ग्राम विहार : उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य की बहन सुन्दरा का गांव सुन्दरसी परमारकालीन वैभविक प्रमाणों से परिपूर्ण

इतिहास भले ही सुंदरा को बिसरा दे लोक से सुन्दराबाई और राजा  विक्रमादित्य के बहनापे वाली कहानियाँ नहीं मेटी जा सकेंगी

मंदिर प्रांगण में समाधि स्थल से कुछ दूरी पर नवग्रह मंदिर, हनुमान मंदिर, गणेश मंदिर की नयी व्यवस्था को छोड़कर हम भूतभावन मृत्युंजय महाकाल मंदिर परिसर से बाहर निकल आये। शाजापुर गांव से सटी शुजालपुर मंडी के रहवासी प्रोफेसर डॉ एम.आर. नालमे से भेंटकर हमने सुन्दरसी के अतीत में झाँकने की चेष्टा की। डॉ. नालमे ने सुन्दरसी की ऐतिहासिक अस्मिता से हमें परिचित कराया। उन्होंने कहा कि पर्यटन के रणनीतिकारों को सुंदरसी को ग्रामीण पर्यटन  स्थल के रूप में विकसित करना चाहिए।स्थानीय जनता मंदिरों के प्रति शासकीय अनदेखी से क्षुब्ध है और चाहती है  कि सुंदरसी के पुरातात्विक महत्व की धरोहरों को समय रहते संरक्षित कर दिया जाये ,स्थानीय स्तर पर संग्रहालय निर्मित कर यत्र तत्र सर्वत्र बिखरी प्रतिमाओं को सुरक्षित और नियत स्थान पर अवलोकनार्थ रख दिया जाय। अब तक हम इस निष्कर्ष पर सुभीते से पहुंच गए थे किअब कोई संशय नहीं कि विक्रमादित्य की अक्षय कीर्ति को संजोने वाली पीढ़ियां अपनी आँखों के उत्स को आने वाली पीढ़ियों को सौंपती रहेंगी ,इतिहास भले ही सुंदरा को बिसरा दे लोक से सुन्दराबाई और राजा  विक्रमादित्य के बहनापे वाली कहानियाँ नहीं मेटी जा सकेंगी।न जाने क्यों मन आश्वस्ति से भरा हुआ था ।

महाकाल मंदिर से 500 मीटर  की दूरी पर तोड़ा इलाके में कब्रिस्तान में रेशम टीला,रेशमी कपड़ों का व्यवसाय करने वाले श्रेष्ठियों  की बस्ती हुआ करती थी

