तंत्रसाधना का प्रभावोद्दीपक क्षेत्र रहा इसलिए नलखेड़ा तांत्रिकों को विशेष प्रिय, शिखर पर छिन्नमस्ता देवी की प्रतिष्ठा जिनके पूजन उपरांत माता बगलामुखी का पूजानुष्ठान किया जाता है
माँ शब्द में कितना प्रेमामृत भरा है। भक्त जब भाववत्सल होकर माँ को पुकारता है। तब माँ द्रवीभूत हो जाती हैं। हम मंदिर में लोकास्था के अतिरेक को देखकर यही विचार रहे थे ,तभी मंदिर परिसर में व्यवस्थापक श्री रामचंद्र गायरी मिल गए जिन्होंने हमें मंदिर की वर्तमान प्रबंधन प्रणाली से अवगत कराया दो सौ ढाई सौ पीतवस्त्र धारी पुजारियों की व्यापकता, पीली सुहावनी धूप, हल्दी की गांठों से सजी हुई थालियां, चौकी पर बगलामुखी तंत्र और पांडित्य कर्म से जुड़े पंडितों का जमावड़ा, मंत्रों की निरंन्तरता ऐसा सात्विक वातावरण सिरज रही थीं मानो माता पृथ्वी और पिता आकाश एकमेक हो रहे हों। यहाँ भिलाला समाज की पूजा का विधान है। हमने भिलाला समाज के पुजारी श्री मनोहर लाल पंडा से मिलकर माँ बगलामुखी साधना को समझने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि इस निर्जन नितांत एकांत वन क्षेत्र को एकांतिक साधना के लिए पूर्णतः उपयुक्त था जानकर मंदिर के पार्श्व में ध्यानिष्ठ संत, औघड़ बाबा आदि शिवोपसनाएँ किया करते थे। यह तंत्रसाधना का प्रभावोद्दीपक क्षेत्र होने के कारण यह स्थान तांत्रिकों को विशेष प्रिय रहा । मंदिर के वरिष्ठ अर्चक मनोहर लाल जी का पूरा परिवार चौदह पीढ़ियों से देवी की सेवा में पूर्ण श्रद्धा और निष्ठा के साथ संलग्न रहा है। उन्होनें श्री मांगीलाल जी पंडा, श्री देवीलाल जी पंडा , श्री केदार सिंह जी पंडा, श्री भैंरु सिंह जी पंडा, श्री कोदूलाल जी पंडा जी के नामों का उल्लेख करते हुए मंदिर में सिद्धिदात्री बगलामुखी की सेवा संबंधी जानकारी साझा कीं ,वनदेवी के समक्ष पाड़े की बलिप्रथा के प्रचलन के परिणामस्वरूप आदिवासियों ने यहां की सेवा सुश्रुषा का दायित्व निभाया, 2005 में मंदिर की देखरेख का कार्य शासकीय अधिकारियों द्वारा किया जाने लगा। पूर्व में सघनवन राशि में हिंसक पशुओं की विध्यमानता के बीच ऐकान्तिक गुप्त साधना करने वाले साधकों को छोड़कर यहां श्रद्धालुओं की आवक जावक नगण्य ही थी गांव पांच किलोमीटर दूर बसा था। मनोहरलाल जी ने माँ बगलामुखी के मंदिर के शिखर को देवी की सहचरियों चौंसठ योगनियों की शक्तियों से घनीभूत स्थान बताकर स्पष्ट किया कि शिखर के सम्मुख छिन्नमस्ता देवी की प्रतिष्ठा है जिनके पूजन के उपरांत ही माता बगलामुखी के अर्चाविग्रह का पूजानुष्ठान किया जाता है । शास्त्रों में शत्रु विजय, समूह स्तम्भन, राज्य प्राप्ति और दुर्लभ मोक्ष हेतु भगवती छित्रमस्ता की अर्चना अमोघ बताई गयी है। गुह्य तत्व बोध की प्रतीकात्मकता लिए माँ छित्रमस्ता असुरी शक्तियों के संहार के समय अपना भव्य स्वरूप त्यज्य कर अभव्या स्वरूप धारण कर लेती हैं। दशम विद्या में परिगणित माँ छित्रमस्ता लोक में धूम्रावती के रूप में पूजित हैं।