उत्सवधर्मिता और औदात्य वाली धार्मिक नगरी अवन्तिपुर बड़ोदिया

पोलायकंला में  भी त्रिभुवन गुरु भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर, बावन ताल तलैयों वाला गाँव
हमनें अवन्तिपुर बड़ोदिया  से कोई 12 कि.मी. का मार्ग सुनिश्चित कर तहसील पोलायकलां जाने का मानस  इसलिए भी बनाया क्योंकि हमें सूचित किया गया था कि  पोलायकंला में  भी त्रिभुवन गुरु भगवान शंकर का प्राचीन मंदिर विद्यमान है। गोधूलि बेला थी, मोर पंखियां शाम में रंभाती हुई मालवी नस्ल की गायें घर लौट रहीं थीं। हम नेवज नदी में सूर्य को समर्पित होता छोड़ आगे बढ़ रहे थे। खेतों में गेहूँ के नवांकुरों को क्षति पहुँचाते कुलाँचे भरते काले हिरण दूर से ही दिख रहे थे। मन भी हिरणों की भांति कुंलाचे भरने लगा था। मन मंथन करने लगा था ,  भरथरी ने कुशल आखेटक के रूप में ऐसे किसी निरीह काले  हिरण को मारा था जो उन्हें  राजयोगी बना गया। ग्राम्य भारती का अप्रतिम सौंदर्य नयनों में बसाकर हम पोलायकलां आ गये थे। यहाँ भी खाती समाज की प्रधानता है। कहते हैं  जहां ताल  तलाई  हों ऐसा तो हो ही नहीं सकता वहां खांती  न हों । कभी 52  ताल-तलैयों वाले पुष्पावती नगर के रूप में स्कन्दपुराण में वर्णित इस क्षेत्र में श्रीनाथ जी की हवेली से होते हुए पनाली वाले रास्ते से होकर हम शानेश्वर ओंकारेश्वर महादेव मंदिर पहुँच गए थे। हमारी भेंट श्री कमल किशोर वर्मा जी से हुई। अध्यापन कार्य से  संलग्न शोध प्रवृत्ति के कमल जी ने हमें बताया कि 15वीं सदी के पूर्वार्द्ध ऐसी मान्यता है कि शनेश्वर महादेव मंदिर में स्थित सूरज कुंड  राणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया था अपने कथ्य की पुष्टि के लिए वे स्पष्ट करते चलते हैं कि सारंगपुर में  मालवा के सुल्तान से युद्धोपरांत  वे यहां आये थे यहां की मृदा के आलेपन से उनके घावों के शीघ्र भर जाने के कारण उन्होंने यहां   शिवलिंगार्चन किया  और सूरज कुण्ड का निर्माण करवाया  था। 48 किले बनवाने वाले एकमात्र  राणा कुम्भा यों भी कुंड,मंदिर , दुर्ग आदि बनवाने के लिए जाने जाते हैं , ऐसी भी मान्यता है कि राजा मानसिंह ने भी इस कुंड में  स्नान  किया था । कैप्टन लुआर्ड भी इसे सही ठहराते हैं ,लोक में यह विश्वास  प्रबल है कि इस कुंड में स्नान से कुष्ठ रोग का निदान हो जाता है ,यह भी विचार सामने आते हैं कि राजा मानसिंह उदयपुर वाले प्रजा पालक नहीं थे बल्कि ग्वालियर नरेश राजा मानसिंह तोमर थे जिनकी शौर्य गाथाओं की चर्चा  इस क्षेत्र में बहुधा मिलती रही है   कभी सघन वन क्षेत्र में स्थित रहे 24 स्तम्भों वाले इस शिवालय की बनावट अति प्राचीन है। सवा बीघा क्षेत्रफल में फैले इस शिवालय की सीमाएँ इसे गरिमामयी भव्यता प्रदान करती हैं। शिवालय में भी हनुमान जी, गणेश जी और विश्वकर्मा जी के लघु मंदिरों की निर्मिति है। मंदिर में ओंकार नाथ पण्डा, शीतरमल ,भागीरथ, भवानी शंकर और पुरूषोत्तम पण्डा वाली पांच पीढ़ियों से पांण्डितय कर्म से जुड़े श्री पुरूषोत्तम शर्मा जो स्वयं गुजराती औदिच्य ब्राह्मण हैं ने बताया कि मंदिर परिसर में खाती समाज और गौड़ ब्राह्मण समाज के सती के ओटले हैं। तीन एकड़ भूमि पर विस्तारित इस शनेश्वर ओंकारेश्वर महादेव मंदिर की शासन द्वारा प्रदाय की गई 14 एकड़ जमीन भी है।

