जैन श्रेष्ठी रायकरन द्वारा बसाया गया व्यापारिक केंद्र, शुजालपुर का किला, जयेश्वर महादेव मंदिर, जटाशंकर महादेव मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर, काठिया महाराज का राम मंदिर
हमारी यात्रा का अगला चरण शुजालपुर था, बंशीधर बंधु जी हमारे पथप्रदर्शक बने अपनी भूमिका का उत्तम निर्वहन कर रहे थे। जमधड़ नदी शुजालपुर की प्राणप्रद है। बंधु जी हमें बताते चल रहे थे कि शुजालपुर में इसी नद के तटीय क्षेत्र से पंचमार्क मुद्राओं से लेकर ब्रितानी मुद्राओं की प्राप्ति होती रही है। मौर्य, मौर्योत्तर काल से लेकर गुप्तकाल (चौथी-पांचवी) सदी में भी मालवा के संपन्न क्षेत्रों में श्रेणीबद्ध शुजालपुर का पुरातन नाम रायकरनपुर था। रायकरनपुरा मोहल्ले के संकेतक की ओर इंगित करते हुए उन्होंने जैन श्रेष्ठी रायकरन द्वारा बसाये गए व्यापारिक केंद्र के शनैः शनैः वृहद आकार लेने की विस्तार से जानकारी दी। बंजीपुरा और महेशपुरा मोहल्ले सबसे पहले बसावट का हिस्सा बने। बंजीपुरा पिंडारों का गढ़ रहा। यहाँ महल होने का वर्णन श्री लीलाधर जोशी की आत्मकथा में मिलता है। उसी किताब का हवाला देते हुए बंधु जी स्पष्ट करते हैं कि पिंडारे लूट के लिए हाथी घोड़े और ऊँट पर जब रवाना होते थे। उनके महल के सबसे ऊँचे स्तम्भ पर कपास के बिनौले पर तेल छिड़क कर अलाव जलाया जाता था जिसका प्रकाश पिंडारों के सरदार को 2 मील दूर काला पीपल में ये भान करा देता था कि पिंडारे लूट का सामान लेकर रवाना हो गए हैं। दोनों स्थानों के ऊँचे स्तम्भ पर की जाने वाली प्रकाश व्यवस्था, लूट की सफलता सुनिश्चित करती थी। बंधु जी किला मोहल्ले में हमें किले के ध्वंसावशेषों के अन्वीक्षण हेतु लेकर आ गए थे । भुन्सारे मुंगेड़े-जलेबी वाला स्वल्पाहार करते लोगों की दिनचर्या संकरी गलियों में अभी-अभी शुरू हुई थी। सोनियों और वैद्यजी की दुकानों के सामने मोटर कई बार फंसते-फंसते बची पर येनकेन प्रकारेण सरकती रही। बंधु जी बताते जा रहे थे द इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इण्डिया भाग-22 और कैप्टेन सी.ई लुआर्ड कृत ग्वालियर स्टेट गजेटियर भाग-1 में शुजालपुर का पुराना नाम रायकरनपुर मिलता है। अपने डॉलर काबुली चने सहित चने की अन्य आठ-दस किस्मों के कारण गल्ला मंडियों में शुजालपुर की धाक रही है। यों तो सोयाबीन की बिक्री के लिए भी शुजालपुर की ख्याति रही है। मध्यकाल में शेरशाह सूरी द्वारा विजित इस क्षेत्र पर 1542 ई में शुजाअतखान सूबेदार के रूप में तैनाती, शेरशाह की मृत्यु के उपरांत शुजाअतखान के मालवा में सत्तारूढ़ होने से रायकरनपुर को नया नाम ‘शुजावलपुर’ मिला था , जो बाद में शुजालपुर उच्चारित होने लगा था बंधु जी के पास मालवा के इस भू भाग के बारे में विपुल ज्ञाननिधि है। शुजाअतखान का मूल नाम फरीद खां था। बंधु जी किले की प्राचीर की भग्नता दिखाते हुए बताते चल रहे थे। शुजालपुर अकबर काल (1556-1606 ई) में सारंगपुर सरकार के अधीनस्थ रहा। मुगलों के बाद पेशवाओं के आधिपत्य में आ गया। बाजीराव पेशवा के विश्वसनीय सेनापति राणोजी सिंधिया को शुजालपुर की कमान सौंपी गयी। सन 1808 ई में पिंडारी सरदार करीम खां की जागीरी में इस क्षेत्र को अत्यधिक क्षति पहुंची थी। 1860 में महाराजा सिंधिया की अगुआई में शुजालपुर की सम्पन्नता पुनः लौटी।
जमधड़ नदी शुजालपुर की प्राणरेखा, किले का अस्तित्व मुगल काल से पूर्व, जटाशंकर महादेव मंदिर की भव्यता,अति प्राचीन नाग प्रतिमा