महाकाल  मंदिर से 500 मीटर  की दूरी पर श्मशान घाट था और लगभग इतनी ही दूरी पर विपरीत दिशा में तोड़ा इलाके में कब्रिस्तान। मार्गदर्शकद्वय देवेंद्र जीऔर कमल जी से को साथ लिए हम मंदिर परिसर के पीछे रानी के चबूतरे की ओर बढ़ गए, खेत की काली मिट्टी को रौंदकर थोप के चबूतरे तक पहुंचने का मार्ग बेढब था अभी थोड़े समय पहले तक रानी की छतरी के नाम से प्रसिद्ध यह चबूतरा संरक्षकों की बाट जोह रहा था , कुछेक ग्रामवासियों की खेतिहर वृत्ति ने चबूतरे के आसपास की भूमि को खेती के लिए उत्तम पाया और इसका कायाकल्प हो गया ,धूप को आँखों से ओझल होता देख डग भरते हुए हम शीघ्र ही रेशम टीले की ओर अग्रसर हो गए। रेशमी टीला तोड़ा मोहल्ले में स्थित था। वर्तमान में सीताफल की झाड़ियों के प्रभुत्व वाला यह प्रक्षेत्र मुसलमानों की बसाहट वाला भू-भाग था। हमें बताया गया कि रेशम टीला क्षेत्र में उगने वाले  सीताफल खाड़ी देशों में ऊँचे दामों में  बिकते रहे हैं।अब जहां सुचारु विक्रय व्यवस्था होती है वहां चाकचौबंद चौकीदारी होना स्वाभाविक है, घूरती आँखों के बीच से निकलकर हम श्वेतवर्णी मुलायम धूलि को स्पर्श करते हुए ऊपर की ओर चढ़ रहे थे ,सीताफल के झुरपुटों के बीच धूप सिमट गयी थी , देवेंद्र जी बताने लगे कभी इसी  मिट्टी की उपादेयता के कारण  विविध रंगी  कौशेय अर्थात उच्च कोटि के रेशम उत्पादन के कारण सुंदरसी चर्चित था ,शहतूत के झाड़ यहां  प्रचुर मात्रा में थे जिन पर रेशम केअसंख्य  कीड़े पलते थे।  समृद्ध व्यावसायिक केंद्र के रूप में गणनित इस क्षेत्र का उल्लेख कालांतर में भी फलते-फूलते रेशम उद्योग के रूप में होता रहा , यही कारण रहा कि निर्यातकों की आवक जावक समृद्ध सुंदरगढ़ में बनी ही रही।कमल जी बताने लगे सुंदरसी कभी  रेशमी कपड़ों का व्यवसाय करने वाले श्रेष्ठियों  की बस्ती हुआ करती थी। नगर में रेशमी कपड़े बनाने वाले कुशल कारीगर भी थे। उच्चकोटि के शहतूतों की पैदावार यहाँ बहुतायात से होती थी। पट्ट (रेशमी) वसन धारण किये सुंदरगढ़ वासी ऐसे रेशमी वस्त्रों के निर्माता थे जिनकी विख्याति सर्वत्र थी। अबुल फजल की आइने-अकबरी में जिस सुंदरगढ़ की विलासिता का चित्रजाल  मिलता है, यह वही सुन्दरसी है। ओरछोर का पता नहीं ,हम चुपचाप भटक रहे थे,बीच- बीच में प्राचीन बेलबूटेदार शिलाखंडों से साक्षात्कार होता जा रहा था।