शनेश्वर ओंकारेश्वर महादेव मंदिर, उमा-महेश प्रतिमा, पोलायकलां से प्राप्त शाजापुर संग्रहालय में संग्रहीत

8 जीवंत तालाबों में से नारिया तालाब (पूर्व दिशा), बड़ा तालाब ( उत्तर दिशा), सांवड़िया तालाब (दक्षिण दिशा) और ईशान कोण में मदन तालाब विद्यमान
पोलायकलां से ही  प्राप्त उमा-महेश्वर प्रतिमा हमें शाजापुर संग्रहालय में संग्रहीत दिखी थी । एक पुराना शिलालेख भी प्राप्त हुआ है जिसके भंगुर होने के कारण अब तक इसे पूरा  पढ़ा नहीं जा सका है। उज्जैन के वरिष्ठ पुराविद डाॅ. रमण सोलंकी ने हमसे इस शिलालेख के सन्दर्भ में कुछ जानकारियाँ साझा कीं हैं। हमें राजस्थान के वरिष्ठ पुरातत्ववेता श्री ललित शर्मा जी की शाजापुर जिले पर लिखी पुस्तक में भी श्री  रमन सोलंकी जी द्वारा प्रदत्त जानकारियों का संकलन मिला । शिलालेख में कई पंक्तियां भग्न है परन्तु 11 पंक्तियां पठन में आती हैं । जो  संस्कृत लिपि की है। लेख के शीर्ष पर 3 कमल पुष्प की अर्द्धपत्तियों का अंकन  है।  (संस्कृत मूल) 1. शंभो (भू) द्ववर  2. श्री अति पुरूषागमः 3. तीवे (सं) प्रर… श्मिचन्द्र शल्य (स) 4. रोः (मेः) अमर ख्याप 5. ता किर्तीः आगत 6. स्मित (त्र) देवताध्वं (ख) रो प 7. रा क्रम तेटां केस (तुः) शे 8. भी धामन नवामक्रयंत 9. प्रता (प) वृध्याय स्तते 10. श्री लीमप्रः स्तुभेदीसे सु 11. ये दिनः वस्म (ध्येंसम) (हिन्दी मूल) 1. शुभं प्रसन्न हो, अथवा धारण करें  2. श्रेष्ठ पुरूष के द्वारा स्थापित शास्त्र अथवा श्रेष्ठ पुरूष में आदर्श 3. श्रेष्ठ द्रुतगामी आभावाली रश्मियों वाले चन्द्रमा के समान 4-5. देवताओं के द्वारा स्थापित कीर्ति वाले 6. तीन देवताओं में श्रेष्ठता प्राप्त (अथवा प्रिय) 7. प्राकृम (पराक्रम) से प्राप्त तटा केतु अथवा तटाकेस 8. समृद्ध एवं श्रेष्ठ 9. कान्ति के प्रताप से यशस्वी अथवा फैले हुए 10. कांति लेप स्तुभ नामक देश में 11. भेदन करने वाला (वंश) शिलालेख में नृपति एवं काल पढ़ने  में नहीं आ पाने के कारण अनुमानतः   नृपति द्वारा  महादेव शिव से इसे जोड़ा गया है ऐसा प्रतीत होता है  । शिलालेख के संबंध में पड़ताल करने के क्रम में हमें  मनीष जी तोमर और मुकेश जी चौधरी मिल गए  उन्हीं से विदित हुआ कि यहाँ आज भी 8 जीवंत तालाब हैं जिनमें नारिया तालाब (पूर्व दिशा), बड़ा तालाब ( उत्तर दिशा), सांवड़िया तालाब (दक्षिण दिशा) और ईशान कोण में मदन तालाब उल्लेखनीय हैं। गांव के पटवारीश्री  शिवनारायण मालवीया ने बावड़िया तालाब, सेरया तलाई, गावड़या तालाब, देवड़िया तालाब, जूना तालाब,  राव का तालाब, सोण्डया की तलाई से जाजीत की तलाई, मण्डलोई की तलाई और सुंदरी की तलाई जैसे कुछ नाम और जोड़ दिये। जल के आधिक्य के कारण इस प्रक्षेत्र की गन्ने व धान की उन्नत कृषि के लिए सदा ख्याति रही। आज भी  बड़ा तालाब तो क्षेत्रफल की दृष्टि से 2 कि.मी. दूर मोरटाकेवड़ी गाँव की सीमाओं को संस्पर्श करता है। डाॅ. कमल किशोर वर्मा जी ने हमें खान का तालाब, मदन तालाब पर रहने वाले मदन बाबा के जलेबी खाने वाले बलिष्ठ बैलों के संबंध में भी जानकारी दी। फागुन मास में परिवा के दिन यहां मंझौले आकार का  गल का मेला भरता था जिसमें जलेबी विक्रेताओं की कई दूकानें लगती थीं और दूर-दूर से गांववासी रस से भरी जलेबी के रसास्वादन के लिए यहां एकत्रित होते थे। वे खाटसुर गांव और हिमालय गांव में स्थित प्राचीन हिमालेश्वर महादेव मंदिर के संबंध में भी अनुसंधान किये जाने की आवश्यकता जता रहे थे। हमें  इमली के बाग में वनखण्डी हनुमान की जागृत प्रतिमा और नारिया तालाब के निकट खेड़ापति हनुमान की सिद्ध प्रतिमा के प्रति ग्रामवासियों की अटूट श्रद्धा भी दिखी। कभी पाण्डवों की शरणस्थली रहे पोलायकलां के शिवालय से थोड़ी ही दूर पर नाथ योगी की एक छतरी हमें दिखाई दी जहां पहुंच पाना हमारे लिए लगभग असंभव था। कमल जी से ही पता चला कि कुछ साल पहले भानपुरा से नाथ सम्प्रदाय पर शोध करने वालों ने यहां प्राकृत भाषा में लिखे शिलालेख के संबंध में उन्हें अवगत कराया था।  12000  की जनसंख्या वाले पोलायकलां में 80 प्रतिशत खाती समाज की उपलब्धिता है। खुदाई के सिद्धहस्त ये लोग बावड़ियों, कूपों, तालाबों की गहराई तक खुदाई करने के लिए ही जाने जाते हैं। खाल (नाला) के पास पटवारी जी नाथ सम्प्रदाय की यहां उपस्थिति को नकारते हुए छतरी के नारायण पटेल के और निकट स्थित बावड़ी के पालीवाल समाज से संबंधित होने का रहस्योद्घाटन करते हैं।  शिव और शक्ति के तत्वों से परिपूर्ण मालवा का यह भूभाग जिसमें अवन्तिपुर बड़ोदिया, मुरावर और पोलायकलां सम्मिलित है कि यात्रा कर हम  इतना तो भली-भांति समझ पाये थे कि इन गांवों में अपने अंह को तिरोहित कर ऐसी आपसदारी बना ली है जिसका कि ओर छोर नापना हमारे लिए तो क्या किसी और के लिए भी सम्भव नहीं  है। ग्रामीण पर्यटन की अपार संभवनाएं लिए कभी उज्जैन परगने के अंतर्गत आने वाले ये गांव सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रहे  हैं ।