उनके अनुसार महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की तीन शक्तियों का संयुग्मन ही माता बगलामुखी की महाशक्ति कहलाती हैं। तमोगुण प्रधान कृष्णवर्णा महाकाली हैं, रजोगुण प्रधान महालक्ष्मी रक्तवर्णा हैं, सत्वगुण प्रधान महासरस्वती श्वेतवर्णा हैं।
हम मंदिर परिसर में बैठकर सोचने लगे दस महाविद्यायें भी कई विभेदों में विभक्त मानी गयी हैं। कहीं वे श्री विधा तो कहीं सिद्ध विधा हैं। रात्रि स्त्री है, शक्ति है, इसलिए इन विधाओं को महारात्रि, कालरात्रि, मोहरात्रि, दारुणरात्रि के नामों से संज्ञित किया गया है। बगलामुखी शक्ति के लिए वीररात्रि, सिद्धविद्या और एकवस्त्र महारुद्र (भैरव) की पूजा पद्धति सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है। सत्य तो यह है कि सर्वेश्वर के सोने पर भी जागने वाली अनंत शक्ति की अनुमति से ही काल, मृत्यु, गुणत्रय और पंचभूत प्रभावक होते रहे हैं। नलखेड़ा में भी मध्ययुगीन रीत्यानुसार पशुबलि वाली शाक्त पूजाओं का प्रचलन रहा है। आज भी मंदिर परिसर के समीपवर्ती पाड़े की बली दी जाती है। वैदिक, पौराणिक व तांत्रिक पूजा में विभेद यही है। तंत्र पूजा में समययत, कौलमत और मिश्रमत का उपासना मार्ग बताया गया है। महामाया तंत्र, शबर तंत्र सहित चौंसठ तंत्रों को कौलतंत्र कहते हैं। कौल तंत्र अथवा वाम मार्ग की पंचमकार पूजा पद्धति और वेद मार्ग का प्रवर्तित मिश्रित मार्ग मिश्रमत है। मांस, मद्य, मीन, मुद्रा और मैथुन को मानने वाली यह विद्या शिवशक्ति के सामरस्य से उपजी है। जिसमें कुल शक्ति हैं अकुल शिव हैं उनका संबंधस्थापन ही कौल मार्ग है। कुल से युक्त देवी कौलिनी कहलाती हैं। यहाँ नलखेड़ा में कौल मत का प्राचुर्य रहा है । मंदिर के पर्यवलोकन पर ब्राह्मण यजमानों के निमित्त सतत पुजानुष्ठान करते दिखाई दिए।उन्हीं में से एक पंडित कमलेश शर्मा मंदिर की दैनिंदनी गतिविधियों में व्यस्त थे। उनसे पूछा तो पता चला कि बहुत दूर बैठकर आपको यदि कोई अपनी स्मृतियों में ला रहा है तो उसका आभास ही अथर्वा है। हमारे शरीर से एक अथर्वा नाम का प्राणसूत्र निकला करता है। प्राणरूप होने से हम इसे देख नहीं पाते। जिसे हम आंग्ल भाषा में टेलीपेथी कह देते हैं। सहस्त्रों कोसों दूर बैठे व्यक्ति के मानस को पढ़ सकने वाली यह शक्ति भी परमेश्वर की लीला का ही विधान है। कौआ कैसे जान जाता है कि आज हमारे घर में पाहुना का आगमन होने वाला है। श्वान कैसे घ्राणशक्ति के बल पर चोरों के ठिकाने तक पहुंचा देता है। पुरायुग में भौम मनुष्य देवता इसी