महाकाल मंदिर के पीछे मनकामेश्वर मंदिर और सूरजकुण्ड की व्यवस्था,जिसका गुह्यमार्ग उज्जैन तक जाता था सीतामऊ के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ रघुवीर सिंह ने अपनी पुस्तक में सुंदरसी जागीर के जागीरदार के तौर पर मतलब खां की तैनाती होना बताया है,सुंदरसी के पुराने लोग भी सुनी सुनाई बातों को आधार बनाकर यही बताते हैं कि उस कालखंड में यहां के रहवासियों ने चतुर्दिश टूटना ही टूटना देखा था,विच्छिन्न करने केआतताइयों के समस्त प्रयासों ने विद्रूपता की ऐसी स्थिति निर्मित कर दी थी ,जिसकी परिणति वर्षों तक यहां देखी जाती रही थी ,परिसर में भी भग्न प्रतिमाओं की दुर्दशा हमें व्यथित कर रही थी इसी तारतम्य में हमें सौभाग्य से 82 वर्षीय शंकर सिंह जी मिल गए। खंड खंड होते मंदिर की जीर्ण-शीर्ण स्थिति के प्रत्यक्षदर्शी रहे वयोवृद्ध शंकर सिंह जी ने हमें बताया कि मंदिर की टूटन उनसे देखी नहीं जाती थी , युवावस्था में उन्होनें पूर्व महंत ब्रह्मलीन स्वामी परमानन्द महाराज जी की प्रेरणा से खंडहर में परिवर्तित हो चुके महाकाल मंदिर संकुल के परिमार्जन का कार्य किया था ।शंकर सिंह जी के अनुसार उन दिनों मंदिर धूलधुसरित ,भग्नावस्था में असमाजिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था,मंदिर की टूटन और दुर्गति ने स्वामी परमानंद जी को जितनी गहराई से व्यथित किया उतना किसी और को नहीं किया उन्होंने गांववालों को पथ के कंटक हटाकर ललकारा,उनकेआव्हान पर कई लोग मंदिर की पुनर्निर्मिति हेतु आगे आये।
सुन्दरसी का महाकाल मंदिर और परमारकालीन पुरा सम्पदा, महंत स्वामी परमानन्द महाराज की समाधि
बियावान जंगल में जहाँ सत्य धुंध बन गया था, हवा सायं-सायं पुकारती थी, सुनसान का पहरा रहता था, स्थानीय लोग यहाँ आने से डरते थे। वहां एक दिन एक ऐसे साधक का पदार्पण हुआ जिसके लिए धरती का बिछौना और नीलाम्बर का ओढ़ना ही पर्याप्त था,वस्तुतः विकट परिस्थितियों में 1008 स्वामी परमहंस परित्रजकाचार्य महरिया घाट खुदलापुर (जिला फर्रुखाबाद) के तपस्वी शिष्य महंत स्वामी परमानन्द महाराज ने यहाँ आकर शिवसाधना प्रारम्भ की, भेड़ा के वृक्ष के नीचे कुटिया बनाकर निष्ठित निविड़ वन क्षेत्र में उपलब्ध पत्तियों का सेवन कर जीवन निर्वाह करने वाले स्वामी जी की तपस्विता से प्रभावित शंकर सिंह जी जैसे कई अन्य उत्साही ग्रामीणों ने मंदिर के निर्मार्जन में महती भूमिका निभाई। लगभग पाँच दशकों तक महाकाल मंदिर परिसर में निवासित रहकर अथक परिश्रम से मंदिर परिक्षेत्र का काया-कल्प करने वाले स्वामी जी को आज भी यहाँ के रहवासी ईश्वर तुल्य मानकर पूजते हैं। मंदिर में उनका भी भव्य देवालय है। बने सिंह जी जिन्होनें बतौर मिस्त्री स्वामी जी के साथ जुड़कर मंदिर के खंडित शिखर का जीर्णोद्धार किया था के उद्गार उस निःस्वार्थ सेवक के प्रति अनुभूति की अभिव्यक्ति बनकर गीत के माध्यम से हमारे सामने भी आ गए ।
