शाजापुर जिले का इतिहास, कार्दमकवंशीय शक ,परमारकालीन क्षत्रपों की पुरातात्विक सम्पदा और लोक संस्कृति

मध्यभारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं लीलाधर जी जोशी, राजस्व मंत्री श्री त्र्यम्बक सदाशिव गोखले, पद्मभूषण डॉ. बालकृष्ण शर्मा नवीन, राष्ट्रभक्त श्री सौभाग्यमल जैन शुजालपुर के थे  

मालवा की सुप्रसिद्ध व्यापारिक मंडी शुजालपुर मंडी में हमने प्रोफेसर एम.आर. नालमे जी से भेंट की ,नालमे जी के निवास पर स्थानीय साहित्यकार श्री रामप्रसाद सहज जी जैसे अन्य  विद्वानों का जमावड़ा पहले से ही था ,परस्पर  वार्तालाप में प्रजामण्डल का उल्लेख हुआ। नालमे जी ने बताया कि शुजालपुर के बंजीपुरा मोहल्ले में मध्यभारत के प्रथम मुख्यमंत्री पं लीलाधर जी जोशी रहा करते थे। डूंगलाय गाँव से आने वाले ‘बा साहब’ के नाम से प्रसिद्ध जोशी जी की प्रारंभिक शिक्षा शुजालपुर व उच्च शिक्षा माधव महाविद्यालय उज्जैन में संपन्न हुई थी। शुजालपुर की धरा में स्वभावतः जो मतवालापन है वह मध्यभारत के प्रथम मुख्यमंत्री लीलाधर जोशी जी के रहन सहन में  भी दिखता था। यहाँ तक  कि 1989 में जब शुजालपुर में राजमाता सिंधिया जी ने लीलाधर जी से सौजन्य भेंट की थी तब उन्होनें उनसे कहा था ये टपकती छत ही मेरे राजनैतिक जीवन का इनाम है। उन दिनों वे शहर से दूर खपरैल वाले मकान में रहते थे जो बारिश के दिनों में अक्सर टपकता था। एक तखत, एक बिस्तर और 4 तगारियां उनके घर की सजावट थीं। उनके मंत्रिमंडल के राजस्व और सहकारिता मंत्री श्री त्र्यम्बक सदाशिव गोखले भी शुजालपुर के ही निवासी  थे। शुजालपुर का उल्लेख हो तो राष्ट्रभक्त श्री सौभाग्यमल जैन, श्री रामचंद्र चौबे, श्री ठाकुरलाल चौधरी जैसे गुनीजनों का नाम न आये ऐसा हो नहीं सकता। वरिष्ठ साहित्यकारद्वय श्री प्रभाकर माचवे और श्री गजानन माधव मुक्तिबोध जो अपनी स्वतंत्र लेखनी के कारण  जाने जाते हैं, शुजालपुर की पाठशाला में अध्यापन से संबद्ध रहे थे। वार्ताक्रम में पद्मभूषण डॉ. बालकृष्ण शर्मा नवीन का भी उल्लेख हुआ। शुजालपुर के निकट भ्याना गांव में जन्मे नवीन जी को पं गणेश शंकर विद्यार्थी और पं माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कलम के धनिकों  का सानिध्य मिला था। हमने अपनी पत्रकारिता की पढाई में ‘प्रताप’ व ‘प्रभा’ नामक पत्रों के संपाकदत्व के सम्बंध में पढ़ा था। उनकी निर्भीक पत्रकारिता प्रखर प्रगल्भ व्यक्तित्व और सशक्त लेखन शैली का भी विशद अध्ययन किया था।