कभी भोजपुर से भीमबेटका तक नौकायन के माध्यम से राजा भोज अपने ग्रीष्मकालीन आवास तक पहुँचते थे, मंडीद्वीप की भांति अनेक द्वीपों की थी व्यवस्था
ढाबला कुमारिया में शैलाश्रयनुमा पार्वती मंदिर, बेतवा नदी का तट, बैराग्यों की समाधि, शिव और सप्त मातृका पट्ट
आशापुरी से भोजपुर तक का पहुंच मार्ग बड़ा झंझटिया था। कूदते-फांदते किसी प्रकार रास्ता कटा, लौटे तो कीरतनगर नामक एक गांव में परमार कालीन प्रतिमाओं की जानकारी मिली। उत्सुकतावश गाड़ी कीरत नगर की ओर मोड़ दी। मन में उहापोह की स्थिति थी कीरत नगर क्या कीर समाज की बहुलता के कारण कीरत नगर कहलाया या फिर कोई और कारण रहा। हम कीरत नगर पहुचें पुरातात्विक पुस्तकों में इसे 1000 वर्ष प्राचीन शाखा नगर अभिहित किया गया है। रायेसन जिले के कीरत गांव के संबंध में पुराविशेषज्ञ डाॅ. ओ.पी. मिश्रा संभावना व्यक्त करते हैं कि राजा भोज ने धार से 300 किमी दूर भोजपुर क्षेत्र विशेष में निर्माणाधीन देवालय संकुलों, बांधों और शैवाचार्यों के कक्षों के अवलोकन व निरीक्षण हेतु शाखा नगर स्थापित किया था।शाखा नगर में वाहु कर्वत्तम नगरोपम् / दनम कर्वतमेवः गुनौर निगम उच्चयते कर्वत नामाभिधान से ही विशेषज्ञ कीरतनगर की उत्पत्ति मानते हैं मिश्रा जी ने परमारकालीन खण्डित प्रतिमाएं और अलंकृत शिलाखण्डों को स्थानीय घरों में प्रयुक्त हुए देखा भी है। हमने यहाँ आते समय मार्ग में कीरतनगर के समीप निर्जन वन की ओर जाने वाले एक संकरे बेढब रास्ते से नीचे की ओर उतर कर उस दीर्घाकार बांध की अद्वितीय संरचना को निर्निमेष भाव से देखा था जिसे देखना हमारे लिए भी किसी अनुभव से कम नहीं था। प्रजाहितैषी राजा भोज ने तो बेतवा नदी पर विशाल बाँध बनवाया जिससे निर्मित झील लगभग 200 वर्गमील क्षेत्रफल तक विस्तारित थी। कहते हैं निर्माण के 500 वर्षों पश्चात मालवा के सुल्तान होशंगशाह द्वारा नष्ट किये जाते समय बांध 300 फुट चौड़ा 87 फुट ऊंचा हुआ करता था। सुल्तान की सैन्य टुकड़ियां तीन माह तक संघर्षरत रहीं तब कहीं जाकर बांध को तीन साल में रिक्त किया जा सका था और तीस साल बाद यहां खेती की जा सकी थी । भोजपुर से सीहोर तक 625 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तीर्ण ताल और बेतवा नदी के जल निस्तारण को रोकने के लिए बनाये गये बंधान को ध्वस्त करने से जलाशय में संचित अथाह जल राशि प्रबल वेग से बही और अपने साथ पुरा महत्व के लघु प्रस्तर खण्डों को कई मीलों तक बहा ले गयी जो आज यहाँ वहां बिखरे हुए दिखते हैं। जल की सुलभता सुनिश्चित करने वाले राजा भोज ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर तत्संबंधी विधि विकसित की थी जिसका एक उदाहरण धार-माण्डू मार्ग पर गांव नालछा (नलकक्षपुर) है जहां राजा भोज द्वारा स्थापित कागज निर्माणात्मक संयंत्र की जानकारी मिलती है जिसमें पेड़ों को आहत किये बिना तालाबों में कमल की खेती कर उसके नल से लुगदी तैयार करने का विवरण मिलता है। हम मंदिर के पहुँच मार्ग के दोनों ओर अनेक खिलते हुए कमल देखते हुए आये थे।