महाराष्ट्र में राजा विक्रमादित्य की प्रतिमा को शनिदेव की प्रतिमा के साथ प्रतिष्ठित करने का विधान, दोनों का तेलाभिषेक किया जाता है
सरल शब्दों में कहें तो मध्यप्रदेश से सटे गुजरात प्रान्त में विक्रम सम्वत का चलन, महाराष्ट्र में शनि की ओवी और शनिदेव के साथ संलग्न राजा विक्रमादित्य की प्रतिमा का तेलाभिषेक सम्राट विक्रम के प्रति लोक के निष्ठावान लोकाचार का प्रगटीकरण ही है। सत्यान्वेषण के लिए हमने त्र्यम्बक क्षेत्र में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में परिगणित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के पीछे स्थित शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि प्रतिमा के साथ विद्यमान विक्रमादित्य के शीश के सम्बन्ध में वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पं राजेश दीक्षित से चर्चा की। उन्होंने हमें बताया कि शास्त्रों में शनिदेव की प्रतिमा के साथ विक्रमादित्य की प्रतिमूर्ति की प्रतिष्ठापना किये जाने का विधान प्रतिपादित किया गया है। शनिमहात्मय में वर्णित है कि शनिदशा की समाप्ति पर शनिदेव ने प्रकट होकर विक्रम से वरदान मांगने को कहा था जिसके प्रत्युत्तर में महाराजा विक्रमादित्य ने उनसे किसी को भी शनि दशा में प्रताड़ित नहीं किये जाने की याचना की थी। शनि तो असत्य के मार्गियों को दण्डित करने के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने विक्रमादित्य से ऐसा कर पाने की असमर्थता जताई पर या आश्वस्ति अवश्य दी कि मंदिरों में शनिदेव के साथ विराजे विक्रम राजा की अर्चना करने पर वे अराधकों के कष्ट अवश्य कम कर देंगे। तभी से पं राजेश दीक्षित जी के अनुसार शनि प्रतिमाओं के साथ धर्माचारी विक्रमादित्य के शीश को प्रतिष्ठित किये जाने की परिपाटी चली आ रही है। जिसे भूल अथवा अज्ञानतावश राहु या केतु समझकर सिन्दूर आलेपित कर दिया जाता है। उन्हीं से हमें यह भी विदित हुआ कि शनैश्चराची कथा जो कि महाराष्ट्र में सर्वाधिक प्रचलित है और जिसमें विक्रम को शनि की साढ़े साती लगने का विवरण लिपिबद्ध है वह मूलतः गुजरात भाषेची कथा से उद्भूत है और गुजरात से ही महाराष्ट्र तक पहुंची है। आतां उज्जियिनी नाम नगीं / राजा विक्रम राज्य करी / तेथील चरित्राची परी / मी असें उज्जियिनी राणा नाम माझें विक्रम / ऐसें एकता राजेश्वर / चन्द्रसेन हर्षभरित / विक्रम बैसविला सिंहासिनी याचक तृप्त केले दानीं / मग हे शनैश्वरव्रत / राजा विक्रम आचरित / पीड़ा गेली समस्त।
सौराष्ट्र शनि का प्राकट्य स्थान, पोरबंदर और द्वारका जिलों की परिमा में हाथला नामक पुनीत स्थल शनि के प्रकटित होने के कारण विशेष रूप से पूजनीय
