धरोहर विहार : भोजपुर के 80 किमी क्षेत्र में आशापुरी, बिलोटा, ढाबला में प्रतिहार व परमारकालीन मंदिरसंकुल और शैवमठ

32.25 मीटर लम्बी 23.50 मी चौड़ी तथा 6 मीटर ऊंची जगति पर नाभिछन्द शैली की छत वाला भोजपुर मंदिर

डॉ. नारायण व्यास ने  बताया कि पश्चिमाभिमुख भोजपुर मंदिर प्रदक्षिणा रहित होने के कारण निरंधार शैली में निबद्ध है।  उनके अनुसार पूर्व में महामण्डप, मुखमण्डप, अन्तराल युक्त रहा यह मंदिर परमारकालीन वास्तुकला की सबल अभिव्यक्ति कहीं जायेगी।  पुराविद डाॅ. नारायण व्यास जी ने हमें पंचायतन (चार कोणों पर चार लघु मंदिरों की प्रतिस्थापना) स्थापत्य शिल्प शैली में 32.25 मीटर लम्बे 23.50 मी चौड़े तथा 6 मीटर ऊंची जगति पर नाभिछन्द शैली की छत वाले भोजपुर  मंदिर के बारे में सविस्तार जानकारी दी। उनके बताए स्थापत्य वैशिष्ट्य को चार विशाल कोष्ठकों वाले अष्ठकोणीय अलंकृत शुण्डाकृति स्तम्भों (ऊंचाई 12.20मी.) तथा बारह अर्धस्तम्भों के कारण नवरंग मण्डल स्वरूपाधारित गर्भगृह, सप्तशाखा द्वार, कीर्तिमुख, घंटी आलेखन, नदी देवियां, पुरूष प्रतिहार व करण्ड मुकुटधारी धन देवता कुबेर की प्रतिमाओं से अलंकृत मंदिर में  निरखना परखना बहुत भला लग रहा था  । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित यह मंदिर गज शापूल अलंकरण से सुशोभित है । चंवरधारिणी प्रतिमाओं ज्यामितिक शैली के सोपानों जिसके नीचे शंखयुक्त चन्द्रशिला उत्कीर्ण है से होकर ऊपर की ओर अग्रसर होकर हम नीचे की ओर उतर गए अर्थात जितनी सीढ़ियाँ यहाँ आने वालों को ऊपर की ओर ले जाती हैं उतनी ही नीचे गर्भ गृह तक भी  ले आती हैं। रथिकाओं में द्विभंगी मुद्रा में शिव प्रतिहारों का अंकन शिव अनुचरों के अतिरिक्त नंदी, भारवाही कीचकों की विविध भाव भंगिमाएं मंदिर के सौन्दर्य में अभिवृद्धि कर रहीं थीं। सबसे महत्वपूर्ण भाग मंदिर का विशालित एकाश्म शिवलिंग था जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलता। विराट और विपुल के प्रति भोज का आकर्षण यहाँ के विस्तीर्ण प्रवेश द्वार में भी दिखता है। पुराभिलेखों में राजा भोज को मेरु उपमा दी गई है। सम्भतः उनके विशालित मेरु पर्वत रुपी स्वप्नों की परिणीति के कारण ही उन्हें यह संज्ञा दी गई होगी। अतः भोजपुर जैसा ३३ फुट ऊँचा दीर्घाकार  द्वार अन्य किसी हिन्दू मंदिर की निर्मिति में नहीं दिखाई देता। सिर ऊपर उठाने पर भव्यता लिए मधु छत्र ध्यानाकर्षित करता है। 12वीं शताब्दी में सभामंडप में मधु छत्र का शिल्पांकन अनिवार्य अंग माना जाता था। विंध्य, महाकौशल और मालवा के मंदिरों में मधु छत्र शिखर वाले गर्भगृह और सभामंडप बहुधा मंदिर स्थापत्य के लिए अत्यावश्यक अंग के रुप में बनाए गए हैं  । पुराविद  के के चक्रवर्ती भोजपुर के मधु छत्र की ज्यामितिक रेखाओं को कुछ अंशों में पश्चिम भारत के विख्यात कलातीर्थ आबू के मधु छत्र के समकक्ष रखकर देखते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि महाकौशल और विंध्य प्रदेश के मंदिरों तथा देवकुलिकाओं में भी इसी प्रकार के  मधु छत्र का अनुकरण दिखता है। भोजपुर के मधु छत्र में अष्ट कलियों आधारित उत्कृष्ट संरचना में शैव मूर्तियों के मस्तक पर नर मुंड पंक्तियाँ शिलोत्कीर्ण हैं। सूक्ष्मावलोकन के उपरान्त पुराविद कलियों में कमल नल के मुड़ाव को अजंता के स्थापत्य का अनुसरण  मानते हैं। भोजपुर मंदिर के स्तम्भों के शीर्ष भाग कमलाकृति लिए हुए हैं। इनमें पूरब पश्चिम और उत्तराभिमुखी योगनियाँ प्रतिष्ठित हैं। ये योगनियाँ आयुध और मुद्राओं से वारुणी और कापाली का भान कराती हैं। जलहरी सिंहासननुमा है जिस पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है। उत्तरभारतीय मूर्तिनिर्माण कला में इस तरह की सिंहासन रचना का प्रयोग तेरहवीं सदी तक मिलता है।