शाजापुर जिले का इतिहास, कार्दमकवंशीय शक ,परमारकालीन क्षत्रपों की पुरातात्विक सम्पदा और लोक संस्कृति

जामनेर नौवीं सदी में जैन श्रेष्ठियों के धर्म प्रसार का केंद्र,  जैन श्रेष्ठियों के व्यापार वाणिज्य के कारण जामनेर की प्रसिद्धि पूरे मालवा में होने लगी थी

जैन अतिशय क्षेत्र के रूप में कीर्तित जामनेर, ऋषि जमदाग्नि की साधना से उद्भूत जमधड़ नदी, महिषासुर मर्दिनी का परमारकालीन मंदिर और उज्जैन जैन संग्रहालय

राजशेखर कृत बाल रामायण में श्रीराम सीता लक्ष्मण के पुष्पक विमान से अयोध्या की ओर गमन करने के क्रम में उनके उज्जैयिनी के आस-पास ज्वालामुखी के उत्सर्जन (लावा) को पार कर यमुना नदी तक पहुंचने  का विवरण मिलता है। राजशेखर ने इस उत्तर पूर्व क्षेत्र को शाजापुर क्षेत्र नामित किया है। कात्यायन ने अपने व्याकरण भाष्य में ‘कांतारपथ’, जंगलपथ, स्थलपथ और वारिपथ जैसे व्यापारिक मार्गों की चर्चा की है। कतिपय विद्वान घने जंगलों, मैदानों, जलाशयों से परिपूर्ण  शाजापुर के व्यापारी मार्ग को उसी से  जोड़कर देखते हैं। यात्रा क्रम में  जामनेर की जैन धर्मशाला के सम्मुख संरक्षित राज्य स्मारक का संकेतक दिखते ही हमारी मोटर के पहिए  एक बार फिर थम गए , जैन अतिशय क्षेत्र के रूप में कीर्तित प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का मंदिर जामनेर की प्रसिद्धि का कारण रहा  है। यहाँ की अनेक जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाओं  के  हम  उज्जैन स्थित जयसिंहपुरा जैन संग्रहालय में अवलोकक रह चुके हैं। ९ वीं  सदी के जामनेर से प्राप्त 18 विविध जैन शिल्प मूर्तिखंड संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इनमे से आठ प्रतिमाएं परमारकालीन और दस प्रतिमाएं  15वीं 16वीं सदी के आस-पास की हैं। संग्रहालय के कर्ता-धर्ता डॉ अरविन्दकुमार  जैन जी ने हमें विस्तार से तीर्थंकर पार्श्वनाथ की 6 प्रतिमाओं, तीर्थंकर महावीर स्वामी की 3 प्रतिमाओं के अतिरिक्त लाछन विहीन 7 तीर्थंकर मूर्तियों के जामनेर से मिलने की जानकारी दी थी। 