महाकाल मंदिर से 500 मी. की दूरी पर तोड़ा मोहल्ले में रेशम का टीला

 वर्तमान में यहाँ कब्रिस्तान है। यहीं से शाह सुलतान जलालुद्दीन के शासनकाल के सिक्के स्थानीय लोगों को बहुत बाद तक मिलते रहे थे , विपणन की समुचित व्यवस्था के चलते पट्टवायों को भी  इस धरती से अत्यधिक लगाव हो गया था।गांव से उनकी  प्रीति का अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है  कि विपरीत परिस्थितियों में सुन्दरसी से मंदसौर जाकर बसने वाले पट्टवायों ने सुंदरसी  के साथ अपनी पुरानी  पहचान को कभी विलग नहीं होने दिया। देवेंद्र जी से यह भी विदित हुआ कि शहतूत की सघनता के कारण यहां का आकाश सदा इंद्रधनुषी आभामंडल से मंडित रहता था ,हम सृष्टि के पुलक की कल्पना करने लगे थे ,कब्रिस्तान में खड़े -खड़े मन में विचार स्वतः ही आये जा रहे थे जीवन के थकेहारे को इकदिन धूलिधूसर देहरी पर लौट कर आना ही होता है भला हो देवेंद्र जी का उन्होंने सोच विचार की दिशा ही बदल डाली ,सहसा बोल पड़ेजब भी आप सुंदरसी के बारे में लिखो यह अवश्य लिखना कि राजनीति के क्षेत्र में भी सुन्दरसी की रत्नगर्भा धरा ने ऐसे व्यक्तित्व दिए जिन्होंने सुंदरसी को अपने ओजस्वी व्यक्तित्व से कीर्तित कर दिया । सुन्दरसी के मालवीय परिवार के स्व. मोकमसिंह के वंशवृक्ष में भैरूलाल जी और नगराम जी का नाम आता है।इसी परिवार के  भैरूलाल जी के प्रतिभावान  सुयोग्य पुत्र कन्हैया लाल मालवीय ने अपनी राजनैतिक दक्षता के कारण सुन्दरसी का नाम राजनीति के पटल पर अंकित कर दिया था । वे पचास के दशक में शाजापुर सीट से कांग्रेस के सांसद रहे, किशनलाल जी मालवीय जो कि कन्हैया लाल जी के ताऊ के लड़के थे वे भी 1949 में  सक्रिय राजनीति में उतरे उनका चयन तत्कालीन विधायकी के लिए हुआ था । तीन बार बतौर विधायक क्षेत्र के विकास में महती भूमिका निभाने वाले मालवीय जी शाजापुर सीट से कांग्रेस के विधायक रहे। इतना ही नहीं अपनी जनसेवा से मतदाताओं के बीच में उदारवादी नेता के रूप में लोकप्रिय रहे किशनलाल जी जनसंघ से भी जुड़कर शाजापुर सीट से  विधायक बने रहे । इसी परिवार के कन्हैयालाल जी के भतीजे भागीरथ मालवीय भी 1952 में शाजापुर के सांसद के रूप में विजयी हुए  ।इन सभी राजनैतिज्ञों ने भारी बहुमत केसाथ अपने निकटतम प्रतिद्वंदियों को पराजित कर यह सिद्ध कर दिया था कि अति-साधारण जीवन यापन करने वाले अपरिमित संघर्षों से असाधारण क्षमताओं के बल पर अपने परिवार को ही नहीं अपने गांव को भी प्रसिद्धि दिला जाते हैं, राजनीति में इस परिवार का दबदबा यहीं तक सीमित नहीं रहा वरन किशनलाल जी की बहन भी गुलाना सीट से चुनाव मैदान में उतरीं थीं । बाद में मालवीय परिवार का राजनीति से मोहभंग हो गया। समाजसेवी और प्रजासेवी किशनलाल जी ने स्वार्थपरक राजनीति से मुंह फेर लिया। उनकी भावी पीढ़ी भी राजनीति से दूरी बरतती रही । सीताफल की झाड़ियों के बीच से सांय- सांय करती हवा कब्रस्तान का चुप्पापन तोड़ रही थी ,धूप भी अपना कारोबार समेट कर जाने को थी हमने तोड़ा क्षेत्र से विदा ली।

भैंरुपुरा में गोरा भैरव मंदिर में उज्जैन के काल भैरव मंदिर की भांति मदिरा अर्पण की परिपाटी ,हापाखेड़ा में परमारकालीन भग्नावशेष ,सासबहू की तलाई  