पुराविदों की मानें तो यह भीमकाय जलहरी 2 विशाल चट्टानों के युग्मन से बनी है। जलहरी के निचले भाग पर बारूद से उड़ाए जाने के संकेत भी मिलते हैं।  लिंग और आधार पीठ की सौष्ठवपूर्ण समानुपातिक संरचना एक साथ दृढ़ताऔर सौम्यता का आभास कराती  है  । चौकोर जलाधारी 4.40 मीटर ऊँची है ।मातृ देवियां कार्तिकेय, वीरभद्र, गणेश, राम सीता, उदरमुखी यक्ष कलश कुम्भ और मिट्ट युक्त द्वार शाखाएं गगनचारी आयुध, वाद्य वृन्द और सर्प लिए चतुर्भुजी भार वाहक राजा भोज के शिल्प शास्त्र की गरिमामयी प्रस्तुति कर रहे थे।डॉ व्यास ने  संभावना जताई कि ‘श्री’ नामक प्रमुख शिल्पी समूह मंदिर के निर्माण संबंधी कार्य में संलिप्त हो सकता है ऐसी जानकारी वास्तुखण्डों में उत्कीर्ण संरचनाओं से भी मिलती है। अनुमान है कि लगभग 1300 चिन्हांकन तथा 50 स्थापतियों संबंधी वृत्त, चक्र, त्रिशूल, स्वास्तिक, शंख आदि संकेत यहाँ उत्कीर्ण हैं।डॉ नारायण व्यास के अनुसार इसका प्रणाल सामान्य मंदिरों की भांति ही है पर यहां यह गोमुखी न होकर मकर मुखी है। मौर्यकालीन स्निग्धत्व का आभास लिए परमारकालीन भोजेश्वर  शिवलिंग इस बात का परिचायक है कि मौर्यकाल में जो शिवलिंग चमकाने की प्रक्रिया थी वो मौर्य युग के बाद परमारों में भी विद्यमान रही।इसी कारण जलाधारी सहित 670 मीटर ऊंचाई लिए यह शिवलिंग अन्य मंदिरों से भिन्न स्निग्धत्व वैशिष्ट्य लिए हुए है । जिसमें  छवि स्पष्ट दिखती है ।   व्यास जी ने हमें मंदिर के पूर्वोत्तर कोने में विशाल शिलाफलकों को सुविधाजन्य ऊपर की ओर ले जाने हेतु एक ढालनुमा दीवार की होने की भी जानकारी दी जिससे भारी भरकम वास्तुखण्डों को ऊंचाई तक हाथियों अथवा श्रमिकों द्वारा ले जा पाना संभव हो पाता था। मंदिर में प्रस्तर की संयोजना में गारे का प्रयोग न के बराबर हुआ है केवल ताम्रशालाकाओं से ही विशाल पाषाणों को जोड़ने का काम किया गया है। उल्लेखनीय है कि वास्तुशास्त्र की दृष्टि से मंदिर निर्मिति में लोहे का प्रयोग नहीं हुआ करता था। शिखर विहीन इस शिल्प की अद्वितीय कृति पर सूर्य की सुनहली किरणें अठवेलियां कर रहीं थी परिणाम स्वरुप शिवलिंगअग्निशिखा सा दैदीप्यामान था।शिवलिंग का विस्तार इतना था कि दो व्यक्ति भी इसे अपनी बाहों में बांधना चाहें तो भी नहीं बांध सकें, असीम को कौन बांध पाया है भला! हमने मन ही मन बुदबुदाया। वहां खड़ी प्रौढ़ा दर्शनार्थी और मंदिर के पूजनकर्ता के बीच का संवाद हमारे कानों में रह रहकर पहुँच रहा था। वह भौंहे तरेर कर  कहे जा रही थी हमने तो सुना था  कि यह मंदिर पांडवों ने बनाया है तो फिर आप  क्यों कह रहे हैं कि इसे राजा भोज ने बनाया है। जितने मुँह उतनी बातें। भोजकृत राष्ट्रीय महत्व के भोजपुर मंदिर के सम्बन्ध में  एक जनश्रुति है कि भोजपुर का यह मंदिर पांडवों ने एक रात में बनवाया। लाक्षागृह जल जाने  के उपरांत पांडव  यहां आए माता कुंती के शिवोपासना से पूर्व अन्न जल ग्रहण नहीं करने की प्रतिज्ञा  पर चिंतातुर पांडवों ने एक ही रात में इस मंदिर की आधारशिला रखी थी। पर विद्वान् इस तथ्य से इंकार करते हैं। विद्वानों के अनुसार भोजेश्वर मंदिर की भांति के   एतद्विषयक मंदिर अब बहुत नाम मात्र के रह गए हैं। इस मंदिर की अपूर्णता में भी पूर्णता समाहित है। रबींद्रनाथ ठाकुर की पंक्तियाँ इस विराट स्वप्न की अधूरी गाथा को देखकर स्मृत हो आईं थीं जिनका उल्लेख मेरी माँ डॉ. हेमलता मिश्रा ने भोजपुर मंदिर के अपने आलेख में बहुत पहले कभी किया था – जीबनो जोतो पूजो / होलो न सारा / जानी हे जानी / ताओ होयनी हारा / तोमार बीना तारे / बाजी ते तारा अभिप्राय यह कि अधूरे स्वप्न और अधूरे कर्म, अधूरेपन में भी वीणा में तार से झंकृत होते रहते हैं। यह अधूरापन ही तो पूर्णता लिए हुए होता है।

