महाराजा चन्द्रकीर्ति (1850-1886) के शासन से सुमंग लीला फागी लीलाओं के रूप में विख्यात रही। रामलीला, सभा पर्व का उल्लेख साहित्यिक प्रमाणों में बाद में मिलता है सुमंग लीला की सर्वाधिक प्रसिद्धि नाटक हरिशचंद्र (1918) और सत्यवान सवित्री के प्रस्तुतीकरण से विदित होती है। खम्बा और थोईबी के दन्तकथा वाली मोइरंग पर्ब का चमत्कारिक सम्मोहन उसके बाद के इतिहास में परिलक्षित होता है। प्राचीन समय से चली आ रही यह लोक प्रवृत्त परंपरा धार्मिक और सामाजिक कथानकों वाली सुमांगलीलाओं में आज भी यथावत बनी हुई हैं, हमने देखा कि देश के अन्य प्रान्तों की स्वाँग लोकनाटय शैली की भांति सुमंग लीला में मैइतेई जीवन की अनुकृति हास्य-परिहास और जगोई नृत्य का सम्ममिश्रण था , हमने देखा कि ललित और श्रृंगारपूर्ण जोगोई नृत्य की बुनावट लोकनाट्य में समाहित होकर भी मुखरता के साथ सामने नहीं आती। संतोष बताते हैं कि पूर्व में प्रांगण में आयोजित होने वाली सुमंग लीलाओं में जनसंख्या वृद्धि के चलते बड़े परिसर में ऊँचे मंच बना कर वर्तमान में आयोजन होता है जिसमे कलाकारों के प्रवेश और निकासी के लिए एक नियत दिशा में आवृत्त मार्ग बना दिया जाता है। पीसमेकर आर्टिस्ट एसोसियेशन दल की इस मनोरम रचना में फागी लीला (हास्य) के तत्व भी समाहित थे। इम्फाल और आस पास के गाँवों में फागी लीलााओं (हास्य लीलाओं) के अतिरिक्त पौराणिक आख्यायिकों की एकरूपता को भंग करने वाले (सउरा) विदूषक भी परिस्थितिजन्य हास्य का समावेश कर सुमंग लीला में साहित्यिक अनुरंजन का माध्यम बनते हैं , ‘खोइरेंताक’ में भी सोरा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही फेनक, रेस फुरित, ख़्वांचा पहने मणिपुर की प्रचलित पारंपरिक पौराणिक गाथा के सराहनीय प्रदर्शन से दर्शक को उत्फुल्लित करने वाले इस दल की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम होगी। हमें बताया गया कि सुमंग लीला में स्त्री का चरित्र पुरूषों द्वारा अभिनीत किया जाता है जिन्हें नूपा सुमंग लीला कहते हैं। मणिपुर में पुरूषों के आंगिक चेष्टओं का प्रदर्शन करने वाली नूपी सुमंग लीला का भी प्रचलन है जिसका मुख्यतः स्त्रीयों की टोली प्रतिनिधित्व करती हैं।
આપ બહુત સુંદર કાર્ય કર રહે હૈ.લોક સંસ્કૃતિ કે વિધ વિધ મોતી સમાન કલા કો દ્રશ્ય શ્રાવ્ય રુપ મે પિરસકર અનઠા કાર્ય કર રહે હો.
ધન્યવાદ
Madam Disha Sharma I’m very thankful to you for your article promoting our Manipuri folk theatre Shumang Leela.