यात्रा की अगली कड़ी में काली सिंध नदी पार कर बाईं ओर गाँव के पश्चिमी छोर पर हम गोरा भैरव मंदिर के अवलोकनार्थ 2 किलोमीटर दूर भैंरुपुरा कीओर प्रास्थित हुए । नीम, बरगद, पीपल, के पुराने  त्रिवेणी वृक्ष जिनकी परिक्रमा करने और जल सींचने का विधान शास्त्रों में भी प्रतिपादित है के बीच से निकलकर भैंरुपुरा पहुंचने पर उज्जैन के काल भैरव की भांति प्रत्यक्ष मदिरा पान करने वाले भैरव जी विराजे दिखे। भैरव साधना का केंद्र रहे मालवा में रूद्र का रौद्र रूप ही भैरव कहलाते हैं। बाहर से लालिमा लिए मंदिर के भीतरी स्तम्भ पर 26 पंक्तियों में 3 भागों में विभक्त एक अभिलेख था जिस पर देवनागरी लिपि और संस्कृत भाषा में शिलोत्कीर्ण सम्वत 1200 स्पष्ट पठनीय था ,मंदिर स्थापत्य की दॄष्टि से परमारकालीन वैभव की अनुपमता लिए सुंदरसी के इस मंदिर के समक्ष एक पेड़ के नीचे  विष्णु जी की चतुर्भुजी परमारकालीन प्रतिमा को देखकर हमारे पाँव ठिठक गए।प्रपंच रहित ग्राम्य परिवेश और निविड़ वनप्रांतर में भैरव के पावन स्थान पर मदिरा लिए श्रद्धालु करबद्ध खड़े थे।संयोग से हापाखेड़ा जाने का भी कार्यक्रम बन गया ।सुंदरसी से लगभग  6 किलोमीटर दूर हापाखेड़ा हापा जी का स्थान था , सर्वप्रथम राठौर राजपूतों का मालवा के इसी  भू भाग से पर्दापण हुआ था। राजस्थान के हस्तलिखित प्राचीन भट्ट ग्रंथों में और गुजरात की पुस्तकों में क्षत्रियों के जिन 36 राजवंशों का उल्लेख मिलता है उन्हीं में सूर्यवंशी राठोड़ों की 17  शाखाएं आती हैं। कर्नल टाड की 1913 में प्रकाशित टाड  राजस्थान नामक पुस्तक का अनुवाद  गरीब चौबे और हीराचंद ओझा ने किया था। उसी का प्रथम खंड हमारे हाथ लग गया था, उसी में हमने ये सारी जानकारियां पढ़ रखी थीं। यहाँ भी परमारकाल के पुरावशेषों  का बिखराव दृष्टिगत हुआ। हापाखेड़ा गाँव के बीचों-बीच स्थित हनुमान जी के अति प्राचीन मंदिर के चौंतरे पर ही राठौरों का सती स्तम्भ स्थित था जिसकी विधि विधान से पूजा की जाती रही थी ,प्रथमदृष्टया यही  प्रतीति हो रही थी ,यद्यपि अब यह  गुर्जरों की बहुलता वाला गाँव है।

सुन्दरसी से 2 किलोमीटर आगे भैरूपुरा स्थित गोरा भैरव मंदिर, थोप का चबूतरा , स्व. श्री भागीरथ जी मालवीय, स्व. श्री कन्हैयालाल जी मालवीय

पथप्रदर्शक देवेंद्र जी और कमल जी को साथ लिए हमने अब तक चलायमान मोटर के  मुख को विपरीत दिशा में मोड़ दिया और सास-बहू की तलाई के दर्शन लाभ के लिए पहुंच गए ,यह सुरम्य स्थान सुंदरसी से अधिक दूर नहीं था । स्थानीय लोग मानते हैं कि विधर्मी आक्रांताओं से भयाक्रांत सास-बहू ने यहाँ देहोत्सर्ग किया था,आगे स्थानीय शिक्षक राजेंद्र सिंह जी के गेहूँ के खेत में हमें बावड़ी ,छतरियाँ और जैन प्रतिमाओं की प्राप्ति ने अचम्भित कर दिया था। सुन्दरसी के बसने और उजड़ने का क्रम अहर्निश जारी रहा। नए लोग बसते गए  पुराने पलायन करते गए। एक गांव न्यायप्रिय विक्रमादित्य के पुण्यकर्मों ,सुंदरा की अखंड साधना,क्षिप्र वेग से बहने वाली काली सिंध नदी की प्रवाहशीलता और भाई बहन के पावन स्नेह की अजस्रधारा से पूर्णतः सिक्त दिखाई दे रहा था ,बस अड्डे के पास प्राचीन हनुमान मंदिर परिसर में पुनः परमारकालीन सदाशिव प्रतिमा ने हमारा ध्यानाकृष्ट किया,श्वेतवर्णी यह प्रतिमा साँझ की सिरवाई में दूर से चमक रही थी कुछ ही पलों में  हम नदी  पर अधबने पुल से बड़े तटस्थ भाव से सूने आकाश को झांकते हुए देख पा रहे थे ,अंधकार मुंहबाये सामने खड़ा था नदी के पास ही मछलियों के क्रेता विक्रेताओं का भारी जमावड़ा था उनकी चिल्ल्पों के बीच विचारों का प्रवाह थम सा गया था। हम जो प्रश्न मन के कोने में डालकर सुंदरसी में प्रविष्ट हुए थे वहां अनुभवों की गठरी थी ,प्रश्न तो एकदम मूक हो गए थे। अब समय लौटने का हो गया था। मन में यही विश्वास था, दिन बहुरेंगे राजा विक्रम की बहन सुंदरा के गांव सुन्दरसी के!

