૂ.
પારંપરિક નૃત્ય સંબંધી માહિતી સબ કો સત્ય કે સાથ ઉપલબ્ધ હો રહી હૈ.
ધન્યવાદ ?
अति सुन्दर
संजय महाजन
आपकी लेखनी बहुत ही सुन्दर है
Vah.. Excellent… Apni information aur lekhni bahot hi kabiledad he apne Garba.. Dandiya aur tippani ke bare me bahut hi aches likes he dhanyavad