शिव को अराध्य के रूप में पूजने वाली गोंड़ जाति सदा शिव के डमरू से गहनासक्ति रखती है। इसीलिए डमरू से साम्यता रखने वाला हुड़का सम्भवतः उसका साध्य बन जाता है। गोड़ऊ नाट्य कला के संदर्भ में प्रभु कुमार ने हमें बताया कि शास्त्रीयता से परे लोकाभिव्यक्तियों व लोकभिनय प्रधान इस लोक नाट्य में व्यंग्यात्मक शैली में सामाजिक कुरीतियों और बदलते मूल्यों पर प्रहार किया जाता है। प्रभु कुमार के अनुसार हुड़का, झाल, कंठताल, मंजीरा और पखावज लिए संगतकार मंच पर विराजते हैं। सभी वरिष्ठ कलाकारों के चरण स्पर्श कर लोक कलाकार लोकदेवी-देवताओं का सुमिरन करते है।
पहले चरनिया मनाइला डीहवार बाबा के
डीहवार बाबा हो आ गइनी सरन तोहार
दूसरा चरनिया मनाइला सायर मइया के
सायर माई हो आ गइनी सरन तोहार
गाकर लोक देवी देवताओं का आवाहन किया जाता है।
मैया आवा आवा न तोके चुनरी चड़ावात
तोहरे दुअरे खड़े है मैया आवा आवा न
तोहके दुधवा चड़ावत ह मैया आवा आवा न
गांवों में पूरी रात चलने वाले गोड़ऊ लोक नाट्य के आयोजन हेतु पूर्व में मशाल जलाने की परंपरा थी आजकल उसका स्थान दीये के प्रकाश ने ले लिया है। मंडली का अगुआ जिसे ब्यास कहते है देव गीत से लोकनाट्य खोलता है। स्त्री पात्रों की भूमिका में पुरूषों (लौंडे) के प्रवेश के साथ ही गीत नृत्य प्राधान्य लोक नाट्य में गति आ जाती है। बीच-बीच में मण्डली के दो विदूषक अपने हास्यपरक आंगिक अभिनय से दर्शकों को गुदगुदाते हैं।
विचित्र वेशभूषाओं और मुखौटों के प्रयोग से मसखरे अपने चुटीले संवादों से सामाजिक राजनीतिक सामंतावादी व्यवस्थाओं पर चोट करता चलता है। जिसे कुजड़ा संवाद कहा जाता है।
बिहार का गोड़ऊ लोकनाट्य, बुंदेली लोकगान और असम के लोकनृत्य

Excellent write up.
Thank you so much for the write up and video.
Excellent reporting.
Regards
Marami Medhi 🙏
Superb
वाह बहुत ही सुन्दर
आपने तो हम लोगों का नाटक का इतिहास लिख डाला बहुत अच्छा लगा अब तक तो हमारी शैली को कोई इतना प्यार नहीं किया जितना आप ने दिया है
Bihar me hudka naach ke rup me ye famous dance form lupt ho raha hai isme purush hi mahila patra ban nachte accha laga
Very nIce…OLD Traditions must be preserved….well carried out..
आपने बिहार का गोड़ ऊ नाच का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है परन्तु मै जहाँ तक समझता हूँ ये गोड़ जाती और उनका नाच सिर्फ बिहार का कहना ठीक नही होगा क्योकि ये गोड़ जाती बिहार के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी अच्छी खासी तादाद में पाये जाते हैं हमारे आजमगढ़ और मऊ जिले में खूब है और इनका हुरका नाच बहुत ही शौक से लोग देखते है हमारे गाँव के देवीजी के मन्दिर पर साधारणतया हर मौके जैसे मुंडन शादी और पूजा पर खूब देखने को मिलता है हमारे घर के पीछे काफी संख्या गोड़ लोगों की है आप ने लिखा है कि ये सिर्फ पुरुष ही करते है परन्तु हमारे घर के पीछे एक गोड़ीन थी उसके जैसा गोड़ऊ नाच करने वाला हमने नहीं देखा जिसका पिछले वर्ष ही देहांत हो गया परन्तु आपका लेख व गोड़ो का प्रोगाम देख कर गाँव की याद ताजा हो गई ।
हम सभी गोंड भाइयों को गोंड लोक नृत्य और संस्कृति की रक्षा और विकास के लिए अपने सभी विशेष कार्यक्रमों में गोड़ाऊ नाच को शामिल करना चाहिए