एक खेत में बावड़ी और पुरावशेष, सास बहू की तलाई, हापाखेड़ा जहाँ राजस्थान से राठौर वंशीय राजपूत हापाजी सबसे पहले आए थे, गजमत्था

Comments

  1. बंशीधर बन्धु, ज़ेठरा जोड़ says:

    बहुत ही रोचक, तथ्य परख और महत्वपूर्ण। बधाई!

  2. Varsha Nalme, Ajmer says:

    Thanks maam…aadha pd liya ..bahut sunder matter n pics ?????

  3. ललित शर्मा, झालावाड़, राज. ('महाराणा कुम्भा इतिहास' अलंकरण) says:

    -पुरोवाक-

    भोपाल की सांस्कृतिक अस्मिता और लोक संस्कृति से अभिप्रेरित पत्रकार दिशा अविनाश शर्मा द्वारा एक लम्बे अरसे से मध्य प्रदेश की कई ऐसी लोकसंस्कृति धारोहरों पर ऐसा अनछुआ कार्य किया जा रहा है जिसके माध्यम से अनेक तथ्य व सांस्कृतिक पक्ष प्रकाश में आ रहे हैं।

    हाल ही में उन्होनें शाजापुर जिले के परमारकालीन सुन्दरसी ग्राम में स्थित महाकाल मंदिर तथा अन्य मंदिरों की लोक संस्कृति का चित्रण जिस प्रकार अपने परिश्रम से खींचा वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है। उन्होंने सुन्दरसी की कथा, इतिहास के साथ विक्रमादित्य की अनुजा सुन्दरबाई के वृतान्त के साथ उस क्षेत्र के ग्रामीणों, बुद्धिजीवियों, कवियों के साक्षात्कार लेकर इस महत्ता को प्रमाणित किया है। दिशा शर्मा ने इसी के साथ चित्रों के माध्यम से पुरातत्व की दुर्लभ मूर्तियों, मंदिर, स्थापत्य के साथ स्थानीय ग्रामीण, पथ, सघन वन तथा ग्रामीण आवास का ऐसा जीवन्त चित्रण किया है मानो यहाँ की संस्कृति हमसे संवाद करने को तत्पर हो। उनके इस कार्य को महसूस कर यहाँ कहा जाना सटीक होगा कि- भारत की सच्ची लोक संस्कृति के दर्शन हमें सुन्दरसी जैसे ग्रामों में ही दिखायी देते हैं। सद् प्रयास हेतु हृदय से अभिवादन।

  4. Rajendra Kumar Malviya says:

    दीदी बहुत ही सुंदर औ मनोहरी वर्णन है, आपकी लेखनी का जवाब नही है, सीधे मन मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है।। इतिहास के गर्व से निकाल कर फिर एक बार एक ऐतिहासिक सत्य से सभी अनभिज्ञ लोगो को अवगत कराने के लिए धन्यवाद।।

  5. रामाराव जाधव सुन्दरसी says:

    धन्यवाद मैडम जी हम सभी गाँव वाले आभारी हैं आप के।

  6. Indra Dikshit, Pune says:

    To much scope in Archaeology. Best wishes to U. Nice research papers.

  7. O P Mishra, Bhopal says:

    I have read the complete text and videos ,photographs related to sundarsi ancient site in Malwa region.raman Solanki and Prashant Puranikji are the scholar’s in that region.puranshahgal also give informative.your report on this topic needs no comment.excellent matter .regarding this arealocal folk songs are also be quite impressive.photographs are to be in the photo archives.now no serious scholars moving for such academic researches.thank you very much for your field work and taking interviews of the very senior citizens.you are adding new chapters in archaeology, social areas,art,architectures and religious fields.once again thank you very much for taking interest.