बंधु जी के सुनवैया बने हम हाँ में हाँ मिलाते रहे। शुजालपुर का किला जमधड़ नदी के प्रवाह पर ऐसे स्थान पर बनाया गया था जहां से नदी दो धाराओं में विभाजित हो जाती है। किले की समाप्ति पर दोनों धाराएं समेकित होकर नेवज नदी से युग्म बनाती हैं। हम किले से सटे श्री राम मंदिर में पं सुनील उपाध्याय जी से मिले। पीढ़ियों से पांडित्य कर्म से सम्बद्ध रहे उपाध्याय जी ने हमें बताया कि उनके अहाते के सामने जयेश्वर महादेव मंदिर भी सिंधिया शासन काल में ही अस्तित्व में आया। उन्होनें हमें अपनी पांच पीढ़ियों से विश्रुत कथाएं सुनायीं जिसमें टापू के ऊपर स्थित इस किले के मुगल काल में विश्राम गृह के रूप में उपयोग में लाये जाने की चर्चा थी। किले की भग्नता को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इस किले का अस्तित्व मुगल काल से पूर्व में भी रहा था। हमें किले के आस-पास परमारकालीन मंदिर स्थापत्य खंड दिखाई दिए। मेरी कहानी ग्राम से संग्राम तक में पंडित लीलाधर जोशी ने लिखा भी है कि इंदौर के पुरातत्व शास्त्री श्री त्रिवेदी ने किले के निरीक्षण के उपरांत उसके गुप्त काल के होने के सम्बन्ध में सूचित किया था। खंडहरनुमा इस किले में श्री त्रिवेदी ने तहखाना , बावड़ी , राम व शिव मंदिर की अस्ति का भी उल्लेख किया था। श्री जोशी ने अपनी किताब में किले परिसर में तहसील और न्यायालय कार्यालय होने की बात भी लिखी थी । लोहे का नोकदार भाले वाला नुकीला विशाल दरवाज़ा बहुत दिनों तक यहाँ विद्यमान रहा। जमधड़ नदी के बीचों बीच किले की उपस्थिति सामरिक दृष्टि से भी विशिष्ट थी अतः परवर्ती शासकों का किले के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक था। जमधड़ नदी के बहाव में आस्थित शिवाला शिवगढ़ी नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर भी प्राचीनकाल से ही शुजालपुर के रहवासियों की आस्था के केंद्र में रहा है। किले की विपरीत दिशा में काठिया महाराज का राम मंदिर है। ज्ञातव्य है कि वैष्णव साधुओं का एक उपसम्प्रदाय काठिया कहलाता है। ये लोग लंगोटी में वस्त्र के स्थान पर कमर के चारों ओर अधोभाग काठ से ढांक लेने के कारण काठिया साधू कहलाते हैं। सर्वस्व त्यज्य कर सायुज्य लाभ ही जिनकी चरम प्राप्ति हो, भक्ति के साथ प्रपत्ति भी जिनका परम ध्येय हो ऐसे साधकों की साधना स्थली रहा यह स्थान सत्वगुणों की अनुभूति कराता रहा है। यहीं एक शिवलिंग प्रतिष्ठित है और एक प्राचीन वापी भी है। मंदिर प्रांगण में दो शिलालेख आस्थित हैं जिन्हें रंगरोगन के कारण पढ़ना असंभव है। मंदिर के पार्श्व में एक खेत में समाधि पर चरण चिह्नों का शिल्पांकन है जो इस बात का द्योतक है कि अतीत में यहाँ वैराग्य मूलक संगठन सक्रिय थे जो आध्यात्मिक चिंतन-मनन धर्म प्रचार के साथ-साथ जनता जनार्दन की सेवा भी किया करते थे।
तहसील शुजालपुर का किला, परमारकालीन जटाशंकर महादेव मंदिर, काठिया महाराज का मंदिर और जमधड़ नदी
