भस्मा टेकड़ी पर चार हजार वर्ष पूर्व ताम्राश्मयुगीन मानव सभ्यता और यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत महिदपुर का किला
भस्मा टेकड़ी पर 2100 वर्ष पूर्व राजस्थान की बनास घाटी के ताम्राश्मयुगीन लोग आये, किले के उत्तरी द्वार पर बभ्रुवाहन की प्रतिमा
उनके साथ असाढ़ी बाखल, रंगरेज बाखल, एक के बाद एक संकरे मार्ग से होते हुए हम महिदपुर के किले तक पहुँच गए। मार्ग में ठाकुर साहब के समक्ष हमने आकस्मिक और अप्रत्याशित प्रश्नों की झड़ी लगा दी। उन्होंने भी अपने जिए शहर महिदपुर के चप्पे चप्पे से हमको अवगत करने में कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ी,हमें बताते रहे महिदपुर कालगणना का क्षेत्र है इसीलिए आपको यहाँ तुलाहेड़ा भी मिलेगा, सिंह देवला भी मिलेगा, कुंवार, सावन, भादो सभी के नामा धेय वाले मोहल्लों की यहाँ बसाहट है। जगत पापा जी के रूप में विख्यात ठाकुर साहब से हमने जाना कि महाभारत काल में महिदपुर को ‘मणिपुर’ अभिहित किया गया था। मेहादा या माहिदा नामक भीलग्राम के कारण भी इसे महिदपुर पुकारा गया। मुगलकाल में मोहम्मदपुर, मराठा शासनकाल में महत्त्वुर, तदोपरान्त मेहदपुर, महिदपुर, मेत्पुर, आदि-आदि नामों से इसे जाना जाता रहा। अर्जुन पुत्र ब्रभुवाहन की राजधानी होने के नाते ‘मणिपुर’ नामकरण ठाकुर साहब को उपयुक्त लगता है। हमें किले के प्रवेश द्वार पर भित्ति चित्र दिखाते हुए ठाकुर साहब उत्तरी द्वार पर भस्मा टेकड़ी की ओर अग्रसर हुए। मान्यता है कि यहीं पर अर्जुन के पुत्र ब्रभुवाहन ने यज्ञ किया था। भस्मा टेकड़ी पर चार हजार वर्ष पूर्व ताम्राश्मयुगीन मानव सभ्यता के मृदभाण्ड और अवशेष प्रचुरता से प्राप्त हुए हैं। उन्होंने बताया कि उत्खननों से ज्ञात हुआ है कि 2100 वर्ष पूर्व यहाँ राजस्थान की बनास घाटी के ताम्राश्मयुगीन लोग आए और मालवा की उर्वरा धरा, काली माटी, महिमावान नदी शिप्रा के तीरे बस गए। प्राकृतिक आपदाओं और अग्निप्रकोप के कारण संत्रस्त 2000 वर्षों तक यहीं निवासित रहने के बाद ये लोग मालवा में अन्यत्र कहीं पलायन कर गए और टीला दूसरी शताब्दी के आते-आते निर्जन हो गया। ठाकुर साहब की ज्ञानवर्षा सतत जारी थी, उन के साथ-साथ धसान भरी हल्के पीले रंग की भस्मा टेकड़ी पर आरोहण करते हुए मन विचार रहा था कि सैंधव सभ्यता के समकालीन महिदपुर की भस्मा टेकड़ी पर एक अन्य सभ्यता विकसी जो विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में गणनित हुई, हम उसी के दर्शनकार बने हुए हैं। सहसा डॉक्साब की दृष्टि किसी पात्र पर पड़ गयी। काले-लाल रंग के ज्यामितिक व् प्राकृतिक अलंकरण वाले पात्रों के अवशेष देख हमारा भी उत्साह दोगुना हो गया। मालवा पात्रों की इतनी बहुलता