हमने आकाश पाताल को अपनी ज्योति से उद्भासित करती आधशक्ति सहस्त्र भुजवती देवी हरिसिद्धि की शत्रुविमर्दिनी शक्तियों के पुंज को मां हरसिद्धि मंदिर में और इसके समीप स्थित नागणेचा देवी मंदिर में अनुभूत किया। जहां हमें देवेन्द्र जी से विदित हुआ कि परमारकालीन शैली के हरसिद्धि मंदिर की जर्जरता के कारण ही मंदिर को कुछ समय पहले ही नया स्वरूप दिया गया है।कभी राठौर राजपूतों के बाहुल्य वाले रावले के गाँव सुन्दरसी में उनकी अराध्या नागणेची देवी की प्रतिमा का आस्थित होना स्वाभाविक थाअतएव परिसर में उनकी भी प्रतिष्ठा थी। महाष्टमी के अवसर पर माँ का विशेष महापूजन करने वाला राठौर राजपूत समाज अपनी कुलदेवी को पीढ़ियों से विशेष चढ़ावा चढ़ाता आया है। पहले उनकी स्थापना हरसिद्धि देवी मंदिर में ही हुआ करती थी लेकिन बाद में हरसिद्धि मंदिर के ध्वस्त होने की आशंका से मां के अर्चाविग्रह को नए देवालय में पुनः प्रतिष्ठित कर दिया गया। मातेश्वरी मंदिर के परमारकालीन विग्रह शिल्प और मंदिर स्थापत्य से सम्बंधित सामग्रियाँ परिसर में ही सहेजकर रख दी गईं थीं । पीपल के साए में दोपहरी बैठी-बैठी ऊंघ रही थी और हम मंदिर के कोने कातंर में पुरावशेषों की पड़ताल में सक्रिय थे। लोकदेवी शीतला माता भी यहीं विराजी थीं । मन चिंतन मनन में लगा हुआ था राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्र, पंजाब में यों ही नहीं वीर विक्रमादित्य की यश गाथाएँ बखानी जातीं। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि कलयुग में त्रेता युग जैसी सामजिक व्यवस्था निर्मित करने वाले विक्रमादित्य की उज्जैन नगरी की भांति बहन सुन्दरा के गाँव में भी, शुचिता, दान, दया का निष्पादन हुआ करता था। अब तक हम मुख्य मंदिर के पीछे स्थित शिवालय तक आ गए थे जो अपेक्षाकृत लघुआकार था ,अवन्तिका नगर के सृदश मंदिरों की निर्मिति के कारण एक और अवन्तिका के रूप में लोकख्यात सुंदरसी में सर्वसिद्ध महाकाल मंदिर के पार्श्व में स्थित मनकामेश्वर मंदिर भी जीर्णोद्धार के कारण अपना मूल स्वरुप खो चुका था। पूर्व में पंचरथी विन्यास वाले इस मंदिर के सभामंडप में चार स्तम्भों पर कर्णिका एवं पद्माकृतियों का शिल्पांकन इस तथ्य को समीचीन कर रहा था कि परमार भूपतियों के शासनकाल में वह भी एक महत्वपूर्ण शिव मंदिर रहा होगा ।
आद्यशक्ति सहस्त्र भुजवती माँ हरसिद्धि देवी मंदिर और समीप स्थित नागणेचा देवी मंदिर, हनुमान मंदिर , काली सिंध नदी , भग्नावशेष मंदिर परिसर में यत्र तत्र सर्वत्र सुंदरसी के लोग मंदिर के उद्धारक महंत स्वामी परमानन्द महाराज को ईश्वर तुल्य मानकर उनको पूजते हैं घंटियों का गुंजन, शंख का निनाद, वेदों का अभ्यास, धर्म-कर्म में निमग्न सुंदरसीवासियों का महाकाल और मां हरसिद्धि की शरणागति के निमित्त अखंड नामस्मरण से अपना मनोरथ सिद्ध करना यहां के दैनिंदनी जीवन का अभिन्न हिस्सा है यह हमें अच्छी तरह समझ में आ गया था । उज्जयिनी की भांति स्वयं भैरवनाथ जहां जागृत रहकर नगर रक्षा में सन्नद्ध रहते हों और हरसिद्धि माता के भंडारे का नित्य निश्छल भाव से चरम प्रयोजन होता हो, वहां के आस्तिकोँं की आस्था का अतिरेक कैसा होगाआप भी भलीभांति समझ सकते हैं ! स्वयं सम्राट विक्रमादित्य भी तो बाबा महाकाल की कृपानुरूप मालवललामभूता उज्जयिनी की पूजनीया धरा पर म्लेच्छों से प्रतिकार लेने के लिए अवतरित हुए थे।