धरती को सींचती तरल नदी जमधड़ की उदारमना प्रवृति के आगे हम नतमस्तक थे। अपनी लघुता में वह शुजालपुर की समग्र मलिनता लिए निश्चल भूमिका के प्रति सजग-सचेष्ट अग्रसर थी। पटवा सेरी, ओसवाल सेरी, नेमा सेरी से निकलते हुए शहर से एक कि.मी. की दूरी पर जटाशंकर महादेव मंदिर हमारी यात्रा का अगला पड़ाव था। कब्रिस्तान से सटे इस भव्य मंदिर का मूल स्वरुप बंधु जी के अनुसार परमारकाल की देन रहा। उज्जैन के वरिष्ठ पुराविद डॉ. रमण सोलंकी ने अपने अनुशीलन में इस मंदिर और मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग को परमारकालीन ही अभिहित किया है। उन्होनें मंदिर के निकट एक नाग प्रतिमा का भी उल्लेखन किया है। हमने भी मंदिर में प्रविष्टि से पूर्व करबद्ध स्थानक अवस्था में उसी ध्यानस्थ नाग प्रतिमा के दर्शन किये। शीर्ष से आवक्ष तक मानुषिक, सर्प की अधोदेहाकृति, शीश पर पंच नागफणावलियाँ, कर्णकुंडल, ग्रेवयक, सुशोभित इस नाग प्रतिमा के आसनस्थ शैवसाधकों की लघु प्रतिमाऐं भी शिलांकित थीं। हमने वरिष्ठ पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास से संपर्क साधा और नाग प्रतिमाओं के बारे में जानकारी ली। उन्होंने बताया की कर्कोटक नागों का फैलाव मालवा के बड़े भूभाग में रहा है। कर्कोटक नाग मध्ययुगीन सभ्यता के प्रतीक रहे हैं जो मातृ उपासक थे और नटराज रूप की पूजा करते थे। उन्होंने शुजालपुर की नाग प्रतिमा को राहु अथवा केतु सृदश आकृति के कारण राहु प्रतिमा संज्ञित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्राचीन काल की मिलने वाली राहु अथवा केतु प्रतिमाओं की मुख मुद्रा शुजालपुर की नाग प्रतिमा के जैसी हुआ करती थी। डॉ. व्यास ने इस स्थान के अन्वेषण द्वारा एक और नाग प्रतिमा को खोजे जाने की आवश्यकता बताई। यद्यपि रंगलेपन के कारण नाग प्रतिमा का स्वरुप परिवर्तित हो चुका था , वैसे ही जैसे जीर्णोद्धार के कारण जटाशंकर महादेव मंदिर की भव्यता को पुराने छायाचित्रों से मिलान कर पहचान पाना भी कठिन था। परिष्कृत रूप में 0.439 हेक्टेयर भूमि पर विस्तारित इस आशुतोष शिव के आलय में हमारी भेंट श्री विष्णु प्रसाद सिंहल जी से हुई। वे मंदिर के न्यासी अध्यक्ष हैं और शुजालपुर गल्ला मंडी व्यापारी संघ के सचिव भी हैं। उन्हीं से हमें विदित हुआ कि मंदिर के आस-पास की भूमि को परिष्करण द्वारा सुदर्शन बनाया गया है। श्री सिंहल के अनुसार घरेलू और ग्रामीण पर्यटन की सभी आहर्ताएं पूर्ण करने वाले इस स्थान को और अधिक शोभनीय बनाये जाने के लिए शासकीय रणनीतिकारों की सहायता आवश्यक है। हमने भी पाया कि स्थानीय स्तर पर किये गए प्रयासों से मंदिर को गरिमामयी भव्यता प्रदत्त हुई है पर यहां अभी भी बहुत संभावनाऐं हैं । उन्हीं के ज्ञात हुआ कि इससे पूर्व सिंधिया काल में भी इस मंदिर का नवीनीकरण किया गया था। यहां यह धारणा प्रबल है कि मुग़ल शासकों की कालावधि में इस मंदिर को भी अन्य देवालयों की भांति क्षतिग्रस्त किया गया था। कहते हैं शिवलिंग को छिन्न-भिन्न करने के सभी प्रयास विफल होते गए थे और अंततः सिपाहसालारों के हाथ सिर्फ जटाएं ही आती रहीं थीं। जटाधारी शिव की इच्छा के बिना मुक्ति और भुक्ति कहाँ संभव है, भला बताइये । हमें यह भी पता चला कि यह तपस्वियों की तपोभूमि रही है। लगभग 400 वर्षों तक अपनी तपः शक्ति के बल पर इस पुनीत स्थान को जाग्रत व तपः पूत किया जाता रहा है। इसी का प्रताप रहा कि चाहकर भी मुग़ल शासक जटाशंकर महादेव के शिवलिंग का बाल भी बांका नहीं कर पाए।
शाजापुर जिले की पुरातात्विक सम्पदा को समेटने का सचित्र, रोचक, संग्रहणीय एवं साहसिक सराहनीय प्रयास। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।
आपके लेखनी की कारीगरी हमेशा नये नये आयाम स्थापित करती है! बहुत बहुत धन्यवाद?