हमने गुजरात के सोमनाथ मंदिर से सम्बद्ध अखिल भारतीय महासभा के संस्थापक पंडित कीर्तिदेव शास्त्री से संपर्क साधा और उनसे इस सम्बन्ध में प्रकाश डालने का निवेदन किया। उन्होंने बताया कि सौराष्ट्र तो शनि का प्राकट्य स्थान है। यहाँ शनि महाराज द्वारा विक्रमादित्य को दण्डित किये जाने की कथा धूमकेतु लेखित गुजराती भाषा के शनि महात्मय में वर्णित है। पोरबंदर और द्वारका जिलों की परिमा में आने वाला हाथला नामक पुनीत स्थल शनि के प्रकटित होने के कारण विशेष रूप से पूजनीय है। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण के निर्देश पर कुरुक्षेत्र में विजय से पूर्व धूतक्रीड़ा में सर्वस्व हार जाने वाले पांडव हाथला आये थे। उन्होंने शनि कुंड में स्नानोपरांत शनिदेव की अराधना की थी। 7-8 वीं सदी की निर्मिति वाला प्राचीन मंदिर परिसर मुद्गल ऋषि की तपः स्थली भी रहा है। यहाँ शनिदेव हस्ती (हाथी )पर विराजमान हैं। अतएव पूर्व में यह स्थान हस्तीधड़ और वर्तमान में हाथला के रूप में चर्चित हुआ । यहाँ शनिदेव की पनौती उतारी जाती है। मामा भांजे के साथ यदि यहाँ कुंड में एक साथ नहाता है ऐसा लोकविश्वास है कि शनि का प्रघोर प्रकोप विग्लित हो जाता है। लोकमान्यता के अनुगामी भक्त जन यहाँ जूते छोड़ नंगे पाँव लौटते हैं।सुविज्ञ शास्त्री जी ने बताया कि राजा विक्रमादित्य ने शनि की पनौती उतारने के लिए ब्राह्मण से परामर्श के उपरान्त यहाँ स्थित शनि कुंड के गंधकयुक्त जल में स्नान किया जिससे शनि के दुष्प्रभावों से उन्हें मुक्ति मिली थी । गुजराती भाषा की एक लोककथा में वर्णित है कि दानवीर धर्माधिकारी राजा विक्रमजीत एक विकल विवश सर्प को अपने उदर में शरण दे देते हैं। कुछ समय पश्चात् उदर में विद्यमान सर्प उनके लिए कष्टकारी बन जाता है। वे अपनी मार्मिक वेदना ब्राह्मण को सुनाते हैं। ब्राह्मण उन्हें हाथला में शनि पूजा करने का उपाय सुझाते हैं।शनि की मध्यावस्था में शनि सर्परूप धारणकर विक्रमादित्य के उदर में प्रविष्ट हुए थे। केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हाथला के शनि मंदिर के जल कुंड और वाव में अवगाहन की परंपरा है। शनिदशाओं के निवारणार्थ बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं। सूर्य पुत्र शनिदेव के मंदिर परिसर में एक सूर्य मंदिर भी स्थित है।
उज्जैन में शक्तिपीठ माता हरिसद्धि मंदिर के समीप जोगीपुरा में राजा विक्रमादित्य का भव्य मंदिर आस्थित, सिंधी समाज के लोग गत वर्षों से बच्चों के बाल उतरवाने उज्जैन के विक्रमादित्य मंदिर आते रहे हैं
हमने राजा विक्रम की अवन्तिनगरी में भी शनिकथा के सूत्र ढूंढने के प्रयास किये ,उज्जैन में शक्तिपीठ माता हरिसद्धि मंदिर के समीप जोगीपुरा में राजा विक्रमादित्य का भव्य मंदिर आस्थित है। यहाँ उनकी बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासनारोहण मंगलदायक विश्वरूप विराजमान है। सर्वात्मा सम्राट विक्रमादित्य को विश्वासी मानकर उनकी प्रतिमा के समक्ष मत्था टेकने वाले श्रद्धालु उनके दर्शन मात्र से शनि दोष के शमन हो जाने का भरोसा लेकर यहाँ आते रहे हैं। मंदिर में नित्य माल्यार्पण और नैवेद्य अर्पण के उपरान्त विक्रमादित्य की परमराध्या माँ हरसिद्धि की आरती गाये जाने का विधान है। गूजर गौड़ ब्राह्मणों द्वारा स्थापित इस एकमात्र विक्रमादित्य मंदिर में वेताल और कर्णावती देवी की प्रतिमाएं भी हैं।