हमने मन ही मन बुदबुदाया था । हमारी दृष्टि स्वामी परमानंद महाराज जी की समाधि स्थली पर उनकी चरण पादुका के समक्ष शीश नवाकर कृतज्ञता ज्ञापित करने वाले गाँव के बड़े-बूढ़े और युवाओं पर गढ़ गयी थी ।परिसर में मंदिर के नैकट्य ही सुंदरसी गांव में अवन्ती के सांस्कृतिक गौरववर्धन और सनातनी परम्परा को अक्षुण्ण रखने के ध्येय के अधीन राजस्थान से आकर सम्पूर्ण निष्ठा से जीवन यापन करने वाले महंत श्री हरिकृष्ण बापू का निवास था। देवेंद्र जी से पता चला धर्मानुरागी बापू जी के मार्गदर्शन में ही सुंदरसी में धार्मिक और सांस्कृतिक उपक्रमों का उपस्थापन होता है। महाकालेश्वर मंदिर की समर्चना ,भस्म आरती की संयोजना ,गांव वालों की सहभागिता से सम्पन्न होने वाली पुण्यशीला परम्पराओं के निर्वाह प्रवाह के कर्ताधर्ता बापू जी ने हमें महाकाल की सवारी और समत्व की भावना के साथ क्षिप्रेशवर मंदिर पर सम्पन्न होने वाली ४२९ फीट लम्बी चुनरी यात्रा के संबंध में सविस्तार जानकारी दी।
बहुत ही रोचक, तथ्य परख और महत्वपूर्ण। बधाई!
Thanks maam…aadha pd liya ..bahut sunder matter n pics ?????
-पुरोवाक-
भोपाल की सांस्कृतिक अस्मिता और लोक संस्कृति से अभिप्रेरित पत्रकार दिशा अविनाश शर्मा द्वारा एक लम्बे अरसे से मध्य प्रदेश की कई ऐसी लोकसंस्कृति धारोहरों पर ऐसा अनछुआ कार्य किया जा रहा है जिसके माध्यम से अनेक तथ्य व सांस्कृतिक पक्ष प्रकाश में आ रहे हैं।
हाल ही में उन्होनें शाजापुर जिले के परमारकालीन सुन्दरसी ग्राम में स्थित महाकाल मंदिर तथा अन्य मंदिरों की लोक संस्कृति का चित्रण जिस प्रकार अपने परिश्रम से खींचा वह आश्चर्यचकित कर देने वाला है। उन्होंने सुन्दरसी की कथा, इतिहास के साथ विक्रमादित्य की अनुजा सुन्दरबाई के वृतान्त के साथ उस क्षेत्र के ग्रामीणों, बुद्धिजीवियों, कवियों के साक्षात्कार लेकर इस महत्ता को प्रमाणित किया है। दिशा शर्मा ने इसी के साथ चित्रों के माध्यम से पुरातत्व की दुर्लभ मूर्तियों, मंदिर, स्थापत्य के साथ स्थानीय ग्रामीण, पथ, सघन वन तथा ग्रामीण आवास का ऐसा जीवन्त चित्रण किया है मानो यहाँ की संस्कृति हमसे संवाद करने को तत्पर हो। उनके इस कार्य को महसूस कर यहाँ कहा जाना सटीक होगा कि- भारत की सच्ची लोक संस्कृति के दर्शन हमें सुन्दरसी जैसे ग्रामों में ही दिखायी देते हैं। सद् प्रयास हेतु हृदय से अभिवादन।
दीदी बहुत ही सुंदर औ मनोहरी वर्णन है, आपकी लेखनी का जवाब नही है, सीधे मन मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है।। इतिहास के गर्व से निकाल कर फिर एक बार एक ऐतिहासिक सत्य से सभी अनभिज्ञ लोगो को अवगत कराने के लिए धन्यवाद।।
धन्यवाद मैडम जी हम सभी गाँव वाले आभारी हैं आप के।
To much scope in Archaeology. Best wishes to U. Nice research papers.