शेषशायी विष्णु की नाभि से कमलनाल निकला और कमल से ब्रह्म की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा ने दृढ़ चेतन समूची शक्ति का विस्तार किया। अथाह जलराशि के बीच द्वीपों की बसाहट हर पल यह जतला रही थी कि सृष्टि के आरम्भ में पृथ्वी के चारों ओर भी जल ही जल था। लोक दृष्टि से देखें तो सृष्टि का विस्तार एक विशाल डंठल से मिलता है। पहले डंठल पर फूल उगा, फूल फल बना, फल के दो टुकड़े हुए जिनसे रक्त का ढेला निकला जो लुढ़कते लुढ़कते जल में से होता हुआ पद्म वृक्ष के निकट पहुंचा जिससे ठूँठ पद्म की डाल हरी हो गयी। उसमें एक पत्ती उग आई, वह डाल दो तीन चार पत्तियों वाली हुई। बढ़ते बढ़ते वह संख्या में 30 हो गई। इस तरह एक माह बीता, कई माह बीते, 6 वर्ष होने के बाद वह विशालकाय वृक्ष में परिवर्तित हो गया। शाखाएँ प्रशाखाएँ फूटीं। उसके जड़मूल और तने समुद्र में फैले और उस वृक्ष की सबसे ऊँची डाली आकाश तक पहुँच गयी। लोकचेतना की बहुआयामी दृष्टि से सृष्टि के निर्माण की परिकल्पना हम मंडीदीप से लेकर भोजपुर के रास्ते में विचरते हुए और महामुँही [लबालब भरे हुए ] तालाबों में साकार पाते रहे।ग्राम बीलखेड़ी के निकट सिंगलद्वीप की अस्ति यह जतला रही थी की मंडीद्वीप सहित अनेक द्वीपों की इस क्षेत्र में प्रधानता रही होगी , सच तो ये है कि परमार नरेशों का जल प्रबंधन अद्वितीय था। झील के बीचोंबीच का भूभाग मंडीद्वीप कहलाया और शेष भाग भोपाल का ताल कहलाया। भोपाल में ही नहीं राजा भोज ने धार, उज्जैन और माण्डव में भी तालाबों की निर्मिति करवाई। राजा भोज ने नगर दुर्ग को आवृत्त करती एक परिखा अर्थात खाई के निर्माण किये जाने और उसमें जलराशि के साथ मगर होने की बात अपने ग्रंथों में लिखी है जिससे कोई तैरकर पार न कर सके। संभवतः आशापुरी के निकट मगरपूँछ गाँव भोज की इसी योजना का प्रतिफल हो। उन्होंने खंड जल मंगल की रचना की थी जिसमें नदी, तालाब, सागर, पोखर, कुआँ, बावड़ी, झरना, वर्षा जल और बर्फ इत्यादि के जल स्त्रोतों की आयुर्वेदिक विशेषताओं का सविस्तार वर्णन किया था। एकत्रित जल, प्रवाहमान जल, पत्तों वाला जल, मिटटी पत्थर स्वर्ण पात्र ,रजत पात्र ,ताम्र पात्र, लौह पात्र और चर्म पात्र में जल के संचय के लाभ गिनाये गए थे। ठन्डे ,गरम, कुनकुने पानी की विशेषताएँ समझाईं गयीं थीं। काली भूरी सफ़ेद मिट्टी वाले पानी और खारे पानी के गुण दोष गिनाये गए थे। राजा भोज ने बताया था कि काली भूमि का पानी धातुवर्धक और श्वेत भूमि का पानी सेवन अम्ल और पित्त बनाता है। अल्पाग्नि या गुल्मी लोगों को थोड़ा पानी पीने की भी बात जल मंगल में दी गयी है। इसीलिए राजा भोज का जल के प्रति आग्रह हमें यहाँ के चप्पे चप्पे पर विद्यमान दिखता है। स्थानीय लोगों से चर्चा करने पर भी इस क्षेत्र के पूर्व में जल निमग्न होने की जानकारी मिलती है।अधिक समय नहीं हुआ जब बेतवा नदी को लकड़ी की डोंगी से पार कर भोजपुर से पार्वती मंदिर जाने वाले बहुतेरे हुआ करते थे। वर्तमान में सुरक्षा की दृष्टि से यह व्यवस्था प्रतिबंधित है। गांववाले बताते हैं कि भोपाल अर्थात भोजपाल तात्पर्य भोज की पाल तालाब की रक्षा की चौकी भोपाल में हुआ करती थी। जहाँ रक्षक चौकस (चौक्ष) रहा करते थे। भोजपुर से भीमबेटका तक का भूभाग जलप्लावित था। जहाँ स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से राजा भोज नाव से आया करते थे। भीमबेटका अर्थात भीम का द्वीप को डॉ. राजपुरोहित राजा भोज की उपाधि भीम पराक्रम से जोड़कर देखते हैं। भोजपुर ग्रीष्मकालीन आवास अथवा पत्तन के रूप