विक्रमादित्य की बत्तीस पुतलिकाओं की सिंहासनबत्तीसी न्याय परंपरा को विगत इक्कीस सौ वर्षों से विश्व की सर्वोत्तम न्याय व्यवस्था माना जाता रहा है। मंदिर के पुजारी सोहन जोशी और मंदिर के सामने स्थित गीता और चार वेद मंदिर के पुजारी श्री सूर्यनारायण उपाध्याय जी ने हमें बताया कि सिंधी समाज के लोग गत कई वर्षों से बच्चों के बाल उतरवाने उज्जैन के विक्रमादित्य मंदिर आते रहे हैं। विवाह के पश्चात् की सिंधी रस्मों के निर्वहन के लिए भी विक्रमादित्य मंदिर की गली का बहुधा प्रयोग होता रहा है । दोनों कर्मकांडी ब्राह्मण इसके पीछे के कारणों में विश्वजयी राजा विक्रमादित्य को सिंधी समाज द्वारा विश्वात्मा के रूप में देखा जाना मानते हैं । लोक स्वीकृति शाश्वत नहीं होती अस्थायी होती है और परिस्थितियों के अनुरूप ढलती जाती है।हमने यही मानकर उनकी बातों को ध्यान से सुना।
दीदी सादर चरणस्पर्श, दीदी आपने महाराजा विक्रमादित्य से जुड़ी प्राचीन चम्पावती नगरी और आधुनिक चकल्दी शहर को इतिहास के पन्नो से लाकर एक बार फिर पुनर्जीवित कर दिया। आपके इस प्रयास के लिए मेरे पास आपकी तारीफ के लिए शब्द नही है आदरणीय दीदी। मैं हमेशा आपके लेख की प्रतीक्षा करता हूँ।
बहुत सुंदर लेख
महाराजा विक्र्मादित्य और उनसे जुड़ी अनेकों महत्वपूर्ण बातें, स्थान व कार्य जो हमे लगता है कि किसी इतिहास में उल्लेख किया गया मुझे नहीं लगता क्योकि आज के इतिहास में वो ही पढाया जाता है जो सिर्फ नयी पीढ़ी के इतिहासकारों जो ये मानते हैं कि वही जो चार विदेशी व देशी इतिहास कार बिना शोध के सीमित संसाधनों के द्वारा बता देते हैं आज मैंने राजा विक्रमादित्य के बारे में वो तथ्य देखे और सुने जो आधुनिक इतिहास जान कर अनजान था राजा विक्रमादित्य के बारे में उन पर साढ़े साती का प्रकोप का होना और जुडी अनेक मान्यतायें व स्थान के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी शोध के साथ आपने ने बतायी जिससे सबसे पहले तो यह स्थान जो पहले कभी राजा विक्रमादित्य ने जिसको बसाया था व जिसका नाम चंपावती था वह कैसे इतिहास के गर्त में भूला दिया गया और जिसको सिर्फ आज एक छोटा सा गांव चकल्दी कैसे रह गया जिसे आज कोई इतिहास में उसका वर्णन तक नहीं मिलता जबकि इसके चारों तरफ उनसे जुड़ी अनेकों सबूत भरे पड़े हुये हैं चकल्दी ( चम्पावती) जो कभी कितनी सुन्दर और सम्पन्न रहा होगा ये वहा पर बिखरे पड़े हुये प्राचीन भवनों और मन्दिरों के अवशेष व भग्नावशेषों से सहज रूप से अनुमान लगाया जा सकता है परन्तु आज के इतिहासकार व पुरातत्व वेत्ता अपने को कहने वाले लगता है सिर्फ कालेज या विश्व्विद्यालयो के प्राग्ड़ में बैठकर शोध कर लेते हैं यहाँ पर जिस तरह से हमारी प्राचीन व सांस्कृतिक धरोहर हिन्दू व जैन की बिखरी पड़ी है ये सहज ही इसका बखान करते हैं ।आपका यह लेख भारतीय सनातन संस्कृति व इतिहास को समझने में आने वाली पीढ़ियों के लिए मील का पत्थर साबित होगा तथा इसके अलावा जो समाज में लोक मान्यतायें व लोकोक्तीया भी अपने अन्दर इतिहास समेटे हुए है इसे नये इतिहासकारों को स्वीकार करना चाहिए ।जिसका आधुनिक अपने को मानने वाले अनदेखा करते हैं और सिर्फ इतिहास के किताबों में लिखी लाईनो को ही इतिहास मानते हैं ।
बहुत महत्वपूर्ण ब्लाग, लोक संस्कृति एवं इतिहास का सुंदर स्वरूप है, आभार दिशा जी ?