वस्तुतः ब्रितानी शासनकाल में रेड पॉइंट के रूप में चर्चित रहे शुजालपुर में अनेक ऐसे  स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हुए जिन्होंने अंग्रेज़ों की नींद उड़ा रखी थी।  पंडित लीलाधर जोशी उज्जैन के राष्ट्रीय चेतना से ओत प्रोत पुस्तकेजी  से प्रभावित होकर स्वातन्त्र आंदोलन में उतरे और  दिरवे सा, मनाना सा, अम्बाप्रसाद जी , राधेलाल व्यास जी के सानिध्य में 1925 से माँ भारती की सेवा में वे पूरी तरह समर्पित रूप से कार्य करने लगे । नालमे जी के अनुसार 1928 में शुजालपुर के  श्री ठाकुरलाल चौधरी और श्री रामचंद्र चौबे के साथ उन्होंने स्नेही मित्रमंडल बनाकर राष्ट्रप्रेम की अलख जगाने हेतु  अभियान की शुरुआत की थी। इसी समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का अनुसरण करते हुए शुजालपुर में गणेशोत्सव का सूत्रपात किया गया। चर्चा से यह बात निकलकर आई कि परगना शुजालपुर, सीहोर, आष्टा, कुरावर, तलेन, पचौर के आस-पास के क्षेत्रों में पिंडारियों के उत्पात से बचने के लिए राजपूतों को राजस्थान से लाकर  यहां बसाया गया जो जागीरदार कहलाए। ढाबला धीर, ढाबला घोंसी, डाडियाखेड़ी, कमालपुरा जैसे 20 गाँव ऐसे थे जिन्होंने पिण्डारों को भगाने में फ़ौज की सहायता  की। 1946 में लीलाधरजी जोशी के प्रधानमन्त्री ग्वालियर स्टेट बनाये जाने के बाद ये सारी जागीरें मध्य भारत में विलीन हो गईं।प्रोफेसर नालमें के अनुसार  बंजीपुरा मोहल्ले में पिण्डारों की बसावट हुआ करती थी। पिंडारियों ने शुजालपुर को तहस नहस करने में कोई कसर बाकी नहीं रख छोड़ी थी । जोशी जी की  मेरी कहानी ग्राम से संग्राम तक पुस्तक में उल्लेखित  चौधरियों के  हल चलाने पर पिंडारियों द्वारा छुपाया गया चांदी का हौदा मिलने का किस्सा भी सामने आया।  बीच -बीच में  अजमेर वाले हरिभाऊ उपाध्याय,  और बालकृष्णशर्मा नवीन जैसी हस्तियों के अवदान का भी स्मरण किया जाता रहा। कभी कपास की जिनिंग मीलों के लिए बहुचर्चित रहे शुजालपुर की कृषि प्रधान संस्कृति भी बातचीत का विषय बना । हमने अपनी शोधयात्रा के निर्धारित गंतव्य स्थलियों की सूची में भ्याना को तत्काल जोड़ा और  हम लोग भ्याना की ओर बढ़ गये। SH41 मार्ग पर नेवज नदी को लांघने के साथ ही राणोगंज और भ्याना गांव आते हैं हम पहले राणोगंज की ओर अग्रसर हुए।नेवज नदी पर बने पुल पर से ही वृक्षों से घिरी  छत्री की भव्यता दिखाई दे रही  थी, राणोगंज की छतरी का शिखर हमें ही क्या रह चलते हर राहगीर को आमंत्रण दे रहा  था ।