3 जैन सर्वतोभद्र मूर्तियाँ भी यहाँ की दीर्घाओं में प्रदर्शित हैं। अर्वाचीन प्राचीर से आवृत्त जामनेर की जैन धर्मशला परिसर में परमारकालीन जिनदेव मूर्तियों में तीर्थंकरों और यक्षणियों के साथ वारही की प्रतिमाएँ सम्मिलित  हैं। राजस्थान के पुराविद ललित शर्मा जी ने हमें बताया था कि जामनेर नौवीं सदी में जैन श्रेष्ठियों के धर्म प्रसार का केंद्र रहा था और उन्हीं जैन श्रेष्ठियों के व्यापार वाणिज्य के कारण जामनेर की प्रसिद्धि पूरे मालवा में होने लगी थी। जामनेर से प्राप्त कुछ जैन प्रतिमाएँ  शाजापुर के पुरातत्व संग्रहालय में भी रखी हुई हैं । ऐसी मान्यता है कि ईश्वरावतार परशुराम के पिता महामुनि जमदग्नि यहाँ  तपोनिष्ठ हुए थे। जमदग्नि ऋषि ने जमदगनेश्वर महादेव पर जलाभिषेक करने के लिए जिस स्थान पर  जल प्रसूत किया था, वही स्थान जमधढ़ नदी का उद्गम स्थल कहलाया। पुरा सम्पदाओं से परिपूर्ण जामनेर की प्राणरेखा जमधड़ नदी का एक अन्य नाम  जामनद भी मिलता है । पुरातत्ववेता डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणंकर ने सर्वप्रथम इस स्थान की महत्ता को जन-जन तक पहुँचाया था। हमने जमधड़ नदी के पुराने अर्धभग्न पुल को भी देखा, सती के चबूतरे देखे और जमधड़ नदी के तीरे स्थित शिवालय के दर्शनार्थी भी बने। जहाँ पंचागुल, सूर्य-चंद्र, एक पीठिका पर शिवलिंग, त्रिमुखी ब्रह्मा, शेषशायी विष्णु, गतिधारी अश्व पर सवार चतुर्भुजी देवी वाला प्राचीन सती स्तम्भ द्रष्टव्य था। वराह की अलंकृत परमारकालीन प्रतिमा के अतिरिक्त अनेक परमारकालीनभग्न  स्थापत्य प्रखंड  हमें यहाँ सिन्दूर आलेपित दिखाई दिए। हमें पता चला कि  18 वीं सदी में करीम खान, वसील मोहम्मद,चीतू पिंडारियों के प्रकोप का भाजन बने जामनेर में भयंकर लूटपाट के कारण इस स्थान की भव्यता क्षीण  हो गयी थी । कभी यह क्षेत्र ‘आगरा’ भी  कहलाता था। अग्रवाल श्रेष्ठियों की विद्यमानता के कारण यहाँ व्यापार-व्यवसाय की दृष्टि से अपार सम्भावनाएँ थीं लेकिन पिंडारियों के विध्वंस के कारण ये लोग भी गाँव से पलायन का अन्यत्र चले गए थे। हम जमधड़ नदी के किनारे स्थित महिषासुर मर्दिनी प्राचीन मंदिर भी दर्शनार्थ गए। वर्तमान में नए स्वरुप में ढल चुके इस मंदिर में अभी भी भूमिज शैली की  परमारकालीन शिल्पगत विशेषताएँ दृष्टिगत हो रही थीं।महिषासुर को नष्ट करने वाली दयामूर्ति महिषासुर मर्दिनी की चिदानंदमयी मूर्ति के सामने करबद्ध खड़े हम यही विचार कर रहे थे कि जो कुछ दृश्यमान है शक्ति का प्रताप  है, जो नहीं है वह भी शक्ति स्वरूपा ही है। सूर्य की शक्ति जो अन्धकार को भेदती है उषा आकाश  में दिखाई देने लगी थी,हम आगे बढ़ गए।

