राजस्थान के चितौड़गढ़ के घोसुण्डा की कलगी तुर्रा शैली

राजस्थान

कभी-कभी लोकानुरंजन की दृश्टि से भाषाई शिष्टता को लांघती ख्याल गायकी लोकमन की सहजाभिव्यक्ति होती है। अधर का प्रयोग ख्याल गायकी में अपना वैशिष्ट्य लिए होता है। जिनका कला रसिक प्रतीक्षा करते है अभिप्राय यह है कि दो अधरों के मध्य सुई अथवा दियासलाई की काढ़ी रख दी गयी हो ऐसी रचना लिखी जाती है।
नंदलाल आनंद करो क्यों देर करी है नंदलाला
कृष्ण कृष्ण रटते रहना, तो क्या अदनां क्या आला
आज जगत में कारज थारो याद करे हैं नर नारी
नहीं रक्षक है कोई धेनु का दया करों हे गिरधारी
खर खण्ड आकर कर डालो नाग नाथ जैसे काला
कृष्ण कृष्ण रटते रहना तो क्या अदंना क्या आला
मिर्ज़ा साहब के अनुसार उस्ताद के नामानुरूप बनने वाली रचनाओं में उनके नाम में प्रयुक्त अक्षरों में से पहले अक्षर से रचना की निर्मिति होती है उदाहरणार्थ कवि चैनराम गौड़ लिखित गणपति वंदना में उनका नाम आता है जिससे देखने वाला यह अनुमान लगा पता है कि अमुक रचना चैन राम गौड़ की बनाई हुई है –
करो गणराज आज आनंद
कृपा कर पार उतारो छंद
विश्वपति वरदायक सुमरौं
रिद्धि सिद्धि के दातार
चैतन्य करो बुद्धि गज अंदर
दोगुना ज्ञान अपार
नमन करूँ शारदा महारानी
म्हारो बेड़ो कर जो पार
राखों पत महाराज आज मेरी
केशव कृष्ण कन्हैया
मदन मुरारी कुंज बिहारी
बलदाऊ के भैया
गोवर्धन गिरधारी मोरी पार उतारो नैया
क्या कभी कलगी के कलाकार तुर्रा अखाड़ों में और तुर्रा के कलगी अखाड़ों में हिस्सा ले पाते हैं यह पूछे जाने पर काग़ज़ी साहब बोले उस्तादों से पान खाए कलाकार अपने-अपने अखाड़ों से गहनासक्ति से जुड़े हुए रहते हैं।

संबंधों की दुहाई देकर मिर्जा साहब बताते हैं हमारे अखाड़े के कई कलाकार तो अब वरिष्ठ नागरिकों की पंक्ति में आकर खड़े हो चुके हैं भक्ति परक धार्मिक पौराणिक विषयों पर आधारित उनके लोकनाट्य राजा मोरध्वज, भृतहरिपिंगला, भक्त पूरण मल, सती अनसुइया, रूकमणि मंगल, भासकृत मध्यम व्योयांग वाले दंगल खेल के  दिल्ली (एनएसडी), मुंबई, पटना, दरभंगा, उदयपुर इत्यादि स्थानों के प्रतिष्ठित मंचों पर अनेक प्रदर्शन हो चुके हैं। संचारक्रान्ति के इस युग में जब दृश्य श्रव्य माध्यमों ने अन्य लोकनाट्य विधाओं के प्रति लोगों के रूझान को कम किया है तब भी विषम परिस्थतियों में अपने दंगलों से लोकरंजन करने वाले तुर्रा कलगी खेल के कलाकारों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम होगी। खेती, मिस्त्रीगिरी और शादी ब्याह में बैण्डवादकों का काम करने वाले ये प्रतिभा सम्पन्न आशुकवि अपनी कला को जैसे-तैसे सहेजने के हर संभव प्रयास में लगे हुए हैं। दंगल में नये प्रयोंगों के हामी मिर्जा बेग बताते हैं कि उनके द्वारा प्रमाणित कलाकार ही कलगी अखाड़े का सदस्य बनता हैं राग-रागिनी गायकी के फन के माहिर कलाकार ही उनके अखाड़े का अंग बनने के अधिकारी होते हैं स्त्री पात्र पुरूषों द्वारा अभिनीत किये जाते हैं। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः कह कर वे स्पष्ट करते हैं कि नारी को सम्मान देने के कारण इस लोक नाट्य में स्त्री को सम्मिलित नहीं किया जाता। अखाड़ों का अपना अनुशासन होता है मंच पर अपने उस्तादों की लिखी रचनाएँ ही गाई जाती है साम्प्रदायिक एकता का उदाहरण प्रस्तुत करने वाली इस कला को लेकर उनका मानना है कि सारे देश में इस कला के माध्यम से धार्मिक सद्भाव बनाये रखा जा सकता है। मिर्जा जी इन पंक्तियों के साथ अपने कथ्य की पुष्टि करते हैं।

