शाजापुर जिले का इतिहास, कार्दमकवंशीय शक ,परमारकालीन क्षत्रपों की पुरातात्विक सम्पदा और लोक संस्कृति

भोपाल से शाजापुर तक 10वीं से 13वीं सदी में परमार नरेशों के सांस्कृतिक उन्नयन के प्रतिमान चप्पे-चप्पे पर 

सूरज भल ऊगियो तुम जागो शंकर जी हो देव, तुम जागो हो ब्रह्म जी हो देव, तुम जागो विष्णु जी हो देव, सूरज भल ऊगियो रंग रातो जी दुनिया में हुओ उजास। मालवी भाषा की मिठास से पगी पंक्तियाँ इसलिए स्मृत हो आईं थीं क्योंकि आज हम पश्चिम मालवा के पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की जानकारियाँ एकत्रित करने के उद्देश्य से यात्रा पर निकले थे। उधर आकाश में धरती के उत्स में सम्मिलित होने के लिए सूर्य देव पटका बांधकर उद्यत हो रहे थे और इधर हम भोपाल, नीलबड़, कलाखेड़ी, दोराहा, सोनकच्छ, श्यामपुर, खजुरियाकलां, चांदबढ़, नांदनी, चायनी होते हुए शाजापुर जिले की पुरासंपदाओं सम्बन्धी पड़ताल में व्यस्त थे। मन मंथन में रत था। हम उसी भूखंड में ही तो  विचर रहे थे जो प्राच्यकाल में अवन्ति जनपद के अंतर्गत हीआता था। बौद्धकाल से पूर्व में षोडश महाजनपदों में गणनित होने वाला यह भूभाग ताम्रश्मयुगीन सभ्यता का अधिवास क्षेत्र भी रहा था।

भोपाल से शाजापुर का पहुँच मार्ग पार्वती, पारवा नदियों की युग्मित व्यवस्था

पुराविदों को यहाँ की डूँगरियों पर से दस लाख वर्ष पूर्व के गोलाश्म उपकरण, हस्त कुठार, विदरिणी, लोढ़ उपकरण, खुरचनिया, गंडासा इत्यादि की प्राप्ति भी हुई थी। उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाला शाजापुर क्षेत्र बौद्ध काल में चण्ड प्रद्योत, मौर्य  काल में सम्राटअशोक, शुंग काल में अग्निमित्र, प्रथम दूसरी शती ई. में कार्दमककुलीन शकों, गुप्त काल में समुद्र गुप्त, हूण, औलिकर, मौरवरि तदोपरांत हर्षवर्धन के प्रभुत्व में रहा था। शाजापुर जिले  जिसके मुख्यालय से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सेतखेड़ी गाँव से ब्राह्मी लिपि का ऐसा अद्भुत शिलालेख प्राप्त हुआ था  जिसने इस धरा पर शक महाक्षत्रप रुद्रसिंह के आधिपत्य का सर्वप्रथम रहस्योद्घाटन कर सभी को चकित कर दिया था । वर्तमान में शाजापुर संग्रहालय में सुरक्षित शिलालेख से ही इस भूक्षेत्र में कार्दमकवंशीय शक क्षत्रपों में चष्टन से लेकर रूद्रसिंह (तृतीय) तक की श्रृंखला का ढाई सौ वर्षों तक एकाधिकार होने का भेद प्रकाश में आया था। इसी कालखंड में पश्चिमी मालवा की राजधानी उज्जैयिनी हुआ करती थी। इतिहासकारों ने आठवीं सदी के पूर्वार्ध में नागभट्ट प्रथम द्वारा अवन्तिप्रदेश पर गूर्जर प्रतिहार वंश  स्थापित किये जाने के सम्बन्ध में लिखा है। ये लोग मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अग्रज लक्ष्मण को अपना वंशज मानते थे। इसलिए शाजापुर जिले के गिरवर ग्राम स्थित श्री राम मंदिर की अस्ति भी प्रतिहार काल से जोड़कर देखी जाती रही है।हम वहां भी जायेंगे , 10वीं से 13वीं सदी में परमार नरेशों के इस भू भाग के अधिग्रहण के पश्चात तो शाजापुर जिले का सांस्कृतिक उन्नयन प्रतिमान स्थापित करने लगा था जिसकी परिणति आज भी भग्नावशेषों के रूप में पूरे इस प्रक्षेत्र में मिलती है। भोज, कुमार हरिश्चन्द्रदेव, अर्जुनदेव, परमारनृपों के साम्राज्य में यहाँ शैव, शाक्त, वैष्णव व जैन धर्म के ऐसे कला केंद्र विकसे जिनके दिग्दर्शन हम आपको पूर्ववर्ती  ब्लॉगों में कराते रहे हैं। सुन्दरसी का महाकाल मंदिर, अवन्तिपुर बड़ोदिया का सिद्धेश्वरमहादेव मंदिर, पोलायकलां  के मंदिरों के सम्बन्ध में पुरासंपदाओं का अनुशीलन हम पूर्व में कर चुके हैं।अपनी शोधपरक यात्रा का सूत्रापात करने से पहले हमने उज्जैन के पुराविद डॉ. रमण सोलंकी जी से  शाजापुर जिले के पुरामहत्व से सम्बंधित जानकारियां एकत्रित कीं।