I have read the complete text and videos ,photographs related to sundarsi ancient site in Malwa region.raman Solanki and Prashant Puranikji are the scholar’s in that region.puranshahgal also give informative.your report on this topic needs no comment.excellent matter .regarding this arealocal folk songs are also be quite impressive.photographs are to be in the photo archives.now no serious scholars moving for such academic researches.thank you very much for your field work and taking interviews of the very senior citizens.you are adding new chapters in archaeology, social areas,art,architectures and religious fields.once again thank you very much for taking interest.
जय श्री महाकाल
आपके द्वारा भूत भावन महाकाल की नगरी सुन्दरसी (सुंदरगढ़) के अवन्ति के राजा विक्रमादित्य की बहन सुंदराबाई जिनका विवाह सुंदरगढ़ के राजा भगवत सिंह से हुआ था एवं उज्जैन में जितने भी मंदिर थे उतने मंदिर ग्राम सुन्दरसी (सुंदरगढ़) में बनाए गए, विक्रमादित्य की बहन सुंदराबाई रोज सुबह महाकाल मंदिर एवं अन्य मंदिरों में दर्शन करने जाती थीं, यह सभी जानकारी आपके द्वारा बड़ी ही सुन्दर सटीक सरल भाषा के प्रयोग के साथ वर्णित की गई है। इससे हमारी नई पीढ़ी को ज्ञान प्राप्त होगा एवं इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होगी।
इससे मैं आपको सहृदय प्रणाम करता हूँ।
“जय श्री महाकाल”
रोचक, श्रेष्ठ व संग्रहणीय ।
‘साहसिक कदम ‘
‘हार्दिक बधाई’
?✍️?
ब्रह्माण्डीय यात्रा में हमें कब कहाँ जाना होगा यह निर्णय तो उसके निर्माता और नियन्ता के हाथ में ही होता है। पर यात्रा के अनुभव को उस मार्ग के विश्राम स्थलों के सहयात्रियों के साथ साझा किया जाता है। ज्ञानवृद्ध सहयात्री अपने अनुभवों से अग्र गमक जनों के लिए पथ प्रदर्शक होते हैं। आदरणीय बहन श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा भोपाल भी एक ऐसी सहयात्री हैं जो अपनी मार्ग दैन्दिनी (रोड डायरी) सृज कर वर्ण, ध्वनि, व चित्र पिपासुओं को सुरम्य सुखद उद्यान उपलब्ध करती हैं। उनका सुन्दरसा (सुन्दरसी) यान्त्रिक ग्रन्थ (ब्लाग) वन्दनीय व नमनीय है। विक्रमादित्य के काल से अब तक के अनगिनत सृजनधर्माओं के कर-चिन्हों व ध्वनियों के संग्रहीत और संयोजित कर रामायण रघुवंश, रामचरितमानस या कामायनी जैसा सृजन दिशा बहन आपने दिया है। इसमें इतिहास, साहित्य, संगीत और कला (नैसर्गिक दृश्य) सब कुछ समाहित हैं, इसलिए यह एक महाकाव्य है। तथा भारत भूमि के महाप्रतापी नृप विक्रमादित्य को श्रद्धावनत पुष्प गुच्छ हैं। मेरे जैसे अनुजों औद इतिहास, साहित्य, संगीत व कला अनुशीलकों को आपका लेखनीय वरद हस्त सदैव शारदीय व वासन्तिक रहे इन्हीं कामना व भगवान धरणीधर व माता गंगाजी से प्रार्थना के साथ।
आपका अनुज,
उमेश पाठक
वासन्तीय नवरात्रि प्रतिपदा, वि0सं0 2077
