सागर जिले के श्री राज कुमार सिंह ठाकुर का बुंदेलीगान, बुंदेलखंड की समृद्ध गायकी का वैभव
इसी तारतम्य में मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड अंचल की लोक भाषा बुंदेलीगान के अन्तर्गत सागर जिले के सिदगांव से पधारे श्री राज कुमार सिंह ठाकुर ने बुंदेलखण्ड की समृद्ध गायकी के वैभव से परिचित कराया। भाव प्रसंगों की तीखी अभिव्यक्ति वाले उनके स्वरचित गीत मन भर जावे मेरो और पूरब में पश्चिम की हवा ने सभागार में उपस्थित दर्शकों को न केवल हिलराया बल्कि पश्चिम के अंधानुकरण पर सोचने पर भी विवश कर दिया। उनके द्वारा तन्मय होकर रूनक-झुनक नाचत आवें और राम खों सुमरों श्याम खों सुमरों गाये गये बुंदेली लोक गीत तो बुंदेल खंड के आंचलिक जीवन और संस्कृति के प्रामाणिक दस्तावेज से लग रहे थे। गांव की नौटंकी मण्डली श्री हरि नाटक मण्डल के बैनर तले हरिश्चन्द, अमर सिंह राठौर, हरदौल, रूप बसन्त आदि से अपनी कला यात्रा प्रारंभ करने वाले राजकुमार सिंह ठाकुर बीच-बीच में जब अपनी शैली में लोक कल्पना के पंखों पर विचरण करते हुए लोकमन का लोकानुभव साझा करते चलते हैंतो दर्शक उनसे सीधे जुड़ जाता है ।
इंसुरी की फाग गायकी और फड़बाजी से प्रभावित उनका बुंदेली संवादात्मक गान मंच से ही दर्शकों से तादात्म्य स्थापित करता है साथ ही उनहेब भावविवह्ल भी करता चलता है । बुंदेली के लोक नृत्य राई के प्रदर्शनों में संगतिया के रूप में अपनी गायकी को मांजने वाले श्री ठाकुर के लोकगान में इसीलिए लोक जीवन का सतत प्रवाह दर्शित होता है। नदिया पेले पार ढोल गीत बुंदेली की मिठास पगी सहजता से रसमय साक्षात्कार कराता है तो सांसी सांसी तो बता मन के भीतर उतरता जाता है। बुंदेली लेद, गम्मत, आल्हा गान, ढोला मारू और राम कलेवा से लोकमानस, लोक विश्वास और लोकदर्शन को उद्घाटित करते रहे श्री ठाकुर नये प्रयोग करने से भी नहीं पीछे हटते। जैसे राई में बजने वाली नगाड़िया लोक वाद्य उनके लोकगान में उत्साह आल्हाद की सर्जना करते हुए ढोलक का स्थान ले लेती है।
अनुज कला मण्डल के तत्वावधान में वर्तमान में बुंदेली संस्कृति की छटा बिखेरने वाले श्री ठाकुर पाश्चातय संस्कृति के अंधानुकरण से क्षुब्ध हैं और दुअर्थी शब्दों वाला डीजे संगीत उन्हें विचलित करता है। लोकसंस्कृति के संवर्धन व संरक्षण के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयासों की सराहना करते हुए श्री ठाकुर कहते हैं कि हिन्दी के माथे पर बिन्दी बुंदेली की धर गये ईसुरी जग में जौ काम अच्छौं कर गये। बुंदेली के खाना खाओं, पैरवों और गावो अब इसी में जीवन खपाना है। इत चम्बल, उत नर्मदा इत यमुना उत टोंस क्षेत्रों में विस्तारित बुंदेली भाषा की व्यापकता को अपनी मंचीय प्रस्तुतियों के माध्यम से दर्शकों तक विशिष्ट शैली में पहुंचाने वाले श्री राजकुमार सिंह ठाकुर के साथ हारमोनियम पर दीदचंद, झींका (झांझ) पर प्रहसिंह और सुल्तान सिंह ढोलक पर अमित, मंजीरे पर नारायण कुर्मी और नगाड़ी पर राकेश अहिरवार का योगदान सराहनीय रहा।
Excellent write up.
Thank you so much for the write up and video.
Excellent reporting.
Regards
Marami Medhi ?
Superb
वाह बहुत ही सुन्दर
आपने तो हम लोगों का नाटक का इतिहास लिख डाला बहुत अच्छा लगा अब तक तो हमारी शैली को कोई इतना प्यार नहीं किया जितना आप ने दिया है
Bihar me hudka naach ke rup me ye famous dance form lupt ho raha hai isme purush hi mahila patra ban nachte accha laga
Very nIce…OLD Traditions must be preserved….well carried out..
आपने बिहार का गोड़ ऊ नाच का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है परन्तु मै जहाँ तक समझता हूँ ये गोड़ जाती और उनका नाच सिर्फ बिहार का कहना ठीक नही होगा क्योकि ये गोड़ जाती बिहार के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी अच्छी खासी तादाद में पाये जाते हैं हमारे आजमगढ़ और मऊ जिले में खूब है और इनका हुरका नाच बहुत ही शौक से लोग देखते है हमारे गाँव के देवीजी के मन्दिर पर साधारणतया हर मौके जैसे मुंडन शादी और पूजा पर खूब देखने को मिलता है हमारे घर के पीछे काफी संख्या गोड़ लोगों की है आप ने लिखा है कि ये सिर्फ पुरुष ही करते है परन्तु हमारे घर के पीछे एक गोड़ीन थी उसके जैसा गोड़ऊ नाच करने वाला हमने नहीं देखा जिसका पिछले वर्ष ही देहांत हो गया परन्तु आपका लेख व गोड़ो का प्रोगाम देख कर गाँव की याद ताजा हो गई ।
हम सभी गोंड भाइयों को गोंड लोक नृत्य और संस्कृति की रक्षा और विकास के लिए अपने सभी विशेष कार्यक्रमों में गोड़ाऊ नाच को शामिल करना चाहिए