अथर्वासूत्र द्वारा असुरों पर कृत्याप्रयोग से मारण, विद्वेषण , मोहन, उच्चाटन, स्तम्भन, प्रक्रिया किया करते थे। यही बगलामुखी मां की शक्ति हैं। ब्रम्हास्त्र महाविद्या,स्तम्भनी ,मंत्र संजीवनी विद्या ,षटकर्माधार विद्या के बल पर साधक अपने शत्रुओं को मनचाहा कष्ट पहुंचा सकता है,खोई पाई वस्तु की जानकारी अर्जित कर सकता है वाकसिद्धि और शत्रुभयमुक्ति सुनिश्चित कर सकता है ।
इस बीच श्रीरामचंद्र गायरी की ज्ञानवर्षा से हम यह जान गये थे कि पांडवों ने माँ बगुलामुखी से कौरवों पर विजयप्राप्ति के लिए साधना की थी। स्वयंभू देवी के प्रादुर्भाव को लेकर एक कथा लोकश्रुत हैजो उन्होंने हमें भी सुनाई जिसके अंतर्गत सतयुग में प्रलयंकरकारी आपदा से भयवश चिंतातुर भगवान् विष्णु के सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर के तट पर तपश्चर्या से अर्धरा त्रिकाल में सरोवर से पीतवस्त्र धारित बगलामुखी का प्राकट्य हुआ। श्री विष्णु की साधना के फलस्वरूप उद्भूत सिद्धिदात्री देवी माँ बगुलामुखी को वैष्णव तेज से संपन्न ब्रह्मास्त्र विद्यादात्री त्रिशक्ति भी कहा गया है। अतः मंगलवार चतुर्दशी के दिन देवी का प्राकट्य दिवस माना जाता है। अब चूंकि देवी ने स्तम्भन प्रभाव से विध्वंसकारी जलावेग को नियंत्रित किया था इसलिए बगलामुखी तंत्र साधना स्तम्भ विद्या का आलंबन लेकर ही की जाती है। हरिद्रा सरोवर से उत्पत्ति के कारण देवी को पीतवर्णी वस्तुओं से विशेष लगाव माना गया है। हरिद्रा का शाब्दिक अर्थ यों भी हल्दी होता है सम्भवतः इसीलिए नलखेड़ा का पीताभप्रभामंडल, पीताम्बरधारीपुरोहित, पीतक पुष्प, पीला प्रसाद, मंदिर का पीत और रक्त मणिकांचन संयोग लिए रंग रोगन, पीला आसन और पीला तिलक, हल्दी घुली सुनहरी धूप में भीतर ही भीतर अनहद नाद को जगा ने लगा था। एक इंची हल्दी की गांठ से भरी थाल लिए पंडित राकेश नागर जी सामने ही थे हमने उनसे भी बात की।वहां से निकलते ही मंदिर की प्रबंध व्यवस्था के प्रभारी श्री रामचंद्र गायरी ने मंदिर के बारे में जानकारियां उपलब्ध कराने का बीड़ा पुनः संभाल लिया था
बहुत ही सुंदर विवरण और फोटोग्राफी?
दिशा तुम्हारी मेहनत से हमे भी काफी रोचक जनकारियां मिलती हैं।????
बढिया रिपोर्ट।कपिल जी का भाषण अद्भुत।वे हमारे
समय के लोक और शास्त्र के बड़े चिन्तकों मे से एक हैं।उनको सुनना हमारे लोक और शास्त्र की नई व्याख्या सुनना है।
बहुत ही अच्छा ,भाषा आपकी बहुत ही अच्छी और जानकारियाँ अद्भुत हैं बहुत सी बांते तो हमें भी नहीं ज्ञात थीं
सुप्रभात दीदी?आपकी कलम को नमन बहुत सुंदर ब्लॉग लिखा है। वर्णित सारे चित्र सजीव हो उठे हैं ।
शानदार कवरेज़ है,धन्यवाद आपका ?
Good collection.
अतिi उत्तम
Good work mam for three lok devi ??????????
