सुन्दरसी में उज्जैन की भांति महाकाल मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, जागेश्वर मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, भैरव मंदिर, क्षिप्रेश्वर मंदिर
सुंदरसी में प्रवेश के साथ ही आँखे किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने लगीं जो सुंदरसी से संबंधित हमारे अनुसंधान में सहायक बन सके। बजरंगपुरा के प्राचीन हनुमान मंदिर से पूजा से निवृत्त होकर बाहर आते श्री देवेंद्र प्रजापति संयोग से मिल गए। तहसील कार्यालय से संबद्ध उत्साही प्रवृति के देवेंद्र जी की दिग्दर्शन स्वीकृति के उपरांत सुन्दरसी को निरखने-परखने का क्रम प्रारम्भ हुआ। गाँव में जिस किसी को टटोला, शाजापुर जिला मुख्यालय से 50 किमी दूर स्थित लोकमन में गहरे उतरीं लोकश्रुत कथाओं में लोकपूज्य राजा विक्रमादित्य की बहिन सुन्दराबाई का विवाह यहाँ के राजा भगवत सिंह जी से होने की चर्चाएँ प्रकाश में आती गईं। मन पुनः कतर-ब्यौंत में लग गया था।अपनी धर्मिष्ठ बहन सुन्दराबाई का विवाह सुंदरगढ़ के राजा के साथ करने का निर्णय विक्रमादित्य ने गहन चिंतन मनन के पश्चात ही किया होगा ,विवाहोपरांत परम् शिवोपासक विक्रमादित्य ने पुण्यधामता नगरी उज्जैन की भांति सुंदरगढ़ में महाकाल मंदिर, हरसिद्धि मंदिर, जागेश्वर मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, भैरव मंदिर ,क्षिप्रेश्वर मंदिर इत्यादि की प्रतिकृति सृजित करवायी होगी ,कालांतर में एक और अवंतिका के रूप में सुविख्यात रही सुंदरसी में यह धारणा प्रबल दिखी कि शिवचरणोदक परम महाकालोकपासक सुन्दराबाई जब यहां ब्याह कर यहां आयीं तो अवन्तिका नगरी में स्थापन्न महाकाल मंदिर की अनुपस्थिति से व्यथित हो गयीं , निर्जला-निराहार महाकाल महानियन्ता के मंदिर में अटूट निष्ठा से अर्चना करने वाली चन्द्रमा के सृदश गौर वर्णी बहिन सुन्दराबाई के आग्रह पर लोक विभूति राजा विक्रमादित्य ने महेश्वर के स्तवन हेतु उज्जैन के समस्त देवालयों की अनुकृति सुन्दरगढ़ में ही करवा दी थी। गांव वालों की बातों पर कान धरें तो यहां यह भी सुनने को मिला कि स्वयं सैन्य बल के साथ सुंदरगढ़ पधारकर उन्होनें चौदह लोकों के निवासियों द्वारा वंदनीय कल्याणकारी महाकाल की विधिवत स्थापना और प्राणप्रतिष्ठा भी करवायी और एक गुह्य मार्ग निर्मित करवाया जिसका द्वार सीधा उज्जैन में खुलता था ।
काली सिंध नदी, बजरंगपुरा मोहल्ला, सुन्दरसी कस्बे के रहवासी