में विकसित किया गया था। आज भी यहाँ के गोंड आदिवासी 2 खड़े और 1 आड़े पत्थर का सम्बन्ध भोज के नौकागृह से बताते हैं और बड़े गौरवान्वित होकर यह कहते हैं कि इस नौका में भोज प्रतिदिन भीमबेटका की जल यात्रा करते हैं। यह भी किंवदंती है कि कलियागोंड ने रोग ग्रसित राजा भोज के रोग निवारण हेतु 365 दिन 365 जलस्रोतों का जल उपलब्ध कराने का असंभव कार्य संभव कर दिया था। एक ऋषि की सलाह पर यह कार्य संपन्न हुआ था ऐसी मान्यता है। अब तो आप समझ ही गए होंगे तालों में भोपाल ताल और सब तलैया कहने वाले ऐसे ही नहीं कह गए। भोजपुर का यह जलाशय पाप शोधन तीर्थ के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। राजतरंगिणी तो राजा भोज के कश्मीर से प्रतिदिन मुँह धोने के लिए पानी मंगवाने का उल्लेखन भी करते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य की सुदर्शन झील की भांति राजा भोज को झीलों के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है। ऐसी धारणा है कि ‘भोजसर झील’ जो राजा भोज द्वारा संयोजित थी जो यहीं कहीं स्थित थी , 17 मील लम्बी 7 मील चौड़ी थी इस क्षेत्र में वर्तमान में 360 ग्राम बसे हैं। अब समय लौटने का हो चुका था नरेला जलाशय के कुछ हिस्से में में सिंघाड़े की खेती करते दिख रहे ग्रामीणों की नौकाएं किनारे लग चुकी थीं। पेंगा चिड़िया पिहकती हुई घर लौट रही थी, हम भी लौटने को हुए। पर फिर लगा आज भी कुछ छूट गया है। रेसलपुरा के ग्रामवासियों के कहे अनुसार हम बेतवा नदी के दूसरे तट पर स्थित शैलाश्रयनुमा स्थल जिसे वर्तमान में पार्वती मंदिर का स्वरूप दे दिया गया है के दर्शन को प्रवृत्त हुए। हमने पार्वती मंदिर के संरक्षक महंत बाबू भारती से भेंट की। इसी परिसर में महंतों की समाधियां भी हैं। यही हमें अनेक खंडित परमार कालीन प्रतिमाओं की जमावट पेड़ के नीचे दिखाई दीं। यहाँ हमें सप्तमात्रिका पट्ट और संभंग मुद्रा में देवी पार्वती की प्रतिमा मिली।
दीदी सादर प्रणाम एवं चरणस्पर्श,
दीदी सर्वप्रथम तो ये कहूँगा कि आप बहुत ही सुंदर लिखती है, आपकी शुद्ध और प्रवाहमान हिंदी मुझे सतत ही आपके आलेख पढ़ने को व्याकुल बनाती है। दीदी राजा भोज के बारे आप अपने अगले लेख में कुछ और अनसुना अनकहा ज़रूर बताइए जो आज तक लोगो को नही पता है। सभ्यता और संस्कृति को सहेजने का आपका ये प्रयास बहुत ही सराहनीय है। बस दीदी अंत मे आपसे इतना ही कहूँगा की आप हमें “द रोड डायरी” के माध्यम से भूले बिसरे इतिहासिक तथ्यों से अवगत करती रहें।
Mamji, thank you very much for taking a lots of interest in heritage.now you putting a path for future generation.ashapuri was my dream project as well Vishakha Ka BHI.you have quoted Sanskrit text and original references which a symbol of serious scholar.i am proud of your researches.bhojpur temple ashapuri are the centre of the paramaras.interviews of the scholars are their own.infuture disclaimer must be in your blogs.dhabla and devbadla you please visit in different angle.you please thanks to commissioner archaeology for keen interest.letus see the future for ashapuri.thanks to you and your driver for moving even in remote