बहुत सुंदर वर्णन किया आप ने इस के माध्य्म से आगे की ओर जानकारी मिलती रहे
यही अभिलाषा है
जय माँ बगुलामुखी
जय महाकाल??
आपका बहुत अच्छा लगा मैडम
मैं नलखेड़ा वाली माता जी से पहले ही बहुत अभीभूत हूँ आपके आलेख ने मुझे बहुत प्रभावित किया है
दीदी अति सुन्दर वर्णन
बहुत सुंदर दीदी आपकी कलम को नमन है जय माता दी
Good morning, I have completed the lecture of kapil Ji. Excellent. Pl. Cover as much as photographs from all over the madhya pradesh and also tourist destination of your area. You are working for future. Cunningham surveyed like this before hundred years back. Now you are on the same line. Congratulations. Malwa area having good research material. Needs only researchers. Wakankar also doing such survey by foot. H v trivedi of also cover limited field . Please go ahead in your social study which will cover all field. I am behind your research and you are free to contact me at every stage of academic field. Once again jai chhathi maiya. Thanks.
हमको तो आपका काम एक नंबर का लगा बहुत बढ़िया
दृश्य बहुत अच्छे हैं। उज्जैन, राजगढ़ और शाजापुर की पुरानी यादें ताजा हो गईं।
मेङम जी आप ने जो हमारी माँ महाकाली करेङी वाली के बारे मे जानकारी दी उसके लिए आप को साधुवाद बहूत बधाई हो पहली बार शोध करके लिखा गया है करेड़ी के बारे में बहुत ही बढ़िया
अच्छी प्रस्तुति है…… सम्पूर्ण वृत में इतिहास के साथ धार्मिक, आध्यात्मिक एवं लोक-मान्यताओ को उजागर करने में स्थानीय लोगों की मान्यताओ को पुस्तकीय तत्त्व से क्षेत्र की प्राचीनता और सामाजिक अवधारणा का सुन्दर चित्रण है।
क्षेत्र की तीन देवियों की लोकास्था-लोक विश्वास की त्रिकोण यात्रा का विशेष अध्याय प्रस्तुत किया है।
चरैवेति चरैवेति…….? मंगलकामनाएं
आपकी यात्रा डायरी गांव,नगर,नदी,खेत -खलिहान , प्रकृति न सिर्फ क्षेत्र के भौगोलिक परिदृश्य से रूबरू कराती है।बल्कि क्षेत्र की पुरातात्विक, ऐतिहासिक,धर्मिक,सामाजिक ,सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की समृद्धि से भी साक्षात्कार करवाती है। इसकी पुष्टि डायरी की सजीव दृष्यवली,अद्भुत मूर्तिशिल्प, वर्णित परंपराएं, लोकाचरण से भरापुरा सहचर देव लोक, डॉ कपिल तिवारी ,डॉ केदार नाथ शुक्ल जी, डॉ प्रतिभा दत्त चतुर्वेदी जी, डॉ ओ.पी. शर्मा, डॉ रमन सोलंकी जी, डॉ प्रशांत पौराणिक जी आदि विद्वानों के महत्वपूर्ण सारगर्भित साक्षात्कारों और श्री मनोहरलाल पंदाजी,श्री रामचन्द्र गायरी, पंडित श्री महेश नगर,श्री राजेश दीक्षित आदि की अभिभूत कर देने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों से होती है।
मालवा की मिठास घोलती मालवी के रसासिक्त संजा के लोकगीत,भोपी कृष्णा बई की संगत में भोपा भोलाराम की सारंगी के तारों से निसर्ग मनमोहक ध्वनि पर थिरकती लोक धुन से आबद्ध देवनारायण की फड़ गायकी, क्षेत्र को विशेष पहचान देती है ।
इस महत्वपूर्ण,सारगर्भित यात्रा डायरी के लिए बहुत बहुत बधाई।
बहुत ही अच्छा कवरेज मैडम बधाइयां??