यहां दिखी कि हम अवाक् रह गए, ठाकुर जी ने बताया कि भस्मा टेकड़ी पर नदी की मूल सतह से 15 मीटर ऊपर उत्खनन से चार सांस्कृतिक अनुक्रमों का पता चला, उनके अनुसार पहले स्तर के सर्वेक्षण से विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यहां निवासित लोग पूर्ववर्ती हड़प्पा सभ्यता के आहाड़ आदि स्थानों से यहां आये जिन्होंने अपने बांस लकड़ी और घास फूंस के घर बनाये यहां से प्राप्त काले रंग के पात्रों पर सूर्य नदी खजूर वृक्ष हिरण व् अन्य ज्यामितिक अलंकरण बहुतायत से मिले हैं, पक्की मिट्टी के बहुतेरे दीये यहां मिले हैं जितने कहीं और नहीं मिलते, ठाकुर साहब ने विस्तार देते हुए दूसरे स्तर पर 1800 ई पू से 1300 ई के मालवा पात्र मिलने की भी जानकारी देते चल रहे थे । ऐसा माना जाता है कि ये जाति यहां 500 वर्षों तक विद्यमान रही। उनके अनुसार तीसरे स्तर पर लगभग 1200 ई से 600 ईस्वी पूर्व की सभ्यता के मृदभांडों में टोंटीदार बर्तन लोटा ढक्कन और थाली, पकड़ वाली हांडी मिली, चौथे स्तर पर जो कि 600 ईसवी पूर्व का है जिसमें चमकदार बेढब लाल भूरे पुराने मालवा पात्र बड़ी संख्या में मिले हैं जो आहाड़ और जोर्वे संस्कृति से साम्यता दर्शाते हैं। यहीं से ठाकुर साहब को ताम्राश्मीय युगीन अंजन, शलाका, हेयरपिन, पत्थर के मनके, मिटटी के मनके, ताटक चक्र प्राप्त हुए हैं। उनके अनुसार हड्डी, सींग, पत्थर व् मिट्टी से बने गहने उस कालखंड की स्त्रियों की अलंकार प्रियता को समझने के लिए पर्याप्त हैं । वृषभाकृतियों के अतिरिक्त यहां से चाल्सीडोनी, अगेट, जैस्पर और क्वार्ट्ज़, स्फटिक, कार्नेलियम जैसे मूल्यवान पत्थरों के साथ अनेक प्रकार के ब्लेड, सील, बट्टे, वैदिक निष्क (सौ प्रतिशत शुद्धसोना), ताम्बे की चूड़ियां स्वर्ण व् लौह धातु अवशेष की प्राप्ति भी हुई है। हमें भी हिरण, बैल बकरी आदि जानवरों की अस्थियां बड़ी मात्रा में दिखीं, खाद्यान्नों में मसूर, मूंग और खजूर के जले हुए अंश, दीवारों के पलस्तर हेतु धान की भूसी के प्रयोग को ठाकुर साहब से समझना निःसंदेह विस्मयोत्पादक था। ताम्रश्मयुगीन संस्कृति के लोग निरामिष व सामिष दोनों थे, महिदपुरी संस्कृति को इतनी निकटता से देखना हमारे लिए किसी अनुभव से कम नहीं था।उन्होंने यह भी बताया कि भस्माटेकरी की भस्म आज भी सिंहस्थ के अवसर पर साधु-संत लेकर जाते हैं और अपने पूजन व भस्मस्नान में प्रयुक्त करते हैं। हाल ही में बुलडोजर चला कर सड़क निर्माण के लिए उस पुरातात्त्विक महत्व की टेकरी को समतल करने की चेष्टा की गयी थी इसलिए हमें जो चमकयुक्त एन बी पी मृदभाण्ड, काले और लाल मालवा पात्र, आहाड़ पात्र, सूक्षास्म (कोर, ब्लेड, फ्लेक्स) और मनके मिले, वे भग्नप्राय हो चुके थे जिसे