छोटी टेकाम के गोंड चित्रों में गूलर, महुआ, सरई और साजा के पेड़

ये तो आप भी मानेंगे कि प्रकृति के साहचर्य में पली-पुसी जनजातीय चित्रकला में परम स्वाभाविकता, सहजता और सरलता दृश्यमान होती है, कृत्रिमता का इसमें लेशमात्र भी स्थान नहीं होता। भोपाल स्थित जनजातीय संग्रहालय की लिखंदरा दीर्घा में गोंड बहुल डिंडौरी जिले के गाँव सनपुरी के अरण्यगामी संस्कृति के बिम्ब देखने का सौभग्य प्राप्त हुआ। रचनाकर्म में डूबी हुई चितेरी श्रीमती छोटी टेकाम हमें अपने गूढ़ार्थ लिए मौलिक कला संसार के साथ वहीं मिल गयीं। उनके स्वाभाव की निश्छलता ऐसी थी मानो किसी प्रशांत नदी में अपना प्रतिबिम्ब निहार रहे हों। लेकिन साक्षात्कार के दौरान ज्यों-ज्यों उनके विचार सामने आते गए लगा …

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