ग्वालियर के सिंधिया राजवंश की संस्थापना करने वाले श्रीमान राणो जी सिंधिया की विशालित छत्री, राणोगंज नामक ग्राम में 

श्रीमान राणोजी की छत्री, 1731 से 1745 ई तक मालवा में राणोजी की प्रभावी सत्ता रही, 3 जुलाई सन 1745 में इसी स्थान पर राणोजी ने प्राणोत्सर्ग किये

मोहम्मदखेड़ा गांव से पहले एक अन्य मार्ग राणोगंज नामक ग्राम की ओर ले जाता है।  थोड़ी ही देर में देहात की सीधी सदी जीवन शैली के दिखवैये बने हम स्वयं को शुजालपुर के निकट ग्वालियर के सिंधिया राजवंश की संस्थापना करने वाले श्रीमान राणो जी सिंधिया की विशालित छत्री के सम्मुख खड़ा पा रहे थे। नेवज नदी के तटस्थ यह स्थान अत्यन्त विश्रांत है। हमने इस स्थान के संबंध में सुना बहुत था पर विवर्तन आज संभव हो सका था। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस उत्थित छत्री की जगति पर लीला पुरूषोत्तम भक्तवत्सल श्री कृष्ण की लीलाओं और दीनबन्धु श्री विष्णु के दशावतारों क्रमानुसार मत्स्य, कूर्म, भूउद्धारक वराह, नृसिंह, वामन, राम परशुराम, बलराम, कृष्ण, कल्कि का उत्कीर्णन उत्कृष्ता के साथ किया गया था। विशेषतः वाराही, ब्राहमणी, कौमारी, वैष्णवी, इत्यादि दैवी शक्तियों को उनके वाहनों और आयुधों के साथ ऐसे उत्कीर्णित किया गया था कि आप भी हमारी भांति विमुग्ध हुए बिना नहीं रह पायेंगे। छत्री के सोपानों के पार्श्व में गजाभिषेक लक्ष्मी और गणेश प्रतिमाओं का शिलोत्कीर्णन शोभा से युक्त था। चंवरधारिणी स्त्री प्रतिमाएं पारंपरिक परिधानों में ऐसे शिल्पित की गयी थीं, मानो छत्री के तत्कालीन शिल्पिकों की शिल्पकारिका को श्लाघनीय बनाने के लिए ही अवतरित की गई हों। छत्री के तीन अधिष्ठानों के मध्य अलंकृत स्तम्भ थे जिन पर द्विभुजी गरूड़ को ध्यानस्थ मुद्रा में दर्शाया गया था। हमारे दिखवैया बंधु जी के अनुसार यह ब्रह्मलोक गमन की प्रतीकात्मकता का प्रदर्शन था। भूतल से 20 फीट ऊंची जगती पर आलंबित छत्री के 13 फीट ऊचें अष्टकोणीय 12 स्तम्भों पर लतावल्लरियों, मुकुलित पुष्पाकृतियों, कमलाकृतियों का श्रेष्ठ अंकन था, जो जन्म मरण के ईश्वरीय विधान को रूपायित करता दिख रहा था। छत्री के शिखर पर गोलक भाग में पुष्पित कमल दल का अद्वितीय शिल्पांकन था। बंशीधर बंधु बताने लगे श्रीमान राणोजी की 1731 से 1745 ई तक मालवा में प्रभावी सत्ता रही। वे महाराष्ट्र के सतारा जिले के कान्हेरखेड़ा ग्राम के पाटिल जनकोजीराव के सुपुत्र थे। राणोजी को 1726 में मराठाओं के अभियान का प्रबंधन सौंपा गया था। महाराष्ट्र की वीरप्रसवनी धरती ने राणा जी सिंधिया के रूप में मालवा को एक ऐसा  विश्रंभी (विश्वसनीय ) वीरेश (वीर योद्धा) दिया जिसने 1731 में उज्जैन पर आधिपत्य किया, उज्जैन को राजधानी बनाया। बताया जाता है कि राणो जी ही उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार के परिकल्पनाकार रहे। उनके दीवान रामचंद्र बाबा सुखरनकर (शेणवी) ने इस कार्य को अपने मार्गदर्शन में संपन्न कराया। उज्जैन व मालवा का यह पुनर्जागरण काल कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 1732 में द्वादश वर्षीय अखिल भारतीय सिंहस्थ मेले की शासकीय व्यवस्था का सूत्रपात उन्हीं के सत्तासीन कालखंड में हुआ। उज्जैन के अन्य 84 मंदिरों की भी पुनर्निर्मिति हुई। राणोजी ने अपनी शक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता के प्राखर्य से मालवा को मुगलों की अधीनता से  मुक्ति का ही मार्ग नहीं प्रशस्त किया वरन क्षेत्र का चतुर्दिश विकास भी किया। बाजीराव पेशवा के विश्वस्त तीन सेनापतियों में प्रमुख रहे राणोजी ने मालवा की अस्मिता की रक्षा करते हुए ही 3 जुलाई सन 1745 में इसी स्थान पर  प्राणोत्सर्ग कर दिए थे। छत्री के बीचों-बीच देवाधिदेव महादेव के लिंग स्वरुप की प्रतिष्ठा है। विशालकाय वृक्षों की विद्यमानता में मराठा शैली में निर्मित शिल्पकृतियों के बीच सदाशिव स्वरूपी श्वेतवर्णी शिवलिंग की पूजा अर्चना करते श्रद्धालुओं को देखकर हम अभिभूत थे। यहाँ तीर्थंकरों की वृहदाकार प्रतिमाओं का भी उत्कीर्णन हुआ है। यहीं से प्राप्त अनेक जैन प्रतिमाएँ उज्जैन के जयसिंहपुरा संग्रहालय में संग्रहीत की गईं हैं (स्रोत राज्य पुरातत्व संग्रहालय भोपाल)।  मन अवगुंथन में लगा था। शुजालपुर के आस-पास दर्शनीय स्थलों की इतनी बड़ी श्रृंखला है फिर भी ये स्थान ग्रामीण पर्यटन के मानचित्र से अछूते क्यों हैं? पद्मभूषण डॉ. बालकृष्ण शर्मा नवीन- आत्मोसर्ग की ऐसी प्रतिमूर्ति जिनका अवदान युगों-युगों तक चिरस्मरणीय रहेगा, भ्याना गाँव में  उनका स्मृतिस्तम्भ