सुंदरसी के परिभ्रमण में सर्वप्रथम रावला चौक में रहने वाले 90 बसंत देख चुके, शिक्षक रहे शंकर राव जाधव जी से हमारी भेंट कराई गई।अपनी स्मृतियों को खंगालते हुए उन्होंने सुंदरसी में ग्वालियर, देवास, इंदौर व धार राजदरबारों की शामिलात कचहरी होने की बातें साझा कीं। ये उन दिनों की बात है जिन दिनों में कचहरी को सर्वोच्च न्यायालय की भांति कानूनी अधिकार प्राप्त थे। मराठों ने जब परगना हवेली उज्जैन की थानेबंदी विधिवत की थी तब यथावश्यक सवार प्यादे नियुक्त किए गए थे। सुंरदरसी परगने के व्यवस्थापक अधिकारी बनाये गए थे, रावले के निकट स्थित घुड़साल के घोड़ों की गश्तें और पदचापें जाधव जी के मानस में पैठीं हुई थीं। सुंदरसी में 4 पुलिस थाने, 4 कचहरी, 4 जेलें हुआ करती थीं। चतुर्दिश 84 ग्रामों की बड़ी जागीर होने के कारण यहाँ दो पटवारियों की तैनाती रहती थी। 10 मजरे टोले वाला ग्राम सुंदरसी हापाखेड़ा, डूंगरा, भैंरुपुरा, रंजीतपुरा, धरमपुरा, करणपुरा, कल्याणपुरा, रतनपुरा और नरसिंहपुरा तक विस्तारित हुआ करता था, जिनकी सीमाएं सुन्दरसी से 6 कि.मी. की परिधि तक फैली हुई थीं। जाधव जी से ही पता चला कि ऐतिहासिक महत्व की इस नगरी में दक्षिणी छोर पर एक कि.मी. की दूरी पर गढ़मुडला नाला हुआ करता था। वहीं भगवत सिंह जी का भगवतगढ़ प्रासाद था जिसकी भव्य प्राचीरों के भग्नावशेष अभी हाल के दिनों तक जाधव जी ने स्वयं देखे थे। श्री सम्पन्न इस नगरी में गढ़ियों की कतारे थीं। उत्तर में नगरखाल हुआ करता था जो नगर को दो भागों में विभक्त करता था। पूर्व में 2 कि.मी. की दूरी पर लाल बाजार नामक क्रय-विक्रय का वह स्थान था जो बहुमूल्य रत्नों, पन्ने, मूंगों से पटा रहता था। मंदिरों, जलाशयों, कुण्डों और बावड़ियों की प्रचुरता वाला सुंदरगढ़ श्रेष्ठियों के हाथियों और अश्वों से लैस रहता था। गांव में हाथियों को बाँधने वाले कुछेक गजमत्थों की गलियों में उपस्थिति के हम भी साक्षी बन चुके थे ।
राजस्थान के राठौर वंशीय राजपूतों की बहुलता वाले सुंदरगढ़ अथवा सुन्दरसी में परंपरागत परदेदारी के चलते अनुशासित मर्यादित समाज
देवेंद्र जी के साथ भाटसेरी , माली सेरी, पीपलीसेरी, रावला सेरी, नाका चौक, दशहरा बलडी की संकरी गलियों को ज्यों-ज्यों हम नापते गए त्यों-त्यों जीवंत संबंधों का लगभग 8 हजार रहवासियों वाला एक ऐसा गाँव सामने आता गया जहाँ विनम्रता थी, आचार -विचार में शिष्टता थी। राजस्थान के राठौर वंशीय राजपूतों की बहुलता वाले सुंदरगढ़ अथवा सुन्दरसी में परंपरागत परदेदारी के चलते अनुशासित मर्यादित समाज वाली व्यवस्था के दर्शी बने हम आगे बढ़ते रहे। राजपूत सेरी में रहने वाले शेर सिंह भी सुन्दरसी को विक्रमादित्य की बहिन सुंदरबई का सासरा बताते मिले।उन्होंने सुंदरा बाई के प्रसंग को गीत में ढालकर रोचक शैली में प्रस्तुत किया , कुलमिलाकर सुंदरसी वासियों के व्यक्तव्यों में वीर विक्रमादित्य की बहन सुन्दराबाई का विवाह सुन्दरगढ़ के राजा से होने की लोकधारणाएँ विचरतीं मिलीं। शासकीय पाठशाला की दीवार पर भैंरु जी पुजते दिखे, परमारकालीन मंदिर स्थापत्य के भग्नावशेषों पर मत्था टेकते भले लोग दिखे ,गांव के गहरे संस्कारों और ह्रदय संवादिता की गुत्थमगुत्था व्यवस्था मन को भाने लगी थी ।इसी बीच देवेंद्र जी ने वर्तमान में आँगनबाड़ी के संचालन के लिए नियत स्थान के पूर्व में थाने के रूप में प्रयुक्त किये जाने की जानकारी साझा की ।
