किला, शहरपनाह का परकोटा, किले के चार द्वार, रूपमाता मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर और शहर शाजापुर की धरा के रत्न, संस्कृत के 35 ग्रंथों के रचयिता पं. सोमनाथ शास्त्री का अवदान
सूरजदेव जो अब तक नरम नरम धूप बरसा रहे थे। आग उगलने लगे थे। कोरोना के कारण ईश्वरोपासना के निमित्त मिलने वाली सामग्रियाँ और उपादानों वाली व्यवस्था का भी अभाव अखर रहा था। घड़ी की सुइयां दिन ढलने से पहले गिरवर पहुंच जाने के लिए पल प्रतिपल सचेत कर रहीं थीं। मगरिया के भीमघाट, महादेवघाट, चीलर के किनारे के श्रीघाट के आस पास शहरपनाह का परकोटा दिखाते हुए भावसार जी आजादचौक ले आये थे। दाहिने हाथ पर किले का उत्तर दरवाजा, बादशाहीपुल मुरादपुरा और मीरकलां की ओर जाने वाले मार्ग पर था। किले की ओर ले जा रहे रास्ते पर पूर्व दरवाजा लांघते हुए हम किले इलाके में प्रविष्ट हो गए थे। शाजापुर पुस्तक में झालावाड़ के पुराविद ललित शर्मा ने शाजापुर के किले की निर्मिति को शाहजहां से पूर्व खीचीं राजपूत नरेशों की गढ़ी के रूप में संज्ञित किया है। राजपूती स्थापत्य का उदाहरण बताते हुए सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण किले को ललित जी ने दक्कन यात्रा 1640 के समय पुनर्निर्मिति द्वारा संवर्धित किये जाने का वर्णन किया है। किले का विशलित मुख्य द्वार मुग़ल व राजपूत शैली में निबद्ध है ऐसा उन्होंने लिखा है। द्वार के शीर्ष पर छतरियों की व्यवस्था है। भीतर के वृहदाकार प्रांगण में ग्वालियर नरेश दौलतराव सिंधिया की महारानी ताराबाई सिंधिया निवासित रहीं थीं। रानी ताराबाई को शाजापुर 1866 ई में जागीर खर्च के रूप में प्राप्त हुआ था। सिंधियाओं ने मन्दिरों, बावड़ियों, भवनों का निर्माण व जीर्णोद्धार कार्य कराया। श्रीमान महादजी सिंधिया द्वारा उज्जैन में स्थापित टकसाल के हाली के सिक्के शाजापुर में लंबे समय तक प्रचलित रहे। भावसार जी के अनुसार मनसबदार के महल के रूप में ख्यात रहे अलंकृत स्थान पर बूढ़ी कचहरी रही, कलेक्ट्रेट रहा, सेंट्रल स्कूल के बाद इमारत कब नीलाम होकर जमींदोज हो गई, किसी को कानों कान खबर ही नहीं हुई। किले के चारों द्वारों में से दो बड़े और दो खिड़की द्वार हैं। किले की बुर्जियों पर तोपों और बंदूकों के नियत स्थान हैं। परकोटे पर सैनिकों का आवागमन पथ और शस्त्रों के स्थान भी बने हुए हैं। बंशीधर जी और जगदीश जी के साथ किले का परिभ्र्रमण करते हुए हम ऊपर नीचे होते रहे। ज्ञानोपलब्धि के क्रम में पता चला कि ग्वालियर नरेश के शासन काल में यहाँ घाटों और पुलों की समुचित व्यवस्था की गयी थी। किले के आतंरिक भाग में लाल खिड़की और गुप्त सुरंगों की भी विद्यमानता थी वर्तमान में जिन्हें जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। वैसे किले की खिड़कियों से दिखती चीलरनदी की दुर्दशा भी कोई कम असहनीय नहीं थी। कसेरा मोहल्ला से निकलकर रूपामाता मंदिर के सामने से निकलने की प्रक्रिया और भी दुष्कर थी ट्रेफिक जाम था। रूपामाता मंदिर में विराजीं रूपामाता और हिंगलाजमाता जी व दोनों भैरवों के समक्ष करबद्ध मुद्रा में खड़े हम गिरवर की ओर बढ़ गए। ओंकारेश्वर मंदिर चीलर नदी के किनारे आस्थित था। जिसके सम्बन्ध में एक प्रचलित किंवदंती सुनाते हुए डॉ. जगदीश भावसार ने एक प्रचलित लोकोक्ति का उल्लेख करते हुए बताया कि एक वृद्ध ब्राह्मण जो कि सेकवाल समाज के थे प्रतिदिन गुटका साधन से नर्मदा स्नान करते थे। ओंकारेश्वर मंदिर की पूजा अर्चना कर जीवन यापन करने वाले वृद्ध ब्राह्मण अस्वस्थ होने के कारण जब ऐसा कर पाने में असमर्थ हो गए तब उन्होंने महादेव का ध्यान लगाया।
शाजापुर की बसाहट, राज राजेश्वरी मंदिर, चीलर नदी, रूपामाता मंदिर,ओंकारेश्वर मंदिर, किले के दरवाज़े और स्व. श्री सोमनाथ शास्त्री
