पंजाब की लोकनाट्य नकल चमोटा शैली, लोक नृत्य, और मालवा का कबीर गायन

पंजाब का लोक नृत्य, लोकनाट्य शैली, चमोटा, मालवा, कबीर, गायन, धर्म और संस्कृति

पंजाब के स्फूर्तिप्रदाता नृत्य विशुद्ध गिद्दा और भांगड़ा की प्रस्तुति ने समां बांध दिया 

यह तो आप जानते ही है कि आनंद का उदय होने पर अन्य अनुभूतियां दब जाती हैं और आनंद का एकछत्र साम्राज्य होता है पंजाब से ही आई अगली प्रस्तुति आनंदातिरेक से सबको तरंगित कर गयी। पंजाब के स्फूर्तिप्रदाता नृत्य विशुद्ध गिद्दा और भांगड़ा प्रस्तुतियों ने दर्शकों को थिरकने के लिए विवश कर दिया। हर्ष से खिले चेहरे उल्लास में झूमते रंग बिरंगे परिधानों में सज संवरकर ज्यों ही मंच पर प्रविष्ट हुए तो सभागार के दर्शक आनंद में मगन हो गये। कलहरी आर्ट एण्ड कल्चर अकादमी के तत्वावधान में भोपाल स्थित संग्रहालय के मंच पर आयोजित नृत्य संध्या में सर्वप्रथम झूमर नृत्य का अभिनव प्रदर्शन किया गया। ‘झूमर’ पंजाब की कृषक प्रधान संस्कृति की उत्फुल्लता का नृत्य है। स्यालकोट की धरती से उपजे झूमर नृत्य को करते समय नर्तक शनै-शनै आगे बढ़ते हुए झूमता है। टकसाली पंजाबी में गाई जाने वाली बोलियां गीतों में मिठास घोलती हैं। अमूमन पंजाबी नृत्य गति की तीव्रता से परिपूर्ण होते हैं पर झूमर नृत्य में मंथर गति से अंगों का संचालन किया जाता है। किसान के मन की बात को बोलियों के रूप में लोककण्ठों की धरोहर बनाकर ह्रदय को स्पंदित करने में सफल रहे झूमर नृत्य के उपरान्त ‘जिंदवा’ का प्रदर्शन हुआ। पारंपरिक पंजाबी लोक नृत्यों की श्रेणी से भिन्न समझे जाने वाले जिंदवा में पति-पत्नि का हास्य मुखरित वार्तालाप रसोद्रेकता और शब्दों की लयकारिता के साथ सामने आया।

 

वैसे यह नृत्य निर्देशकों द्वारा परिकल्पित नृत्य है समूहगत रचनाशीलता का परिणाम समझे जाने वाली नृत्य की यह शैली अपनी गेयता और संगीतात्मकता के चलते जन-जन में लोकप्रिय रही है। ‘गिद्दा’ नृत्य पंजाबी के गिडदा से बना है जिसका अर्थ होता है ‘थपथपाना’। स्त्रीयों के त्वरित पद और हस्त संचालन से होने वाली ‘थपथपाहट’ गिद्दा की विशेषता है।हरदयाल थूही जी से पता चला कि गिद्धा लोक नाच इसमें ताली अथवा ताड़ी का प्रयोग होता है उसमें भी लघु आकार के तमाशे किये जाते हैं । पुराने समय में बारातों के ठहरने वाले स्थान पर रात्रि के समय आस पड़ोस की औरतें गिद्धा डालती थीं। उन्ही दिनों पंद्रह बीस महिलाओं के गोला बनाकर इकठ्ठा हो जाने और स्वांग करने का चलन रहा।इस स्त्री नाच में छोटी या लम्बी बोलियों के साथ दो महिलाएँ जोड़ियां बनाकर नृत्य करती हैं। जब  स्त्रियां नृत्य के दौरान स्वांग भी करती हैं तब इसे गिद्धा नाट्य कह देते हैं। विवाह अवसर पर इस प्रकार क्र हलके फुल्के गिद्धा नाट्य का चलन पंजाब में रहा है।इसमें दैनिक उपादानों उदाहरण के रूप में पीतल की थाली, घड़े, बाल्टी से भी ध्वनियां निकालने की परिपाटी है। फुलकारी से बनी ओढ़नी ओढ़े सगीफुल्ल माथे पर सजाये पंजाबी स्त्रियां हाथ में झलने वाला पंखा (पंखी) लिए पंजाब के ग्रामीण परिवेश के सारे बिम्ब समाहित कर ऐसी बोलियां डालती हैं कि दर्शक रोमांचित हो उठते हैं। यों तो लूडी और सामी अन्य पंजाबी नृत्यों के प्रशंसक बहुतेरे हैं पर कार्यक्रम पुरूषों के मलवई गिद्दा के प्रदर्शन के साथ ही सम्पन्न हो गया। पारंपरिक लोकधुनों पर आधारित मलवई उपबोली में गायी गयी गांव की आत्मा को छूती बोलियों में किसानों के हास-उल्लास का अभिनंदनीय प्रदर्शन किया गया। दोआबी, माझी और मलवई उपबोलियों वाली इन प्रस्तुतियों में पंजाब की माटी की सौंधी गंध और सतुलज और व्यास नदियों का सा प्रवाह दृष्टिगत हुआ। ढोल, ढोलक, चिमटा, सारंगी, बगदू जैसे पारंपरिक वाधों के साथ-साथ सप्प( सांप ),काटो (गिलहरी) और खुंडा जैसी कलात्मक वस्तुएं हाथ में लिए नर्तकों ने दर्शकों को स्फुरित कर दिया। किसान के कठिन जीवन के संघर्ष की अभिव्यक्ति वाली प्रस्तुति की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम ही होगी। सिंगारा सिंह से हमें पता चला कि श्री तारसेम चंद्र कलहरी के निर्देशत्व में संचालित उनकी नृत्य अकादमी में 800 से अधिक सदस्य हैं। जो हाल ही में न्यूजीलैण्ड सहित 28 देशों में अपने नृत्य कौशल का परचम लहरा कर आये हैं। मनसा जिले के झण्डाकलां गांव के सभी देहाती बालक बालिकाएं इस अकादमी में अपनी कला को निखारने के लिए आते हैं। सात साल से लेकर हर उम्र के प्रतिनिधि कलाकार अकादमी के सदस्य हैं जो अन्यंत्र भी कार्य करते हैं। पंजाब की पांरपरिक लोकनाट्य शैली और लोकनृत्यों को मूल स्वरूप में सहेजने का उत्तरदायित्व निभाती पंजाब संगीत नाटक अकादमी और कलहरी अकादमी का अवदान अनुकरणीय है।

Comments

  1. दयाराम सारोलिया says:

    बहुत बहुत साधुवाद आपको

  2. हरदयाल सिंह थुही says:

    मैड़म दिशा जी, हमारी मंडली की ओर से भोपाल में जो लोकनाट्य नकल  चमोटा  शैली में ‘हीर रांझा ‘ की पेशकारी की गई उसकी आपने जो समीक्षा की है वो काबले तारीफ है। किसी दूसरे प्रदेश की लोक कला के बारे में इतनी गंभीर समीक्षा हर किसी के वस की बात नहीं होती।  छोटी से छोटी बात को भी आपने पकड़ा है। इसके लिए आपका हारदिक धन्यवाद।

    हरदयाल सिंह थुही

  3. जगजीत says:

    बहुत रोचक जानकारी
    जगजीत

  4. सिंगारा सिंह says:

    अति उत्तम
    सिंगारा सिंह

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