माली सेरी में चबूतरे पर तांत्रिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चौंसठ योगिनीदेवी स्थापित थीं, मालवी नस्ल की हट्टी कट्टी गायें जहाँ भारी मात्रा में जमघट लगाए हुई थीं वहां कभी रावले का घुड़साल हुआ करता था।काले प्रस्तर खण्डों से निर्मित रावले की प्राचीर पर परमारकालीन प्रतिमाएँ उत्कीर्ण थीं। सिन्दूर आलेपन के कारण कई प्रतिमाओं को पहचान पाना असंभव था। हम राजपूत पहरावे में परदा करके आती-जाती स्त्रियों को देख रहे थे।अब तक पथ प्रदर्शक बने साथ चल रहे देवेंद्रजी बताने लगे कि सुन्दरसी में वर्तमान में भी कांकड़ व्यवस्था का अनुपालन होता है। राजस्थान के रास्ते मालवांचल आई इस परिपाटी में दो गाँवों के मध्य की निर्धारित सीमा को कांकड़ की संज्ञा दी जाती है। राजस्थान की मान्यताओं में यह आरक्ष देवता का नियत स्थान होता है। वास्तव में यह प्राचीन काल का यक्ष है जिसे खेतरपाल अथवा खेड़े का भोमियो भी पुकारा जाता है। किसी क्षेत्र विशेष में प्रविष्टि से पूर्व कांकड़ के देवता को सम्मान देने की राजस्थानी रीत सुंदरसी में आज भी निभाई जाती है। विवाहादि के अवसर पर पटाखों का शोर करके अथवा बंदूकों से गोलियाँ दागकर यहीं आधा फेरा संपन्न मान लिया जाता है। हमें बताया गया कि बड़ल्ल्या गुजर, सुल्तानपुरा, आसेर, तांडा, उमरोद, निपानिया धाकड़, खामखेड़ा, तलेनी, सिंगारपुर, बाकाखेड़ी, भीमपुरा पोल, मोरटाकेवड़ी, फतेहपुर चीकली, जौरापुर और घट्या जैसे गाँव कभी सुन्दरसी का ही हिस्सा हुआ करते थे,जो आज स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं। देवेंद्र जी का मार्गदर्शन सतत जारी था. हम सुंदरगढ़ अथवा सुंदरसी की सेरियों में प्रवेश करते गए (आपको बताते चलें यहां मोहल्लों को सेरी पुकारा जाता है) और मंदिरों की श्रृंखलाऐं मिलती रहीं। जागेश्वर महादेव मंदिर, गोपाल मंदिर, कालाजी मंदिर, श्री राम मंदिर सभी ग्रामवासियों की अनंत आस्था के कारण जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पहुँचकर भी पुज रहे थे। कालाजी मंदिर में देवनारायण जी की बैठक थी। इसके अतिरिक्त सुन्दरसी में छोटे बड़े निजी मंदिर भी थे ।गांव के कच्चे पक्के मकानों में लोकाचार के स्तर पर एक ओर जहां एकात्मकता के दर्शन होते रहे वहीं दूसरी ओर जीवन के अनुष्ठानों में सुंदरा की उपस्थिति की प्रतीती होती रही।
सुन्दरसी के जागेश्वर महादेव मंदिर, गोपाल मंदिर, कालाजी मंदिर, श्री राम मंदिर, सुन्दरसी में परिभ्रमण के दौरान मिले सती स्तम्भ, राज राजेश्वरी मंदिर और रावला का मंदिर
बहुत ही रोचक, तथ्य परख और महत्वपूर्ण। बधाई!
Thanks maam…aadha pd liya ..bahut sunder matter n pics ?????