“सावधान मेरी वीणा में चिंगारियाँ आन बैठी हैं” लिखने वाले प्रखर पत्रकार, साहित्यकार स्व. डॉ. बालकृष्ण शर्मा नवीन का गाँव भ्याना

मुख्य सड़क को छोड़कर बाएँ हाथ पर मुड़ने पर कुछ दूर ही छोटा सा गांव कीचड़ सनी देहाती सड़क पर मानो हमारी ही प्रतीक्षा कर रहा था। हमें देखकर ग्रामवासियों की एकरसता भंग हो गयी थी। डॉ. बालकृष्ण शर्मा नवीन का स्मृतिस्तम्भ एक अहाते में स्थित था जिसके लोहे के दरवाजों पर बड़ा सा ताला जड़ा था । हमें वहां पाकर गांव वालों की जैसे तंद्रा टूटी हो ,चाबी की दुंदवाई मची। इस घर- उस घर कुंजी खोजने की प्रक्रिया में विलम्ब के कारण हमारा आधा घंटा व्यर्थ में ही व्यतीत हो गया। मन को जैसे तैसे समझाया। कुछ देर हम नवीन जी की प्रतिमा के समक्ष प्रणति अवस्था में खड़े रहे। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को स्मृत किया। बालकृष्ण शर्मा नवीन की काव्य यात्रा स्वछंदतावाद, हालावाद, प्रगतिवाद और राष्ट्रीयता से परिपूर्ण रही थीं। किसी एक रूप रंग में स्थिर होना नवीन जी की स्वछंद, अल्हड़ तबीयत को कतई रास नहीं आया। उनकी निर्लिप्तता और फक्क़ड़पन  उनकी कविताओं   में मुखरित हुआ है- हम अनिकेत/ हम अनिकेत/ हम तो रमते राम/ हमारा क्या घर/ क्या दर/ कैसा वेतन । वे स्वभाव से ही विद्रोही थे। हरदम अपनी कविताओं में क्रांति के आव्हान का तूर्यनाद करते दिखते थे। उनकी वाणी में असंख्य अग्निकण प्रस्फुटित  होने को छटपटाते थे। “सावधान मेरी वीणा में चिंगारियाँ आन बैठी हैं”। उनकी अभिव्यक्ति और अनुभूति में समाई इन चिंगारियों ने उनकी कविता को ओजस्विनी बना दिया था।सूरज देवता नवीन जी की प्रतिमा के ठीक ऊपर आ गए थे। मानो उनकी  लिखी पहली कविता सूर्य के प्रति को दोहराने आये हों – हे तारकरज तुम्हें शतवार प्रणाम हमारा है/ कितना विश्व पर उपकार तुम्हारा है/ तुम देते हो उपदेश शीघ्र उठने का/ कर्तव्य भाव से आलस्य दूर करने का। 20 सितंबर 1915 की यह कविता मैनें मेरी मां डॉ. हेमलता मिश्रा से सुनी थी। उन्हीं दिनों की एक अन्य कविता मनमीन शीर्षक से माधुरी में छपी थी- मछली ! जरा बता दो कितना पानी आज, देखूँ ! कितने गहरे में है मेरा जीर्ण जहाज, मन की मछली ! डुबकी खा कर कह दो कितना जल है, कितने नीचे, कितने गहरे, कहाँ थाह का थल है। नोक्त निर्वाण शीर्षक से सुधा के साहित्यांक में छपी नवीन जी की एक और भाव प्रधान रचना स्मरण हो आयी थी- गिनता रहता हूँ तारे, सूनी कुटिया रोती है। यह तारे हैं अंगारे या काल भरे मोती हैं, मोती की सुधि आते ही, सोती पीड़ा जगती है। ग्रीवा की माल तुम्हारी हिय में डुलने लगती है। यह दर्शाता है कि वे स्वयं भावुक और रसलीन कवि थे। उनकी  कृतियों में  जीवंत वेदना समाई हुई थी।  बंधु जी बोल पड़े-कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ/ जिससे उथल पुथल मच जाए/ एक हिलोर इधर से आए/ एक हिलोर उधर से आए/ एक ओर कायरता कांपे/ गतानुगति विगलित हो जाए/ । हमने भी उनके सुर में सुर मिलाया। विप्लव गान नामक यह कविता उस कालखण्ड में सर्वश्रुत कंठहार बन गयी थी। हमने वह घर भी देखा जहां नवीन जी बरसों निवासित रहे। यहां आज सामुदायिक विकास भवन कार्यालय है। निर्धनता में भी वे राष्ट्रधर्म निभाते रहे। आर्थिक संताप को  लेकर उन्होनें कोई ग्रंथि भी नहीं पाली। यहां तक कि  ‘प्रताप’ के दिनों में अर्जित प्रतिमाह 500 रू. की कमाई भी वे असहाय आश्रित परिवारों के भरण पोषण में व्यय करते रहे । जेल में यातनाएं सहीं। आत्मोसर्ग की वे ऐसी प्रतिमूर्ति थे जिनका अवदान युगों-युगों तक चिरस्मरणीय रहेगा। गांव से निकलकर हम  पुनः राष्ट्रीय राजमार्ग पर आ गये थे। नवीन जी के  स्मारक स्थल की सुधि समय रहते ले ली जाये तो कितना अच्छा हो।