आपने बहुत बढ़िया लिखा ,शब्दों का चयन और वाक्य विन्यास भी अच्छा है विशेष रूप से भरा समन्दर लिख कर जो आपने इस विषय को उठाया है वह नया है
नारायण व्यास
भोजपुर मंदिर व आशापूरी मंदिर के बारे में लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मुझे पहले एक बार भोजपुर जाने का व दर्शन करने का अवसर मिला है परन्तु दर्शन के पश्चात मन में अनेक सवाल आने लगे और वहां के पुजारी व आम लोगों की बातें सुनकर और कौतूहल बढ़ गया था ।मन्दिर कि वास्तु कला व निर्माण के बारे मे आप के लेख से मन्दिर से जुडी अनेक जिज्ञासा के उत्तर अपने आप मिल गये,परन्तु एक यक्ष प्रश्न का उत्तर अभी भी शेष रह गया है कि वह मन्दिर आखिर अधुरा क्यो रह गया ।साथ ही आपने वहा पर आशा पूरा देवी से जुडी अनेक जिज्ञासा का आपने बहुत ही सुन्दर रूप शमाधान कर दिया है ।परन्तु सबसे विशेष बात पर आपने ध्यान दिया जो कोई नहीं देता है वह हैं उसके आस पास के क्षेत्र मेंफैले व बिखरे हुए अनेक मन्दिरों के अवशेष जो हमारी समृद्ध संस्कृति को चिख चिख कर बता रहे हैं इससे ये भी पता चलता है आज ये जैसे जंगल और सुनसान स्था न में दिखाई दे रहा है वह कभी बहुत ही सुंदर और व्यवस्थित रूप से बसा हुआ समृद्ध नगर रहा होगा जो समय के थपेडों से उजड़ गया मगर जो वहां वर्तमान में है उसे सरकार और जनता दोनों को सहेजना और सुरक्षा के लिए आगे आना चाहिए ।
इतिहासको चालना देनेके लिहाजसे यह ब्लॉग्ज उपयुक्त है…आपकी संशोधन पद्धती एवं सादरीकरण बढिया है…आपने इस ब्लॉगमे हमारा उल्लेख किया है – शुक्रिया…
प्रिय दिशा जी,
एक बार फिर थोड़े विलम्ब के बाद आपका चरवैती पवित्र ब्लॉग पढ़ा जिसमें आपने भोजपुर जैसे प्राचीन पवित्र मंदिर को राजा भोज सहित अपने पाठकों को कण-कण से अवगत कराया। हम और हमारा परिवार वहाँ दर्शन करने एक-दो बार जा चुके हैं पर इतना विस्तार हम लोग भी करने में असमर्थ हैं। आपने तो जैसे पाठकों को साक्षात वहाँ खड़ा कर दिया, सबको शिवमय बना दिया। मंदिर के साथ राजा सहित वो जानकारियाँ जो शायद हमारे पास थी हीं नहीं आपने नारायण व्यास जी से भी जो प्रश्न पूछे वो रही सही हमारी और आपके और पाठकों की जानकारी पूरी कर रहे थे। चरवैती के हर ब्लॉग में आपने जैसे अपनी आत्मा डाल दी।
मैंने आपके ब्लॉग द्वारा चरवैती की ज्यादातर यात्राएँ कीं। आपने जैसे यात्रा के साथ हमें उस शहर, वहाँ के भोजन, वहाँ की आबो-हवा, वहाँ की मिट्टी की सौंध, मंदिर का साक्षात विवरण किया। मैंने अभी तक इतना दिलचस्प पवित्र ब्लॉग नहीं पढ़ा। सिर्फ लिखना ही काफी नहीं है, पाठकों को यह दिखाना भी ज़रूरी है कि मेरी यात्रा में आप कहीं भी धूमिल नहीं हों। हर यात्रा चरवैती आपके लिए है। जो आपने किया आपका ब्लॉग पढ़कर अपने आप होठ ॐ नमः शिवाय का जाप करने को आतुर हो जाते हैं। आप ऐसे ही चरवैती हमारे लिए लिखती रहें। आपको बहुत बहुत आशीर्वाद, प्यार और शुभकामनाएँ। मुझे आपके साथ अगली यात्रा का इंतज़ार है।
आपकी हिन्दी इतनी सरल, मीठी और नवीनतम शब्दोवाली है कि मैं हिन्दी भाषा का अभ्यासक न होते हुए भी पूरा पढ़ता हूँ सच तो यह है कि आपका लिखा लेख पढना शुरू करने के बाद अंत तक मोबाईल नीचे रखने को मन ही नही करता।बहुत सुंदर और जानकारी युक्त लिखा है।
मेरी हिन्दी में ग़लतियाँ हो सकती हैं , उन्हें नजरअंदाज किजीए।
??????
