शाजापुर संग्रहालय की अमूल्य पुरातत्व निधियाँ, दुर्लभ आभूषण और सिक्कों का संग्रह, चित्रावण भित्तिचित्र का प्रदर्शन
शाजापुर संग्रहालय में प्रदर्शित जिले से प्राप्त प्रतिमाएँ, शिलालेख, सिक्के, पाण्डुलिपियां और दुर्लभ आभूषण
अब समय था शाजापुर संग्रहालय में संग्रहीत निधियों के आलोकन का । बेहरावल की और देहरी घाट की सूर्य प्रतिमाओं (10वीं 12वीं शता.), चायनी की कौमारी व चपेटन मुख मुद्रा में हनुमान मस्तक प्रतिमाएं (12वीं 13वीं शता.), सुंदरसी की योगेश्वर विष्णु, लक्ष्मी, सुरसंदरी, जैन यक्षिणी, गणपति, गरुड़वाही विष्णु, गौरी, उमामहेश्वर, त्रोलोम्य मोहन (12वीं शता.) की प्रतिमाएं, डोंगरगांव के आदिनाथ, पिपल्या नगर की महिषापुर मर्दिनी, वैष्णवी, नृसिंह प्रतिमाएं, पोलायकलां की उमामहेश्वर और अवन्तिपुर बड़ोदिया की हरगौरी प्रतिमाओं का संग्रह और दुर्लभ लोकाभूषों के अतिरिक्त लोकचितरावन ( डॉ. जगदीश भावसार कृत), सेतखेड़ी से प्राप्त शक क्षत्रपों का प्रथम शिलालेख (शकसंवत 107 सन 185 ई) अंकन के साथ, कौशम्बी की मुद्राएं जो इस कथ्य की सम्पुष्टि करती हैं कि पाटलिपुत्र श्रावस्ती, तक्षशिला और उज्जैयनी के मध्य व्यापारिक पथ विध्यमान थे। विदिशा होकर तुंबवन होते हुए कन्नौज मथुरा सोंरों सूकर क्षेत्र होकर पांचाल को जोड़ने वाला मार्ग भरहुत होकर जाता था कौशम्बी जाने वाला मार्ग शाजापुर जिले से गुजरता था, ऐसा विद्वानों का अनुमान है।
प्रदर्शिका में डॉ जगदीश भावसार की बनाई चित्रावण कला भी प्रदर्शित थी, हमारे साथ कला मर्मज्ञ और लोक चितेरे डा जगदीश भावसार स्वंय उपस्थित थे। लोकसंस्कृतिविद डॉ. भावसार से हमने शाजापुर की लोकपरम्पराओं और ‘चित्रावन’ लोकचित्रण शैली की जानकारी चाही। उन्होंने बताया कि ‘चित्रावन’ मालवा की अपनी लोकचित्रण भित्ति शैली है, जिसके अश्व व गज की लयात्मकता को राजस्थान की फड़ शैली की अपेक्षा श्रेष्ठ माना जाता है। आज भले ही आधुनिक रंगों का प्रयोग होने लगा हो पर पहले चित्रावण में ग्रामीण महिलाएँ बांस की पतली सलाई के सिरे पर रुई बाँध कर धूलि रंगों को गोंद में मिलाकर चित्रावण किया करती थीं। शादी-विवाह के अवसरादि पर घर की भीतों पर बनायी जाने वाली दुंदुंभी वादकों की पांत, दूल्हा-दुल्हन की डोली, तीर्थ पधारे परिजनों का अंकन, चाँद सूरज, पालकी, घोड़ा, खोड़िया बामण, फूल छाबड़ी, चौपड़, सतिया, कुंवारा-कुंवारी, डोकरा-डोकरी खेल, सोनचिड़िया, बैलगाड़ियों वाली देहाती व्यवस्था का भीतों पर अवतरण और मालवा के भक्ति से पगे लोकानुरंजन का विस्तारशः वर्णन हमारे सामने आता गया, बल्कि इन लोकमंगल की कामना वाले लोकाचार के सम्बन्ध में बताते हुए उनके दृग भीग भी गए। स्वयं को संभालकर उन्होंने बातचीत पुनः प्रारम्भ की। बताने लगे शाजापुर के ब्राह्मण परिवार के श्री घड़ियाली जी महाराज और उनके पुत्र सत्यनारायण जी महाराज इस कला के शीर्षस्थ चितेरे माने जाते थे जो घर-घर जाकर लोक चित्रावण किया करते थे। ध्यान रहे चित्रावण सफेद दीवार की पृष्ठभूमि में गहरे लाल हरे नीले रंगों से बनाया जाता है जिसकी विषयावली गंगापूजन, तीर्थयात्रा, विवाह आदि के शुभ अवसर पर तुलसी पूजा, गणेश श्रवण, हाथी घोड़ा, कलश, स्वस्तिक, जवारा, लाड़ा-लाड़ी, बारात और हास्य-विनोद के आलेखन के रूप में सामने आती है। घर की भीतों के अतिरिक्त कोठी, बड़ौले पर भी चित्रावण किया जाता है।
जैन, शाक्त, वैष्णव और शैव प्रतिमाएँ जो शाजापुर संग्रहालय की निधियाँ हैं, मालवी भित्ति चित्र चित्रावण
उन्होंने शाजापुर की रंगरा सेरी में बँधकर रँगकर तैयार होने वाली बांधनी चुनरियों की ख्याति का भी उल्लेख किया। झालर, फिलारी, चीन व मगजी लगी शाजापुरी चुनरियों की धाक मालवा के अन्य हिस्सों में होने की जानकारी उन्होंने साझा की। बजट्टी, हंसली, खुंगाली, गलसरी, ठुस्सी, टोटी , बोर, भंवर, छोगा, सेला, नथ, कांटा , बाजूबंद, मादला, टड्डा, बांगड़ी, बजरी, सांकला, कांकरी, गोखरू, कड़ी, आंवला, टंका, तोड़ा, नखलिया बिछुड़ी वाले गहनों का उच्चरण एक साँस में करके उन्होंने हमें भी चौंका दिया। श्रृंगारप्रिय मालवा की स्त्रियों के ये दुर्लभ आभूषण संग्रहालय की वीथिका में भी दर्शनीय थे। संग्रहालय के दिशदर्शक दामोदर नागर जी ने हमें सभी प्रदर्शित पुरासामग्रियों से अवगत कराया। उनका आभार व्यक्त करते हुए हम सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे आ गए।
शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?
अभिमत
लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।
अति सुन्दर जानकारी.
मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.
Remark……………..
Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.
दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.
श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?
आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !
आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.
प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
प्रणाम दीदी ।।
आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।
शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।
शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.
शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!
बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?
बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।