आदिवासी श्रीमती कमला बाई भूरिया का कबीर गान
कार्यक्रम की अगली कड़ी में कबीर के लोकपद कबीर गान में निर्झरित होकर रसास्वादियों को रससिक्त कर गये। निमाड़ में निरगुणी और सिरगुणी दोनों काव्य साधनाओं का समानान्तर इतिहास रहा है संत परंपरा से अभिसिंचित मध्यप्रदेश के पश्चिम अंचल में स्थित निमाड़ की धरा ने अनेक लोकगायकों को उच्चस्तरीय रचनाएं दी हैं। भील आदिवासी श्रीमती कमला बाई भूरिया ने कबीर के दर्शन व चिंतन से आप्लावित गुरू गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन, जतन बिन भंवरा रे मिरगा ने खेत उजारा जैसे पांच गीत सुनाकर वातावरण कबीर मय कर दिया। प्रस्तुति को सफल बनाने से उनके साथ मंच पर विराजमान खंजरी पर भगवन्ती देनी बानखेड़े उनकी बिटिया रजनी भूरिया ,फिरकनी पर दुरप्ता बाई ,मोतीलाल धनोतिया, राजेश अहिरवार, मंजीरे पर ,हारमोनियम पर अशोक रामलाल, करताल पर बाबूलाल राजोरिया और ढोलक थामें अर्जुन कुमार का उल्लेखनीय योगदान रहा।
આપ બહુત સુંદર કાર્ય કર રહે હૈ.લોક સંસ્કૃતિ કે વિધ વિધ મોતી સમાન કલા કો દ્રશ્ય શ્રાવ્ય રુપ મે પિરસકર અનઠા કાર્ય કર રહે હો.
ધન્યવાદ
Madam Disha Sharma I’m very thankful to you for your article promoting our Manipuri folk theatre Shumang Leela.