अभिमत
लोक संस्कृति के विविध आयामों को रोड मैप के ब्लॉग द्वारा जन जन में प्रसारित करने वालीं श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा जी का ‘शाजापुर मालवा’ पर सचित्र लिखा ब्लॉग अध्ययन किया। पूरे जिले का प्रथमबार, पुरातात्विक, लौकिक, सांस्कृतिक विवरण मनोभावों से संजोया गया है। क्षेत्र की सुन्दर लोक कथाएँ, गीत, धरोहरों के सुरम्य दर्शन के साथ मालवी संस्कृति का विकास पृष्ठ दर पृष्ठ संजीव हो उठा है। जिले की मिट्टी से लेकर प्राचीन मूर्तिकला पर पुरवेत्ता रमण सोलंकी का साक्षात्कार, साहित्यकार बंशीधर बंधु का शुजालपुर की प्राचीनता पर साक्षात्कार, सुन्दरसी के मराठाकालीन प्रशासन का मालवा में वैशिष्ट्य पर सम्मानीय प्रो. एम. आर. नालमे सा. का वैदुष्यपूर्ण साक्षात्कार, शाजापुर की समग्र संस्कृति संस्थापना पर स्वनाम धन्य डॉ. जगदीश भावसार का गंभीर साक्षात्कार ने ब्लॉग की पुष्ठता को सिद्ध किया है। ब्लॉग में श्रृंगार, आभूषण, भजन, पहनावा, दर्शनीय स्थल, प्राकृतिक दृश्यावली एवं प्रसिद्धि की वस्तुओं के प्रभावी प्रदर्शन ने ब्लॉग को श्री युक्त बनाया है। मालवा में इस ब्लॉग से इस क्षेत्र का महत्व स्पष्ट परिभाषित होता है। मुझे विश्वास है दिशा जी ऐसे ही ब्लॉगों से मालवा की संस्कृति का सारस्वत भण्डार भरती रहेंगी।
अति सुन्दर जानकारी.
मालवा अंचल के इतिहास संस्कृति , परंपरा ,लोक उत्सव एवं पर्यावरण संरक्षण की जिज्ञासु श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले के अतीत में बिखरी प्राचीन पूरा महत्व की संपदा के साथ साथ लोक जीवन के विभिन्न आयामों की झांकी प्रस्तुत की है इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए शहर से सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की गली चौबारा का अपने बहुआयामी अनुभव से भ्रमण कर क्षेत्र का लौकिक चित्रण प्रस्तुत किया है शाजापुर जिले के इतिहास शिल्प -स्थापत्य ,लोकजीवन रीति रिवाज , वेशभूषा आभूषण ,लोक कला ,चित्रावण , लोकगीत आदि के माध्यम से मालवा के शाजापुर जिले की महत्ता को प्रदर्शित किया है । शाजापुर जिले की समग्र जानकारी से संजोया संवारा मनभावन नया एवं रोचक प्रसंग जनमानस के लिए इतिहास एवं संस्कृति परख सिद्ध होगा
शाजांपुर जिले के इतिहास की जानकारी के पुरोधा श्री राजपुरोहित जी , रमन जी सोलंकी , इतिहासविद ललित जी शर्मा, बंशीधर जी बंधु, प्रोफेसर नामले एवं ग्रामीण जन के विचार एवं साक्षत्कार ने इस सचित्र ब्लॉक को प्रामाणिकता प्रदान कर दी है
शाजापुर जिले की निरंतर प्रवाहित लोक संस्कृति चेतना के इस ब्लॉक के लिए अनेक मंगलकामनाएं.
Remark……………..
Excellent documentation of shajapur covering all aspects of this district. You covered agriculture, forest, religion, folk art and culture. While starting local worship song , interviews of the local and indological experts, pandit Ji, which proves the rout level research. Documentation of the sculptures, architectural remains of the paramaras period. I am happy to know that sawa grain still available in that area.. Sun worship vaishnava, dasavatar images are the unique sculptures to prove the shaving and vaishnava from early to modern times. Prehistoric tools and also chalcilithic habitation proved the establishment from the proto-historic to the medieval time state Archaeology department have the museum to highlight the cultural development. Thank you very much for such valuable information.
दीदी आपकी लेखनी को सलाम करता हूं.
श्रेष्ठ रचना, गंभीर शोधकार्य ?
आपकी लेखनी की जितनी प्रशंसा की जाये अपने आप में वह कम होंगी,बहुत सुन्दर लिखा है, भाषा बहुत उच्चस्तरीय है,हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।
यह वह वृतांत है जिसके द्वारा पाठक पाएगा कि उसके विचारों का क्षितिज अनंत में विस्तारित हो गया है !