सम्मानीय दिशा जी,
सही दिशा में सही कदम
आपको आत्मीय शुभकामनाएँ!
बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने यह इतिहास का सुंदर स्वरूप है
बहुत ही सुन्दर लेख है यह लेख अपने हम तक पहुँचाया इसके हम अपके आभारी है ओर जो यह लेख अपने किया है इससे मुझे नही की यह लेख किसी एतिहासिक पुस्तक मै मिलेगा । अपके अगले लेख का इन्तजार रहेगा।
आपका चकल्दी वाला आलेख बहुत सुन्दर और प्रामाणिक है.
आपके हम बहुत ही आभारी हैं कि आपके द्वारा हमें यह इतिहास की जानकारी प्राप्त हो रही है इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी अगली लेखनी का इंतजार रहेगा
सुधर्मी राजा विक्रमादित्य के इतिहास के बारे में हमें जानकारी के साथ हमें विक्रमादित्य से जुड़ी प्राचीन चम्पावती नगरी ,साढ़े साती का प्रकोप का होना और उनसे जुडी अनेक महत्वपूर्ण बातों का पता चला आपके अगले ब्लॉक का इंतजार रहेगा
बहुत ही सुन्दर लेख है इतिहास को एक बार फिर पुनर्जीवित कर दिया।..
*सम्मानीय दिशा जी प्रणाम*
*आपका हमारी भारतीय विरासत का सही महतीय व उपादेय संज्ञान, अपने उत्कृष्ट लेखन से हम सभी शोधार्थियों, अध्येताओं को अपनी प्राचीन विरासत से आपने जो परिचय दिया है, इसके लिए आपका आत्मीय आभार.*
*मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप इसी प्रकार हमारी भारतीय जनजातीय, लोक और पुरातात्वीय इतिहास, कला, साहित्य और संस्कृति पर, गहन अध्ययन, चिन्तन, मनन के साथ, हमेशा अपने शोधपूर्ण आलेखों के माध्यम से जन-जन तक यह संज्ञान पहुँचाती रहेंगी.*
*आपके प्रति पूर्ण सम्मान के साथ सादर.*
आपके शोध मे खोजे अवश्य प्रकाशमान है पहूच मार्ग चाहे लेखन मे प्रकाशित संदर्भ हो या साक्षात्कार के लिए अंचलों तक पहूंच की कठिनाइयों का पहलू अछूता, महसूस करता हूजो आपकी जीवटता को उजागर करता है।
ये मालव के ऐतिहासिक विकास क्रम मे सम्राट अशोक के आगमन को दर्शाते हूऐ साक्ष्यों को रखते, पौराणिक मान्यताओं कथानकों की जिज्ञासाओं से और भी सुरूचिपूर्ण बना दिया है
मालव के उत्तरी अंचल मे जीवनचक्र और उनके सांस्कृतिक, रहन.सहन, नदी घाटियों, आस्थाओं, प्रचलित किंवदंतियों, नामांकनो का सजीव प्रतिबिंब चिरकाल को आज के परिपेक्ष्य मे , साक्षात्कार करने का काम , जिसमें पग पग का भ्रमण ग्राम और ग्रामीणों तक ही नहीं, वनों से आच्छादित दुरगामी स्थानो को विस्तार पूर्वक रखने तक ही नहीं वरण उनकी गहराई तक परंपराओं को रखा है
यह सभी ज्ञानवर्धक तथ्य शोधकर्ताओं / जनमानस को अपनी ओर खीचने तक नहीं और भी सिंचित करनेवाली प्रेरणा द्योतक है।
ऐसे प्रस्तुति वाद कर्ता को मेरा नमन????
बहुत बढ़िया लिखा है
प्रकृति में व्याप्त जनजीवन को अपनी सुबोध लेखनी से चित्र -दृश्य चित्र ,कथानक के माध्यम से समेट कर लोक जीवन के रंग बिरंगे, पहनावे के साथ हाटबाजार ,पूजा स्थल, नदी ,वनगमन का अच्छा प्रलेखन है
निरन्तर लेखन के लिए शुभकामनाऐं???