पीपल्यानगर, बेहरावल गाँवों में कभी सौर्योपासना और सौर्यसंप्रदाय का अस्तित्व था, सूर्य का  उदीच्यवेष शकों के प्रभाव के परिणाम स्वरूप

शाजापुर जिला संग्रहालय में संरक्षित चायनी, पीपल्यानगर और बेहरावल की पुरासम्पदाएँ, सेतखेड़ी का शिलालेख

पारवा तथा पार्वती नदियों की युग्मित व्यवस्था से पोषित खजूर, बहेड़ा, शमी, बेलपत्र, नीम के वृक्षों के बीच सोयाबीन के नवांकुरों पर तन्मयता से दृष्टिपात करने करने के क्रम में  मन यह सोचने को विवश था , बीज का प्रस्फोट संघर्ष को दर्शाता है कहते हैं न संघर्षोपरांत विजयी ही सार्थक संज्ञा तक पहुंच पाता है। मार्ग में पीपल्यानगर ग्राम का संकेतक सहसा दिख गया था , हमने पढ़ रखा था कि इसी गांव से 2 महत्वपूर्ण ताम्रपत्राभिलेख मिले थे। सन 1836 में इन्हें यहां के एक जागीरदार ने भोपाल के पॉलिटिकल एजेंट विल्किंसन को भेंट किया  था। खेत में हल चलाते समय मिले इन ताम्रपत्राभिलेखों का मुद्रण एशियाटिक सोसाइटी की पत्रिका के सातवें भाग में  हुआ था । सुविख्यात पुराविद स्वर्गीय श्री हरिहर बिट्ठल त्रिवेदी जी ने शाजापुर स्मारिका में इसका उल्लेख किया था। इन ताम्रपत्राभिलेखों से परमार महाकुमार हरिश्चंद्र और अर्जुन वर्मन प्रथम की जानकारी सामने आयी थीं । 1235 से 1276 सम्वत के मध्य की समयावधि दर्शाते प्राच्याभिलेखों से महाराज हरिश्चंद्र देव परमार के राज्य का विस्तार और उनकी वंशावली का पहली बार प्रकाशन हुआ।जिससे  भोज परमार उसके ततोभूत उदयादित्य, उसका पुत्र नरवर्मन, उसका पुत्र यशोवर्मन, उसका पुत्र अजयवर्मन, उसका पुत्र सुभटवर्मन, उसका पुत्र अर्जुनवर्मन जिसने जयसिंह को पराजित किया था और उनके उपरांत  महाकुमार हरिश्चंद्र देव के वंशानुक्रम को समझने में सुविधा हुई यह भी पता चला कि 1235 में इस क्षेत्र में सूर्य ग्रहण के अवसर पर इसे शिलोत्कीर्ण  किया गया था। परमार शासनकाल में ये स्थल कितने सुकीर्तित रहे होंगे   मन में यही सोच-विचार में लगा था। दाएं बाएं सुबह की भीगी भीगी पगडंडियां सुहा रही थीं, ढाबला धीर व चायनी लिखा आड़ा तिरछा नाम पट्ट सामने से निकला जा रहा था जो  चायनी से प्राप्य कौमारी और हनुमान प्रतिमाओं का स्मरण करा गया। काला पीपल तहसील के चायनी और निकटस्थ बेहरावल नामक ग्रामों से पुरातत्व विभाग को दसवीं शताब्दी की सूर्य प्रतिमाओं की प्राप्ति हुई थी जो इस क्षेत्र में सौर्योपासना और सौर्यसंप्रदाय की विध्यमानता का बोध कराती रहीं थीं । ये प्रतिमाएं  शाजापुर संग्रहालय की दीर्घाओं  में संरक्षित हैं। पार्वती नदी के कूल किनारों से उपलब्ध हुई सूर्य की किरीट कुण्डल, ग्रेवेयक, यज्ञोपवीत, कौस्तुभ वनमाला और मेखला से सुशोभित समभंगी मुद्रा वाली ये प्रतिमाएँ उपान्ह (जूते) पहने हुए हैं हमें पूर्व में इन्हें देखने का अवसर मिला था । सूर्य का ऐसा उदीच्यवेष शकों के प्रभाव के परिणाम स्वरूप था । ईरान में मिश्र अथवा मिहिर की पूजा का विधान रहा है। ऐसी मान्यता है कि सूर्योपासक मग संज्ञक ब्राह्मणों को भगवान कृष्ण के काल में सूर्य मंदिरों की पूजा हेतु शाकद्वीप से लाया गया था। ग्रामीणों से पूछताछ पर विदित हुआ कि अभी पीपल्या नगर  में परमार कालीन किसी मंदिर की निर्मिति नहीं है। बेहरावल जो किसी समय में चार बावड़ी और 84 कुओं के लिए प्रसिद्द रहा, हमसे पूर्व में यहाँ आये पुराविदों ने यहाँ बौद्धों के बिहार की सम्भावनाएँ भी जताईं  । अब एकमात्र  प्राचीन जलकुंड के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है, इतिहास  यहां भी मौन है ।

