मां दुर्गा के रौद्र रूप के मंचन के लिए असमिया लोक नृत्य शैली देवधानी का उपयोग अत्यन्त कौशल्य के साथ किया गया। देवरमण अर्थात देवी के शरीर में आने की परिपाटी को जीवंत करती कथक गुरू मरामी मेथी की यह ओजमयी प्रस्तुति भी आकर्षक रही। गुरु मरामी की रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि और या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ में मेखला, कमर पर पीतवर्णी चादरी औरबाएं काँधे पर हरितवर्णी चादर डाले जोन बिरी (चन्द्राकार कंठहार) कर्ण में थूरिया, हाथों में गामखाड़ू (चूड़ियों) से श्रृगारित देवी के सौम्य स्वरूप और दाव (शस्त्र) लिए रौद्रावतार के चित्रण में उनकी रचना धर्मिता स्पष्ट प्रतिबिम्बित हो रही थी।
हमने उनसे असमिया नृत्य विधान के संबंध में चर्चा की। नृत्य गुरू सुरेन्द्र सेंकिया से प्रशिक्षित लखनऊ घराने के अग्रणी पं. बिरजू महाराज और पं. राजेन्द्र कुमार गंगानी से मार्गदर्शन प्राप्त कर लखनऊ घराने की अंगों की बनावट और गत निकास को असमिया शास्त्रीय नृत्यों के साथ सम्मिलित कर लावण्यमय लास्य पैदा करने में दक्ष मरामी जी जितनी सुन्दर दिखती हैं उतनी ही बल्कि उससे कहीं अधिक सौदंर्य अपनी प्रस्तुतियों में उडेंलती हैं। वे बताती हैं कि उनकी सौंदर्याभिरूचि मंच पर प्रकाश की उत्तम व्यवस्था, सहनर्तकों के परिधानों और आभूषणों में सौंदर्य बोध की सर्जना करती है। गुवाहाटी में संचालित उनके नृत्य प्रशिक्षण कला केन्द्र में 150 से अधिक प्रशिक्षु असम के लोकनृत्यों सहित कथक की बारीकियों से पारंगत हो रहे है। उन्होंने बताया कि मध्य आसाम के मंगलदेई स्थान पर देवधानी नृत्य का प्रभाव अधिक दिखाई देता है।
Excellent write up.
Thank you so much for the write up and video.
Excellent reporting.
Regards
Marami Medhi 🙏
Superb
वाह बहुत ही सुन्दर
आपने तो हम लोगों का नाटक का इतिहास लिख डाला बहुत अच्छा लगा अब तक तो हमारी शैली को कोई इतना प्यार नहीं किया जितना आप ने दिया है
Bihar me hudka naach ke rup me ye famous dance form lupt ho raha hai isme purush hi mahila patra ban nachte accha laga
Very nIce…OLD Traditions must be preserved….well carried out..
आपने बिहार का गोड़ ऊ नाच का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है परन्तु मै जहाँ तक समझता हूँ ये गोड़ जाती और उनका नाच सिर्फ बिहार का कहना ठीक नही होगा क्योकि ये गोड़ जाती बिहार के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी अच्छी खासी तादाद में पाये जाते हैं हमारे आजमगढ़ और मऊ जिले में खूब है और इनका हुरका नाच बहुत ही शौक से लोग देखते है हमारे गाँव के देवीजी के मन्दिर पर साधारणतया हर मौके जैसे मुंडन शादी और पूजा पर खूब देखने को मिलता है हमारे घर के पीछे काफी संख्या गोड़ लोगों की है आप ने लिखा है कि ये सिर्फ पुरुष ही करते है परन्तु हमारे घर के पीछे एक गोड़ीन थी उसके जैसा गोड़ऊ नाच करने वाला हमने नहीं देखा जिसका पिछले वर्ष ही देहांत हो गया परन्तु आपका लेख व गोड़ो का प्रोगाम देख कर गाँव की याद ताजा हो गई ।