Comments

  1. Rajendra Kumar Malviya says:

    दीदी सादर प्रणाम एवं चरणस्पर्श,
    दीदी सर्वप्रथम तो ये कहूँगा कि आप बहुत ही सुंदर लिखती है, आपकी शुद्ध और प्रवाहमान हिंदी मुझे सतत ही आपके आलेख पढ़ने को व्याकुल बनाती है। दीदी राजा भोज के बारे आप अपने अगले लेख में कुछ और अनसुना अनकहा ज़रूर बताइए जो आज तक लोगो को नही पता है। सभ्यता और संस्कृति को सहेजने का आपका ये प्रयास बहुत ही सराहनीय है। बस दीदी अंत मे आपसे इतना ही कहूँगा की आप हमें “द रोड डायरी” के माध्यम से भूले बिसरे इतिहासिक तथ्यों से अवगत करती रहें।

  2. O P Mishra says:

    Mamji, thank you very much for taking a lots of interest in heritage.now you putting a path for future generation.ashapuri was my dream project as well Vishakha Ka BHI.you have quoted Sanskrit text and original references which a symbol of serious scholar.i am proud of your researches.bhojpur temple ashapuri are the centre of the paramaras.interviews of the scholars are their own.infuture disclaimer must be in your blogs.dhabla and devbadla you please visit in different angle.you please thanks to commissioner archaeology for keen interest.letus see the future for ashapuri.thanks to you and your driver for moving even in remote

  3. नारायण व्यास says:

    आपने बहुत बढ़िया लिखा ,शब्दों का चयन और वाक्य विन्यास भी अच्छा है विशेष रूप से भरा समन्दर लिख कर जो आपने इस विषय को उठाया है वह नया है
    नारायण व्यास

  4. वीरेन्द्र सिंह says:

    भोजपुर मंदिर व आशापूरी मंदिर के बारे में लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मुझे पहले एक बार भोजपुर जाने का व दर्शन करने का अवसर मिला है परन्तु दर्शन के पश्चात मन में अनेक सवाल आने लगे और वहां के पुजारी व आम लोगों की बातें सुनकर और कौतूहल बढ़ गया था ।मन्दिर कि वास्तु कला व निर्माण के बारे मे आप के लेख से मन्दिर से जुडी अनेक जिज्ञासा के उत्तर अपने आप मिल गये,परन्तु एक यक्ष प्रश्न का उत्तर अभी भी शेष रह गया है कि वह मन्दिर आखिर अधुरा क्यो रह गया ।साथ ही आपने वहा पर आशा पूरा देवी से जुडी अनेक जिज्ञासा का आपने बहुत ही सुन्दर रूप शमाधान कर दिया है ।परन्तु सबसे विशेष बात पर आपने ध्यान दिया जो कोई नहीं देता है वह हैं उसके आस पास के क्षेत्र मेंफैले व बिखरे हुए अनेक मन्दिरों के अवशेष जो हमारी समृद्ध संस्कृति को चिख चिख कर बता रहे हैं इससे ये भी पता चलता है आज ये जैसे जंगल और सुनसान स्था न में दिखाई दे रहा है वह कभी बहुत ही सुंदर और व्यवस्थित रूप से बसा हुआ समृद्ध नगर रहा होगा जो समय के थपेडों से उजड़ गया मगर जो वहां वर्तमान में है उसे सरकार और जनता दोनों को सहेजना और सुरक्षा के लिए आगे आना चाहिए ।