देख ठाकुर साहब और हमारा व्यथित होना स्वाभाविक था। एक हरी भरी ग्रीन बी ईटर चिड़िया न जाने कहाँ से उड़कर आ गई और सामने के तार पर झूलने लगी थी मानो हमारी बातें सुनने और ध्यान बटांने के लिए आ गई हो हमें स्मृत हो आया वरिष्ठ पुराविद् डॉ. रहमान अली, जिन्होंने भस्मा टेकड़ी के उत्खनन कार्य की अगुआई की थी, ने हमें अपने साक्षात्कार में डॉक्साब द्वारा उत्खनित स्थल पर दो माह तक कैम्पिंग के दौरान प्रतिदिन उत्खनन दल के लिए भोजनादि की व्यवस्था कराये जाने की जानकारी दी थी।
राजा राम सिंह द्वारा बनाये किले में आशुतोष शिव का ताड़केश्वर महादेव मंदिर, रावलाघाट सहित अनेक घाट, क्षिप्रा का व्यापक पाट
हमने पाया कि वे पूर्णतः महिदपुर के हैं और समूचा महिदपुर उनका! लौटे तो किले की प्राचीर के द्वार पर सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर देखा तो क्षिप्रा का विहंगम दृश्य दिखाई दिया। द्वार के सिरे पर उत्कीर्ण एक प्रतिमा की ओर इंगित कर उन्होनें उसे अर्जुन पुत्र वीर बभ्रुवाहन की होना बताया जिसने यहाँ अश्वमेघ यज्ञ किया था जिसकी यज्ञस्थली भस्मा टेकड़ी से हम अभी-अभी इतिहास टटोलते हुए लौटे थे। ठाकुर साहब हमें बीच बीच में सचेत और आगाह भी करते जा रहे थे। ये ध्यान रहे खण्डरों में रन्ध्रों में विषैले कीट और सर्प हो सकते हैं इसलिए सावधानी बरतते हुए चलो। वे स्वयं नागफनी और कन्नी (उत्खनन के सहायक साधन) से लैस होकर ही इन स्थानों पर परिभ्रमण करते हैं। अब हम नीचे सीढ़ियां उतरकर घाट की ओर बढ़ने लगे जहां वयोवृद्ध कमला बाई ने हमारा मार्ग बाधित कर दिया। क्षिप्रा से परिवेष्टित निविड़ किले में निर्भय निर्बल निधनी कमला बाई को पाकर हम चकित थे। डॉक्साब को सामने पाकर वह द्रवित हो गई रूंधे गले से इतना बोल पाई अबकी बहुत दिनों बाद आये। ये कमला बाई हैं डॉक्साब ने हमें मिलवाया। इसका ब्राह्मण परिवार विगत तीन सौ वर्षों से यहाँ रहता आया है। कमलाबाई किले में स्थित गोपीनाथ मंदिर सहित अन्य मंदिरों की संरक्षिका भी हैं। डॉक्साब ने हमें एक किस्सा सुनाया- कमलाबाई एक बार रक्षासूत्र लेकर उनके ड्योढ़ी पर पहुँची थीं। अतिव्यस्तता के कारण सुधाजी ने अकारण उसे लौटा दिया। बाद में डॉक्साब को उसके मस्तिष्क ज्वर से ग्रसित होकर मरणासन्न हो जाने की सूचना मिली। तब उन्होंने अपनी चिकित्सक अर्धांगिनी से अनुनय निवेदन किया था कि डॉक्टर तो ईश्वर का अवतारी होता है तुम किसी विधि कमलाबाई को जीवनदान देकर मुझे अनुगृहीत कर दो। सुधाजी के प्रयासों से कमलाबाई ठीक हो गई और आज वह उनकी मुंहबोली बहन है। उनके इस मधुर व्यवहार ने मन को अंतरंग स्तर पर संस्पर्श कर दिया था। महिदपुरवासियों के बीच क्यों वे एक विशिष्ट कोटिक स्थान रखते