दिशा बहुत ही अच्छा व्लॉग। हर बार की तरह सहज सरल भाषा का प्रयोग । गांव में बहुत सारे देवी देवता की पूजा की प्रथा और नाम पढ़कर बहुत सारी जानकारियां मिली। तुम इसी तरह घूमती रहो और सारा यात्रा वृतांत इसी प्रकार लिखो हमें पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगता है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम साक्षात उस गांव में ही घूम रहे हैं।
चरैवेति चरैवेति
मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति पर जनकार्य करने हेतु प्रख्यात श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने मालवा की करेड़ी माता, बगलामुखी, भैसवामाता सहित यहाँ के लोक के हृदय में बसे भैरव, शीतला, छींक, खोखुल, मोतीझरा, बैमाता, सहित लोकदेवता देवनारायण पर जो ब्लॉग बनाया है वह जमीनी तौर पर एक अमूल्य धरोहर है जो किसी भी एतद्विषयक शोध से कमतर नहीं है। उन्होंने स्थान विशेष पर जाकर वहाँ के पर्यावरण, ग्रामीण, परिवेश को गहरे से छुआ है। मध्यप्रदेश के लोक पर अभी तक जितना भी प्रकाशित हुआ है उसमें सोने में सुहागा वाली कहावत इस ब्लॉग में चरितार्थ होती है। प्रख्यात विद्वान कपिल तिवारी, केदारनाथ शुक्ल के वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार इस ब्लॉग को चार चाँद लगाते हैं। नलखेड़ा का वाममार्गी अवधारणा का देवीस्थल तथा लोक में शक्ति की अंगीकार वाली अवधारणा का क्रमिक विकास इस ब्लॉग का वैशिष्ट्य है। अनेक लोक विद्वानों, तांत्रिकों के मत ब्लॉग को पुष्टता प्रदान करते हैं। अनेक सुन्दर चित्रों से संयोजित इस ब्लॉग को पढ़कर सहज ही एक अनुपम ग्रन्थ की रचना की जा सकती है। यह दिशा जी की अथक मेहनत का फल है कि वे अकेली ही इस यात्रा में चरैवेति मंत्र को जीवंत कर रही हैं।
बहुत अच़्छा। आधार डॉ. कपिल तिवारी ने आगम से ही लिया है। लोक उससे भी परे है।
लोकास्था – लोकविश्वास मातृशक्ति धाम की त्रिकोण यात्रा
का आपने जो लालित्यपूर्ण शैली
में वर्णन किया है । वह अद्भुत है
ऐसा लगा जैसे ललित निबंध पड़
(सुन)रहें हों ।।
बहुत सुंदर यात्रा संस्मरण ।
विद्वान अतिथि महोदय ने कितना
सहज व्याख्यायित किया गूढ़
तत्वों को । वाह वाह ।।
???????
आपका नया ब्लाग पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई और जिज्ञासा और बढती जा रही है साथ ही ये सवाल भी उठ रहाँ है कि कितना बडा केन्द्र किसी समय में रहा होगा ये स्थान वामपंथी तपस्या और तांत्रिक साधना का जिसके जीवंत प्रमाण आपके शोध में बहुत ही साफ देखा जा सकता है शायद इतना बड़ा केन्द्र पूरे अखण्ड भारत में नहीं होगा पर वो कैसे धीरे-धीरे समाप्त हो गया ये भी बहुत घना रहस्य है जो आपने चौंसठ योगीनी मंदिर के अवशेष, व भैरव के अवशेष आप ने खोजे है वो भी आज के समय में बहुत ही सराहनीय प्रयास है मुझे लगता है कि यदि सरकार इसे चाहे तो आज ये भारत का पुरी दुनिया के लिए एक बहुत ही बड़ा पर्यटन स्थल बन सकता है और देश व दुनिया के लिए ज्ञान विज्ञान को समझने मे भी सहायक होगा और भारत के गौरवशाली इतिहास को बताने मे भी सहायक होगा ।
बहुत ही सुंदर लेखनी है और आपके द्वारा हमें मां बगलामुखी मंदिर के दर्शन हुए इस बात के लिए बहुत आभारी है अगली लेखनी का इंतजार रहेगा ??
