गुजरात की भवाई लोकनाट्य शैली, राजस्थान की मांगणियार गायकी

ये लोग आवश्यकतानुसार एक दूसरे के समूह में प्रस्तुतियां करते हैं जैसे पोखरण के सनावड़ा के निवासी करीम खां जो गफ्फूर खां के जमाई हैं अपने पृथक समूह में भी लोकानुरंजन करते हैं और उनके दल के साथ भी गा लेते हैं।  सिंध का अजरखी दुपट्टा ओढ़े गफ्फूर खां बताते हैं कि वे अब तक 10-12 देशों की यात्राएं कर प्रतिष्ठित मंचों से अपनी गायकी का परचम लहरा चुके हैं  उनको सर्वाधिक प्रशंसा और प्रसिद्धि पेरिस में मिली। कुल मिलाकर राजस्थान की आंचलिक मिठास लिये इन गीतों की लयात्मकता , संगीतात्मकता, मार्मिकता और लयकारिता ने दर्शकों को खूब थिरकाया, आद्यान्त कलारसिक झूमते रहे और रससिक्त होते रहे। इन पारंपरिक गीतों को मूल रूप में सहेजने का जितना दायित्व मांगणियारों का है उतना ही बल्कि उससे कहीं अधिक हमारा भी है कि हम लोकगीतों के रस की गंगा को किंचित सूखने न दें।

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Comments

  1. राम जूनागढ़ says:

    આપને ભવાઈ ખકે બારે મે પુખ્તા જાનકારી પ્રાપ્ત કરકે સુંદર શબ્દાર્થ કે સાથ લિખી હૈ.
    બહુત બઢીયા .
    યુવા પેઢી કો એક નયી દિશા મે, સહી દિશા મે ,સાસ્કૃતિક વારસા કા જ્ઞાન દેને કે લિયે આપકો
    ધન્યવાદ. ?

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