मौ0 चैदहपौर महीधर्राचन खडगगिरिमठ
पो0 सोरों सूकरक्षेत्र
जनपद- कासगंज उ0प्र0
रचियेता द्वारा तथ्यों परक अनुशोधों की तह परत दर परत स्थलों की अनुश्रुतियों/किंवदंतियों पर ही नहीं प्रमाणों को अपनी श्रृशुधा शांत करने के संकल्प में यथासंभव भ्रमणशील को नमन्ति स्वीकार हो।
???? आपके द्वारा सम्पादित कार्य अत्यंत सराहनीय हैं। साधुवाद ।
देखा और सुना। बहुत अच्छा शोध हैं एक सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है। सौलंकी जी ने जिस स्तूप के विषय मे उल्लेख किया है, कभी भविष्य मे मैं कभी देखने जाऊँगा। धन्यवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार
Mam , your travel blog is amazing , it motivates the historians and travel bloggers literally influenced to visit such historical landmarks. It is the privilege of late King Vikramaditya who got a laureate author like you. After reading your blog the readers have a great eye for your alluring travel destinations photography. The video content of the historians like Rajpurohit sir of Ujjain is amazing amid your blog, You are a talanted writer who creates a great content. Very inspiring blog mam??
चित्रात्मक और सरल??
अपने गौरवपूर्ण इतिहास के सत्य परिचित कराता आपका लेख। धन्यवाद
दीदी प्रणाम,
सुन्दरसी के बारे में 7 भाग पढ़कर मन प्रसन्न हो गया।
पुनः हार्दिक साधुवाद।
Bahut achha rachnatmak Kary hai. Aap ki kalpna shakti anupam hai.
आदरणीय दीदी
आपके इस मनोरम यात्रा वृत्तांत को दोबारा पढ़ने का अवसर मिला। इस बार भी एक नई दृष्टि और नए चिंतन का सूत्रपात हुआ। बार – बार जिज्ञासा होती है। बहुत कुछ अनजाना,अनछुई पुरातत्विक,ऐतिहासिक,सांस्कृतिक,धार्मिक और प्राकृतिक संपदा का रहस्य छुपा है इसमें।
पुन:बधाई एवं शुभकामनाएं।
सम्मानीय प्रणाम
अति सुन्दर पर्यटन, लेखन और सृजन
आत्मीय शुभकामनाएँ!
संस्कृति रक्षा , देश सुरक्षा
श्रेष्ठ कार्य ???
Congratulations madam ! Beautifully written .
the article makes it very clear that history and mythology are so intricately interwoven in India that it is difficult to sift history from mythology. It is interesting to know that people still cherish their traditions.
सुन्दरसी का नैसर्गिक सौंदर्य..प्राप्त पुरातात्विक मूर्ति-शिल्प.. और उसका गौरवमय इतिहास आपकी लेखनी से जीवंत हो उठा है।..यह अविस्मरणीय आलेख न केवल उस क्षेत्र के बाशिंदों को उपहार है,यह वर्तमान पीढ़ी को शोध के लिए प्रेरित करता रहेगा।..भूले-बिसरे ऐतिहासिक गौरव को आपने बड़ी ही सूक्ष्मता से अवलोकन-अध्ययन कर अहर्निश कठोर परिश्रम और अनुभव के साथ लिपिबद्ध किया है ।आप ऐसे ही अतीत की धरोहरों को उजागर कर लोक संस्कृति से आम आदमी को भारतीय अस्मिता से परिचित कराती रहे.. बधाई !