बहुत ही सुंदर लेखनी है बगुलामुखी जय महाकाल ?
हमने आपके पांचो ब्लाग पढ लिऐ है ।पढकर अच्छा लगा सबसे पहले दो बातो के लिऐ साधुवाद देना चाहुंगा ,पहला यह की आपने ज्यादातर शुद्व हिन्दी शब्दो को धाराप्रवाह प्रयोग किया है ।जो आपकी विदुता को दर्शाता है ।यह अच्छी बात है ।कि आप हिन्दी को अपने मुल स्वरूप में बहने देती है ।
दुसरा यह है कि आपने फोटोग्राफ़ी उत्तम कोटि की है ।जिस भी छवि चित्र को देखते मन को भा सा जाता है ।सारे ब्लागो को पढकर ही आपके लेखन को थोडा बहुत जाना जा सकता है ।सब कुछ ठीक ठाक है ।हमारी शूभकामनाऐ आपके लेखन को।
Disha mam ..आप मालवा की अन्जानी और छुपी हुई कला,संस्कृति ,और आस्था से सबको परिचित करवा रही हैं, हम मालवा वाले हृदय से आपका आभार एवं धन्यवाद प्रकट करते हैं ।????आपके ब्लोग पढ़ कर लगता हे हम आपके साथ घूम रहे हैं ?????????
अद्भुत संग्रहण
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है दिशा जी, कई दिनो बाद यौगनियों के बारे में सार्थक व उपयोगी सूचनाएं मिली.
दिशा जी, योगिनी शिल्प पर मैं एक पुस्तक लिख रही हुं इस बारे आपसे बात करूंगी ???
अच्छा वृत्तांत है।इसमें वर्णित अनेक देवी-देवता भील जनजाति समूह के लोगों की आस्था के केन्द्र भी हैं।डॉ. कपिल तिवारी जी ने बहुत गहराई से सृष्टि और देवलोक की अवधारणा को स्पष्ट किया है।
इसमें मैं केवल इतना जोड़ना चाहता हूँ कि शास्त्रों की रचना लोक मान्यताओं के अवलोकन और विवेचन के आधार पर हुई होगी,क्योंकि लोक मान्यताएँ मानव-सभ्यता के आरंभिक विकास के साथ ही धीरे-धीरे स्थापित होती चली गयी हैं।ये परंपरा के रूप में आगे बढ़ी हैं।शास्त्र इन्हीं मान्यताओं के परिष्कृत रूप हैं।यह भी कहा जा सकता है कि शास्त्र एक प्रकार से लोक मान्यताओं का कोडिफ़िकेशन हैं।यह काम चिंतक,अध्ययनशील और अन्वेषक ऋषियों ने किया है,जो बहुत बाद की स्थिति है।इसलिये यह सोचना एक बड़ी भूल होगी कि क्या वैदिक,शास्त्रीय, पौराणिक आदि देवी-देवता कम पड़ गये थे,जो लोक ने एक बड़े देवलोक की रचना कर ली? कपिल जी ने सही कहा है कि लोक आस्था के मूल केन्द्रबिंदु भी शिवशक्ति हैं।इसी से हम अनुमान लगा सकते हैं कि लोक-आस्था और मान्यताएँ शास्त्रीय ज्ञान-परंपरा की अनुगामिनी नहीं हैं।
आपका यह वृत्तांत और कपिलजी की बातचीत अत्यंत ज्ञानवर्द्धक है।आपकी जिज्ञासा,अन्वेषणशीलता और परिश्रम को प्रणाम!
शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर आलेख
बहुत ही शानदार प्रस्तुति आपके साथ मां भेंसवा महारानी की व्याख्या रोमांचित करनेवाली यात्रा रही बहुत साधुवाद