Comments

  1. राम प्रसाद'सहज' says:

    शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

  2. Mahendra Jat says:

    आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?

  3. ललित शर्मा, महाराणा कुम्भा इतिहास अलंकरण, झालाबाड़ (राजस्थान) says:

    अभिमत

    लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।

  4. कमलेश बुंदेला says:

    अति सुन्दर जानकारी.

  5. डॉ जगदीश भावसार, शाजापुर says:

    मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
    शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
    शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.

  6. O P Mishra, Bhopal says:

    Remark……………..
    Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.

  7. अमित मालवीय, उपाध्यक्ष, श्रमजीवी पत्रकार संघ, शुजालपुर says:

    दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.

  8. रमण सोंलकी, उज्जैन says:

    श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?

  9. निर्मल जैन, शुजालपुर says:

    आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

  10. Mahesh Chouksey says:

    यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
    चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
    एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
    एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !

  11. संजय शर्मा, काला पीपल says:

    आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.

  12. वंशीधर ' बंधु ' जेठड़ा जोड़, चौराहा/शुजालपुर (मंडी), जिला शाजापुर says:

    प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
    सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
    ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
    आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
    आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।

  13. हरीश दुबे, महेश्वर says:

    बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
    है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
    प्रणाम दीदी ।।

  14. सुनील उपाध्याय says:

    आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।

  15. यशवंत गोरे says:

    शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।

  16. डॉ आर सी ठाकुर, महिदपुर says:

    शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.

  17. नारायण व्यास says:

    शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!

  18. Varsha Nalme says:

    बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?

  19. Varsha Nalme says:

    बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।

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