  8. देवेंद्र प्रजापति, सुन्दरसी says:

    जय श्री महाकाल

    आपके द्वारा भूत भावन महाकाल की नगरी सुन्दरसी (सुंदरगढ़) के अवन्ति के राजा विक्रमादित्य की बहन सुंदराबाई जिनका विवाह सुंदरगढ़ के राजा भगवत सिंह से हुआ था एवं उज्जैन में जितने भी मंदिर थे उतने मंदिर ग्राम सुन्दरसी (सुंदरगढ़) में बनाए गए, विक्रमादित्य की बहन सुंदराबाई रोज सुबह महाकाल मंदिर एवं अन्य मंदिरों में दर्शन करने जाती थीं, यह सभी जानकारी आपके द्वारा बड़ी ही सुन्दर सटीक सरल भाषा के प्रयोग के साथ वर्णित की गई है। इससे हमारी नई पीढ़ी को ज्ञान प्राप्त होगा एवं इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।

    इससे मैं आपको सहृदय प्रणाम करता हूँ।

    “जय श्री महाकाल”

  9. राम प्रसाद ' सहज ' शुजालपुर says:

    रोचक, श्रेष्ठ व संग्रहणीय ।
    ‘साहसिक कदम ‘
    ‘हार्दिक बधाई’
    ?✍️?

  10. Umesh Pathak says:

    ब्रह्माण्डीय यात्रा में हमें कब कहाँ जाना होगा यह निर्णय तो उसके निर्माता और नियन्ता के हाथ में ही होता है। पर यात्रा के अनुभव को उस मार्ग के विश्राम स्थलों के सहयात्रियों के साथ साझा किया जाता है। ज्ञानवृद्ध सहयात्री अपने अनुभवों से अग्र गमक जनों के लिए पथ प्रदर्शक होते हैं। आदरणीय बहन श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा भोपाल भी एक ऐसी सहयात्री हैं जो अपनी मार्ग दैन्दिनी (रोड डायरी) सृज कर वर्ण, ध्वनि, व चित्र पिपासुओं को सुरम्य सुखद उद्यान उपलब्ध करती हैं। उनका सुन्दरसा (सुन्दरसी) यान्त्रिक ग्रन्थ (ब्लाग) वन्दनीय व नमनीय है। विक्रमादित्य के काल से अब तक के अनगिनत सृजनधर्माओं के कर-चिन्हों व ध्वनियों के संग्रहीत और संयोजित कर रामायण रघुवंश, रामचरितमानस या कामायनी जैसा सृजन दिशा बहन आपने दिया है। इसमें इतिहास, साहित्य, संगीत और कला (नैसर्गिक दृश्य) सब कुछ समाहित हैं, इसलिए यह एक महाकाव्य है। तथा भारत भूमि के महाप्रतापी नृप विक्रमादित्य को श्रद्धावनत पुष्प गुच्छ हैं। मेरे जैसे अनुजों औद इतिहास, साहित्य, संगीत व कला अनुशीलकों को आपका लेखनीय वरद हस्त सदैव शारदीय व वासन्तिक रहे इन्हीं कामना व भगवान धरणीधर व माता गंगाजी से प्रार्थना के साथ।

    आपका अनुज,
    उमेश पाठक
    वासन्तीय नवरात्रि प्रतिपदा, वि0सं0 2077
    मौ0 चैदहपौर महीधर्राचन खडगगिरिमठ
    पो0 सोरों सूकरक्षेत्र
    जनपद- कासगंज उ0प्र0

  11. बालकृष्ण लोखण्डे, भोपाल says:

    रचियेता द्वारा तथ्यों परक अनुशोधों की तह परत दर परत स्थलों की अनुश्रुतियों/किंवदंतियों पर ही नहीं प्रमाणों को अपनी श्रृशुधा शांत करने के संकल्प में यथासंभव भ्रमणशील को नमन्ति स्वीकार हो।

  12. दिनेश झाला, शाजापुर says:

    ???? आपके द्वारा सम्पादित कार्य अत्यंत सराहनीय हैं। साधुवाद ।

  13. नारायण व्यास says:

    देखा और सुना। बहुत अच्छा शोध हैं एक सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है। सौलंकी जी ने जिस स्तूप के विषय मे उल्लेख किया है, कभी भविष्य मे मैं कभी देखने जाऊँगा। धन्यवाद

  14. Pirtam Singh Rathod says:

    बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार

  15. Vinayak Sakalley says:

    Mam , your travel blog is amazing , it motivates the historians and travel bloggers literally influenced to visit such historical landmarks. It is the privilege of late King Vikramaditya who got a laureate author like you. After reading your blog the readers have a great eye for your alluring travel destinations photography. The video content of the historians like Rajpurohit sir of Ujjain is amazing amid your blog, You are a talanted writer who creates a great content. Very inspiring blog mam??

  16. विशाल, मनावर says:

    चित्रात्मक और सरल??

  17. विशाल वर्मा says:

    अपने गौरवपूर्ण इतिहास के सत्य परिचित कराता आपका लेख। धन्यवाद

  18. रूपेश विश्वकर्मा, अमलार says:

    दीदी प्रणाम,
    सुन्दरसी के बारे में 7 भाग पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
    पुनः हार्दिक साधुवाद।

  19. अशोक पाण्डे, सिंगरोली says:

    Bahut achha rachnatmak Kary hai. Aap ki kalpna shakti anupam hai.

  20. बंशीधर ' बंधु ' शुजालपुर says:

    आदरणीय दीदी
    आपके इस मनोरम यात्रा वृत्तांत को दोबारा पढ़ने का अवसर मिला। इस बार भी एक नई दृष्टि और नए चिंतन का सूत्रपात हुआ। बार – बार जिज्ञासा होती है। बहुत कुछ अनजाना,अनछुई पुरातत्विक,ऐतिहासिक,सांस्कृतिक,धार्मिक और प्राकृतिक संपदा का रहस्य छुपा है इसमें।
    पुन:बधाई एवं शुभकामनाएं।

  21. डॉ एम सी शांडिल्य says:

    सम्मानीय प्रणाम
    अति सुन्दर पर्यटन, लेखन और सृजन

    आत्मीय शुभकामनाएँ!

  22. डॉ डमरूधरपति says:

    संस्कृति रक्षा , देश सुरक्षा

  23. डॉ डमरूधरपति says:

    श्रेष्ठ कार्य ???

  24. Ajay Khare says:

    Congratulations madam ! Beautifully written .
    the article makes it very clear that history and mythology are so intricately interwoven in India that it is difficult to sift history from mythology. It is interesting to know that people still cherish their traditions.

  25. डॉ के के त्रिवेदी, झाबुआ says:

    सुन्दरसी का नैसर्गिक सौंदर्य..प्राप्त पुरातात्विक मूर्ति-शिल्प.. और उसका गौरवमय इतिहास आपकी लेखनी से जीवंत हो उठा है।..यह अविस्मरणीय आलेख न केवल उस क्षेत्र के बाशिंदों को उपहार है,यह वर्तमान पीढ़ी को शोध के लिए प्रेरित करता रहेगा।..भूले-बिसरे ऐतिहासिक गौरव को आपने बड़ी ही सूक्ष्मता से अवलोकन-अध्ययन कर अहर्निश कठोर परिश्रम और अनुभव के साथ लिपिबद्ध किया है ।आप ऐसे ही अतीत की धरोहरों को उजागर कर लोक संस्कृति से आम आदमी को भारतीय अस्मिता से परिचित कराती रहे.. बधाई !

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