हैं। उनके आदरकर्ताओं और गुणग्राहकों की कमी क्यों नहीं है। इसे चाहे उनकी अभिरुचि का आभामंडल कह लीजिये या फिर उनकी सुकृति का प्रभावान् पक्ष दोनों ही स्थितियों में उनके व्यक्तित्व का वैशिष्ट्य झलकता है। रावला घाट पर ताड़केश्वर महादेव मंदिर के दर्शनोपरांत हमने क्षिप्रा नदी की विस्तृति पर दृष्टि डाली। डॉक्साब के अनुसार पातल में अमृतसम्भवा, यमलोक में पापाहनी, स्वर्ग में ज्वरहनी और बैकुंठ में क्षिप्रा के नाम से जानी जाने वाली महापुण्या नदी का वृहद् स्वरुप देखकर विद्वानों ने यह अनुमानना की है कि इस नदी का उपयोग पहले जल परिवहन में हुआ करता था। यहाँ अति प्राचीन गोदी भी हुआ करती थी, डॉक्साब ने रहस्योद्घाटन किया। महिदपुर के अहिल्याबाई घाट, गंगावाड़ी घाट, पालीवाल घाट और गऊ घाट शहर में व्याप्त निषेद्याज्ञा के कारण सूने पड़े हुए थे। हम हक्का-बक्का से खड़े थे। मनभावनी दृश्यावलियों के बीच मंदिरों की अवस्थिति पर्यटन के मानचित्र पर फिर भी महिदपुर का नाम क्यों नहीं दिखाई देता, मन कतरब्योंत में लगा था। राजा राम सिंह द्वारा बनाये किले में दिखवैया बने घूमते डॉक्साब हमें बताने लगे महिदपुर के किले के अनुरक्षण के लिए यूनेस्को द्वारा राज्य सरकार को पुरस्कृत किया जा चुका है।
महिदपुर का किला, अंग्रेजों के बारूदखाने की निशानियां, कमलाबाई, गोपीनाथ मंदिर और रावलाघाट
अति सुंदर, मनोहारी वर्णन। आपकी लेखनी में सचमुच एक जादू है दीदी।
अश्वनी शोध संस्थान के मूल्यवान पुरातात्विक महत्व के सिक्कों को लेकर ऐतिहासिक वैशिष्ट्य को बख़ूबी समेटा है।
आपकी दृष्टि संपन्नता को नमन।
महिदपुर की पुरातत्व धरोहर और सौंर्दर्य का अद्भुत वर्णन आपने अपनी लेखनी से बख़ूबी किया है ! धन्यवाद
बहुत बहुत बधाई बहुत अच्छी भेँट वार्ता बनाई हैं। धन्यवाद। ठाकुर जी हमारे पुराने मित्र हैं।
Very nice. Thanks
Excellent projection of a person who deserves.mahidpur was ancient site from early period.i visited that place in 1980with Dr v s wakankar,later for my Tagore national fellowship.dr thakur have good collection af antiquities,coins from different dynasties.i must thank to Disha Mishra who have taken this task to permits cultural heritage of Madhya pradesh.intreviews of Dr Thakur and dr.j n dube gives complete information about the collections,historical background of that area, Ujjain historic city.she covered more information than what a person needs for his knowledge.being a scholar she is covering all most of the unknown area of m p .so .thanks to Dr Thakur and Disha from whom I collected such academic informations.