चाहे वह किसी भी वर्ण या जाति का क्यों ना हो !
एक अद्वितीय वृतांत एक स्मारकीय कार्य,
एक आनंददाई विनोद एवं प्रेरणात्मक यथार्थता से वर्णित! आपका बहुत बहुत आभार !
आपका लेख मैंने आज पड़ा पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा मैं आपके जितना शब्दों को एक सूत्र में नहीं लापता वाकई आपकी जानकारी और आपका ज्ञान काबिले तारीफ है मैं आपका फोन नहीं उठा सका इसलिए क्षमा चाहता हूं मुझे लेख पढ़कर और अन्य जानकारियां मिली जो मुझे पहले कभी नहीं मिली थी और आशा करता हूं आगे भी आपसे जानकारियां प्राप्त करता रहूं.
प्रखर ब्लाग लेखिका श्रीमती दिशा अविनाश शर्मा ने शाजापुर जिले की शस्य श्यामल माटी में रचे बसे नैसर्गिक सौंदर्य से संपृक्त गांवों की पगडंडियों पर साहसिक यात्रा कर समेटा गया नदियों,खेतों,फसलों और वृक्षों का उल्लेख तथा सजीव दृश्य मनमोहक है।
सामाजिक,धार्मिक,आध्यात्मिक और पुरातात्विक महत्व की संपदाओं पर संबंधित विद्वान डॉ रमण सोलंकी जी, डॉ जगदीश भावसार जी ,प्रो. एम.आर. नालमे , श्री राजपुरोहित जी और इतिहासकार श्री ललित शर्मा जी के महत्वपूर्ण साक्षात्कारों से प्रमाणित आपके द्वारा किया गया सचित्र जीवंत उल्लेख अभिभूत कर देता है।
ब्लाग में सहेजें गए भजन,भोपा द्वारा स्तुति गायन,लोक गीत,लोक कथाएं,लोक कलाएं ,लोक नृत्य, स्थापत्य तथा पहनावा,आभूषण एवं श्रृंगार आदि का सजीव चित्रण,शाजापुर जिले की जीवित लोक संस्कृति को रेखांकित करता है।
आशा है आपका यह लेखकीय श्रम लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रेरित करेगा।
आत्मीय बधाई और शुभकामनाएं।
बहुत विस्तार से सचित्र जानकारी
है । आपकी प्रतिभा और परिश्रम
प्रणाम दीदी ।।
आपकी लेखनी पूर्णत: सराहनीय है। आपने वास्तव में गागर में सागर भरने का उच्चतम कार्य करके वर्तमान और भविष्य में आने वाली पीढ़ी को अपनी ही धरोहर के प्रति इतिहास का परिचय कराया। तथा प्राचीन धरोहरों को अपने लेखनी और चित्रों के माध्यम से एक नया आयाम दिया। मां सरस्वती एवं वसुंधरा देवी की कृपा एवं आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे ऐसी हम कामना करते हैं।
शोध जनक लेख साथ में चित्रों के माध्यम से उसकी पुष्टि। पढकर क ई जानकारी यों से अवगत हुए। भाषा का प्रयोग भी उच्च स्तरीय है। बधाई एवं शुभकामनाएं।
शाजापुर जिले की समग्र जानकारी लिए सचित्र आलेख बहुत बढ़िया लिखा गया है.
शाजापुर जिले का पुरातत्व, आपने बहुत सुंदर एवं महत्वपूर्ण ब्लॉग लिखा है। युगयुगीन इतिहास जो पाषाण युग से बाद तक का उचित वर्णन किया है ।विशेष रूप से पाषाण युग के गोलाश्म। क्योंकि प्रतिमाएं सब जानते हैं,पर्ँतु प्रिहिस्टोरिक जानकारी नहीं मिल पाती हैं। रमण जी ने अच्छे तरिके से प्रतिमाओं का वर्णन किया है।विशेष रूप से विष्णु, सूर्य, पार्वती, ब्रम्हा, इत्यादि का तुलनात्मक वर्णन किया है। आपको बधाई और शुभकामनाएं!
बहुत सारगर्भित ,जानकारीपूर्ण आलेख , photos के साथ सुन्दर प्रस्तुतिकरण बधाई दिशाजी ?
बहुत सारगर्भित आलेख। फोटो और इंटरव्यू के द्वारा आपने इस सफर को बहुत रुचिपूर्ण और हमे जिज्ञासु बना दिया ।बधाई दिशा जी।