ढाबला घोंसी, डूंगलाय, पंचदेहरिया, पत्थर की अमलाय गाँवों  में समपाद स्थानक मुद्रा वाली विष्णु की मूर्तियाँ, मंदिर स्थापत्य खंड  

डूंगलाय, ढाबला घोंसी, पंचदेहरिया, पत्थर की अमलाय और कालापीपल की पुरासम्पदाएँ

ग्रामीण पर्यटन की अपार संभावनाएं लिए जामनेर से निकलकर आगे जेठरा जोड़ पर मालवी भाषा  के समर्पित  साहित्यिक मनीषियों  में अग्रणी श्री बंशीधर बंधु जी निर्धारित कार्यक्रम केअनुसार ही  घर के बाहर ही खड़े प्रतीक्षारत मिल गए थे। उन्हीं को साथ लिए हम 10-20 किमी की परिधि में आने वाले पुरातात्विक महत्व वाले गावों के अवलोकनार्थ निकल गए , धूप की चमक में गीली हवाओं के परस से नए पत्ते, फुनगियाँ, नए कल्ले, नयी कलियाँ सब धुले-पुछे लग रहे थे। पलाश, खजूर, बबूल, आम, नीम, कौड़ा (अर्जुन), कछुए की आकृति वाली पत्ती वाले अलवा पेड़ों के बीच से होते हुए बंधु जी के साथ हम आगे बढ़ते जा रहे थे। गाँवों के बीच से निकलते हुए बंधु जी ने हमें बताने लगे  मालवा के इस क्षेत्र में उनालू छोड़ने की प्रथा रही है। उनका तात्पर्य  एक बरसात छोड़कर जमीन को विराम देने से था। रायड़ा सरसों जैसा एक पौधा भी  मालवा के इस हिस्से में रोपने की परिपाटी रही  थी, मूंगफली लगाकर खेतों में नाइट्रोजन की उपलब्धतता सुनिश्चित की जाती थी। सन की पैदावार से  धरती को उर्वर बनाया जाता था। यह सन बाद में रस्सी बनाने के काम आता था और इसका अवशिष्ट  जैविक खाद के रूप में बापरा जाता था। मार्ग में बंधु जी आम, नीम, कौड़ा, अर्जुन के वृक्षों पर कुलचिड़ा, कर्वर, तोता, पैंगा चिड़ियों की प्रजातियो के चुहल करने की बातें बता रहे थे और हम बया के घोंसले खजूर के पेड़ों से लटके हुए देख रहे थे। मालवा की धारावाहि संस्कृति के बिम्ब को नैनों में बसाते और मीठी बोली मालवी मन का मीठा लोग की उक्ति को अनुभूत करते हम बन्धु जी के साथ ढावला होते हुए पंचदेहरिया गाँव की सीमाओं में प्रवेश कर गए थे। शुजालपुर से 20 किलोमीटर दूर दक्षिणी छोर पर कभी रंगरेजियों की रंगाई के लिए विख्यात रहे इस गांव में अंदर बहुत दूर तक अतिप्राचीन ईंटों (8.6 इंच लम्बी, 5.3 इंच चौड़ी और 1 इंच मोटाई वाली) की उपलब्धता वाले घरों की बनक हमें वर्तमान में प्रचलित ईंटों से परे शुंग, कुषाण और ककैया कहलाने वाली  गुप्त कालीन ईंटों की उपस्थिति  जतला रही थीं। यह पुरशास्त्रियों के विवेच्य का विषय है। मार्ग में  शीतला माता (चेचक की देवी) , खोखला माता (खाँसी की देवी),तेजा जी , भगवान श्री कृष्ण के अवतारी  देवनारायण जी का देवरा, लोकस्तुत देवी देवताओं के चबूतरे  मिलते रहे। बंधु जी की ओर से हो रही ज्ञान वर्षा के कारण हमें नई नई जानकारियां मिल रहीं थीं।डूंगलाय गांव  के बाद  परमारों की बहुलता वाले पंचदेहरिया गाँव में आत्मीयता का वितान ताने खड़े बरगदों का समूह जन-जन के मंगल का दायित्व वहन करता दिखा, प्रकृति प्रदत्त ऐसी लुभावनी दृश्यावलियाँ कि मन दूब की भांति लहलहा उठे। न जाने कौन गांव वालों को  हमारे आने की सूचना दे आया, पलक झपकते ही पचासों ग्राम वासी हमें सरोवर के किनारे स्थित समपाद स्थानक मुद्रा वाली विष्णु मूर्तियों के पास ले आए।