दिशा क्या ख़ूब लिखती हो भाई
Bhut hi sundar ramneek varnan
महिदपुर (मालवा) के मुद्रा संग्राहक डॉ. श्री आर.सी. ठाकुर जी का एक सामुख्य साक्षात्कार रोड मैप Expert श्रीमती दिशा जी शर्मा ने प्रस्तुत कर बड़े महत्व का कार्य सम्पादित किया है।
साक्षात्कार में ठाकुर जी की जीवन साधना, सेवा तथा उनके विराट संग्रह के दर्शन हुए। मुझे लगता है डॉ. वाकणकर की उदात्त परंपरा में उन्होंने बहुत बड़ा काम किया। आहत, मौर्य से लेकर परमार वंश के अकूत सिक्कों का संग्रह और विवरण देना, यह अद्भुत बात है। मेरा विनम्र आग्रह है श्री ठाकुर जी प्रमाणिक तौर पर विक्रमादित्य की प्रचलित स्वयं की मुद्रा का प्रदर्शन करें तो विक्रमादित्य का इतिहास महत्व पुष्ट होगा तथा उन्हें पृथक से इस विशाल मुद्रा संग्रह पर ग्रन्थ प्रकाशित करने चाहिए। मालवा के शिलालेखों, मुद्राओं, मूर्तियों पर पृथक से कोई एकाग्र ग्रंथ देखने में नहीं आया। श्रीमती दिशा जी से अपेक्षा है ऐसे साक्षात्कार से वे हमें सदैव लाभान्वित कर माँ भारती के वरद पुत्रों के दर्शन करवाती रहेंगी।
जी नमन ???????
कहि विधि बने सुमधुर पकवाना।
जे कौशल सब ही नहीं जाना।।
??????????????
बहुत सुंदर कलात्मक ब्लाग है? आपकी मेहनत परिलक्षित होती है?
Sunder lekh
??? वाह बहुत ही बढ़िया ।शानदार प्रस्तुति ,बहुत बहुत आभार ?
Bahut hi achha aur intresting blog likha hai
Congrats!
????
Congratulations????????
Very nice blog, congrats?????
बहुत ही सुन्दर व ज्ञान वर्धक प्रस्तुति ?
बहुत सुन्दर आलेख है
बहुत बढ़िया दीदी आपके सभी आलेख बहुत ही सारगर्भित एवं वस्तुस्थिति को दर्शाने वाले होते है आपके इन निरंतर प्रयासो के लिए बहुत-बहुत साधुवाद ?
दिशा जी आज आपने ब्लाग के माध्यम से संग्रहालय और सिक्को के बारे में ठाकुर साहब के साक्षात्कार के माध्यम से आपने यात्रा वंतात शैली का प्रयोग करते हुये अंत में साक्षात्कार विधा के माध्यम से बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध करवाई है ।इसके लिये आपका आत्मीये आभार
शोध परख व्लाग अश्विनी शोध एवं अनुसंधान संस्थान महिदपुर पर लेखक को कोटि कोटि धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करते हुए सदप्रयास के लिए बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद
Firstly, it is a wonderful experience to meet with such a great numismatist of our country namely Mr. R.C Thakur who exposed the amazing artefacts and rare ancient coins of Ayodhya, Vijayani, Tripuri , Saatvaahan and Vikramaditya kingdom. Inspite of this, the true creation of such innovative numismatics blog which helps to place the numismatist community in the spotlight and provides the informative glimpses of some of our nation’s most precious antiquities including the artefacts of Mahidpur excavations. Amazing blog to read Mam, you composed this blog by a specific antiquities subject which is thoroughly relevant for every visitor. Furthermore, the viewers often like the fabulous photography and video taken by you that perfectly captures the historical spirit of India.
आपके ब्लॉग्स मैं भाषा शैली बेहद सुंदर होती है। शब्दों का एक सुंदर जाल जो पाठक को स्वतः बांध सा लेता है। वाक़ई आप एक एक ब्लॉग्स पर बेहद तन्मयता से कार्य करतीं हैं।??
धन्यवाद मैडम ,
आपकी सार्थक पहल, कठोर परिश्र्म व अदभुत लेखन शक्ति ने इतिहास व पुरातत्व के प्रति आमजन को भी आकर्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य कियाहै ।
मालवा क्षेत्र के विद्वानों के साथ ही कई शोधकर्ताओं व जिज्ञासुओ को आपके आलेख की प्रतीक्षा रहती हैं ।महाकाल आप पर सदैव अपनी कृपा बनाये रखें ।