शानदार जी , जानकारियां संग्रह और उनकी मीमांसा , मनीषियों का ही कार्य है ।आपकी भाषा आलेख को पठनीय बनाती है,वाक्यविन्यास और शब्दों के चयन से ही लबालब भरे तालाब और द्वीपों की निर्मिति का भान हो जाता है ,बहुत सुन्दर ????
दिशा आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा ब्लॉक चरैवेति पढ़ने को मिला। बहुत ही अच्छा विवरण बहुत अच्छे शब्द विन्यास का प्रयोग किया है। अभी मार्च 2020 में हम इस पूरी जगह को देखकर आए 26 मंदिरों का समूह भूतनाथ मंदिर आशापुरी देखकर बहुत दुख हुआ कि वहां पर कई मंदिरों के पत्थर गायब हैं और मंदिर बनाये जा सकते । बहुत गर्व महसूस हुआ कि पूर्वजों के पास बहुत सही कलाकारी थी बहुत ही गुणवत्ता से मूर्तियां तराशी गई हैं। पत्थरों पर की गई कलाकारी मंदिर समूह बनाना और कितना समृद्ध रहा होगा उस काल में हमारा भोपाल बहुत गर्व महसूस होता है और तुमने इतना अच्छा विश्लेषण किया है सारे मंदिर समूह आंखों के सामने आ गए। इसी प्रकार हमें इतिहास के बारे में बताती रहो । #चरैवेति #चरैवेति
आपके द्वारा भेजा सचित्र ब्लॉग देखा।बहुत अच्छा लगा। आपने भोजपुर, आशापुरी इत्यादि मेरा, राजपुरोहित जी एवं आशापुरी के सज्जन का vdo ब्लॉग बहुत अच्छा बनाया है ,वीडियो सारे बहुत सुँदर हैं,सुँदर वर्णन है। आपने सभी के ज्ञान को गागर मे सागर जैसा प्रस्तुत किया हैं। आपको धन्यवाद एवं साधुवाद।
स्थिरता की अभिलाषा में पूण्य सलिला सरिता निरंतर प्रवाहवान रहती है।उसी प्रकार आपकी लेखनी कभी तालाब के किनारे,कभी नदी के तट पर,कभी कुए की पाल पर तो कभी कटीली झाड़ियों के मध्यम से पथरीली पगडंडी से होते हुए इतिहास के उन धुंधले पृष्ठों को उजागर करने में सतत अग्रसर होकर नये रुप में प्रस्तुत करती है।
आपका भोजपुर क्षेत्र के शैव मंदिर पर शोध परक लेखन जिज्ञासुओं के अन्तर-मन को स्पर्श करेगा ।
आपके द्वारा भेजा ब्लॉग देखा. भोजपुर कई बार गए परंतु इस दृष्टि से नहीं देखा. चित्रों और वीडीयों के माध्यम से बहुत ही भाषा में सादरी करण किया गया है. बधाई एवं अभिनंदन.
Bahut sunder article
जी नमन कल देखा बहुत सुन्दर ये कला मैं भी सीख जाऊं ??????
भोजपुर के शिवलिंग के दर्शन हमने भी किये है दिशा मैडम पर आपने वहाँ की संस्कृति एवं प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।????????
आपका लेखन बहुत शानदार हैं।
चित्र और विवरण दोनों ही उम्दा हैं, स्थल भ्रमण का आनंद प्रदान करते हैं, शब्दों का चयन उत्कृष्ट है
बहुत उत्कृष्ट लेखन शैली से सज्जित आपका ब्लॉग है,धारा प्रवाह कलम मुझे आपके लेख पढ़ने को निरंतर प्रेरित करती है,,दीदी को सादर प्रणाम
भोजपुर के मंदिर के संदर्भ मे रोचक जानकारी आसपास के परिदृश्य का दर्शन और आपकी सहज सरल और चुम्बकीय भाषाशैली मन को लुभा गई
बेहद उत्कृष्ट शैली में भारत के एक प्रमुख शिल्प कला केंद्र का उत्कृष्ट वर्णन वाकई अद्वितीय है।
अद्भूत…. शब्दों का चयन, भाषा शैली,और प्रवाह ,हम भी आपके साथ साथ चलते हैं । 25साल पहले देखे भोजपुर की यादें ताजा हो गयी हैं ।पुन: आने की तीव्र उत्कंठा जाग गयी…बधाई और शुभकामनाएं, शानदार लेखन के लिये 😊🙏🙏