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Comments

  1. Kamlesh uplawadiya says:

    आप के द्वारा निर्मीत इस डायरी में आपने जिन उतकृष्ट शब्दों का प्रयोग किया है मैं उससे अभिभुत हूं । आपका मालवा की माटी को यू कागज पे उकेरना सादर स्वागत योग्य है ।

  2. Pradeep says:

    में प्रदीप uplawdiya अपने आप को बहुत खुश नसीब समझता हूं।जो मेरा जन्म अवन्तिपुर बरोदिया बाबा गरीबनाथ ओर माँ लालबाई फूलबाई की पावन नगरी में हुआ मेरा गाव हमारे पुरे mp के गावो में सबसे बेस्ट है जैसा आनंद मुझे मेरे गाँव में मिलता है ऐसा आनंद मेने कभी महसूस नही किया चाहे इंदौर हो या भोपाल

  3. Vishnu prasad javaria says:

    Very nice sir ji, I like your work and proud of your life.
    आपको सादर नमन

  4. Vishnu prasad javaria says:

    बहुत सुंदर है आपकी शैली, और आपका प्रयास
    सादर नमन

  5. शैलेंद्र तिवारी says:

    Nice article based on fact

  6. SATYABHAMA says:

    Many thanks for describing our village beautifully….???

  7. देवेन्द्र जोशी says:

    सुन्दर आलेख! सजीव वर्णन। सुन्दर चित्रों का समावेश। पढ़ने से लगा मानो स्वयं यात्रा के सहभागी रहे हों।

  8. महेन्द्र सोनी says:

    *बहुत ही सटीक, सरल, सारगर्भित शब्दावली के प्रयोग के साथ अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति देने वाला लेख प्रस्तुत किया है दीदी आपने…*☝?? *आपके प्रयासों एवं अथक परिश्रम द्वारा अवंतीपुर बड़ोदिया नगरी के धार्मिक, ऐतिहासिक, एवं सामाजिक वस्तुस्थिति के चरित्र चित्रण के उक्त उत्कृष्ट लेख हेतु समस्त नगरवासियों की ओर से हृदय से आभार…. एवं सादर धन्यवाद…* ?????????
    महेन्द्र सोनी

  9. O P Mishra says:

    I have read 12page dairy on badodia awantipur.this travel dairy is exhaustive and more information about this area.temples,sculptures and treasury,Saturday remains etc.are very useful for researchers.thank you very much for your original field work.once again thank you for such type of original contributions.pl.continue this informative dairy.