-पुरोवाक-
भोपाल की सांस्कृतिक अस्मिता और लोक संस्कृति से अभिप्रेरित पत्रकार दिशा अविनाश शर्मा द्वारा एक लम्बे अरसे से मध्य प्रदेश की कई ऐसी लोकसंस्कृति धारोहरों पर ऐसा अनछुआ कार्य किया जा रहा है जिसके माध्यम से अनेक तथ्य व सांस्कृतिक पक्ष प्रकाश में आ रहे हैं।
हाल ही में उन्होनें शाजापुर जिले के परमारकालीन सुन्दरसी ग्राम में स्थित महाकाल मंदिर तथा अन्य मंदिरों की लोक संस्कृति का चित्रण जिस प्रकार अपने परिश्रम से खींचा वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है। उन्होंने सुन्दरसी की कथा, इतिहास के साथ विक्रमादित्य की अनुजा सुन्दरबाई के वृतान्त के साथ उस क्षेत्र के ग्रामीणों, बुद्धिजीवियों, कवियों के साक्षात्कार लेकर इस महत्ता को प्रमाणित किया है। दिशा शर्मा ने इसी के साथ चित्रों के माध्यम से पुरातत्व की दुर्लभ मूर्तियों, मंदिर, स्थापत्य के साथ स्थानीय ग्रामीण, पथ, सघन वन तथा ग्रामीण आवास का ऐसा जीवन्त चित्रण किया है मानो यहाँ की संस्कृति हमसे संवाद करने को तत्पर हो। उनके इस कार्य को महसूस कर यहाँ कहा जाना सटीक होगा कि- भारत की सच्ची लोक संस्कृति के दर्शन हमें सुन्दरसी जैसे ग्रामों में ही दिखायी देते हैं। सद् प्रयास हेतु हृदय से अभिवादन।
दीदी बहुत ही सुंदर औ मनोहरी वर्णन है, आपकी लेखनी का जवाब नही है, सीधे मन मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है।। इतिहास के गर्व से निकाल कर फिर एक बार एक ऐतिहासिक सत्य से सभी अनभिज्ञ लोगो को अवगत कराने के लिए धन्यवाद।।
धन्यवाद मैडम जी हम सभी गाँव वाले आभारी हैं आप के।
To much scope in Archaeology. Best wishes to U. Nice research papers.
I have read the complete text and videos ,photographs related to sundarsi ancient site in Malwa region.raman Solanki and Prashant Puranikji are the scholar’s in that region.puranshahgal also give informative.your report on this topic needs no comment.excellent matter .regarding this arealocal folk songs are also be quite impressive.photographs are to be in the photo archives.now no serious scholars moving for such academic researches.thank you very much for your field work and taking interviews of the very senior citizens.you are adding new chapters in archaeology, social areas,art,architectures and religious fields.once again thank you very much for taking interest.
जय श्री महाकाल
आपके द्वारा भूत भावन महाकाल की नगरी सुन्दरसी (सुंदरगढ़) के अवन्ति के राजा विक्रमादित्य की बहन सुंदराबाई जिनका विवाह सुंदरगढ़ के राजा भगवत सिंह से हुआ था एवं उज्जैन में जितने भी मंदिर थे उतने मंदिर ग्राम सुन्दरसी (सुंदरगढ़) में बनाए गए, विक्रमादित्य की बहन सुंदराबाई रोज सुबह महाकाल मंदिर एवं अन्य मंदिरों में दर्शन करने जाती थीं, यह सभी जानकारी आपके द्वारा बड़ी ही सुन्दर सटीक सरल भाषा के प्रयोग के साथ वर्णित की गई है। इससे हमारी नई पीढ़ी को ज्ञान प्राप्त होगा एवं इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।
इससे मैं आपको सहृदय प्रणाम करता हूँ।
“जय श्री महाकाल”
रोचक, श्रेष्ठ व संग्रहणीय ।
‘साहसिक कदम ‘
‘हार्दिक बधाई’
?✍️?