शिल्प शास्त्र में भी  विष्णु की विविध मुद्राओं वाली प्रतिमाओं में स्थानक मूर्तियों का विशेष महत्व है। 55×36, 63×37 और 44×33 इंच की माप वाली  पद्म, गदा, शंख, चक्र धारण किये भगवन विष्णु की प्रतिमाओं के निकट पंचशिवलिंगों के साथ नंदी की 9वीं सदी की प्रतिमाएँ रखी हुई थीं। गाँव वालों ने हमें पाँच देहरियों पर आस्थित रहे पाँच वैष्णव मंदिरों  की जानकारी दी। जलाशय के पाल पर मोहनलाल परमार के खेत से सटे इस क्षेत्र में मंदिरों के भग्न सिरदल, विशाल शिलाखंड, अलंकृत स्तम्भों का व्यापक मात्रा में मिलना यह दर्शाता है कि यहाँ भव्य वैष्णव मंदिरों की कभी निर्मिति रही होगी। इस गाँव में विशालकाय तीन विष्णु प्रतिमाएँ आकर्षक आभामंडल पादवालय, मेखला, उपवीत सहित चतुर्भुज रूप में परंपरागत आयुधों के साथ मिलना हमें आश्चर्यचकित कर रहा था। इन मूर्तियों के शीश पर वैष्णव अवतारों का लघु मूर्तांकन दृष्टव्य था। स्कन्धों के दोनों ओर आसनस्थ ब्रह्मा और शिव वाली इन प्रतिमाओं के साथ एक क्षरित प्रतिमा, मंदिर के भग्न शिलाखण्डों का प्रचुर मात्रा में मिलना हमें क्या किसी को भी विस्मयकारी  लग   सकता था। इससे पहले ढाबला घोसी गाँव में दुमेल नदी पर भी इसी प्रकार की चतुर्भुजी विष्णु प्रतिमा रेत के उत्खनन में प्राप्त हुई थी। विष्णु के सम्मुख स्वरुप को प्रदर्शित करती  प्रतिमा के दाहिने ऊर्ध्व कर में गदा, अधोकर में वैष्णव माला बाएं ऊर्ध्व कर में चक्र व अधोकर में शंख का शिल्पांकन था यद्यपि मूर्ति पर चूने के आलेपन के कारण अलंकरण अस्पष्ट दिखाई दे रहे थे। ढावला घोंसी की  कर्ण, कुण्डल, उपवीत, और अलंकरण युक्त राजसी वैष्णव वैभिकता को प्रदर्शित करती चतुर्भुजी स्थानक देवमूर्ति और पंचदेहरिया की विष्णु मूर्तियों का दो सटे गाँवों में मिलना निःसंदेह अनुसंधान का विषय है। पत्थर की अमलाय गांव के स्कूल परिसर में कीर्तिमुख, कमल पीठिका, परमारकालीन भग्न प्रस्तर खंड सहेजे दिखे, गांवों की सड़कों पर  डगमग डगमग होती मोटर जब  752 सी नवनिर्मित राष्ट्रीय राजमार्ग पर आई तब चैन  में चैन आया।अब तक सूर्य की निष्पाप और उज्ज्वल किरणें आनन्द बिखेरने लगीं थीं।

Comments

  1. राम प्रसाद'सहज' says:

    शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।

  2. Mahendra Jat says:

    आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?

  3. ललित शर्मा, महाराणा कुम्भा इतिहास अलंकरण, झालाबाड़ (राजस्थान) says:

    अभिमत

    लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।

  4. कमलेश बुंदेला says:

    अति सुन्दर जानकारी.

  5. डॉ जगदीश भावसार, शाजापुर says:

    मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
    शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
    शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.

  6. O P Mishra, Bhopal says:

    Remark……………..
    Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.

  7. अमित मालवीय, उपाध्यक्ष, श्रमजीवी पत्रकार संघ, शुजालपुर says:

    दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.

  8. रमण सोंलकी, उज्जैन says:

    श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?

  9. निर्मल जैन, शुजालपुर says:

    आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।

  10. Mahesh Chouksey says:

    यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
    चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
    एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
    एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !

  11. संजय शर्मा, काला पीपल says:

    आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.

  12. वंशीधर ' बंधु ' जेठड़ा जोड़, चौराहा/शुजालपुर (मंडी), जिला शाजापुर says:

    प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
    सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
    ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
    आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
    आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।

  13. हरीश दुबे, महेश्वर says:

    बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
    है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
    प्रणाम दीदी ।।

  14. सुनील उपाध्याय says:

    आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।

  15. यशवंत गोरे says:

    शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।

  16. डॉ आर सी ठाकुर, महिदपुर says:

    शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.

  17. नारायण व्यास says:

    शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!

  18. Varsha Nalme says:

    बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?

  19. Varsha Nalme says:

    बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।

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