  10. जगदीश भावसार says:

    उत्तम प्रसंग विवरण धन्यवाद??
    जगदीश भावसार, शाजापुर

  11. ललित शर्मा ,झालावाड़ says:

    आपकी लेखनी व शैली अनोखी है ?

  12. Santosh Kumar Jawaria says:

    It is said that India’s heart lies in villages and you tried to reach this ground level to know the heritage and civilization of villagers life.I am prod of your devoted work.

  13. उमेश पाठक सौरों says:

    दीदी सादर नमन
    कला जब सृजनधर्मियों के हाथ में आती है तो अनंतकाल तक पूज्यनीय हो जाती है शब्द नहीं है कैसे इसकी प्रशंसा करूँ पहली बार कोई ब्लॉग पढ़ा है बहुत अच्छा बहुत अच्छा बहुत अच्छा!!!
    उमेश पाठक सौरों

  14. शांतिलाल उपाध्याय says:

    “उत्सवधर्मिता और औदात्य” वाली नगरी अवन्तिपुर बड़ोदिया शीर्षक से रचना करने वालीं परम विदुषी, हम ग्रामवासियों के लिये साक्षात सरस्वती पुत्री श्रीमती दिशा अविनाश जी शर्मा जी (भोपाल) को इस उत्तम कार्य के लिये कोटिशः साधुवाद, बधाई। आप स्वस्थ, प्रसन्न रहकर शतायु होने तक इसी प्रकार ग्रामवासियों के दिलों पर राज करती रहें।

    अबसे 54 वर्ष पूर्व श्री प्रेमनारायण जी गाँधी जी व मैं माधव कॉलेज, उज्जैन में पढ़ते थे। तब विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हमारे कुलपति श्री नन्ददुलारे वाजपेयी जी थे। उनकी वंशज दिशा जी हैं।

    बड़े गणेश, उज्जैन स्थित ज्योतिषाचार्य पण्डित आनन्दशंकर जी व्यास जी ने दिशा जी को बाबा गरीबनाथ जी की नगरी अवन्तीपुर बड़ोदिया पर लेख लिखने के लिए प्रेरित किया था। श्री व्यास जी एक पारिवारिक कार्य में अवन्तीपुर बड़ोदिया आये थे। बाबा की महिमा से परिचित थे।

    हमारी तहसील अवन्तीपुर बड़ोदिया की ऊर्जा व समाजसेवी भावना से ओत-प्रोत, कलमकार कलम के धनी, अखिल भारतवर्ष के बाबा के दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा व धर्मनगरी अवन्तीपुर बड़ोदिया की महिमा को सिलसिलेवार बताने वाले व उनका सब तरह से आदर सत्कार कर संतुष्ट कर विदा करने वाले जनाब महेंद्र जी सोनी व समाजसेवी ग्रामवासियों को साधुवाद।
    अपना ही – शांतिलाल उपाध्याय

  15. वीरेन्द्र सिंह says:

    आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा भी बढ़ गयी अंवती पुर बडौदीया को और अधिक जानने और देखने की, मालवा की धरती ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कितनी संपन रही है पर कैसे समय की आंधी में सब खो जाता है अंवतीका जो कभी पुरे भारत भू-भाग पर राज किया करती थी कैसे धीरे-धीरे इतिहास में विलीन हो गयी पर आपने उसे पुनः अपने संबल से आज प्रकट करने का सफल प्रयास किया है अंवती पुर बडौदीया नाम से लगता है कि यह एक छोटा सा गांव है पर आपने अपनी लेखनी की कुदाली से पुनः अंकुरित कर दिया वहां के परमार कालीन मन्दिर और उनके भग्नावशेष जिस तरह से वहां बिखरे पड़े हैं उसे देखकर हमें अपने अतीत पर गर्व भी होता है परन्तु साथ ही मानसिक पीड़ा भी कि ,जिस तरह से वहां के रह वासी उसे सहेज रहे हैं उससे प्रसन्नता भी हुयी परन्तु सरकार के उपेक्षा से पीड़ा भी होती है ।
    वीरेन्द्र सिंह

  16. Manish uplawadiya says:

    Many many Thanks for written on my Village.
    I am so happy and feel proud to born in Barodiya

  17. कुलदीप भार्गव says:

    बहुत ही शानदार लेख। आदि से अंत तक बांधे रखने में सफ़ल।

  18. Kutumb sastry says:

    Enchantingly beautiful. Great efforts to revive lost glory.???

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