  5. Rajesh Dixit says:

    इतिहासको चालना देनेके लिहाजसे यह ब्लॉग्ज उपयुक्त है…आपकी संशोधन पद्धती एवं सादरीकरण बढिया है…आपने इस ब्लॉगमे हमारा उल्लेख किया है – शुक्रिया…

  6. आभा शर्मा says:

    प्रिय दिशा जी,
    एक बार फिर थोड़े विलम्ब के बाद आपका चरवैती पवित्र ब्लॉग पढ़ा जिसमें आपने भोजपुर जैसे प्राचीन पवित्र मंदिर को राजा भोज सहित अपने पाठकों को कण-कण से अवगत कराया। हम और हमारा परिवार वहाँ दर्शन करने एक-दो बार जा चुके हैं पर इतना विस्तार हम लोग भी करने में असमर्थ हैं। आपने तो जैसे पाठकों को साक्षात वहाँ खड़ा कर दिया, सबको शिवमय बना दिया। मंदिर के साथ राजा सहित वो जानकारियाँ जो शायद हमारे पास थी हीं नहीं आपने नारायण व्यास जी से भी जो प्रश्न पूछे वो रही सही हमारी और आपके और पाठकों की जानकारी पूरी कर रहे थे। चरवैती के हर ब्लॉग में आपने जैसे अपनी आत्मा डाल दी।

    मैंने आपके ब्लॉग द्वारा चरवैती की ज्यादातर यात्राएँ कीं। आपने जैसे यात्रा के साथ हमें उस शहर, वहाँ के भोजन, वहाँ की आबो-हवा, वहाँ की मिट्टी की सौंध, मंदिर का साक्षात विवरण किया। मैंने अभी तक इतना दिलचस्प पवित्र ब्लॉग नहीं पढ़ा। सिर्फ लिखना ही काफी नहीं है, पाठकों को यह दिखाना भी ज़रूरी है कि मेरी यात्रा में आप कहीं भी धूमिल नहीं हों। हर यात्रा चरवैती आपके लिए है। जो आपने किया आपका ब्लॉग पढ़कर अपने आप होठ ॐ नमः शिवाय का जाप करने को आतुर हो जाते हैं। आप ऐसे ही चरवैती हमारे लिए लिखती रहें। आपको बहुत बहुत आशीर्वाद, प्यार और शुभकामनाएँ। मुझे आपके साथ अगली यात्रा का इंतज़ार है।

  7. अभिनव , पुणे says:

    आपकी हिन्दी इतनी सरल, मीठी और नवीनतम शब्दोवाली है कि मैं हिन्दी भाषा का अभ्यासक न होते हुए भी पूरा पढ़ता हूँ सच तो यह है कि आपका लिखा लेख पढना शुरू करने के बाद अंत तक मोबाईल नीचे रखने को मन ही नही करता।बहुत सुंदर और जानकारी युक्त लिखा है।
    मेरी हिन्दी में ग़लतियाँ हो सकती हैं , उन्हें नजरअंदाज किजीए।
    ??????

  8. बाल कृष्ण लोखण्डे ,भोपाल says:

    शानदार जी , जानकारियां संग्रह और उनकी मीमांसा , मनीषियों का ही कार्य है ।आपकी भाषा आलेख को पठनीय बनाती है,वाक्यविन्यास और शब्दों के चयन से ही लबालब भरे तालाब और द्वीपों की निर्मिति का भान हो जाता है ,बहुत सुन्दर ????

