बुंदेलखण्ड की हास्य-परिहास वाली स्वांग परंपरा का रसास्वादन कराती ‘आ गई पूना बावरी’ का मंचन पिछले दिनों भोपाल स्थित मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय के सभागार में हुआ। सागर जिले के कर्रापुर कस्बे के ढीमर, मांझी और केवट समाज के लोक जीवन के बिम्ब समेटे इस प्रस्तुति में व्यंजनामयी लच्छेदार संवादों को सरस गीतों के साथ सम्मिलित कर ऐसे प्रस्तुत किया गया जो सभागृह में उपस्थित दर्शकों की निरंतर वाहवाही बटोरता रहा। नर्मदा मांई के सुमिरन के साथ शुरू हुए स्वांग ने आस्थावादी बुंदेली संस्कृति को जीवंत कर दिया।
लघुता लिए इस स्वांग में बुंदेलखण्ड के ढिमरयाई नृत्य की लपक व लचीलापन भी था तो लोकोपयोगी संदेश भी समाहित था। लीलाधर रैकवार के निर्देशन में प्रस्तुत स्वांग ‘आ गईं पूना बावरी’ चरवाहे ‘मामा भानेज’ के हास्यमूलक संवादों से प्रारंभ हुआ।
Disha ji aap ke pryatan behad srahania hain. Aur raajon ki kalaon Ko aam logon tak pahuchana achhi baat hai.
Hardial s thuhi