(मुखड़ा)       बाँसूरी हाथ में पकड़े मूँह पर छिड़के नीला रंग
1                   तबही कृष्ण बने तो राधा नाचे किसके संग
(मुखड़ा)       हाथ बाँसूरी होवे मुख पर छिड़के नीला रंग
2                  ऐसे कृष्ण बने फिर राधा नाचे किसके संग
(दोहा)          ग्वाल बाल बेहाल हैं सारी सखियाँ हैं बेचैन !
                     राह तके सब जमुना तट पर दूखन लागे नैन !!
(उड़ान)        हुवी बावरी सखियाँ सारी उड़ा चैहरे का रंग ….
                     के राधा नाचे किसके संग …. के (1)
(दोहा)          बन्सी बजावे धेनु चरावे हो कैसे गोपाल !
                     ना सखियाँ है साथ संगमे नहीं ग्वाल और बाल !!
(उड़ान)        राधा रानी कब बने दिवानी बजे मंजीरा चंग ….
                     के राधा नाचे किसके संग …. के (2)
(दोहा)           बृज भूमि में होली खेले उड़ता रंग गुलाल !
                     भर पिचकारी खड़ी गोपियाँ आवे कब नन्द लाल !!
(उड़ान)         ढोल ताशे बजे खूब और बाज रही मृदंग ….
                      के राधा नाचे किसके संग …. के (3)
(दोहा)            मोर मुकुट पीताम्बर पहने गल बैजंती माल !
                      रास रचईया बन्सी बजईय्या कृष्ण चंद्र गोपाल !!
(उड़ान)          ग्वाल बाल गोपियन की टोली कान्हा लेकर संग
                       के राधा नाचे किसके संग …. के राधा नाचे किसके संग …. (4)
(दोहा)            अकबर बेग है दास प्रभु की लीला अपरमपार !
                       चक्र सुदर्शन वाला कन्हैया जग का तारन हार !!
(उड़ान)          लीला अपरमपार कृष्ण की देख अकल भी दंग …
                       राधा नाचे कृष्ण के संग ….. (5)

चित्तौड़गढ़ को तुर्रा कलगी का हेड आफिस बताने वाले मिर्जा बेग न केवल अपने पुरखों की विरासत को कृतसंकल्पित होकर सुयश दिला रहे हैं बल्कि अपने हाथ से बनाये कागजों (हेण्ड मेड पेपर) के कलाकौशल्य को भी सात समंदर पार सुकीर्ति दिलाने में भी सफल रहे हैं। अपने नाम के पीछे लगे काग़ज़ी को सुफलित करते काग़ज़ी साहब की ‘हरफौनमाला शख्सियत’ उन्हें उम्र के इस पड़ाव पर भी सक्रीय और सजग बनाये हुए है। उनके निर्देशन में की गयी प्रस्तुति में नारायण लाल जोशी, रतन लाल खींची, देवी लाल, भगवती लाल मकवाना, सतयनाराण मकवाना सत्यनारायण मोटिया, विनोद रावल, उस्मान हुसैन और लक्ष्मीनारायण रावल की भूमिकाएं अत्यन्त सराहनी रहीं। ढोलक पर रमेश मकवाना, आर्गन पर कन्हैया लाल मकवाना और हरमोनियम पर रतन लाल जी रावल के सहयोग के बिना यह कार्यक्रम यादगार न बन पाता।

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Comments

  1. मिर्ज़ा अकबर says:

    आपने तो कमाल का लिखा है हम पर अहसान किया है हमारी कला को इतनी इज़्ज़त बख्शी है जो आपने किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूँ नहीं जानता पर ख़ूब लिखा है आपने ,हमारे फ़न को इससे फ़ायदा होगा यही उम्मीद है

  2. Rini says:

    बहुत सुंदर वर्णन।

  3. वीरेन्द्र सिंह says:

    भोपाल में राजस्थान से आये हुये कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रोग्राम का विडियो बहुत ही कमाल का लगा राजस्थान का ये लोकगीत एवं संगीत तो वैसे ही सबका मन मोह लेता है उसमें भी ये नयी कला राजस्थान की तुर्रा-कलगी बहुत ही रोचक है इस की जो प्रस्तुति की गई है वो बहुत ही कमाल की है दर्शक क्या पसंद करते हैं इस बात को समझ कर उसकी पसंद को अपने कला में शामिल करना ये इन कलाकारों की सबसे बड़ी विशेषता है जिस तरह से इन कलाकारों ने शुरूआत किया वह बहुत काबिले-तारीफ है, और आपने जो इनके उपर अपनी कलम चलाई है आपने ने चार चाँद लगा दिए हैं ।

  4. बलदेव महर्षि says:

    नमस्ते
    मेरा नाम बलदेव महर्षि है, मैं राजकीय महिला महाविद्यालय सिरोही में असिस्टेंट प्रोफेसर हूँ और राजस्थान के हिंदी रंगमंच और लोकनाटय पर काम कर रहा हूँ । चित्तौड़ की कलगी शैली पर आपने लिखा है , लेकिन वह मेरे मोबाइल में खुल नही पा रहा । मुझे उस लेख की जरूरत है सन्दर्भ के लिए ।
    कृपया मदद करें।
    शुक्रिया

  5. डॉ हंसराज नागर says:

    कलंगी तुर्रा शैल का बहुत अच्छा ब्लाग इसके माध्यम से राजस्थानी संगीत कला का आंनद लिया धन्यवाद दिशा जी

  6. श्री ललित शर्मा झालावाड़ says:

    राजस्थान की लोक कलंगी तुर्रा कला पर बहुत सुंदर ब्लाग है 👌इसे आधार बना कर बड़ी शोध की जा सकती है, आभार आदरणीय दिशा जी🙏

  7. Rahul Rao says:

    हमारे गांव कि इस कला को आपने उचित शब्दों में समझाया है, बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏼

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