  9. अनुमिता says:

    दिशा आज बहुत दिनों बाद तुम्हारा ब्लॉक चरैवेति पढ़ने को मिला। बहुत ही अच्छा विवरण बहुत अच्छे शब्द विन्यास का प्रयोग किया है। अभी मार्च 2020 में हम इस पूरी जगह को देखकर आए 26 मंदिरों का समूह भूतनाथ मंदिर आशापुरी देखकर बहुत दुख हुआ कि वहां पर कई मंदिरों के पत्थर गायब हैं और मंदिर बनाये जा सकते । बहुत गर्व महसूस हुआ कि पूर्वजों के पास बहुत सही कलाकारी थी बहुत ही गुणवत्ता से मूर्तियां तराशी गई हैं। पत्थरों पर की गई कलाकारी मंदिर समूह बनाना और कितना समृद्ध रहा होगा उस काल में हमारा भोपाल बहुत गर्व महसूस होता है और तुमने इतना अच्छा विश्लेषण किया है सारे मंदिर समूह आंखों के सामने आ गए। इसी प्रकार हमें इतिहास के बारे में बताती रहो । #चरैवेति #चरैवेति

  10. नारायण व्यास, भोपाल says:

    आपके द्वारा भेजा सचित्र ब्लॉग देखा।बहुत अच्छा लगा। आपने भोजपुर, आशापुरी इत्यादि मेरा, राजपुरोहित जी एवं आशापुरी के सज्जन का vdo ब्लॉग बहुत अच्छा बनाया है ,वीडियो सारे बहुत सुँदर हैं,सुँदर वर्णन है। आपने सभी के ज्ञान को गागर मे सागर जैसा प्रस्तुत किया हैं। आपको धन्यवाद एवं साधुवाद।

  11. डॉ जगदीश भावसार says:

    स्थिरता की अभिलाषा में पूण्य सलिला सरिता निरंतर प्रवाहवान रहती है।उसी प्रकार आपकी लेखनी कभी तालाब के किनारे,कभी नदी के तट पर,कभी कुए की पाल पर तो कभी कटीली झाड़ियों के मध्यम से पथरीली पगडंडी से होते हुए इतिहास के उन धुंधले पृष्ठों को उजागर करने में सतत अग्रसर होकर नये रुप में प्रस्तुत करती है।
    आपका भोजपुर क्षेत्र के शैव मंदिर पर शोध परक लेखन जिज्ञासुओं के अन्तर-मन को स्पर्श करेगा ।

  12. यशवंत गोरे , भोपाल says:

    आपके द्वारा भेजा ब्लॉग देखा. भोजपुर कई बार गए परंतु इस दृष्टि से नहीं देखा. चित्रों और वीडीयों के माध्यम से बहुत ही भाषा में सादरी करण किया गया है. बधाई एवं अभिनंदन.

  13. Dr R S Raghuwanshi says:

    Bahut sunder article

  14. उमेश पाठक, सौरों क्षेत्र says:

    जी नमन कल देखा बहुत सुन्दर ये कला मैं भी सीख जाऊं ??????

  15. मंजु यादव उज्जैन says:

    भोजपुर के शिवलिंग के दर्शन हमने भी किये है दिशा मैडम पर आपने वहाँ की संस्कृति एवं प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।????????

  16. डॉ मुक्ति पाराशर,कोटा says:

    आपका लेखन बहुत शानदार हैं।

  17. विमोहन says:

    चित्र और विवरण दोनों ही उम्दा हैं, स्थल भ्रमण का आनंद प्रदान करते हैं, शब्दों का चयन उत्कृष्ट है

    1. Dr Anjna Singh Gour says:

      बहुत उत्कृष्ट लेखन शैली से सज्जित आपका ब्लॉग है,धारा प्रवाह कलम मुझे आपके लेख पढ़ने को निरंतर प्रेरित करती है,,दीदी को सादर प्रणाम

  18. Dr D D Deshmukh Pandhurna says:

    भोजपुर के मंदिर के संदर्भ मे रोचक जानकारी आसपास के परिदृश्य का दर्शन और आपकी सहज सरल और चुम्बकीय भाषाशैली मन को लुभा गई

  19. Kuldeep Bhargava says:

    बेहद उत्कृष्ट शैली में भारत के एक प्रमुख शिल्प कला केंद्र का उत्कृष्ट वर्णन वाकई अद्वितीय है।

  20. डॉ वर्षा नालमे says:

    अद्भूत…. शब्दों का चयन, भाषा शैली,और प्रवाह ,हम भी आपके साथ साथ चलते हैं । 25साल पहले देखे भोजपुर की यादें ताजा हो गयी हैं ।पुन: आने की तीव्र उत्कंठा जाग गयी…बधाई और शुभकामनाएं, शानदार लेखन के लिये 😊🙏🙏

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