ब्रह्माण्डीय यात्रा में हमें कब कहाँ जाना होगा यह निर्णय तो उसके निर्माता और नियन्ता के हाथ में ही होता है। पर यात्रा के अनुभव को उस मार्ग के विश्राम स्थलों के सहयात्रियों के साथ साझा किया जाता है। ज्ञानवृद्ध सहयात्री अपने अनुभवों से अग्र गमक जनों के लिए पथ प्रदर्शक होते हैं। आदरणीय बहन श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा भोपाल भी एक ऐसी सहयात्री हैं जो अपनी मार्ग दैन्दिनी (रोड डायरी) सृज कर वर्ण, ध्वनि, व चित्र पिपासुओं को सुरम्य सुखद उद्यान उपलब्ध करती हैं। उनका सुन्दरसा (सुन्दरसी) यान्त्रिक ग्रन्थ (ब्लाग) वन्दनीय व नमनीय है। विक्रमादित्य के काल से अब तक के अनगिनत सृजनधर्माओं के कर-चिन्हों व ध्वनियों के संग्रहीत और संयोजित कर रामायण रघुवंश, रामचरितमानस या कामायनी जैसा सृजन दिशा बहन आपने दिया है। इसमें इतिहास, साहित्य, संगीत और कला (नैसर्गिक दृश्य) सब कुछ समाहित हैं, इसलिए यह एक महाकाव्य है। तथा भारत भूमि के महाप्रतापी नृप विक्रमादित्य को श्रद्धावनत पुष्प गुच्छ हैं। मेरे जैसे अनुजों औद इतिहास, साहित्य, संगीत व कला अनुशीलकों को आपका लेखनीय वरद हस्त सदैव शारदीय व वासन्तिक रहे इन्हीं कामना व भगवान धरणीधर व माता गंगाजी से प्रार्थना के साथ।
आपका अनुज,
उमेश पाठक
वासन्तीय नवरात्रि प्रतिपदा, वि0सं0 2077
मौ0 चैदहपौर महीधर्राचन खडगगिरिमठ
पो0 सोरों सूकरक्षेत्र
जनपद- कासगंज उ0प्र0
रचियेता द्वारा तथ्यों परक अनुशोधों की तह परत दर परत स्थलों की अनुश्रुतियों/किंवदंतियों पर ही नहीं प्रमाणों को अपनी श्रृशुधा शांत करने के संकल्प में यथासंभव भ्रमणशील को नमन्ति स्वीकार हो।
???? आपके द्वारा सम्पादित कार्य अत्यंत सराहनीय हैं। साधुवाद ।
देखा और सुना। बहुत अच्छा शोध हैं एक सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है। सौलंकी जी ने जिस स्तूप के विषय मे उल्लेख किया है, कभी भविष्य मे मैं कभी देखने जाऊँगा। धन्यवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार
Mam , your travel blog is amazing , it motivates the historians and travel bloggers literally influenced to visit such historical landmarks. It is the privilege of late King Vikramaditya who got a laureate author like you. After reading your blog the readers have a great eye for your alluring travel destinations photography. The video content of the historians like Rajpurohit sir of Ujjain is amazing amid your blog, You are a talanted writer who creates a great content. Very inspiring blog mam??
चित्रात्मक और सरल??
अपने गौरवपूर्ण इतिहास के सत्य परिचित कराता आपका लेख। धन्यवाद
दीदी प्रणाम,
सुन्दरसी के बारे में 7 भाग पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
पुनः हार्दिक साधुवाद।
Bahut achha rachnatmak Kary hai. Aap ki kalpna shakti anupam hai.
आदरणीय दीदी
आपके इस मनोरम यात्रा वृत्तांत को दोबारा पढ़ने का अवसर मिला। इस बार भी एक नई दृष्टि और नए चिंतन का सूत्रपात हुआ। बार – बार जिज्ञासा होती है। बहुत कुछ अनजाना,अनछुई पुरातत्विक,ऐतिहासिक,सांस्कृतिक,धार्मिक और प्राकृतिक संपदा का रहस्य छुपा है इसमें।
पुन:बधाई एवं शुभकामनाएं।
सम्मानीय प्रणाम
अति सुन्दर पर्यटन, लेखन और सृजन
आत्मीय शुभकामनाएँ!
संस्कृति रक्षा , देश सुरक्षा
श्रेष्ठ कार्य ???
Congratulations madam ! Beautifully written .
the article makes it very clear that history and mythology are so intricately interwoven in India that it is difficult to sift history from mythology. It is interesting to know that people still cherish their traditions.
सुन्दरसी का नैसर्गिक सौंदर्य..प्राप्त पुरातात्विक मूर्ति-शिल्प.. और उसका गौरवमय इतिहास आपकी लेखनी से जीवंत हो उठा है।..यह अविस्मरणीय आलेख न केवल उस क्षेत्र के बाशिंदों को उपहार है,यह वर्तमान पीढ़ी को शोध के लिए प्रेरित करता रहेगा।..भूले-बिसरे ऐतिहासिक गौरव को आपने बड़ी ही सूक्ष्मता से अवलोकन-अध्ययन कर अहर्निश कठोर परिश्रम और अनुभव के साथ लिपिबद्ध किया है ।आप ऐसे ही अतीत की धरोहरों को उजागर कर लोक संस्कृति से आम आदमी को भारतीय अस्मिता से परिचित कराती रहे.. बधाई !