No doubt you are covering the field tour dairies as a senior indologist.thank you very much.
After visiting your blog , I enjoyed getting lost in the ancient glory of Champawati and Chakaldi regions , where King Vikramaditya’s greatness came to light .The holy shrine of Chaturdik Dana Baba depicts a theme that captures the unique aspects of scientific technology of step wells magnificently constructed to harvest the water . According to my prespective, the “Great Bath” of this Chaturdik Kirtit Dana Baba Spot was an ancient technological water tank with stairs built on all four sides to reach the bottom. What makes this destination unique is that it is one of the underwater hydro religious place available in our vibrant Madhya Pradesh. Your travel diary shared interesting insights and details that document your passion for exploring ancient glories. Congratulation mam for this curious blog , your blog with marvellous photos and videos have introduced us to some of the most unique and mysterious destinations of the country.
हमेशा की तरह तथ्यों से परिपूर्ण ??
आपके लेखन में विषयवस्तु की विविधता, लिखने का ढंग और भाषा अभिव्यक्ति तथा नई जानकारी की ताजगी है। अपेक्षाकृत कम ज्ञात स्थानों के विषय में स्थानीय लोगों से चर्चा कर उस जानकारी का प्रचार-प्रसार करने का प्रयास महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है। डॉ ठाकुर का प्राचीन सिक्कों का संग्रह अद्भुत है। मैं स्वयं भी विविध संग्रह करता रहा हूं और देखकर अच्छा लगा। आपकी जिज्ञासा और खोजी प्रवृत्ति देखी जो पत्रकारिता के क्षेत्र में आपको सहायता करेगी। शुभ कामनाएं।
बहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक
लोकसंस्कृतिविद दिशा अविनाश शर्मा ने मालव सम्राट विक्रमादित्य की लोक में प्रसिद्द शनि दशा का जो चित्रण जीवंत रूप में किया वह काबिले तारीफ़ है। दिशा जी ने विक्रमादित्य का जो लोक मार्ग बताया उसी मार्ग को प्राचीन सम्राट अशोक ने भी अपनाया – यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है। इसमें दिशा जी ने लोक कथाओं, साक्षात्कारों के माध्यम से इतिहास की प्राचीनता को जोड़ा है। यदि इस ब्लॉग को गंभीरता से शोधार्थी लें तो मालवा के इतिहास में नई खोज होगी। मैं हृदय से लेखिका को आत्मीय बधाई देता हूँ। ब्लॉग में उक्त मार्ग की सुंदरता, वृक्ष सम्पदा, प्राचीन स्थल, साक्षात्कार, आदिवासी संस्कृति में जीवित सम्राट की स्मृतियाँ ये सब बड़ी रोचकता और जीवंतता से आबद्ध की गई हैं। मालवा के विद्वानों और शोधार्थी वर्ग को इस ब्लॉग से दिशा व शोध का मार्ग मिल सकता है।
Madam, you have done very good research work including inscriptions & Architecture. Most important is the text of Ashokan inscription in contest of Baudh sect named Budhani town,having with religious background of Goddess of Salkanpur.All aspects of this area are beautifully covered by you in this article. So congratulations for this creative research.
Great works Dishaji. So painstaking and time consuming, but definitely need of the hour.
साक्षात्कार करने एवं स्थलों का चित्रण करने के लिए दूरस्थ अंचलों तक पहुंचना अपने-आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसे आपने बखूबी निभाया है। आपकी लेखनी को नमन । अत्यंत मनोहारी दृष्टांत……
गहरे इतिहास-बोध और संस्कृति बोध के साथ लिखा गया यात्रा-वृत्तांत। ऐसा लेखन संबंधित क्षेत्र के भौगोलिक, ऐतिहासिक,सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से अवगत हुए बिना नहीं किया जा सकता।आपकी अध्ययनशीलता इस वृत्तांत में अनुभव की जा सकती है।आपकी जिज्ञासु प्रवृत्ति को नमन!