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Comments

  1. राम प्रसाद'सहज' says:

    शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

  2. Mahendra Jat says:

    आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?

  3. ललित शर्मा, महाराणा कुम्भा इतिहास अलंकरण, झालाबाड़ (राजस्थान) says:

    अभिमत

    लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।

  4. कमलेश बुंदेला says:

    अति सुन्दर जानकारी.

  5. डॉ जगदीश भावसार, शाजापुर says:

    मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
    शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
    शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.

  6. O P Mishra, Bhopal says:

    Remark……………..
    Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.

  7. अमित मालवीय, उपाध्यक्ष, श्रमजीवी पत्रकार संघ, शुजालपुर says:

    दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.

  8. रमण सोंलकी, उज्जैन says:

    श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?

  9. निर्मल जैन, शुजालपुर says:

    आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

  10. Mahesh Chouksey says:

    यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
    चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
    एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
    एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !

  11. संजय शर्मा, काला पीपल says:

    आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.

  12. वंशीधर ' बंधु ' जेठड़ा जोड़, चौराहा/शुजालपुर (मंडी), जिला शाजापुर says:

    प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
    सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
    ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
    आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
    आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।

  13. हरीश दुबे, महेश्वर says:

    बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
    है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
    प्रणाम दीदी ।।

  14. सुनील उपाध्याय says:

    आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।

  15. यशवंत गोरे says:

    शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।

  16. डॉ आर सी ठाकुर, महिदपुर says:

    शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.

  17. नारायण व्यास says:

    शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!

  18. Varsha Nalme says:

    बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?

  19. Varsha Nalme says:

    बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।

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