वृद्ध की रुग्णावस्था में महादेव ने उसकी आर्त पुकार सुनी और चीलर नदी में ओंकारेश्वर लिंग के रूप में सदाशिव का प्राकट्य हुआ। ऐसी मान्यता है कि ओंकारेश्वर मंदिर में प्रतिस्थापित शिवलिंग मांधाता में स्थित ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर की प्रतिकृति है। तभी से यह ओंकारेश्वर शिवलिंग और मंदिर ओंकारेश्वर मंदिर कहलाया। डॉ. भावसार ने इस अतिप्राचीन मंदिर की भीत पर शिवाजी सम्बन्धी एक शिलाचित्र देखा था लेकिन मंदिर की पुनर्निर्मिति के कारण बहुत ढूंढने के बाद भी हम उस तक नहीं पहुंच पाए। चीलर की पवित्रता को पाटती गंदले नालों वाली व्यवस्था को देखकर मन क्षुब्ध हो गया। यह आत्मवंचना (अपने से ठगी) का काम हम कब तक करते रहेगें। मन विचारने लगा था। सूबेदार घाट के नाम से सिद्ध इस स्थान पर एक मराठा कालीन छत्री भी विद्यमान थी । शहर का परिप्रेक्षण किसी अनुभवी वयोवृद्ध साहित्यकार के साथ करिए, आपको किसी पुस्तक को पढ़ने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी आप स्वतः ही किसी अपरिचित शहर की परिचिति अवस्था में आ जायेंगे। मोटर संकरी गलीयों में कसमसाती हुई बढ़े जा रही थी, परस्पर बातचीत में यह भी विदित हुआ कि शाजापुर नगर में संस्कृत भाषा का बोलबाला रहा यहाँ तक कि एक समय में इसे छोटी काशी की संज्ञा दी जाने लगी थी। यह सोमदत्त शास्त्री जी की संस्कृत सेवा का प्रतिफल था। वे सन 1807 में शाजापुर में जन्मे गुजराती नागर ब्राह्मण थे। 35 ग्रंथों के रचयिता पं. सोमनाथ शास्त्री भोपाल के निकट सीहोर के विद्यालय में प्राध्यापक थे। वहीं के अन्य प्राध्यापक जोसेफ डेविड कनिंघम, मि. विल्किन्स व मेजर जोसेफ डेविड उनके सहकर्मी रहे थे। उज्जैन के सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान में पं व्यास की पांडुलिपियों का संग्रह है जहां उनके हस्तलिखित ग्रंथों का भी संचयन है । हमें यह भी विदित हुआ कि उन्होंने रेखागणित पर एक पुस्तक की रचना की थी जो भोपाल की नवाब सिकंदर जहां बेगम द्वारा प्रशंसित हुई थी। कालंदिका प्रकाश, सोम सिंधु, बुद्धचन्द्रिका, ज्योति प्रकाश, गीतार्थ तत्व सिद्धांत, शब्द रत्न प्रदीपिका, बुद्धनंदिनी, छंद प्रकाश, उनकी रचित वे रचनाएँ हैं जो संस्कृत वाङ्गमय में विशेष सुकीर्तित रही हैं। स्वामी ब्रह्म तारकानन्द सरस्वती के नाम से ख्यातित सोमनाथ व्यास के हस्तलिखित 24 ग्रंथों में से 14 विधाओं और 64 कलाओं पर प्रकाश डालने वाला ग्रन्थ बहुचर्चित रहा है। यह जानकारी हमारे लिए चौंकाने वाली थी, कभी सीहोर जाकर 1938 तक अध्यापन कार्य से सम्बद्ध रहे पं व्यास के बारे में जानकारियाँ एकत्र करेंगे, हमने मन ही मन यह संकल्प तत्क्षण ले लिया था। मार्ग में डॉ. भावसार वर्तमान में रिकार्ड में दर्ज जिले के 33 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों सहित पं बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्री जयनारायण जी बाप जी महाराज, श्री नरेश मेहता, श्री शालिग्राम जी वैद्य, स्वामी सूर्यानंद सरस्वती और श्री नंदकुमार भोंसले के कृतित्व और व्यक्तित्व का बखान करते जा रहे थे।
शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?
अभिमत
लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।
अति सुन्दर जानकारी.
मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.
Remark……………..
Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.
दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.
श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?
आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !
आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.
प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
प्रणाम दीदी ।।
आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।
शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।
शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.
शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!
बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?
बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।